Sunday, July 3, 2011

gud news about `love diary'


दोस्तों आपको लग रहा होगा कि मैं नोवेल की आगे की कहानी  पोस्ट क्यों नहीं कर रहा हूं. दोस्तों मेरा ये नोवेल बहुत जल्द मार्केट में आने वाला है. उम्मीद है कि वो अगस्त के मिड में बाजार में होगा और आप उसे एक साथ पूरा पढ़ सकेंगे. स्क्रिप्ट पब्लिशर के पास होने कि वजह से मैं इसे ब्लॉग पर नहीं डाल प् रहा हूँ.जसे ही ये मार्केट में आएगा बाकी का मैं फिर ब्लॉग पर डालना शुरू कर दूंगा.
उम्मीद है आप थोअदा सा सब्र रखेंगे और मेरा उत्साह बढाते रहेंगे.
धन्यवाद 
                                           भवदीय 
                            जोगेंद्र तिलगौडिया 
अध्याय-१६
सुबह के समय वो तैयार होकर ही रूम में आए.
हमारी मुलाकात नाश्ते की टेबल  पर हुई.हम दोनों ने साथ ही नाश्ता किया.उसके बाद वो ऑफिस जाने लगे.
"ऑफिस कैसे जाओगे?"-मैंने पूछा.
"क्यों?"
" पा वाली कार ले जाओ."-मैंने कहा-"आप कार ड्राइव करना तो जानते हो ना?"
" हाँ."
"आप उसी कार को यूज किया करो ."-मैने कह दिया-"मैं चाबी लेकर आती हूँ."
" उसकी जरूरत नहीं है."-वो बोले-"मैं बाइक से ही...."
"घर में तीन कारें हैं."-मैंने अधिकारपूर्ण भाव से कहा-" अगर यूज नहीं होंगी तो खड़ी-खड़ी खराब हो जायेंगीं.पा वाली कार आप रख लो."
"ठीक है."-वो सिर हिलाकर रह गये.
मैंने चाबी लाकर उन्हें दे दी.तब पूछा-"आप सारी रात काम करते रहे थे क्या?"
"नहीं."-वो नजर चुराते हें बोले-"बहुत देर हो गयी थी, सो सोचा अगर तब बैडरूम में आता हूँ तो आपकी नींद डिस्टर्ब होगी. ये सोचकर वहीं सो गया."
सोया ही कौन था-मैंने मन-ही-मन कहा.
वो चले गये तो मैं अपने बैडरूम में जाने के लिए मुड़ी तो सामने शबनम आंटी को खडी देखके मैं चौंकी. दरअसल मैं उनकी प्रजेंस की वजह से नहीं चौंकी थी बल्कि उनके फेस पर जो भाव थे उनकी वजह से चौंकी थी. मैं यूं सकपकाई जैसे मुझे चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया हो.
"आंटी.... "-मैंने कहना चाहा 
"तो रात को दूल्हे साहब आपके साथ नहीं सोये थे."-वो यूं बोली जैसे उन्हें चाँद पर I.P.L. के होने की खबर मिली हो.(वैसे मुझे नहीं लगता की उनकी प्रतिक्रिया गलत थी.)
पर मैंसकपका गयी.-"ज-ज-जी.....वो रत को देर तक काम करते रहे थे .सो..."
"इन दिनों देर तक काम क्यों कर रहे है?"-वो बोली-"रात को तो उन्हें आपके पास होना चाहिए."
मेरा बदन थरथराया.
मादक तरंग  मेरे बदन में नखशिखांत दौड़ती चली गयी.पर मैंने बात संभाली -" वो बता रहे थे कि न्य सतब निकलने वाला है. साथ ही कुछ नई तैय्यारिय भी करनी है."
" सारे काम दिन में भी तो हो सकते हैं."
मैं चुप.
"नहाए धोये भी शायद वहीँ थे?"-उन्होंने मुझे घूरा.
"हाँ."-मैं बोली.-"अभी उनका सारा सामान वहीँ है न. अभी उसको मेरे वाले कमरे में शिफ्ट का टाइम नहीं मिला."
"मैं चंपा को बोल देती हूँ."-वो तपाक से बोली."वो सारा सामान आपके कमरे में रख देगी."
मैं क्या कहती???????
***
मैंने कुछ नहीं किया.
सारा काम चंपा ने और घर के माली ने ही किया.`उनके' कमरे में से बैड और स्टडी  टेबल को छोडकर सारा सामान मेरे( यानी हमारे) रूम में शिफ्ट कर दिया. मेरे रूम में पहले से ही एक स्टडी टेबल  रखी हुई थी जिसपर मैं पढ़ती  थी. मैं बस उन्हें इंस्ट्रक्सन देती रही और उन लोगों ने सारा सामान वहीँ रख दिया जहा मैंने  बताया था.
दोपहर तक सारा सामान शिफ्ट कर दिया.
***
तब मैं सो रही थी जब मेरा फोन बजा मैंने मोबाइल बैड के हैड्बोर्ड पर से उठाकर कॉल रिसीव करके तकिये पर अपना चेहरा टिकाकर लेटे-लेटे कहा-"ह्रेल्लो"
"हेल्लो,भाभी."-एक फीमेल आवाज मेरे कान  में पड़ी .
"कौन?"
"this is not good bhabhi."-वो तत्काल नाराज हो गयी-"आपने मेरी आवाज नहीं पहचानी. अरे यार मैं आपके पतिदेव के मामा जी की बेटी बोल रही हूँ. रिसेप्शन में मैं ही तो सबसे ज्यादा आपके पास थी ."
"ओह सॉरी,"-मैंने उन्नींदे भाव से कहा. मैं उसे पहचान  गयी थी. वो सुमन थी. मेरे मोलसरे की बेटी. उम्र सोलह-सत्रह साल.रिसेप्शन में वो पूरा वक्त मेरे साथ ही रही थी-सो मैंने खेदपूर्ण भाव से कहा-"तुम कैसी हो?"
"एकदम झक्कास."-वो जोश में बोली."आप क्या कर रही थीं?"
"nothing yaar, सो रही थी."
"ओह,सॉरी."-वो तत्काल खेदपूर्ण स्वर में बोली-"मैंने आपकी नींद ख़राब कर दी. मुझे जरा लेट फोन करना चाहिए था."
"its ok."-मैं बोली-"रात को ठीक से सो नहीं सकी थी न इसीलिए..."
मै कह ही रही थी कि वो बोली-"सो नहीं पाई या भैया ने सोने नहीं दिया."-और मुझे एक दबी-दबी हंसी सुनाई दी.
मेरा बदन लरज गया. 
उसने जो सोचा था कुछ भी गलत नहीं सोचा था. ( होना तो यही चाहिए था) और उसको मजाक करने का हक भी था, आखिर मेरी ननद थी. 
खैर.
मेरी नींद पूरी तरह उड़ गयी थी. उस मुद्दे को फ्यूल देने के बजाये मैंने मुद्दा बदल दिया-"किसी खास काम से फोन किया था?"
"या..."-वो जोश में बोली-" i want to meet you."
"तो आ जाओ."-मैं बोली-"इसके लिए फोन करके पूछने कि क्या जरूरत है.?"   
"ये तो मुझे पता है ."
"तो कब आ रही हो?"
" जब आउंगी तब बता दूँगी."-वो बोली-"इस वक्त तो मैंने आपको इनवाईट  करने के लिए बुलाया है."
"अच्छा?"
" हाँ."उसने बताया-"मैना भैया को फोन मिलाया था तो उनका फोन ऑफ मिला. फिर सोचा आपका नम्बर ट्राई करती हूँ. भैया भी सो रहे है?"
"नहीं."-मैंने  बताया-"वो तो ऑफिस गये है."
वो हैरान-"क्या!अभी तो शादी को एक ही दिन हुआ है."-तभी उसने संशोधन किया. शरारत  से बोली-"अरे मैं तो भूल ही गयी थी. आपकी शादी को तो काफी वक्त हो गया है. ओपन तो आपने कल की है."
मैं चुप रही.
हाँ समझ गयी की उसका इशारा किधर था.
वो सोच रही थी की हम रिसेप्शन से पहले शादी-शुदा  जिंदगी का  सुख हासिल कर रहे थे.अगले चंद पल का विराम देकर उसने पैराग्राफ बदला. बोली-"भाभी , एक्चुली पापा चाहते है की आज आप डिनर हमारे साथ करें.....तो आप आ रही हैं ना?"
"अकेली?"-मैं मजाक में बोली. 
वो  सकपकाई-" नहीं, भैया को भी साथ लेकर आना."
"मैं नहीं लेकर आउंगी?. वो मुझे साथ लेकर आयेंगे."-मैं बोली-"मैं एक बार उनसे बात कर लूं."
"ओके"-वो बोली-" मैं कब कॉल करूँ?"
"दस-पन्द्रह मिनट में मैं खुद कॉल करती हूँ."-मैंने कहा.
"ok byeeee........ take care."-कहकर  उसने फोन काट दिया.
 मैने फोन के ऊपर से अपनी ग्रिप खत्म कर दी. फोन गद्दे पर पड़ा रह गया.मैं बैड पर उठकर बैठ गयी.मेरे मन में हलकी सी हलचल हो रही थी.सच ये  भी है कि लोग बचपन में यही सीख देते हैं कि सेक्स करना गंदा काम है. जैसे हो शादी होती है तो कि बातचीत  में सेक्स की तरफ ही ज्याद इशारे होने लगते है.हर आदमी यही एक्सपैक्ट करता है कि हम जब भी मौका मिले हम उसका ज्यद-से-ज्यादा फायदा उठा रहे हों.अगर उन्हें पता चल जय कि हम ऐसा नही कर रहे  है तो  ऐसे देखते है जैसे हम दूसरी गैलेक्सी के प्राणी हों.
मैंने गहरी साँस ली,और फोन को उठाकर `उनका` नम्बर डायल किया. उनके फोन स्विच्ड-ऑफ मिला.
मैंने तत्काल पब्लिकेशन के डोट फोन का नम्बर मिलाया दो तीन घंटी जाने के बाद कॉल रिसीव की गयी. पब्लिकेशन की रिसेप्स्निष्ठ छाया का स्वर उभरा-"हेल्लो."
"छाया, मैं पलक बोल रही हूँ."-मैंने अधिकारपूर्ण भाव से कहा-"जरा उन्हें  कनेक्ट करना."
"मै`म, सर तो यहाँ नहीं है."
"कहाँ गये?"
"पता नहीं, मै`म.घंटा भर पहले निकल गये थे."
मैं उलझ गयी.
कहाँ चले  गये??????????

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