Sunday, April 26, 2015

भारत का महादानी अजीम हाशिम प्रेमजी

अज़ीम हाशिम प्रेमजी व्यापर की दुनिया में एक बड़ा नाम हैं ; मगर  बहुत कम लोग इस महान इंसान की सादगी और दानवीरता  बारे में जानते है. व्यापर में तो बहुत लोगों में कामयाबी हासिल की ; किन्तु  कम ही ऐसे बिजनेस मैन जो अज़ीम जैसी बुलंदी तक पहुँच पाते है. बिरले ही हैं जो बुलंदी को हासिल करने के बाद  अज़ीम जैसी  सादगी  बिताते हैं. अज़ीम हाशिम प्रेमजी का नाम  नहीं उनका किरदार भी अज़ीम है. 

 अमेरिकी बिजनेस पत्रिका फोर्ब् के मुताबिक वर्ष 1999 से 2005 तक अजीम प्रेमजी भारत के सबसे धनी व्यक्ति रह चुके हैं. विप्रो के चेयरमैम अजीम हाशिम प्रेमजी को भारत का बिल ग्रेट्स भी कहा जाता है। अज़ीम  प्रेमजी भारत के ऐसे पहले बिजनेसमैन बन गए हैं, जिसने अपनी आधी दौतल दान में दे दी हो. वारन बफेट और बिल गेट्स के एक उपक्रम गिविंग प्लेज में अपने हस्ताक्षर कर अजीम प्रेमजी ने अपनी आधी दौलत दान में दे दी है.24 जुलाई, 1945 को कराची में जन्मे प्रेमजी ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी। फिर भी उन्होंने विप्रो को नए मुकान पर पहुंचाया। एशियावीक के मुताबिक, दुनिया के टॉप 20 प्रभावशाली व्यक्तियों में उनका नाम शुमार है। इतना ही नहीं, टाइम मैग्जीन ने दो बार दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में उनका नाम शामिल किया है।


परिचय...
नाम : अजीम हाशिम प्रेमजी 
जन्म : 14 जुलाई, 1945 
नागरिकता : भारतीय
एजुकेशन : स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी( डॉपआउट 1966)
कार्य : चेयरमैन ऑफ विप्रो 
धर्म : इस्लाम
पत्नी : यासमीन
बगो : रिशद और तारिक

24 जुलाई, 1945 को मुंबई  में जन्मे प्रेमजी मूल रूप से कच्छ गुजरात के है. एक जगह मुझे उनका जन्मस्थान कराची  जानकारी मिलती है।  पर ये तय है की उनके पिता का बिजनेस मुंबई में ही सैटल था. उनके दादा एक प्रख्यात व्यापारी थे और उन्हें बर्मा (म्यामांर) के चावल राजा के रूप में जाना जाता था। जब विभाजन के बाद जिन्ना को आने के लिए अपने दादा जी को पाकिस्तान आकर रहने के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने  वह अनुरोध ठुकरा दिया और भारत में रहने का फैसला किया।

अजीम प्रेमजी के पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी ने १९४५ ई० में  Western Indian Products Ltd. नाम से महाराष्ट्र के जलगांव जिले में अमळनेर कस्बे में  कम्पनी स्थापित की।  तब वो बढ़ी छोटी सी कंपनी थी जो  वनस्पति तेल का व्यापार करती थी। उनके तेल का ब्रांड Sunflower Vanaspati हुआ करता था।  उसके अलावा वो 787 के ब्रांड से साबुन भी बनाया करते थे. 
१९६६  ई० में,अज़ीम प्रेमजी  स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय, संयुक्त राज्य अमरीका से इलेक्ट्रिकल इंजीनीय्रींग की पढ़ाई  दौरान उन्हें अपने पिता की अचानक मृत्यु  की जानकारी मिली तो वो पढाई छोड़कर वापिस आ गए. मात्र २१ साल की कच्ची उम्र में में उन्होंने न केवल अपने पिता को खो दिया था बल्कि कम्पनी की जिम्मेदारी भी उनके कंधे पर  आ गयी  थी.कंपनी के कई हिस्सेदार थे  हिस्सेदारी अज़ीम प्रेमजी की पिता की थी.  उनकी  मृत्यु के बाद वो हिस्सेदारी अज़ीम प्रेमजी को मिल  गयी सो  कम्पनी के चेयरमैन अज़ीम प्रेमजी बने. कम्पनी में  उसी समय विद्रोह पैदा हो गया. कई हिस्सेदारों ने हिस्सेदारों ने  हिस्सा  और  कम्पनी से बाहर हो गए. वो मात्र २१ साल के युवा को कम्पनी के चैयरमैन के रूप में स्वीकार नहीं कर सके. अज़ीम प्रेमजी ने  हालातों  नहीं मानी।  उन्होंने इसे पुनर्व्यवस्थित किया और १९६६ में (वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड) विप्रो लि को एक फास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) कंपनी के रूप में स्थापित किया जो उस समय २ करोड़ डॉलर की एक हय्द्रोजिओनेतेद रसोई तेल/वसा, धुलाई के साबुन, मोम और टीन कंटेनर की कंपनी थी और बाद में १९७५ में हाय्द्रौलीक तथा नुमेटीक सिलेंडरों के निर्माण के लिए विप्रो फ्लुईड पॉवर की स्थापना की. जिस समय विप्रो अच्छा पैसा बना रही थी, उस समय भी प्रेमजी निरंतर नए अवसरों की तलाश में थे।
१९७७ में, भारत की समाजवादी सरकार ने आई बी एम को देश छोड़ने के लिए कहा. प्रेमजी ने कंप्यूटर हार्डवेयर की बनाने  का फैसला किया है। १९७९ में, उन्होंने अपने स्वयम के कंप्यूटर का विकास शुरू किया और १९८१ में, तैयार मशीन की बिक्री --उत्पादों की श्रेणी का पहला उत्पाद जिसने दो दशकों के लिए विप्रो को भारत का सबसे बड़ा कंप्यूटर निर्माता बना दिया. कंपनी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में सेंटीनेल कंप्यूटर से प्रोद्योगिकी अनुज्ञप्ति प्राप्त की और भारत के पहले मिनी कंप्यूटर का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया. प्रेमजी ने ऐसे प्रबंधकों को नियोजित किया जो कंप्यूटर साक्षर और व्यावसायिक अनुभवों से लेस थे। उन्होंने तकनीक को तेजी से सीखा और हार्डवेयर को एक अत्यधिक मुनाफे का उद्यम बना दिया. कुछ ही समय में विप्रो के इंजीनियरो ने सॉफ्टवेयर पैकेज विकसित करना प्रारम्भ कर दिया जो उस समय हार्डवेयर ग्राहकों को आसानी से उपलब्ध नहीं थे। १९८० में इसने आईटी कारोबार को विविधतापूर्ण बना दिया और इसके बाद भारत की पहली ८०८६ चीप को आविष्कृत किया। १९९२ में एक प्रकाश व्यापार स्थापित हुआ और २००० तक विप्रो लिमिटेड एडीआर न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो गई।
आज यह एक बहु व्यवसाय तथा बहु स्थान कंपनी के रूप में उभरी है। इसका व्यसाय उपभोक्ता उत्पादों, अधोसरंचना यांत्रिकी से विशिष्ट सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों और सेवाओं तक विस्तारीत है। हाल ही में, विप्रो ने अपने उद्यम अनुप्रयोगों के व्यवसाय की स्थापना पर जोर दिया है। विप्रो ने स्वीकार किया कि दुनिया भर के वैश्विक दिग्गज, जिन्होंने ओरेकल और एसऐपी जैसे मंहगे पैकेज इंस्टाल किए थे, अपने निवेश से और अधिक प्राप्त करना चाहते थे। आम तौर पर अमेरिकी परामर्शी फर्म्स इसके लिए १२५ -१३० डॉलर प्रति घंटा लेती थी जबकि भारतीय कंपनियां ऐसा ७५ -१०० डॉलर प्रति घंटा में कर देती थी। यह विप्रो लिमिटेड की वैश्विक आईटी सेवा भुजा है इसका मुख्यालय बंगलुरु  में है और यह भारत में तीसरी सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी है.
५ अरब डॉलर से अधिक के राजस्व के साथ विप्रो भारत की प्रमुख आईटी कंपनियों में से एक है। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग संस्थान कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी सर्टिफिकेशन प्रोसेस के अंतर्गत विप्रो टेक्नोलॉजीज का पीपल केपेबिलिटी मेचुरिटी मॉडल (PCMM) के 5 वें स्तर पर आंकलित किया गया है और यह प्रमाण पत्र प्राप्त करने वाली यह विश्व की पहली कंपनी है। 
सादा जीवन उच्च विचार जैसे अज़ीम प्रेमजी के जीवन का मूल मंत्र है. जहाँ एक ओर भारत के अमीर व्यापारी लग्ज़री जीवन बिताना पसंद है;  वहीँ अज़ीम को सादा जीवन पसंद है.उन्हें ना  महंगे कपड़े पहनने का शौक है ना महंगी कार में घूमना  पसंद हैं. मुंबई से जब वो कम्पनी के काम से बंगलुरु  तो दूसरेबिजनेसमैन तरह  हवाई जहाज  इकोनॉमी क्लास में सफर करके जाते हैं. एक बार लौटते समय  ड्राइवर एरोड्रम कार जाने में लेट हो तो अज़ीम प्रेमजी ऑटो से ही घर आ थे. 
  
उसके बावजूद कंजूस  नहीं कहा जा सकता। पैसा उनके लिए सेवक ही है. दौलत का आनंद लेने की बजाए उनके उसका सही मकसद के लिए इस्तेमाल करना सही लगता है.  यही वजह है उन्होंने अपनी दौलत से  कीमती जेट खरीदने और लग्जरी याट खरीदने और ऊंचे महल जैसा घर बनाने की बजाए उन्होंने  दौलत गरीबों की भलाई के लिए  दान दी।  
यही वजह है फोर्ब्स मैग्जीन ने उन्हें भारत का बिल गेट्स का खिताब दिया है। भले ही कॉलेज से डॉपआउट हो गए हों, लेकिन वे भारत में वर्ल्ड क्लास यूनिवर्सिटी खोलने में लगे हुए हैं। इसके लिए उन्होंने 450 करोड़ रुपये का दान दिया है।
यही नहीं गरीब बच्चों की पढ़ाई पर खर्च के लिए प्रेमजी ने 9000 करोड़ रुपये का दान दिया था। आज दौलत उनके कदम चूमती है। दुनिया भर में जाने कितने मंचों पर उनका सम्मान हो चुका है, लेकिन एक बात उन्हें हमेशा कचोटती है कि वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए। शायद इसीलिए बात शिक्षा की हो, तो इसके लिए अजीम प्रेमजी दिल खोलकर दान देते हैं।

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