Sunday, May 9, 2010

संरक्षणवाद की वापसी

कुछ दिन पहले एक न्यूज़ मिली कि अमेरिका और यूरोप में पर्दूषण कर लगाने कि तय्यारी शुरू हो गयी है।अमेरिकी पर्तिनिधि सभा ने ये विधेयक पारित कर दिया है। यूरोप में मामला विचाराधीन है। इस अवधारणा कीशुरुआत फ़्रांस ने की थी। २०१२ से यहाँ आने वाले और यहाँ से उड़ान भरने वाली airlines पर कार्बोन टेक्स लगाकरेगा। फनी है न !!!!
यानी पर्यावरण के नुक्सान कीभरपाई के बिना पर्यावरण की सुरक्षा। वो भी उन देशों के द्वारा जो कार्बोन उत्सर्जन मेंकटोती के लिए तैयार नहीं है असल में ये कोई फनी बात नहीं ये सोची समझी साजिश का एक कदम भर है जिसकीभविष्यवाणी एकोनोमिस्ट्स ने मंदी की शुरुआत में कर दी थी .....जी हाँ ये संरक्षणवाद की और जाता रास्ता हैजिसके बारे में एकोनोमिस्ट्स में बहुत पहले कर दी थी। ये टेक्स उस हर सामान पर लगेगा।
सच कहूं तो मैं भी इसका समर्थन करता हूँ।
अगर इसके इतिहास की बात करें तो इसका प्रतिपादन अमेरिकेन अर्थशास्त्री और राजनेता Alexander hamilton ने किया था १७९१ में।जिसका समर्थन बाद में J.S. Mill, fredrichlist, H.C.Carey इत्यादि economicts ने भीकिया। अगर देखा जाये तो भारतीय महान नेताओ ने तो आजादी की लड़ाई में इसे हथियार बनाकर इस्तेमाल भीकिया। आन्दोलन के दोरान जो विदेशी सामानों का बहीशकर किया गया वो संरक्षणवाद का ही एक रूप था।हकीकत तो ये है कि संरक्षण वाद यदि एक देश के लिए फायदेमंद है तो दुसरे के लिए नुक्सान दायक है
संरक्षणवाद का सिद्धांत -`" Nurse the baby, protect the chield nd free the adult"- पर आधारित है
सच तो ये है कि संरक्षण के बिना विकास शील देशो के उद्योग आगे बढ़ ही नहीं सकते क्योंकि उनमे न तो विकसितदेशो के उद्योगों के बराबर सिद्ध हस्त मजदूर होते हैं न ही उनकी तकनीक इतनी विकसित होती है कि वो कम कोस्टपर बेहतर उत्पादन कर सकें। अपने ही बाजार में टिकने के लिए उन्हें तब तक संरक्षण कि जरूरत होती है तब तकवो बाजार में पैर जमाने के लायक न बन जाये। जब भी देह के बाजार पर विदेशी हावी होते है तभी संरक्षण वाद किजरूरत होती है। मुक्त व्यापार कि बात बस वो देश करते है जिनका निर्यात ज्यादा होता है। अमेरिका का हीउदाहरण देख लो यार B P O SERVICES में विदेशी हावी हुए वहां बेरोजगारी बढ़ी तो उसी देश ने संरक्षण वाद कादामन थम लिया और उन्ही विदेशी compnies मदद बने का वादा किया जो अमेरिकंस को जॉब देंगे उसकापरिणाम ये हुआ कि भारतीय कंपनिया अब अमेरिकंस को ज्यादा नोकरी दे रहे है, इंडिया से बन्दे भेजने कीबजाये।
सच तो ये है कि संरक्षण वाद एक बहुत ही शानदार तरीका है देश के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बस इसकाइस्तेमाल सही तरीके से होना चाहिए वर्ना यही चीज भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। संरक्षण के कारण ही देश के बड़ेउद्योग देश के छोटे उद्योगों को आगे बढ़ने से रोकने लगते है। इससे देश का ही विकास रुकता है। इसी वजह से कुछलोग संरक्षण वाद का विरोध करते है। `गुरु` फिल्म में गुरुभाई (धीरुभाई) का विरोध लाइसेंस के लिए नहीं थाअसल में उस व्यवस्था के लिए था जिसके कारण छोटे लोगों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बड़े उद्योगपतिलाइसेंस व्यवस्था का इस्तेमाल कर रहे थे। राजीव जी ने उस हकीकत को समझा और जान गए कि अब लाइसेंसकि हर उद्योग को जरूरत नहीं रह गयी है सो उन्होंने लाइसेंस व्यवस्था के नियम बदल दिए। लेकिन अब भी मेरे देहके उद्योगों को संरक्षण कि जरूरत है क्योकि आज भी हमारा आयत निर्यात सी ज्यादा है और लगातार बढ़ भी रहाहालांकि । कुछ सही तरीके से करना होगा ताकि सभी उद्योगों को आगे बदने का मोका मिल सके।
हमे चीन पर भी कंट्रोल करना होगा ताकि उसका सामान हमारे बाजार पर हावी ना रह सके । हालांकि इंडिया वालेतरह विदेश में compnies take over कर रहे है उससे उम्मीदें पैदा होती है मगर जिस तरह इंडिया कूटनीतिक रूपसे कमजोरी शो करता है ,जिस तरह हर चन्द महीनो के अंतराल के बाद कोई न कोई गद्दार निकल आता है, जिसतरह इंडिया में आतंक वादी बढ़ते नजर आ रहे है- ये सब देखकर दिमाग में शंका पैदा होती है की ये उन्नति कितनेदिन कायम रहेगी???????
खैर जब भी मंदी ने दस्तक दी है यूरोप और अमेरिका ने संरक्षण का सहारा लिया है हमरे साथ दिक्कत ये है कीहमारा ज्यादातर व्यापार वहीं है अब वक्त आ गया है की हमें गंभीरता से विश्व के दुसरे बाज़ारों पर पकड़ बनानीशुरूकर देनी चाहिए जैसे अजीम प्रेमजी ने किया।
ये एक हकीकत है यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्था का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा है वो संरक्षण का सहारा लेंगेही, बेहतर है हमें तूफ़ान से पहले खुद को संभाल लेना चाहिए- आता है तो हम सेफ होंगे नहीं आता है तो हम सेफ हैही ..................भैया जी प्रिकोसन ही तो इलाज का सबसे बेहतर तरीका माना जाता है ना।

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