Wednesday, April 6, 2011

love diary 4

अध्याय-१० 
उसी रात को.
मैं बिस्तर पर- तकिया अपने अंक में दबोचे- रजाई में पड़ी हुई थी जब फोन बजा.मैंने फोन उठाया,जो बिस्तर के हेडबोर्ड पर रखा हुआ था.स्क्रीन पर लुक दी तो उसपर शशांक का नम्बर फ्लैश होता पाया.
मेरा दिल धड़का.
घडी को लुक दी.
वो रात के सवा दस बजा रही थी.
" हेल्लो."-मैंने कॉल रिसीव की.
अपनी आवाज को सुसंयत रखा.
" hi, how  r u?"-शशांक का स्वर मेरे कान में पड़ा.
"fine."-मैंने कहा-" इस वक्त कहाँ हो?"
" ट्रेन में. दिल्ली से चल चुका हूँ."
"ओह"
"नाराज हो?"
मेरा दिल  धक् से रह गया.
"क-क- किस लिए?"
"दोपहर वाली हरकत के लिए."
"that was ok"-मैने अपना लहजा नॉर्मल रखा-"कुछ गलत हो जाता तो सचमुच गलत होता "
दूसरी तरफ ख़ामोशी  छा गयी.
चंद पलों की ख़ामोशी के बाद शशांक ने कहा-"पलक, मम्मी तुमसे मिलना चाहती हैं."
"क्यों ?"
"she want to talk to u."
" किस बारे में?"
" हमारे बारे में."
मेरी सांसे थम-सी गयी मानो.समूचा बदन कांपकर रह गया. शशांक लगातार खता चला जा रहा था-" पलक, कल किसी समय उनसे फोन करके ये बता देना कब पहुँच रही हो? एक बार उनसे मिल जरूर लेना"
"ओ.के."-मैंने बस इतना ही कहा.
***
घर्रर्र..घर्रर्र.
मैने जब शशांक के घर की डोरबैल बजाई तो मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था.मैं कॉलेज से सीधी वहीं गयी थी.दरवाजा शशांक की मम्मी ने यानी मिसेज संजना यादव ने ही खोला था.
वो मुझे देखते ही चहकी-"ओह, आ गयी तुम.............कम-इन"
वो मुझे लीविंग में में ले गयी.वहां मुझे उन्होंने बड़ी ही मुहब्बत से बैठाया. मुहे चाय दी. चाय के साथ इतने स्नैक्स लाकर दे दिए कि लंच की जरूरत ही खत्म ही गयी.उस दौरान मेरी नजर फर्श में ही धंसी रही.मिसेज यादव ने ही बात कि शुरुआत की-"कल तुम इतनी जल्दी क्यों चली गयी थी?"
" जी, घर से आये काफी देर हो गयी थी."-मैंने नजर झुकाकर कहा-"जब आप आई थी तो मैं जा रही थी."
"तो थोड़ी देर और रुक जाती."-मेरे चेहरे पर नजर शार्प करके टिकाते हुए कहा-"कम-से-कम इतनी तो रेस्पेक्ट तो करनी थी. अगर मैं रोक रही थी तो रुकना था. कुछ देर बातचीत करती तो मुझे तसल्ली हो जाती."
"सॉरी आंटी."-मैं सकपकाई-" ऐसी बात नहीं है कि मेरा मन आपसे बात करने का  नहीं था.बट,तब मुझे जल्दी घर जाना था."
"क्यों?"-उनकी नजर और शार्प हो गयी.
"ज-जी...व्-व्-व्-वो काम था."-मैंने बहाना बनाया. 
मगर वो बेहद शार्प थी.बोली-" काम था या मुझे फेस करने की हिम्मत नहीं थी."
"जी!"-मैं सन्न रह गयी.
झटके से उनकी तरफ देखा.
उनका चेहरा कोरे कागज कि तरह सपाट था.वो लगातार मेरी ओर देखे जा रही थीं मानो मेरे अंदर की उथल-पुथल की गति को माप रही हो.
"आंटी,"-मैं मिमियाई-"आप गलत समझ रही हैं.हम कुछ भी गलत नहीं कर रहे थे."
"तो क्या कर रहे थे?"
"just chating."
वो हौले-से हंसी-"ohh....reaaallly.....अभी तो तुम कह रही थी कि तुम बस जा रही थी."
" म-म-म-मैं..."-मैं बुरी तरह बौखलाई. मूंह में जैसे दही जम गयी थी. हालत रंगे हाथो पकडे गये चोर कि तरह हो गयी जिसने कोतवाल को ही नहीं जज को भी सामने देख लिया हो.
वो फिर गम्भीर हो गयी-" सच बताओ ,कल कुछ हुआ था ना तुम दोनों के बीच ?"
"थेंक्स टू यू आंटी कि होते-होते बच गया."-मेरे मूंह से बेसाख्ता ही निकल गया.आवाज में तब भी मिमियाहट थी-" बिलीव मी आंटी मेरा वैस इरादा नहीं था.अगर मुझे पता होता कि ऐसी नौबत आ सकती है तो या तो मैं यहाँ आती ही नहीं या नेहा के साथ ही चली जाती."
" शशांक को पसंद करती हो?"-उनके होंठो पर वात्सल्यपूर्ण मुस्कान खेल गयी 
मेरा मुखड़ा बरबस ही सिन्दूरी हो उठा.
मैं समझ तो  पिछली रात को ही गयी थी कि वो हमारे रिश्ते के लिए रजामंद थी-तब प्रूफ भी मिल गया था. 
सोफे पर वो  मेरे और पास को खिसकीं.
ह्या के बोझ के कारण मेरी पलकें और झुक  गयी थी.   नजर फर्श में और धंस गयी. शहद की सी मिठास से भरे स्वर मे उन्होंने फिर सवाल किया-" शादी करोगी शशांक से??????"
"आंटी........इस ब-बारे में पा ही तय कर सकते है."-मैंने कांपती हुई आवाज में, नजर झुकाए  हुए ही कहा-" मैं उनसे बाहर नहीं जा सकती."
" हम लोग तुम्हारे पापा से बात करेंगे."-वो लाड से मेरी ठोड़ी थामकर अपनी ओर घुमाकर मेरा चेहरा ऊपर करती हुई बोलीं-" हम्म्म्म,वैसे भी मेरे बेटे ने हीरा पसंद किया  है, तुम्हे हाथ से कैसे जाने दू? तुम फ़िक्र मत करो-मुझे लगता है हम तुम्हारे पापा को आराम से मना लेंगे."
मेरी पलकें जरा-सी ऊपर नहीं उठीं.
मेरी रग-रग में बिजली-सी  दौड़ रही थी.
एक मधुर संगीत-सा मेरे कानों में गूंजने लगा था.मेर चेहरे को देखती हुई वो बोली-" सच, शर्माती हुई कितनी खूबसूरत लगती हो तुम-ऐसा लगता है जैसे पूर्णिमा का चाँद सिन्दूर में नहाकर मेरे सामने आकर बैठ गया हो."
शर्म की वजह  से जब मैं उनकी नजर का सामना ना कर सकी तो उनसे लिपट गयी.
एक वात्सल्यमयी माँ की तरह उन्होंने मुझे अपने अंक में समेट लिया.साथ ही बोली-" सुनो, हम चाहते है जब वो ट्रेनिंग पूरी कर ले तो शादी की बात हम आगे बढाएं. फिर भी- अगर तुम लोगों के बीच `वैसा' कुछ हो जाए-जो कल होते-होते रह गया -  तो बता देना. हम तुरंत शादी करवा देंगे."
" अब मैं वैसी नौबत ही नहीं आने दूँगी."- मैं बुदबुदाई 
***
मैं शशंक के घर से सीधी अपने घर मेरे पैरों में पंख लग गए थे जैसे.
 मैं ड्राइंगरूम में, किताबें सम्भाले, दौड़ती हुई सीढ़ियों की तरफ भागी जा रही थी.तो कहीं पीछे से शबनम आंटी की आवाज उभरी-" बेबी अब तक कहाँ थी? खाना लगा हूँ?"
" नहीं आंटी."-मैंने पीछे मुड़े बिना, अपनी स्पीड कम किये बिना ही, कहा-" मुझे भूख नहीं है आंटी.लगेगी तो खुद  खाना मांग लूंगी. "
ओर मैं कुलांचे भर्ती हुई सीढ़ियों पर चढ़ती चली गयी.
***
अपने रूम में पहुंचते ही मैंने किताबे अपनी स्टडी टेबल पर फेंकी और पर्स में से मोबाइल निकालकर नेहा का नम्बर डायल  किया और अपन बैडरूम की बालकनी की तरफ बढ़ गयी. दूसरी तरफ बैल जा रही थी. ख़ुशी के कारण मेरा बुरा हाल था उसे मैं नेहा से शेयर करना चाहती थी लेकिन पता नहीं वो कहाँ पर चली गयी थी कि फोन नहीं  उठा रही थी.
खैर.
उसने फोन उठाया, कॉल रिसीव  की-" हेल्लो."
" कहाँ मर गयी थी?"-मैं भुनभुनाई-" इनी देर से कॉल कर रही हूँ. फोन क्यों नहीं उठती?"
" टायलेट गयी थी, यार. तू क्यों तडप रही है? क्या बात है?"
बालकनी की रेलिंग थामकर मैंने पूर्ववत्त उत्तेजित स्वर में कहा-"ख़ास बात ही तो है, स्टुपिड. बहुत ख़ास बात है -तभी तो आते ही तुझे फोन किया."
" क्या बात है?"-उसने रस लेते हुए कहा-" तेरा एंग्री यंगमैन  सुपरमैन बनकर उड़ने लगा है क्या?"
" वाट रबिश"- मैं भन्ना उठी.-" माइंड योर लेंग्वेज . वो मेरा नहीं हैं. उससे मेरा कोई रिश्ता नहीं है."
" तो क्या ख़ास बात है?"
"यूं नो....मैं अभी शशांक के घर से आ रही हूँ."
" अच्छा, क्यों गयी थी?"
" उसकी ममा ने बुलाया था."-मैंने चहकते हुए बताया-" एक्चुली , कल रात को शशंक का फोन आया था. वो तब ट्रेन में ट्रेवल कर रहा था-उसी ने कहा था -आज मैं उसके घर जाकर उसकी ममा से मिल लूं ."
" ओह! but why?"
" क्योंकि, वो हमारी शादी  के लिए रजामंद हैं. इडियट ."-मैं ख़ुशी से चीख ही पड़ी थी उस बार-"वो शशांक की ट्रेनिंग खत्म ही जाने के बाद हमारी शादी करवा देने को कहा रही थी........"-उसी पल आगे के शब्द मानो मेरे हलक में ही घुटकर रह गये. जुबान को मनो लकवा मार गया हो. शरीर में सर्द सनसनी-सी दौड़ गयी.
नीचे...........मेरी बालकनी के ठीक नीचे झूले पर `वो'  लेते हुए थे. उनका चेहरा ऊपर की तरफ ही था. एकटक मेरी ओर देखे जा रहे थे.
नो डाउट, वो मेरी सारी बातें सुन चुके थे.
मैं  तत्काल पीछे हट गयी.
" पलक, क्या हुआ?"-दूसरी तरफ से नेहा की आवाज उभरी.
"गडबड हो गयी, नेहा"-मैंने नर्वस स्वर में कहा-"उसने सब सुन लिया है ."
" किसने?"
"एंग्री यंगमैन ने."
" पर वो इस वक्त वहां क्या कर रहा है?"-नेहा की आवाज में मुझे उलझन साफ़ महसूस हो रही थी-"उसे तो इस वक्त तेरे पापा के साथ में फर्म में होना चाहिए."
" अरे!!!!!!!!"-मई भी उलझ गयी-"हाँ, उसे तो फर्म में होना चाहिए"
***
कुछ भी हो-पर रायता तो बिखर चुका था.
और मैं बेचैन भी हो चुकी थी.
मुझे यकीन था- वो ये बात पापा को जरूर बता देने वाले थे. यदि पापा को पता चल जाता तो पता नहीं वो क्या सोचेंगे? कैसे रिएक्ट करते?
या ये भी हो सकता था कि टिपिकल  भारतीय पापा की तरह बेटी के अफेयर  की बात सुनकर कोई लड़का अपनी बिरादरी में देखते और मेरा हाथ उसके हाथमे दे देते.
अभी शशांक शादी करने के लिए शादी के लिहाज से तो बालिग तक नहीं था.हम दोनों अठारह के उसी साल हुए थे - सो उसे शादी करने के लिए कानूनन दो साल और इन्तजार करना था.
क्या करूं?
इसी उलझन में मैं दसियों मिनट तक बैडरूम में अपनी अगुलियों को मरोड़ती हुई, इधर-उधर चक्कर लगती रही.फिर मैं निर्णयात्मक लहजे में अपने रूम से बाहर निकली और डाउन- स्टेयर्स ड्राइंग-हाल में आ गयी. मुझे वहीं शबनम आंटी मिल गयी. मैंने उन्हीं से सवाल किया-"शब्बो आंटी, ये पा के असिस्टेंट यहाँ क्या कर रहे हैं???"
" कुछ तबीयत वगैरा ठीक नहीं है."-शबनम आंटी ने बताया-"इसी वजह से जल्दी आ गया है....आपको खाना खाना है?"
"नहीं"-मैं उग्द्वेलित भाव से बोली-"पर आपको ये तो बताना ही चाहिए था ना कि घर में वो हैं."
" क्यों"-वो चौंकीं-"कोई गडबड वगैरा की उसने??? बताओ...."-कहते-कहते उनका स्वर उत्तेजना से भरता चला गया.
ohhh hell.
फिर रायता फ़ैल जाने वाला था.
मैं तत्काल  बोली-"no-no there is nothing like like that.everything is fine nd dont tell anything to Pa."
और मैं वहां से भी चल दी.
वो समझी या नहीं, मैंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की.ना ही उनकी रिएक्शन पर ध्यान दिया.मेरा टार्गेट लान था. 
***
मैं लान में पहुंची तो लान मुझे मूंह चिढाता हुआ-सा महसूस हुआ.`वो' वहां नहीं थे.
कहाँ गये?
शायद कहीं बहार चले गये हों.
नहीं,अगर तबीयत खराब है तो कहीं नहीं जायेंगे.
इसका मतलब `वो' अपने बैडरूम में होंगे.
दिम्माग ने साथ ही सलाह दी-नहीं, अभी नहीं. शबनम आंटी  को तो वैसे भी  शक हो गया है.मई ऊपर जाऊंगी तो शक पक्का हो जायेगा. उन्होंने अगर कुछ सुन लिया तो दुबारा रायता फ़ैल जायेगा.
सो मैंने तत्काल जाने का इरादा कैंसिल लर दिया. और लान में ही झूले पर लेट गयी.
***
मई घंटे भर बाद घर के टॉप फ्लोर पर गयी.
वहीं-जहां उनका रूम था.मैंने रूम में झाँका तो वो मुझे कमरे के अंदर स्टडी टेबल पर लैपटॉप रखकर कुछ काम कर रहे  थे.मैंने अंदर कदम रखा. मेरे कदमों की आहट सुनकर उन्होंने मुझे लुक दी. माथे की मांसपेशियों में सलवटें पड़ी.
" i want tom talk to you."-मैंने निर्णयात्मक भाव से कहा.
" कहिये."
" आप पा को कुछ नहीं बतायेंगे."-मैंने अपना स्वर कडा  किया जो मुझे कांपता हुआ महसूस हो रहा था.
" किस बारे में?"
" oh don't  try to be such innocent."-मैं  भन्नाई-" i know-आपने मेरी बातें सुन ली थीं."
" so?"
" आप प्लीज इस बारे में पा को उछ मत बताना."-अचानक मेरा लहजा विनतीपूर्ण हो गया. मैं और आगे बढ़ी. उनके पास पड़ी कुर्सी अधिकारपूर्ण भाव से बैठ गयी.बैठने के बाद विनीत भाव  से अपनी बात को आगे बढाया -"i know - अपने सब सुन लिया था. जहाँ आप लेते हुए थे वहां से बालकनी हो रही बातें साफ़ सुनाई देती है. वैसे भी मैं धीमी आवाज में बात नहीं कर रही थी."
मैं चुप हो गयी.
`वो' लगातार मुझे देखे जा रहे थे. एकटक.
" उससे आपका अफेयर कब से है?"उनके होठ हिले.
"कभी से भी नहीं"-मैंने बताया-" उसने मुझे प्रपोज किया था. कल ही वो एन.डी. ए. की ट्रेनिंग के लिए चला गया है."
" कौन है वो?"
"please mind your bussiness"-मैं भन्नाई-"you are not my Paa.okkk. मैं आपसे बस ये कहना चाहती हूँ कि पा को आप इस बारे में कुछ मत बताना. उसके परिवार वाले अपने आप बात चलाएंगे. यूं भी वक्त से पहले बात शुरू करने का क्या फायदा?" 
" अगर आपके पापा इस रिश्ते के लिए नहीं माने तो?"
" मुझे लगता है मान जायेंगे. वो अच्छा लड़का है."-मैंने आत्मविश्वास से कहा-"वैसे भी मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली कि पा को सिर झुकाना पड़े. और किसी को प्यार करना गलत भी कहाँ है? आप भी तो प्यार करते है."
" म-म-म-मैं....."-वो बौखलाए.
"yaa....मुझे पता है आपका सीन चल रहा है."-मैंने उन्हें स्पैल में लेने की कोशिश की.-" नेहा ने आपको और आपकी गर्लफ्रैंड को  गांधीबाग  में देखा था. तभी मुझे फोन कर दिया था."
" ओह!"-वो बरबस ही मुस्कुराए-" तो आप मुझे इस बारे में ब्लैकमेल करना चाहती हैं."
"no-no."-तत्काल मैंने कहा-"मेरा ऐसा इरादा  नहीं है. i just want to say- मैं कुछ गलत नहीं कर रही. किसी को चाहना गलत नहीं है."
" हाँ, पता है."-वो कोरे कागज की  तरह सपाट भाव से बोले-"मैं आपका कोई नहीं फिर भी एक दोस्त की हैसियत से सलाह दे रहा हूँ- कोई ऐसा काम `हरकत' मत करना कि तुम्हे पछताना पड़े.बच्चे अगर अपनी मर्जी से कोई गलत काम करें जिससे उन्हें कोई फायद हो तो या ज़रा  भी नुक्सान न हो तो माँ-बाप जानकर भी नैग्लेक्ट कर देते है. तुम, एक लडकी हो. अगर कुछ भी गलत हुआ तो इसका नुकसान सबसे ज्यादा तुम्हे होगा.बाद में भला ही शादी भी हो जाये."
" आप मुझे गलत समझ रहे है."-मैं अंदर-ही-अंदर तडपी-" मैं  उस तरह की लड़की नहीं हूँ. i know- सही क्या है गलत क्या है."
" तुम--i mean- आप समझदार लगती भी है."-  तब वो हौले-से मुस्कुराए-"आपके पापा आपकी बहुत तारीफ करते है."
" तो मैं मान लूं कि आप इस बारे में पाको कुछ नहीं बताने वाले ?"
" नहीं ."- उन्होंने मुझे आश्वासन दिया-" यकीन करो मैं नहीं बताऊंगा पर आपको भी समझना होगा कि आपकी एक गलती आपके पापा का सारा गुरूर तोड़ देगी."
मुझे सुकून मिला -मन जरा सा बेचैन भी हो गया.
मन में डर भी पैदा हो गया कहीं ये जानकर हर्ट न अहो जाये कि उनकी बेटी किसी लड़के में इन्वोल्व है.
अध्याय- ११ 
इसका मतलब ये बिलकुल नहीं था कि-मैंने उनके कहने से ही खुद को आश्वस्त कर  लिया था.
तब भी मेरे मन में अवश्य था कि सम्भव था कि पापा को उस बारे में बता देते. एट लीस्ट `वो' पापा का चमचे थे.
मैंने कई दिनों तक पापा के बिहेव पर बारीकी से नजर रखी ताकि पापा के मन में चल रही असामान्य हलचल को भांप सकूं.काफी कोशिश के बाद भी मैं वैसा नहीं कर सकी.मुझे कोई हलचल महसूस नहीं हुई.
***
`वो' हमारे घर में पूरी तरह सैटल हो गये थे.
सुबह का  नाश्ता `वो' पापा के साथ ही करके ऑफिस जाते थे- जो की मैं ही सर्व करती थी.कभी-कभी बनाती भी थी. लंच मैं कॉलेज से आकर अकेले करती  थी. दिननेर हम सब साथ ही करते थे.डिनर मैं शबनम आंटी के साथ तैयार करती थी. बाद में डाइनिंग टेबल पर बैठ जाती थी.वो रोटिय बनाती रहती थी और चंपा रोटियां ला-लाकर हमे देती रहती थी .वो तब भी पूरे बीजी रहते थे.
सुबह नाश्ते के समय पेपर पढ़ते रहते थे.
डिनर के  समय भी उनका जबड़ा जितन खाने में चलता था,  उतना ही बिजनेस के डिस्कशन में  चलता रहता था.उस दौरान नॉर्मली पापा पेशेंस से उनकी बातें सुनते रहते थे.और खाना खाते रहते थे.
"ह्म्म्म."-"ठीक है"-"देखेंगे"-----इत्यादि शब्द कहते रहते थे.
मैं मन-ही-मन कुढती रहती थी.
चाहकर भी मैं कुछ नहीं कह पाती थी. डॉ भी था -कहीं भड़ककर शशांक वाले रिश्ते के बारे में बक न दे.
***
शशांक से मेरी बाते होती ही रहती थी. रात को तो हम पहले भी बातें करते थे अब पर्सनल  बातें भी शेयर करने लगे थे. ये मैं पहले ह लिख चुकी हूँ कि मेरी ख्वाहिशों  को पंख लग चुके थे. हर तरफ ख़ुशी-ही-ख़ुशी थी. मन पसंद साथी था- जो मुझे बेइंतेहा प्यार करता था. हम दोनों एक दुसरे को `तू' कि जगह ` तुम' कहने लगे थे.
पढ़ाई से मेरा ध्यान पूरी तरह  से हट गया था.
वैसे किसी ने ठीक ही कहा है- जब प्यार का जहर दिल और दिमाग पर चढ़ जाए तो हर चीज से इन्ट्रेस्ट खत्म हो जाता है और अजीब-सी  खुमारी छा जाती है.
मेरी एक हसीन कल्पनाओ में एक चीज थी- जिससे  मैं निजात पाना चाहती थी. और मुझे पता था कि उनसे आज नहीं तो कल  निजात पा लेने वाली थी भी.
वो थे - मुकुल रस्तोगी.
मगर गलत थी  मैं.
एकदम गलत थी.
अध्याय-१२
सात मई को मेरे ग्रेजुएशन फर्स्ट ईयर के एग्जाम निबटे. मेरे दोस्तों ने टूर का प्रोग्राम बनाया. पापा से भी इजाजत मिल गयी. दस मई को हम मेरठ से रवाना हुए.हमारा पहले पड़ाव लैंसडाउन था. वहां से हम एक-एक करके तमाम हिल स्टेशन देखने वाले थे.हम सब आजाद पंछी थे जिनके पंख तभी कुछ दिनों के लिए खोले हए थे.
सबको पता था- घर जाते ही न केवल टाइम शेड्यूल फोलो करना था, ज्यादातर लडकियों को पता था शायद अकाले शायद वो लास्ट टूर हो.उसके बाद पता नहीं ससुराल वाले कैसे हों?एक-दो ने उस खुलेपन  का पूरा फायदा भी उठाया और रात को  मेल फ्रेंड के रूम में सोई. नेहा मेरे साथ रूम  में रहती थी, पर सोती थी अपने बॉयफ्रेंड के रूम में. मैं अपने रूम में अकेली सोती थी.शशांक को याद करती थी.
***
उस वक्त हम कुफरी में थे.
 सुबह का वक्त था.नाश्ता हम होटल के गार्डन में थे. तब  मेरा फोन बजा. मैंने फोन अपने वूलन ओवरकोट की जेब से बाहर निकाला. उसकी स्क्रीन पर उभरा नम्बर देखा- वो एकदम अजनबी नम्बर था. हालांकि उस वक्त किसी फालतू आदमी से बात करने का मेरा जरा भी मूड नहीं था, फिर भी नम्बर चूंकि मेरठ का था सो कॉल रिसीव की-" हेल्लो."
" हेल्लो. मैं बोल रहा हूँ."-दूसरी तरफ से आवाज उभरी. बेइंतेहा गम्भीर आवाज -" आप इसी समय वापिस लौट आइये. आपका टिकेट एअरपोर्ट पर है. आप जैसे ही एयरोड्रम पर है. आप जैसे ही आप जब एयरोड्रम पर पहनो मुझे  फोन कर देना."
" आप पा के असिस्टेंट बोल रहेआ है न?"-मेरा दिल धड़का.
" हां, मुकुल."
" what happened?"
" सर का मेजर एक्सीडेंट हो गया है."-उन्होंने बताया -"वो दिल्ली में ही एडमिट है. उनकी हालत नाजुक है.....आपकी फ्लाईट एक घंटे बाद है सो जल्दी एयरोड्रम पर पहुँचो.
दूसरी तरफ से फोन कट गया.
मेरे बदन में से जैसे ताकत निकल गयी थी.मैं वहीं घास में घुटनों के बल बैठकर फूट-फूटक्र रोने लगी थी.मेरी हालत देखकर मेरे तमाम दोस्त दौडकर मेरे पास आये. सब घबरा गये थे. नेहा ने घबराकर पूछा-" पलक, क्या हुआ? तू रो क्यों रही है? किसका फोन था?"
" घर से फोन आया था."-मैने रोते हुए बताया-" पा का मेजर एक्सीडेंट हो गया है. वो हॉस्पिटल में है."-साथ ही  एक घंटे बाद  फ्लाईट वाली बात उन्हें बता दी.
***
मेरे दोस्त मुझे तत्काल एयरपोर्ट ले हए. होटल से सामान पैक करने की फुर्सत हममे से किसी को नहीं थी.वहां से अब सीढ़ी उड़न है. मैं दिल्ली डोमेस्टिक एयरपोर्ट पर जब बाहर निकली तो वो मुझे कार के साथ खड़े मिल गये. उन्हें देखते ही मेरी हिचकिय बांध गयी. सच ये था कि उस पल मुझे एक कंधे  की जरूरत थी. अगर वो मुझे सहारा देते तो मैं उनसे लिपटकर फूट-फूटकर रोटी पर वो हमेशा  की तरह रूड रहे.
" बैठिये ."-कार का रीयर दरवाजा खोलकर रीयर सीट की तरफ इशारा किया. खुश्क लहजे में.
मैं कार में बैठी .
उन्होंने कार का दरवाजा बंद किया और ड्राइवर साइड का दरवाजा खोलकर ड्राइवर वाली सीट और जम गये.कार स्टार्ट की और सडक पर दौड़ा दी.
***
वो मुझे हॉस्पिटल ले हए गये जहाँ पर सिर्फ शबनम आंटी ही पहले मुझ नजर आई.मैं दौडकर उनसे लिपटकर रो पड़ी.
शबनम  आंटी ने मुझे मुझे कसकर अपनी मजबूत बाहों में भर लिया और तसल्ली दी-" रोते नन्ही  मेरी बच्ची. आपके अब्बुजानी जल्दी ही ठीक हो जायेंगे.हम सब हैं न."
उसी समय डॉक्टर के साथ हमारी फर्म के लीगल एडवाइजर और पापा के दोस्त एडवोकेट कपिल  सचदेव भी वहां आ गये.
उन्होंने भी मुझे  तसल्ली दी.
" अंकल."-मैंने एडवोकेट  मिस्टर सचदेव से  पूछा-" मेरे चाचू कहाँ है? अभी वो नहीं  आये?"
" वो लोग वैष्णोदेवी गये है."- मिस्टर सचदेव ने बताया-" मैं उन्हें इन्फोर्म कर चूका हूँ, वो लौट रहे है."
" और मामा जी?"
" वो डीन के केबिन में है ." 
" अब पा की हालत कैसे है?"- सुबकते हुए मैं पूछा 
" he is sorious."- डॉक्टर ने बताया.
तभी एडवोकेट सचदेव ने कहा-" बेटा तुम्हे  कुछ पेपर्स पर साइन करने  है."
उनके एक हाथ में फाइल  थी.उन्होंने कहते ही खोल दी और मेरे सामने कर दी.मैंने फाइल में ही रखा पेन लेकर उससे उन जगहों पर साइन घसीट दिए.
उसके बाद वो मुझे आई.सी. यु.  में ले गये.
***
पापा के पास उस समय मैं और मुकुल गये.
आई. सी. यु. रूम में पापा बिस्तर पर लेटे थे. उनके बदन पर जगह-जगह पर पट्टिया बंधी थी. उन्हें आक्सीजन लगी थी.तब वो होश में थे.
" प-पा....."-मैने अपनी रुलाई पर काबू  करने का प्रयत्न किया. पारदर्शी  आक्सीजन मास्क के अंदर उनके होंठ फडफडाए. पापा की आँखों में हमेशा की तरह प्यार का सागर छलकता दिखा.उस दिन उनमे विवशता   भी दिखी.
उनकी हालत देखकर मेरी आँखों में झर-झर आंसू बहने लगे.
 " इधर...आ ..."-पापा की वेदना पूर्ण बेहद धीमी आवाज मेरे कानों में पड़ी. 
मैं पापा के पास गयी.
पापा के एक हाथ में  ग्लूकोज लगी हुई थी.मैं दुसरे हाथ की तरफ गयी थी.मुकुल मेरे साथ थे.पापा ने मेरा हाथ `उनके' हाथ में थमा दिया. पापा की साँसे उखड़ने लगी थी जब वोबोले-" मुकुल....मेरी फूल-सी बच्ची का ख्याल रखना."
" सर , आप खुद इनका ख्याल रखोगे."-उनका हाथ थामकर मुकुल बोले.
"शब्बो कहाँ है?"- पापा ने पूछा.
" वो यहीं है."
" ओह."-उनके मूंह से निकला. उनकी सांसे उखड़ने लगी थीं.
उसी समय डॉक्टर ने  वहां कदम रखा.
" आपको किसी ने कहा नहीं की मरीज से बात नहीं करनी नही."-डॉक्टर  ने जरा-से सख्त स्वर में कहा.-" आप बाहर जाएं, प्लीज....राईट नाओ."
" सर , ये इनकी बेटी है."-मुकुल ने कहा-"ये मिलना चाहती थी....."
" आई सैड... बाहर जाइए." उस बार डॉक्टर का स्वर और ज्यादा सख्त हो गया.
पापा जोर-जोर से हांफने लगे.
मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा. पापा की हालत अचानक बिगड़ने लगी थी. मैं फिर फूट-फूटकर रो पड़ी.
डॉक्टर ने हमें बाहर निकाल दिया. `वो' मेरे दोनों कन्धों को थामकर बाहर ले गये. बाहर ही शबनम आंटी थी मैं उनसे लिपटकर रोने लगी.डॉक्टर आई. सी. यु. से बाहर निकला और नर्स को बुला लिया.अचानक आई. सी. यु. में हलचलें तेज  होने लगी.
नर्स और वार्ड-बोयस तेजी से अंदर बाहर आ जा रहे थे.
मेरी रुलाई  रुकने का नाम नहीं ले रही थी.शबनम आंटी ने मुझे वात्सल्यपूर्ण भाव स बांहों में भर लिया पर मुझे तसल्ली देने लगी.  हम सब आई.सी यु. रूम के सामने ही खड़े रहे थे. एक घंटे बाद डॉक्टर रूम से बाहर आया तो वो जरा भी जल्दी में नहीं था. वो एकदम शांत था.`वो'  और एडवोकेट सचदेव डॉक्टर के पास   गये. 
" डॉक्टर, अब सर कैसे है?"- `उन्होंने ' पूछा
डॉक्टर ने अत्यंत खेदपूर्ण भाव से अपना सिर हिलाया-" sorry...........he is no more."
मुझपर जैसे वज्रपात हुआ.
तमाम कायनात में मनो भूचाल आ गया था. सब्न्म आंटी से जुदा होकर मैं पागलों की मानिंद चींखती हुई दौडकर आई. सी यु. रूम में गयी.जहां नर्स और वार्डबॉय उनके शरीर से लगे उपकरण हटा रहे थे.
पापा से लिपटकर मैं जर-जर रो पड़ी 
तभी ममेरे दोनों चाचा सुरेन्द्र शर्मा और लखन शर्मा भी वहां आ गये. उनके साथ `वो' , एडवोकेट सचदेव, मेरे नानू,मामा जी,और शबनम आंटी के पति मुस्तफा अली भी वहां आई.सी.यु. रूम में आ गये थे.
अध्याय- १३
मैं तो बोलने तक की हालत में  नहीं रह गयी थी. कुफरी के सर्द माहौल में पहने गये कपड़ों में ही मैं कुफरी से दिल्ली के लिए रवाना हुई थी. पापा की हालत सुनने के बाद तो कपड़ों पर से ध्यान हट गया था . न ही गर्मी को महसूस किया था- ये अलग बात है- ए.सी. में भी -मेरा बदन गर्मी के कारण  मेरा बदन पसीने में नहाया हुआ था.शुक्र था ए.सी. के कारण वातावरण ठंडा था वरना  मेरी हालत बिगड़ जाती. 
पापा के  गुजर जाने के बाद पापा की बॉडी हॉस्पिटल से बाहर निकालने के लिए मेरे चाचाओं ने हॉस्पिटल की बिलिंग इत्यादि पर ध्यान देना शुरू कर दिया था. 
`वो' अचानक गायब हो गये.
आधे घंटे केव बाद `वो' आये. एक पैकेट उनके हाथ में था.मैं तब भी मासूम बच्ची की तरह गुमसुम सी शबनम  आंटी से चिपकी बैठी थी.   
" आंटी,"-`वो' पैकेट आंटी की तरफ बहाते हुए बोले-" इन्हें वाशरूम में ले जाकर इनकी वूलन कोट और फुलोवर निकलवा लो. ये गर्मी से परेशान होंगी. अगर फुलोवर के नीचे भी कोई वूलन कपडा पहन रख हो तो उसे भी उतरवाकर इन्हें ये शर्त पहना देना."
 शबनम आंटी ने वो पैकेट ले लिया. मुझे उठाकर वाशरूम की तरफ लेकर चल दी. मैं रोबोट की तरह उनके साथ चल दी.
***
पापा के  शव को लेकर हम शाम तक दिल्ली से मेरठ आ गये. तब तक काफी अँधेरा हो गया था. सो पापा का शव बर्फ में रख दिया गया. तय किया गया था पापा का अंतिम संस्कार अगले  दिन किया जायेगा. तब तक कई और रिश्तदार आ जाने वाले थे. नेहा तो शाम को ही कुफरी स लौट आई थी. उसे `उन्होंने' ही फोन पर पापा के गुजरने की खबर कर दी थी. खबर मिलते  ही टूर छोडकर वापिस आ गयी थी. वो मुझे मेरे  घर  पर ही मिली उसी देखते मेरी हिचकिय बांध गयीं. उसने आगे बढकर मुझे अपनी  बांहों में भर लिया. वो भी अपनी रुलाई पर काबू  नहीं रख सकी थी.
***
पापा का शव जब अंतिम संस्कार  के  लिए ल जाया गया तो `वो'  पापा की शवयात्रा में शामिल नहीं हुए. मुझे बड़ा  बुरा लगा -जब शव  को कन्धा देने के वक्त पर वो अपने रूम म चल गये. पापा  को दाग मेरे बाद चाचा सुरेन्द्र शर्मा ने दिया था.
उसी दिन मेरे बाद चाचा का पूरा परिवार मेरे घर में आकर रहने लगा. चाचा जी केवल रात को सोने के लिए ही जाया  करते थे. या कुछ टाइम के लिए ऑफिस जाया करते  थे.  छोटे चाचा लखन  शर्मा की फैमिली दिन में हमारे घर में रहती थी. रात को भी कोई न कोई-सी चाची मेरे साथ ही सोती थी. पापा की शव यात्रा से लेकर उनक तीजे  तेहरवीं तक में शबनम आंटी के पति और दामाद अल्ताफ - जो बाईस-तेईस साल का था.सोती गंज में मोटर मैकेनिक था.
पापा की तेहरवी निबट जाने के बाद उस शाम मेरे भविष्य का फैंसला करने के लियी मरी ननसाल और दधियल  परिवार के लोग बैठे. सब घर के ड्राइंग रूम म बैठे थ. पापा क दोस्त और वकील एडवोकेट सचदेव भी वहीं थे.
 `वो' भी एक तरफ उपेक्षित से बैठे थे.
मैं घर की सीढ़ियों पर रेलिंग का सहारा लिए खड़ी थी.
शबनम आंटी मेरे साथ ही थी. मुझ एक-दो स्टेप नीचे.
" पलक अब हमारे घर में रहगी"-सुरेन्द्र चाचा ने कहा-" पलक के लिए बड़े भैया की जो भी जिम्मेदारिय थीं वो मैं पूरी करूंगा."
" और बिजनेस का क्या होगा."-मामा जी बोल-" जीजा जी बिजनेस भी तो छोडकर गये है."
" उसका क्या होना है? वो पलक का था उसी का रहेगा."- चाचा जी नी सहजता स कहा-"  फिलहाल तो फर्म के एग्जिक्यूटिव संभल लेंगे . सारा पैसा खाते में जाता  है. ये चाहे तो खुद फर्म संभल सकती है या भैया की जगह किसी की चीफ एग्जिक्यूटिव बना देंग. इसक शेयर का पैसा तिमाही हिसाब से इसे मिलता रहेगा. "
तब नाना जी बोले-" अगर ये  आपके साथ रहेगी तो इस घर में कौन रहेगा? सवा महीने तक तो घर में दिया जलना जरूरी है वरना घर में भूत बिया जायेंगे."
" घर में किरायेदार तो हैं ना." - सुरेन्द्र चाचा ने कहा-" वो घर में दिया जलाकर रखेगा.नौकर चाकर साफ़ सफाई का पूरा ध्यान रखा करंगे."
तभी एड्वोक्त सचदेव ने गला खंखारकर कहा-" can i say something?"
सबने उनकी तरफ लुक दी.
" मरे मरहूम दोस्त और क्लायंट ने  मरने से पहले ही अपनी बेटी की फ्यूचर का फैंसला कर दिया था."-वो बोले-"अब पलक को कहाँ रहना है कहाँ नहीं-इसका फैंसला उसके हसबैंड को करना है.... मिस्टर मुकुल रस्तोगी से पलक की रजिस्टर्ड मैरिज हॉस्पिटल में ही हो चुकी है. वहां पर आप लोग मौजूद नहीं थ इसीलिए तमाम औपचारिकताएं आपक सामने  नहीं हुई थी."
 सब हैरान रह गये.
मेरा शरीर जैसे जड हो गया था.
मरे तमाम सैंस सुन्न हो गये थे. पता नहीं वेदना की अधिकता थी  या कोई और कारण था -मेरे आंसू तक बाहर न निकल सके. शायद सूख गये  थे.
मेरी जिन्दगी का वो सबसे  बड़ा सरप्राइज था.
मैं सपने में भी  नहीं सोच था -पापा मेरे फ्यूचर का फैंसला इस तरह करेंगे.
अब समझ में आया- मरने से पहले  पापा ने मेरा हाथ `उनके' हाथ में क्यों दिया था?
उन्होंने मेरी जिम्मेदारी ही `उन्हें' नहीं  सौंपी थी बल्कि मुझे ही उनके हवाले कर दिया था.


love diary जारी है ...........

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