Sunday, April 26, 2015

आधुनिक भारत की उम्मीद की नयी किरण

कद-काठी में वह साधारण ही हैं। सिर पर गांधी टोपी और बदन पर खादी है। आंखों पर मोटा चश्मा है, लेकिन उनको दूर तक दिखता है। इरादे फौलादी और अटल हैं। अन्ना हज़ारे भारत के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जो हमेशा सफेद खादी के कपड़े पहनते हैं और सिर पर गाँधी टोपी पहनते हैं.




     किसन बापट बाबूराव हजारे एक भारतीय   समाजसेवी हैं  ज्यादातर लोग  उन्हें अन्ना  के नाम से जानते हैं.  सन्  १९९२  ई ० में भारत  द्वारा उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। सूचना का अधिकार  के लिये कार्य करने वालों में वे प्रमुख थे। जन लोकपाल विधेयक  को पारित कराने के लिये अन्ना ने १६ अगस्त २०११ से आमरण अनशन आरम्भ किया था।
      अन्ना हजारे का जन्म १५ जून १९३७ ई ० को महाराष्ट्र  के अहमदनगर  के रालेगन सिद्धि गांव के एक मराठा किसान परिवार में हुआ था। रालेगन सिद्धि  भारत  के पश्चिम में स्थित राज्य महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले  की पारनेर तहसील में स्थित एक गांव है। यह पुणे  से ८७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गांव का क्षेत्रफल ९८२.३१ हेक्टेयर है (१९९१) पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से इसे एक आदर्श गांव माना जाता है। १९७५  ई ०  के बाद से, गाँव में विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे  के नेतृत्व में, मृदा अपरदन रोकने के लिए वृक्षारोपण  और सीढ़ीदार खेतों में खेती  और वर्षा के पानी के संचय के लिए नहरों की खुदाई जैसे कार्यक्रमों को चलाया गया है।
         उनके पिता का नाम बाबूराव हजारे और मां का नाम लक्ष्मीबाई हजारे था। उनका बचपन बहुत गरीबी में गुजरा। पिता मजदूर थे तथा दादा सेना में थे। दादा की तैनाती भिंगनगर में थी। वैसे अन्ना के पूर्वंजों का गांव अहमद नगर जिले में ही स्थित रालेगन सिद्धि में था। दादा की मृत्यु के सात वर्षों बाद अन्ना का परिवार रालेगन गया। अन्ना के छह भाई हैं। परिवार में तंगी का आलम देखकर अन्ना की बुआ उन्हें मुम्बई ले गईं। वहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की। यहां उन्होंने सातवीं तक पढ़ाई की. कठिन हालातों में परिवार को देख कर उन्होंने परिवार का बोझ कुछ कम करने के लिए फूल बेचनेवाले की दुकान में 40 रूपए महीने की पगार पर काम किया. इसके बाद उन्होंने फूलों की अपनी दुकान खोल ली और अपने दो भाइयों को भी रालेगन से बुला लिया।
वर्ष १९६२ ई० में भारत-चीन युद्ध के बाद सरकार की युवाओं से सेना में शामिल होने की अपील पर अन्ना १९६३ ई०  में सेना की मराठा रेजीमेंट में ड्राइवर के रूप में भर्ती हो गए। अन्ना की पहली नियुक्ति पंजाब में हुई। १९६५ ई० में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अन्ना हजारे खेमकरण सीमा पर नियुक्त थे। १२ नवम्बर १९६५ ई०   को चौकी पर पाकिस्तानी हवाई बमबारी में वहां तैनात सारे सैनिक मारे गए।इस घटना ने अन्ना के जीवन को सदा के लिए बदल दिया। इसके बाद उन्होंने सेना में १३ और वर्षों तक काम किया। उनकी तैनाती मुंबई और कश्मीर में भी हुई। १९७५ ई०  में जम्मू में तैनाती के दौरान सेना में सेवा के १५ वर्ष पूरे होने पर उन्होंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले ली ;लेकिन अपने जन्म स्थली भिंगारी गांव भी नहीं गए. वे पास के रालेगांव सिद्धि में रहने लगे.
       1990 ई०  तक हज़ारे की पहचान एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हुई, जिसने अहमदनगर जिले के रालेगन  सिद्धि को अपनी कर्मभूमि बनाया और विकास की नई कहानी लिख दी.
       १९६५ ई०   के युद्ध में मौत से साक्षात्कार के बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी  की एक पुस्तक 'कॉल टु दि यूथ फॉर नेशन' खरीदी। इसे पढ़कर उनके मन में भी अपना जीवन समाज को समर्पित करने की इच्छा बलवती हो गई। उन्होंने महात्मा गांधी और विनोबा भावे की पुस्तकें भी पढ़ीं। १९७० ई०  में उन्होंने आजीवन अविवाहित रहकर स्वयं को सामाजिक कार्यों के लिए पूर्णतः समर्पित कर देने का संकल्प कर लिया।रालेगन में  आज भी उनका उनका परिवार  रहता है ; उन्होंने फिर भी यादवबाबा के मंदिर में रहना पसंद किया ताकि परिवार के झंझटों से दूर अपना जन कल्याण मकसद एकाग्र होकर पूरा कर सकें। वो रोज अपने भाई मारुती के घर के सामने होकर गुजरते हैं; मगर १९७० ई० के बाद वो उनके घर नहीं गए. 
       कुछ समय के बाद अन्ना मुम्बई चले गए । मुम्बई चले जाने के बाद जब वो वहां रह रहे थे उस दौरान वह अपने गांव रालेगन आते-जाते रहे। वे वहाँ चट्टान पर बैठकर घंटों - घंटों चिंतन  करते थे और  गांव को सुधारने की बात सोचा करते थे। रालेगन तब एक बड़ा ही पिछड़ा हुआ गॉव हुआ करता था  इस गांव में बिजली और पानी की ज़बरदस्त कमी थी। अन्ना ने गांव वालों को नहर बनाने और गड्ढे खोदकर बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया और स्वयं भी इसमें योगदान दिया। अन्ना के कहने पर गांव में जगह-जगह पेड़ लगाए गए। गांव में सौर ऊर्जा और गोबर गैस के जरिए बिजली की सप्लाई की गई। उन्होंने अपनी ज़मीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दान कर दी और अपनी पेंशन का सारा पैसा गांव के विकास के लिए समर्पित कर दिया। वे गांव के मंदिर में रहते हैं और हॉस्टल में रहने वाले बच्चों के लिए बनने वाला खाना ही खाते हैं। आज गांव का हर शख्स आत्मनिर्भर है। आस-पड़ोस के गांवों के लिए भी यहां से चारा, दूध आदि जाता है। यह गांव आज शांति, सौहार्द्र एवं भाईचारे की मिसाल है।
    अपना  गांव साफ-सुथरा करने के बाद अन्ना ने अपने राज्य  भ्रष्टाचार  ख़त्म करने का इरादा बना लिया।१९९१ ई०  में अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा की सरकार के कुछ 'भ्रष्ट' मंत्रियों को हटाए जाने की मांग को लेकर भूख हड़ताल  की। ये मंत्री थे- शशिकांत सुतर, महादेव शिवांकर और बबन घोलाप। अन्ना ने उन पर आय से अधिक संपत्ति रखने का आरोप लगाया था। सरकार ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंतत: उन्हें दागी मंत्रियों शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को हटाना ही पड़ा। घोलाप ने अन्ना के खिलाफ़ मानहानि का मुकदमा दायर दिया। अन्ना अपने आरोप के समर्थन में न्यायालय में कोई साक्ष्य पेश नहीं कर पाए और उन्हें तीन महीने की जेल हो गई। तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर जोशी ने उन्हें एक दिन की हिरासत के बाद छोड़ दिया। एक जाँच आयोग ने शशिकांत सुतर और महादेव शिवांकर को निर्दोष बताया। लेकिन अन्ना हजारे ने कई शिवसेना और भाजपा नेताओं पर भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगाए।
१९९७ में अन्ना हजारे ने सूचना का अधिकार अधिनियम के समर्थन में मुंबई के आजाद मैदान से अपना अभियान शुरु किया। अगस्त २००३ को मुंबई के आजाद मैदान में ही अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। १२ दिन तक चले आमरण अनशन के दौरान अन्ना हजारे और सूचना का अधिकार आंदोलन को देशव्यापी समर्थन मिला। आख़िरकार २००३ में ही महाराष्ट्र सरकार को इस अधिनियम के एक मज़बूत और कड़े विधेयक को पारित करना पड़ा। बाद में इसी आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके परिणामस्वरूप १२ अक्टूबर २००५ को भारतीय संसद ने भी सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। अगस्त २००६, में सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ अन्ना ने ११ दिन तक आमरण अनशन किया, जिसे देशभर में समर्थन मिला। इसके परिणामस्वरूप, सरकार ने संशोधन का इरादा बदल दिया।

       २००३ में अन्ना ने कांग्रेस और एनसीपी सरकार के चार मंत्रियों; सुरेश दादा जैन, नवाब मलिक, विजय कुमार गावित और पद्मसिंह पाटिल को भ्रष्ट बताकर उनके ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी और भूख हड़ताल पर बैठ गए। तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने इसके बाद एक जांच आयोग का गठन किया। नवाब मलिक ने भी अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। आयोग ने जब सुरेश जैन के ख़िलाफ़ आरोप तय किए तो उन्हें भी त्यागपत्र देना पड़ा।
विधेयक पारित कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। १६ अगस्त को सुबह साढ़े सात बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, तब दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनके टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर दिल्ली से बाहर रालेगाँव चले जाने या दिन तक अनशन करने की बात अस्वीकार कर दी। उन्हें दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। १७ अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। १७ अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। मगर अन्ना ने ३० दिनों से कम अनशन करने की अनुमति लेने से मना कर दिया. उन्होंने जेल में ही अपना अनशन जारी रखा। अन्ना को रामलीला मैदान में १५ दिन कि अनुमति मिली और १९ अगस्त से अन्ना राम लीला मैदान में जन लोकपाल बिल के लिये आनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। आज २४ अगस्त तक तीन मुद्दओ पर सरकार से सहमति नही बन पायी है।
          वही समय था जब अन्ना की एक आवाज पर  सारा भारत एकजुट होकर भारत सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया, अन्ना और उनके इंडिया अगेंस्ट करप्शन  के उनके साथियों  बनाये जन लोकपाल  फैलाव ने सरकार  चूलें हिला दीं. एक अन्ना के इशारे पर लोग करप्शन  खिलाफ सड़कों  उतर आये गांव कस्बों से  उम्र और लिंग  के लोग अन्ना बनकर सड़कों पर  आ गए थे. सदन `आज-हम-सब-अन्ना-हैं` के  भर गयी. अनशन के 10 दिन हो जाने पर भी सरकार अन्ना का अनशन समापत नही करवा पाई | हजारे ने दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो। 74 वर्षीय हजारे ने कहा कि अगर जन लोकपाल विधेयक पर संसद चर्चा करती है और इन तीन शर्तों पर सदन के भीतर सहमति बन जाती है तो वह अपना अनशन समाप्त कर देंगे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दोनो पक्षों के बीच जारी गतिरोध को तोड़ने की दिशा में पहली ठोस पहल करते हुए लोकसभा में खुली पेशकश की कि संसद अरूणा राय और डॉ॰ जयप्रकाश नारायण सहित अन्य लोगों द्वारा पेश विधेयकों के साथ जन लोकपाल विधेयक पर भी विचार करेगी। उसके बाद विचार विमर्श का ब्यौरा स्थायी समिति को भेजा जाएगा।

      25 मई 0१२ को अन्ना ने फिर  जंतर मंतर पर जन लोकपाल विधेयक और विसल ब्लोअर विधेयक को लेकर एक दिन का सांकेतिक अनशन किया।
    महात्मा गांधी के बाद अन्ना हजारे ने ही भूख हड़ताल और आमरण अनशन को सबसे ज्यादा बार बतौर हथियार इस्तेमाल किया है। इसके जरिए उन्होंने भ्रष्ट प्रशासन को पद छोड़ने एवं सरकारों को जनहितकारी कानून बनाने पर मजबूर किया है। अन्ना हजारे को आधुनिक युग का गान्धी भी कहा जा सकता है अन्ना हजारे हम सभी के लिये आदर्श है। अपने अनशन के हथियार से अन्ना सिर्फ महाराष्ट्र में ६ मंत्रियों और ४०० से ज्यादा अधिकारीयों का बिस्तर बंधवा  चुके हैं.
     अन्ना हजारे गांधीजी के ग्राम स्वराज्य को भारत के गाँवों की समृद्धि का माध्यम मानते हैं। उनका मानना है कि ' बलशाली भारत के लिए गाँवों को अपने पैरों पर खड़ा करना होगा।' उनके अनुसार विकास का लाभ समान रूप से वितरित हो पाने का कारण रहा गाँवों को केन्द्र में रखना.
23 Mar 2015 शहीदी दिवस के मौके पर अन्ना हजारे ने शहीद--आजम भगत सिंह के पैतृक गांव खटकड़ कलां गांव पहुंचकर शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। अन्ना ने यहां भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद किया और उनके स्मारक पर पुष्प अर्पित किये। इस दौरान शहीदों को याद कर अन्ना भावुक हो गए और अपने आंसू नहीं रोक पाए। वहां मौजूद लोग भी यह देख भावुक हो उठे।
व्यक्ति निर्माण से ग्राम निर्माण और तब स्वाभाविक ही देश निर्माण के गांधीजी के मन्त्र को उन्होंने हकीकत में उतार कर दिखाया और एक गाँव से आरम्भ उनका यह अभियान आज 85 गावों तक सफलतापूर्वक जारी है। व्यक्ति निर्माण के लिए मूल मन्त्र देते हुए उन्होंने युवाओं में उत्तम चरित्र, शुद्ध आचार-विचार, निष्कलंक जीवन त्याग की भावना विकसित करने निर्भयता को आत्मसात कर आम आदमी की सेवा को आदर्श के रूप में स्वीकार करने का आह्वान किया है। हजारे ने पिछले दस दिन से जारी अपने अनशन को समाप्त करने के लिए सार्वजनिक तौर पर तीन शर्तों का ऐलान किया। उनका कहना था कि तमाम सरका री कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाया जाए, तमाम सरकारी कार्यालयों में एक नागरिक चार्टर लगाया जाए और सभी राज्यों में लोकायुक्त हो।



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