Tuesday, September 21, 2010

चीन के फंदे

किसी ने एकदम सही कहा है कि चीन वो  दोगला देश है जो एक ओर दोस्ती कि बात करता है और दूसरी ओर षड़यंत्र रचता है. #१९४९ में चीनी समाजवादी गणतंत्र की स्थापना हुई तब भारत वो पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी. नेहरु जी उनसे सीने पर मोहब्बत की निशानी लाल गुलाब का फूल लगाकर गले मिले और उन्होंने उनकी पीठ में छुरा भोंका.
#२२  मई १९५४ को भारत-चीन के बीच एक अथ वर्षीय व्यापार समझौता  संपन्न हुआ, जिसके अंतर्गत भारत ने तिब्बत से अपने अतिरिक्त देशीय अधिकारों को चीन के हवाले कर दिया. इस प्रकार भारत पर चीन की संप्रभुता स्वीकार कर ली और
तिब्बत के यांतूग व ग्वान्ग्त्सी क्षेत्र से अपनी सेनाए तैनात करने का अधिकार छोड़ दिया तथा सीमा पर व्यापर एवं तीर्थ यात्राओं के विषय में नियम निर्धारित करना स्वीकार कर लिया
जून १९५४  को चीनी प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई भारत आया और पंचशील समझोता सम्पन्न हुआ.
साथ ही जुलाई १९५४ को चीन ने भारत पर आरोप लगाया कि भारतीय सैनिको ने चीन के तथाकथित प्रदेश स्थित बूजे(बाराहुली) पर अवैध कब्ज़ा कर लिया है.
# अप्रैल १९५५ में एशियाई- अफ़्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में नेहरु व चाऊ-एन-लाई ने निकटतम सहयोग का प्रदर्शन किया.बाद में फार्मोसा( ताइवान)तथा क्वेंमोए और मासु द्वीपों पर चीन केदावे का भारत ने पूर्ण समर्थन किया बदले में चीन ने गोवा के प्रश्न पर भारत का साथ दिया था.
# १९५६ में तिब्बत के खाया क्षेत्र में चीनी दमन से आक्रोशित होकर विद्रोह फूट पड़ा जो १९५९ तक चलता रहा. इस विद्रोह को दलाई लामा का समर्थन प्राप्त था. चीनी सरकार द्वारा कठोरतापूर्वक विद्रोह के दमन के पश्चात दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी. इस राजनीतिक शरण को चीन ने भारत की ओर से शत्रुतापूर्ण कार्रवाही बताया.
# १९५८ में चीन के एक प्रकाशन चाइना पिक्टोरिअल ने चीन के मानचित्रों में भारत के कुछ प्रदेशों को चीन  भू-भाग के रूप में जाहिर किया था. भारत ने आपत्ति जाहिर की तो चीन की साम्यवादी सरकार ने उन्हें कोमितंग सरकार के पुराने नक़्शे बताकर उनमे सुधार करने का आश्वासन दिया.
#२३ जनवरी १९५९ में चीनी सरकार ने अपने पत्र में भारत को लिखा कि दोनों के बीच कभी भी सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है और तथाकथित सीमाएं चीन के खिलाफ किये गए साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है. इस प्रकार चीन ने मैकमोहन रेखा को अवैध बताते हुए इसे तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध आक्रमण कि ब्रिटिश नीति की उपज करार दिया.
    ८ सितम्बर १९५९ को औपचारिक रूप से भारत के लगभग ५०००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन के प्रधानमंत्री ने दावा प्रस्तुत किया.
    अक्तूबर १९५९ चीनी सेनाओं ने भारत के नौजवानों की कोंग्ला दर्रे के निकट, सीमा के इस और आकर, हत्या कर दी.
# १९६२ में चीन ने पाकिस्तान के साथ मित्रतापूर्ण समझौता किया और सितम्बर १९६२ में चीन ने भारत पर पूर्ण आक्रमण करने की घोषणा कर दी.
# वर्ष  १९९० में चीन की ओर से यह बात सामने आई कि यदि लद्दाख में चीन के कब्जे वाले भू-भाग पर यदि भारत चीन का अधिकार स्वीकार कर ले चीन पूर्वी क्षेत्र में मैकमोहन रेख को स्वीकार करने को तैयार है. 
# आज भी हिमालयी क्षेत्र में चीनी सेना पीपुल लीब्रेसन आर्मी द्वारा आक्रामक गश्त लगती है.सीमा रेखा का उलंघन किया किया जाता है.चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग को अपना क्षेत्र बताता है.सरकारी मीडिया में अब भी चीन कि ओर से भारत पर हमला जारी रखे है
चलिए आपको चीन के बारे में कुछ यात्थ्यों की जानकारी दे दूं .
चीन दुनिया की सबसे पुरानी चार सभ्यताओं में से एक है.देखा जाये तो इसकी महानता पर शक नहीं किया जा सकता भले ही उसे कभी नशेड़ियों और आलसियों का देश कहा जाता हो( यूरोपिअंस के द्वारा). मगर जानने वाले जानते हैं और मानते भी है चीन की सभ्यता एक महान सभ्यता रही है. दुनिया के चार महान अविष्कार चीन के हिस्से में आते है- कागज,कम्पस, बारूद,और मुद्रण.
माना  जाता है ...........चीन शब्द का सर्व प्रथम उपयोग १५५५ ई० में किया गया ये शब्द चिन से निकला जो मार्को पोलो द्वारा पश्चिम में प्रचारित किया गया. यह शब्द पारसी और संस्कृत के cina (चीन) और अंततः किन साम्राज्य से निकला(७७८ई० पू०-२०७ई०पू०), जो झोऊ वंशावली के समय चीन का सबसे बड़ा साम्राज्य था.
एतिहासिक रूप से चीन को सिना या सिनो सिने, कैथे, या  पश्चिमी देशों द्वारा सेरेन के नाम से जाना जाता है.चीन का अधिकारिक नाम प्रत्येक वंश के साथ बदलता रहा है और सबसे ज्यादा प्रचलित नाम झोंग्गुओं, जिसका अर्थ है-केन्द्रीय राष्ट्र अथवा मध्य राष्ट्र.
अब बात आज की करते हैं, आज..........
चीन का पूरा नाम है-peoples republic of china 
चीन की राजधानी है-बीजिंग
राजकीय भाषा- चीनी
देखा जाये तो भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन ही है. हमने इसे हमेशा अपना भाई समझा मगर इसने हमे अपना कट्टर दुश्मन मन है और समय- समय पर इसका सुबूत भी  दिया है. इसका सबसे बड़ा सुबूत तो ये है कि ये भारत को चारों तरफ से   घेरने में लगा हुआ है. भारत के दुश्मनों से गठबंधन करता जा रहा है या हमारे पड़ोस में उन सरकारों को समर्थन दे रहा है जो भारत विरोधी है ( साथ ही उन्हें भारत विरोधी गतिविधियाँ करने मे मदद कर रहा है)
अगर हम study करें तो हमे हमेशा चीन की हर हरकत में भारत विरोधी atitude ही नजर  आयेगा.ऐसा नहीं है की इसने दोस्ती की बात नहीं  की..............दोस्ती की बात तो की लेकिन उसकी हर बात में एक चल होती है. जब भी इसने कुछ देने की बात की है तो उससे ज्यादा लेने की कोशिश की है.
चलिए अब चीन के उन फंदों पर नजर डाल लेते है जो चीन ने हमारे चारों तरफ लगाये है.
*विकास के नाम तिब्बत में रेलवे लाइन, हवाई अड्डे, हवाई पट्टी और सडकों का जाल फैलाकर वः इस स्थिति  में आ गया है कि चीन भारत पर सम्भाव्य हमला करने के लिए किसी भी समय सेना और रसद के साथ हमारी सीमा के निकट पहुंच सके.
* वो वास्तविक नियंत्रण रेखा और भारतीय सीमा तक चार हाइवे बना चुका है. ये चारों => पूर्वी हाइवे, पश्चिमी हाइवे, केन्द्रीय हाइवे,और यूनान तिब्बत हाइवे के नाम से जाने जाते है.
* भारत नेपाल सीमा में पथ लाहीन से बांग्लादेश सीमा के काकर मिट्ठा  क्षेत्र यक फौर लेन ट्रेफिक पथ का निर्माण चीन द्वारा किया जा चुका है.
*तिब्बत क्षेत्र में अपने हवाई अड्डो एवं हवाई पट्टी के लम्बाई ३००० फीट से बढाकर ९००० फीट कर दी है. सशस्त्र सेनिकों और मिसाइलों कि तैनाती वो पहले ही कर चुका है. १००० किलोमीटर रेंज वाली मिसाइलों से वो भारत के किसी भी शहर को आसानी से निशाना बना सकता है.
* गंगा को छोडकर एशिया की अन्य बड़ी नदियों उदगम तिब्बत में है. खेती और बड़े उद्योगों के लिए चीन और बहरत दोनों को पानी की जरूरत बढती जा रही है. तिब्बत से निकलने वाली अधिकाश नदियों पर चीन बांध बनाने में जुटा है. केवल सिन्धु ( पाकिस्तान से होकर भारत पहुंची है) और सालवीन (म्यांमार और थाईलैंड से होकर गुजरती है) पर उसने कोई योजना शुरू नहीं की है. वो ब्रह्मपुत्र नदी का रुख अपनी ओर मोड़ना चाहता है. तिब्बत में यारलंग तसाग्यो और चीन में येलूजेम्वू के नाम से प्रसिद्ध यह नदी पूर्वोत्तर भारत के राज्यों और बंगलादेश को को जीवन प्रदान करती है. इस परियोंजा के शुरू होते ही पूर्वी राज्यों और बंगलादेश का पर्यावरण संतुलन बिगड़ जायेगा. नदी का रुख मोड़ने के लिए वी परमाणु विस्फोट का भी सहारा लेने के लिए तैयार है.
अब बात करते हैं उन फंदों की जो चीन हमारे पड़ोसियों  के साथ मिलकर हमारे काह्रों तरफ लगा  रहा है .
नेपाल=> नेपाल में माओवादियों की पीठ पर चीन का हाथ है ये बात तो सब जानते है. और सब ये भी जानते है कि वो उन्हें सपोर्ट इसी वजह स है कि माओवादी भारत के खिलाफ है. आर्थिक विकास के नाम चीन नेपाल को माओवादियों का अड्डा बना चुका  है. नेपाली माओवादी भारतीय नक्सलवादियों के साथ मिलकर दक्षिण भारत तक रेड कोरिडोर का निर्माण करना चाहते है. पिछले तीन सालों में २० हजार चीनी नागरिक नेपाल में घुसपैठ कर चुके है और भारतीय सीमा के निकट उनके कई ठिकाने बन चुके है. उन्हें चीनी खुफिया एजेंसी ग्यान्वु ने प्रशिक्षित किया है.
पाकिस्तान =>१९६२ के बाद से  चीन द्वारा भारत को घेरने के लिए बनी नीतियों में  अलग  भूमिका निभाई है. चीन पाकिस्तान की उस हर नीति का समर्थन करने लगा जो कि भारत विरोधी हो या  भारत को क्षति पहुँचाने वाली हो चीन-पाकिस्तान गठबंधन के मुख्य कारण थे------१. भारत कि शक्ति को कम करना. २.विश्व परिद्रश्य में भारत की छवि को धूमिल करना ३. हथियारों के लिए नया बाज़ार हासिल  करना ४.अमरीका के प्रभाव को कम करना
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी चीन के हथियारों पर यकीन करते है.
मुंबई हमले के मुद्दे पर वही संयुक्त राष्ट्र संघ में दो बार अपने वीटो का इस्तेमाल करके भारत के उस प्रस्ताव को रोक चुका है जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के जमात-उल-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करना था.
हिंद महासागर तक पहुँच बनाने के लिए चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को आधुनिक तकनीक द्वारा सी पोर्ट के रूप मे विकसित कर चुक है
बांग्लादेश=>इस देश को भी चीन आर्थिक सहायता देकर अपने नियंत्रण में लेना चाहता है अवैध बांग्लादेशियों का असम में प्रवेश और जेहादी आतंकवाद  जैसे मुद्दों पर भारत एवं बांग्लादेश के बीच के विवाद को चीन ने सामरिक फायदे के लिए भुनाया है बंगलदेश को सबसे ज्यादा हथियार चीन ही देता है. बांग्लादेश का काक्स बाज़ार और चटगाँव को चीन बंदरगाह के रूप में विकसित करने में लगा है. यहाँ से चीन बांग्लादेश के प्राक्रतिक भंडारों पर शिकंजा मजबूत करने के साथ ही हिंद महासागर तक आसानी से आ सकेगा.
श्री लंका > चीन ने श्री लंका के हब्बान टोटो को सी हार्बर के रूप में विकसित करने के लिए २००७ में समझौता किया है .
मालदीव =>मालदीव में पाकिस्तान ने इस्लामिक कार्ड खेलकर मालदीव के मराओ द्वीप पर चीन को सैनिक अड्डा बनाए जाने की वश्यकता  को को पूरा किया.
म्यांमार=>चीन ने कोको द्वीप व अन्य द्वीपों को म्यांमार से पट्टे पर लेकर वहाँ शक्तिशाली संचार और खुफिया तंत्र विकसित कर रखा है. बंगाल की खाड़ी में स्थित यह कोको द्वीप भारत के केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार द्वीप समूहों से मात्र १८ किलोमीटर की दूरी पर है. म्यांमार का पैगोडा पॉइंट चीन का महत्वपूर्ण सप्लाई केंद्र बन चुका है. म्यांमार का ३\४ मिलिट्री हार्डवेयर  चीन से ही प्राप्त  करता है. अपने संबंधों के कारण ही चीन को हिंद म्यांमार के जरिये महासागर तक पहुँचने का मार्ग मिला है. चीन की इस घुसपैठ के कारण बंगाल की खाड़ी में स्थित ५७२ द्वीपों वाले अंडमान निकोबार द्वीप समूह का अस्तित्व खतरे में है.
     आर्थिक क्षेत्र में भी चीन भारत को घेरने में लगा हुआ है. भारतीय उत्पादों के मुकाबले के मुकाबले ७०% तक सस्ते चीनी उत्पादों की भारत में डम्पिंग हो रही है जिससे छोटे एवं माध्यम दर्जे के उत्पादकों को भरी नुक्सान हो रहा है. चीनी खिलौना उद्योग के हमले से भारत के सैंकड़ों खिलौना कम्पनियाँ बंद पड़ी है. भारत में चरम ऊंचाई तक पहुंचे औषधि उद्योग व्यापर को नुक्सान पहुँचने के लिए नकली दवाइया बनाकर और उनपर मेड इन चाइना का लेबल लगाकर उन्हें दुसरे देशों में बेच रहा है.
आज्नकी तारीख में हर भारतीय पाकिस्तान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है मगर हकीकत  ये है की हमारा सबसे बड़ा दुश्मन चीन है. सबसे बड़ा दुश्मन वो होता है जो स्सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला होता है. ये सही है कि सीधे तौर पर हमे सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान दे रहा है मगर उसे सपोर्ट अमेरिका और चीन कर रहे है. अमेरिका आज कि तारीख में उधर के घी पीकर जिन्दा है....ध्यातव्य है उसपर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का ही है. पाकिस्तान भले ही कुछ भी कर रहा हो मगर वो ख़त्म होने के लगर पर है. वो भले ही कुछ भी कहे मगर उसके  लोकतंत्र का अपहरण किया जा चुका है जो कि अब ख़त्म होने के कगार पर है. अब तक ख़त्म हो भी चुका होता अगर अमेरिका उसे टुकड़े ना डाल रहा होता. पाकिस्तान हमपर एक तरफ से हमला कर रहा है वो भी दूसरों के टुकड़ों पर पलकर. उसकी अपनी ही धरती पर इतने भस्मासुर पल रखे है कि वो ही उसे समाप्त करने पर तुले है. चीन ने हमे चारों तरफ से घेर रखा है अगर वो हमला  करता है तो उसकी में पॉवर और हथियार ही खर्च होंगे मगर इन्फ्रा उस देश का बर्बाद होगा जहा से वो हमला करेगा या भारत का होगा. जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था कई साल पीछे  चली जाएगी. और चीन यही चाहता है. इसीलिए उसने भारत के चारों और इतने फंदे लगा रखे है.

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