Tuesday, April 28, 2015

तकनीक से कार ड्राइविंग को बना दिया शानदार काम

तकनीक की खासियत ही है कि  उसकी कोई सीमा नहीं होती। तकनीक ही वो हथियार है जिसका इस्तेमाल करके इंसान क्रांति तक कर देता है। ये तकनीक है जो किसी भी  सामान्य से काम को सम्माननीय बना देती है।  तकनीक का इस्तेमाल किस तरह करना है इस बात का फैसला सिर्फ इंसान को ही करना होता है कि उसे तकनीक को जीवन दायक बनाना है या जीवन नाशक ? 
    यूँ तो देश में कार चलाना भारत में कोई सम्मान का काम नहीं मन जाता है।  सामान्यतः कार चलने वालों को कम पढ़ा लिखा  या अनपढ़ मान लिया जाता है। इस सामान्य से काम  को  भी भाविश अग्रवाल और उनके मित्र तथा सहपाठी अंकित भाटी ने तकनीक से लैस करके सम्माननीय बना दिया। उन्ही के दिमाग की उपज है -`OLA कैब्स '
OLA कैब्स की स्थापना आईआईटी बंबई के पूर्व छात्र भाविश अग्रवाल और अंकित भाटी द्वारा जनवरी 2011 में की थी। 
                                                  भाविश अपनी कैब के साथ 
OLA  कैब्स का मकसद परेशानी मुक्त, विश्वसनीय और टेक्नोलॉजी युक्त कार रेंटल सर्विस भारतीय उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवाना था। खुद की कारें खरीदने उन्हें किराए पर देने के बजाया OLA कैब्स ने बड़ी संख्या में टैक्सी ड्राइवर्स के साथ पार्टनरशिप की और पूरे सेट अप में आधुनिक टेक्नोलॉजी को शामिल किया, जहां लोग शॉर्ट नोटिस पर कॉल सेंटर्स और एप्स के जरिए कार बुक कर सकते थे। इन बुकिंग्स में हाफ/फुल डे रेंटल और आउट स्टेशन टैक्सी शामिल थी। OLA कैब्स की स्थापना के बाद कई बार आईआईटी इंजीनियरिंग ग्रैजुएट संस्थापकों ने सारे कस्टमर कॉल्स खुद अटेंड किए तो कई बार ड्राइवर बनकर ग्राहकों को एयरपोर्ट छोड़ा। जहां अंकित भाटी ने तकनीकी मोर्चे की जिम्मेदारी ली तो भाविश ने ग्राहकों और बिजनेस एसोसिएट्स को संभाला।
     देश के इस असंगठित मार्केट में सहज आरामदेय ट्रांसपोर्ट सुविधा उपलब्ध करवाना आसान नहीं था। भाविश अग्रवाल अंकित भाटी ने कार निर्माता, वित्तीय संस्थानों बीमा कंपनियों से संपर्क किया ताकि कैब ड्राइवरों को सहज शर्तों कम ब्याज पर कर्ज मिले। अपने नेटवर्क से उन्हीं ड्राइवरों को जोड़ा, जिनका ट्रैक रिकार्ड साफ था। उन्हें कस्टमर सेवा का प्रशिक्षण दिलवाया। OLA  के विस्तार के लिए निजी निवेशकों से पूंजी प्राप्त करने के लिए भी भाविश अग्रवाल को मशक्कत करनी पड़ी। लेकिन मेहनत का दामन दोनों हिस्सेदारों ने पकड़े रखा और इस उद्यमी जोड़ी ने तकनीक की मदद से कार रेंटल सेवा को झंझटमुक्त विश्वसनीय बनाया।
        देश के 70 शहरों में सक्रिय OLA हर दिन 1.50 लाख लोगों को आय के अनुरूप (10 से 17 रुपए प्रति कि.मी. की दर से) निजी परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाती है।
       आईआईटी मुंबई के कम्प्यूटर साइंस व इंजीनियरिंग ग्रैजुएट (बीटेक) भाविश अग्रवाल ने 2010-11 ई ०  में ओला कैब्स की स्थापना की तो परिवार और दोस्तों ने उन्हें पागल  कहा। माइक्रोसॉफ्ट  रिसर्च की नौकरी करते हुए भाविश ने अब तक दो पेटेंट्स प्राप्त किए थे। उनके तीन पेपर्स इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुए थे, पर ग्लोबल बिजनेस एग्जीक्यूटिव बनने के बजाय वे सेल्फ मेड एंटरप्रेन्योर बनना चाहते थे। माइक्रोसॉफ्ट में सुरक्षित भविष्य भी 9 से 5 की जॉब, भाविश की उकताहट को कम नहीं कर पाया। भाविश कहते हैं,-"मैं हमेशा से ही खुद का कुछ शुरू करना चाहता था और यही वजह थी कि मैं विकल्प तलाश रहा था। लेकिन साथ ही मैं सोसायटी की किसी समस्या का समाधान प्रस्तुत करने के बारे में भी सोचा करता था।"
      इस सोच के साथ भाविश अपने वेंचर OLA  कैब्स तक कैसे पहुंचे? 
      इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं-"एक ट्रिप के खराब अनुभव से हमारी इस यात्रा  शुरुआत हुई।"
     दरअसल एक बार बंगलुरु  से बांदीपुर की यात्रा में भाविश ने कार किराए पर बुक की थी, जिसका अनुभव बेहद खराब रहा। उस ख़राब सफर ने ही भारत के अन्य यात्रियों के लिए शानदार सफर के  नींव रख दी।  भाविश का सफर अभी अधूरा ही था कि  ड्राइवर ने गाड़ी रोककर और पैसा देने की मांग रख दी । भाविश के  मना करने पर उसने सफर वहीं रोकने की धमकी दी। भाविश  से उसका ख़राब बर्ताव सहन नहीं हुआ सो उसने कार छोड़कर बाकी की यात्रा बस से तय  करने का इरादा बना लिया । सचमुच बाकी का सफर भाविश ने बस से ही तय किया। उस  वक्त भाविश को लगा कि इस समस्या का सामना बड़ी संख्या में उनके जैसे कई कस्टमर्स कर रहे हैं जो क्वालिटी कैब सर्विस की तलाश में हैं;, लेकिन उनकी यह तलाश सफर के बुरे अनुभवों के साथ खत्म होती है। यहां भाविश को पहली बार कैब बुकिंग सर्विस में क्षमताएं नजर आईं।
       अपने टेक्नोलॉजी बैकग्राउंड के चलते भाविश ने कैब सर्विसेज और टेक्नोलॉजी को एक साथ जोड़ने के बारे में सोचा। ताकि कस्टमर्स को ऑनलाइन कार रेंटल बुकिंग्स, रिव्यू व रेटिंग के जरिए बेहतर क्वालिटी आश्वासन और कार व ड्राइवर के बारे में पूरी सूचना मिल पाए। अगस्त 2010 ई ०  में भाविश ने ओला कैब्स की शुरुआत के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और इस दिशा में काम शुरू किया। दिलचस्प है कि भाविश जैसी सोच रखने वाले उनके मित्र अंकित भाटी नवंबर 2010 ई ०  में उनके भागीदार बने। अंकित ने भी आईआईटी से एमटेक और सीएडी (ऑटोमेशन) की डिग्री प्राप्त की थी। भाविश बताते हैं-"जब मैंने शुरुआत की तो मेरे माता-पिता सोच रहे थे कि मैं ट्रैवल एजेंट बनने जा रहा हूं। उन्हें समझा पाना काफी मुश्किल था, लेकिन जब OLA कैब्स को पहली फंडिंग हासिल हुई तो उन्हें मेरे स्टार्टअप पर कुछ भरोसा हुआ।"
      अपने आइडिया के प्रति समर्पण भाविश की इस सोच में झलकता है कि अपनी पत्नी के साथ उन्होंने पर्सनल व्हीकल न खरीदने का निर्णय किया  है ताकि वे आने जाने के लिए OLA  का इस्तेमाल कर सकें। दृढ़ता के इसी स्तर ने भाविश को इस मुकाम तक पहुंचाया है। नए उद्यमियों के लिए भाविश की सलाह है कि सपने तो सब देखते हैं, पर कुछ ही लोग जोखिम उठाते हैं। जब जोखिम उठाएंगे तो कई लोग कई सलाह देंगे। सपने उनके पूरे होते हैं, जो सुनते सबकी हैं, पर करते मन की हैं।
      60 परसेंट मार्केट शेयर के साथ OLA  कैब्स (अब ओला) आज देश की सबसे बड़ी तेजी से ग्रो हो रही कैब ऑटो बुकिंग कंपनी है। 1 लाख से अधिक वाहनों के साथ देश के 70 शहरों में सक्रिय OLA हर रोज 1.50 लाख लोगों को आय के अनुरूप (10 से 17 रुपए प्रति कि.मी. की दर से) निजी परिवहन सुविधा उपलब्ध करवाती है। मसलन लग्जरी ट्रैवल्स के लिए ओला प्राइम (टोयोटो इन्नोवा), कम्फर्टेबल ट्रैवलिंग के लिए ओला सेडान (टोयोटा इटिओट), इकोनॉमिक ट्रैवलिंग के लिए ओला मिनी (टाटा इंडिका), महिला यात्रियों के लिए महिला ड्राइवर की OLA  पिंक और सबसे सस्ती OLA  ऑटो।
    इतना ही नहीं ओला द्वारा लाॅन्च स्मार्ट फोन  एप्लीकेशन कैब बुकिंग के लिए भारत का लीडिंग  एप्लीकेशन है। बिजनेस के स्तर पर तीन सालों में कंपनी 1 बिलियन का आंकड़ा पार कर चुकी है और 2015 ई ०  के अंत तक 100 शहरों में अपनी पहुंच बनाने की योजना बना रही है।
OLA कैब्स  मकसद अपने कस्टमर्स को उच्च तकनीक सुविधा देना है इसका ये मतलब नहीं है कि वो उनकी हर मांग को मन लेते है।  कुछ ही दिन पहले हैदराबाद के एक ग्राहक ने OLA कैब्स से हिन्दू कार ड्राइवर की मांग की तो कंपनी ने स्पष्ट रूप से ऐसा करने से इंकार कर दिया।  

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