अध्याय -19
शादी के शुरूआती दिनों में लड़की को अगर सबसे ज्यादा किसी चीज का इन्तजार रहता है तो वो है रात के होने का.
रात को कब उसके मियां का सानिध्य मिलेगा और कब।..........(हिस्श्श्श! समझ गये ना.)
पर रात मेरे लिए बैरन बनकर आई थी। मेरे मन की ख्वाहिशें भी अब बेकाबू होने लगी थी।
मुझे नहीं लगता कुछ गलत भी था। आखिर उन्ही ख्वाहिशो को पूरा होने का तब से इन्तजार कर रही थी जब से बचपन का साथ छोडकर मैंने टीन ऐज में कदम रखा था।
मेरी कामनाओं की तुष्टि के लिए कई तैयार भी थे. शशांक ने कोशिश भी की थी (थैंक गोड़ वो कामयाब नहीं हो सका था ) मगर मैंने खुद को सेफ रखा. ख्वाहिशों के घोड़ों पर विवेक की लगाम कसे राखी ताकि चरित्र पर दाग न लगे।
किन्तु ..........परन्तु ..............लेकिन।
अब चरित्र पर दाग लगने का डर भी ख़त्म हो गया था। बिस्तर पर हर रात बनने वाली तकियों की दीवार असहनीय होने लगी थी। बिस्तर मानो गर्म तवा होता था जो सारी रात मेरे बदन को जैसे भून रहा होता था. विवशता का भी ये हाल होता था कि ज्यादा करवटें बदलते हुए भी डर लगता था कहीं `वो` परेशान होकर और दूरी न बना लें.
ओह!
कितना पत्थर दिल था वो आदमी कि बात भी ऐसे करता था जैसे कोई एग्जिक्युटिव अपनी फर्म की किसी यूनिट की प्रोग्रेस रिपोर्ट लेता हो।
नजर तब भी नहीं मिलते थे।
नजर तब भी नहीं मिलते थे।
उनका मुझे `आप` कहना ऐसा लगता था जैसे वो मुझे हर बार ये अहसास दिला रहे हों कि हम आज भी पराये है।
हम उनके और मेरे रिश्तेदारों के घर भी डिनर के लिए गये. न्यूली वेड कल के परिवार के लोगो से परिचय के लिए ये प्रथा -सी है. वो मेरे रिश्तेदारों में दामाद के रूप में पोपुलर होते जा रहे थे. मैं उसके परिवार की बहु तो बन ही चुकी थी।
कई बार मैंने इन्फीरियर फील किया-`क्या कमी है मुझमे? और क्या खास है उनकी प्रेमिका मे- जो वो मुझे नजर तक उठाकर नहीं देखते.`
मजे की बात ये थी कि मुझे आजमाने के लिए भी तैयार नहीं थे.
***
तारीख अगस्त के आखिर की थी।शशांक का फोन आया -" i m coming sweetheat."
मैं सन्न रहा गयी .
यूँ बौखलाई जैसे अचानक किसी धूमकेतु की आमद की खबर मिल गयी हो।-"क्या बात कर रहे हो?इतनी जल्दी?"
"इतनी जल्दी क्या मतलब?"-वो हंसा-" मैंने बताया तो था न छ: महीने के बाद आने वाला हूँ। छ: महीने पूरे हो तो हए।"-उसकी आवाज में दीवानगी का भाव आ मिला था-" सच पलक, यकीन मानो इन छ: महीनो में कितना मिस किया है तुम्हे-मैं ही जानताहूँ।तुम्हारे दीदार के लिए यु तडपा हूँ जैसे प्यासा मोर बरसात की एक बंद के लिए......"
वो जाने क्या-क्या कहता रहा .
मेरे अंदर तड़प ने ऐसा सर उठाया की कानो ने सुनना की बंद कर दिया. आँखों में आंसू इस कदर भर गये
की सब धुंधला नजर आने लगा था। मुझे बस इतना पता था कि वो कुछ कहता चला जा रहा था मगर क्या -पता नहीं।
इतना अंदाज तो मुझे हो रहा था कि वो अपनी तड़प को शब्द दे रहा था.
अंत में मैंने भर्राए स्वर में बस इतना ही कहा-" तुम आ जाओ ......."
और फोन को डिस्कनेक्ट कर दिया
" आंटी, अब क्या होगा?"-मैंने नर्वस स्वर में कहा.
"" तुम चिंता मत करो।"-उन्होंने कहा.
" जी।" - मेरे मुंह से निकला. मैं समझ गयी कि पहले ही कुछ सोचे बैठी थीं।
इतना अंदाज तो मुझे हो रहा था कि वो अपनी तड़प को शब्द दे रहा था.
अंत में मैंने भर्राए स्वर में बस इतना ही कहा-" तुम आ जाओ ......."
और फोन को डिस्कनेक्ट कर दिया
मेरी ग्रिप से मोबाइल छोटकर बैड पर गिर पड़ा.
मैं बैड पर से उतरकर बाथरूम की तरफ दौड़ पड़ी एक वाही तो जगह थी जहा मैं खुलकर आंसू बहा सकती थी।
***
बाथरूम से निकलकर मैंने सबसे पहले मिसेज यादव को फोन किया और उन्हें शशांक के फोन के बारे में बताया. उन्होए कहा
उन्होंने सुसंयत स्वर में कहा-"हाँ, मेरी उसे बातब हो चुकी है."" आंटी, अब क्या होगा?"-मैंने नर्वस स्वर में कहा.
"" तुम चिंता मत करो।"-उन्होंने कहा.
" जी।" - मेरे मुंह से निकला. मैं समझ गयी कि पहले ही कुछ सोचे बैठी थीं।
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