Tuesday, May 12, 2015

अमीरी उबाऊ चीज़ है - बाबा आम्टे

असली संत वही है जो अपना सारा जीवन  जरूरतमंदों की सेवा में लगा देते है।दौलत  उनके लिए एक बंधन  होती है। कई प्रसिद्ध संत सम्प्रदाय दौलत को माया का एक रूप मानते है- जो इंसान को सिर्फ उसके मकसद से भटकने का काम करती है। इसी वजह से संत मानव को माया से बचने की सलाह दिया करते है।  भारत की पवन धरती पर अनेकों संतो ने जन्म लिया उन्ही में से एक आधुनिक संत बाबा आम्टे है जिन्होंने अपना सारा जीवन भारत के मजलूमों की सेवा में लगा दिया।  
          डॉ॰ मुरलीधर देवीदास आम्टे- जो कि बाबा आमटे के नाम से ख्यात हैं, भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चंद्रपुर (महराष्ट्र) स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त बाबा आम्टे ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख हैं, के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।


    बाबा आम्टे का जन्म २६ दिसंबर १९१४ ई० को हिंगणघाट गांव में हुआ था-जो वर्धा जिला महाराष्ट्र में स्थित है। इनके उनके पिता देवीदास हरबाजी आम्टे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। बाबा आम्टे का बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता था।बचपन में वे किसी राज्य के राजकुमार की तरह रहे। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में शानदार शाही जूतियाँ, यही उनकी वेष-भूषा होती थी-जो उनको एक आम बच्चे से अलग कर देती थी। उनकी चार बहनें और एक भाई था।अपनी युवावस्था में धनी बाबा आम्टे को तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था।फिल्मो की उन्हें बड़ी समझ हुआ करती थी। इंग्लिश फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं; कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी। 
      बाबा आम्टे की पढ़ाई क्रिस्चियन मिशन स्कूल नागपुर में हुई और फिर उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई की और कुछ दिनों तक वकालत भी की। महात्मा गांधी और विनोबा भावे से प्रभावित बाबा आम्टे ने सारे भारत का दौरा कर देश के गाँवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की। देश की आजादी की लड़ाई में बाबा आम्टे अमर शहीद राजगुरु के साथी रहे थे। फिर राजगुरू का साथ छोड़कर गाँधी से मिले और अहिंसा का रास्ता अपनाया। विनोवा भावे से प्रभावित बाबा आम्टे ने सारे भारत का दर्शन किया; और इस दर्शन के दौरान उन्हें गरीबी, अन्याय आदि के भी दर्शन हुए। इन समस्याओं को दूर करने की अपराजेय ललक रूपी जलधि इनके हृदय में हिचकोरे लेने लगा।
      तब एक घटना ने बाबा आम्टे के जीवन की धारा को बदल दिया। एक दिन बाबा ने एक कोढ़ी को धुआँधार बारिश में भींगते हुए देखा उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा था। बाबा आम्टे का दिल भर आया। उन्होंने सोचा-" अगर अगर इसकी जगह मैं होता तो क्या होता?"
     उन्होंने उसी समय उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए। उसका वहां इलाज करवाया। इसके बाद बाबा आमटे ने कुष्ठ रोग को जानने और समझने में ही अपना पूरा ध्यान लगा दिया। जब कुष्ठरोगियों की पीड़ा देखकर बाबा ने अपना घर छोड़ा तो वे सारी संपत्ति से मुँह मोड़कर चले और साथ में पत्नी साधना थीं।वड़ोरा के पास घने जंगल में अपनी पत्नी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ आनंदवन की स्थापना की। यही आनंद वन आज बाबा आम्टे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से आज हताश और निराश कुष्ठ रोगियों के लिए आशा, जीवन और सम्मानजनक जीवन जीने का केंद्र बन चुका है। मिट्टी की सौंधी महक से आत्मीय रिश्ता रखने वाले बाबा आम्टे ने चंद्रपुर जिले, महाराष्ट्र के वड़ोरा के निकट आनंदवन नामक अपने इस आश्रम को आधी सदी से अधिक समय तक विकास के विलक्षण प्रयोगों की कर्मभूमि बनाए रखा। जीवनपर्यन्त कुष्ठरोगियों, आदिवासियों और मजदूर-किसानों के साथ काम करते हुए उन्होंने वर्तमान विकास के जनविरोधी चरित्र को समझा और वैकल्पिक विकास की क्रांतिकारी जमीन तैयार की। 
   आनन्दवन का महत्व चारों तरफ फैलने लगा, नए-नए रोगी आने लगे और आनन्दवन का महामंत्र 'श्रम ही है श्रीराम हमारा' सर्वत्र गूँजने लगा। आज आनन्दवन में स्वस्थ, आनन्दमयी और कर्मयोगियों की एक बस्ती बस गई है। भीख माँगनेवाले हाथ श्रम करके पसीने की कमाई उपजाने लगे हैं। किसी समय १४ रुपये में शुरु हुआ आनन्दवन का बजट आज करोड़ों में है। आज १८० हेक्टेयर जमीन पर फैला आनन्दवन अपनी आवश्यकता की हर वस्तु स्वयं पैदा कर रहा है। बाबा आम्टे ने आनन्दवन के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है।
     सन १९८५ ई० में बाबा आमटे ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ो आंदोलन भी चलाया था। इस आंदोलन को चलाने के पीछे उनका मकसद देश में एकता की भावना को बढ़ावा देना और पर्यावरण के प्रति लोगों का जागरुक करना था।
     उन्हें युवाओं की मटरगश्ती जरा भी पसंद नहीं थी। किस्सा भामरागढ़ का है। देशभर के महाविद्यालयीन युवा श्रम छावनियों में भाग लेने के लिए आए थे। लड़कियाँ भी अपने दुपट्टे खोंसकर लड़कों की बराबरी से मशक्कत कर रही थीं। उनका हौसला-अफजाई करने बाबा वहाँ आए।
    एक लड़के ने कुदाल रखकर बाबा के हस्ताक्षर चाहे। बाबा नाराज हो उठे कि काम के समय यह क्या ऊटपटांग बात करते हो और उन्होंने उसकी कलम और डायरी दूर फेंक दी; लेकिन शाम को उसी लड़के के सिर पर हाथ फेरकर उसकी इच्छा पूरी की।
    बाबा धर्मपत्नी साधनाताई को पूरा सम्मान देते थे। सामने राष्ट्रपति हों या शंकराचार्य, बाबा अपने उद्बोधन को सबसे पहले प्रिय साधना का नाम लेकर ही शुरू करते थे। दूसरा किस्सा भामरागढ़ वाले प्रसंग के तुरंत बाद का है। सन 1979 में मुंबई में सुलभा और अरविंद देशपांडे के घर बाबा पधारे थे। संयोग से उस दिन उनका जन्मदिन था। 
    सुबह नाश्ते के समय रेखा वसंत पोत्दार-जो एक एयरलाइन में काम करती थीं; उस संस्कृति के अनुसार बाबा के लिए केक बनाकर ले आईं। वहाँ विष्णु चिंचालकर, नाना पाटेकर और 8 वर्षीय स्कूली लड़की उर्मिला मातोंडकर भी थे। जब रेखा ने बाबा के सामने केक रख कर हैप्पी बर्थडे कहा तो कमरे में चुप्पी छा गई।
   सब लोग तनाव में थे कि अब विस्फोट होगा; परंतु मुस्कुराते हुए बाबा ने केक काटा और पहला टुकड़ा अपनी पत्नी साधना को खिलाया। सार्वजनिक मंच से अपना नाम सुनकर जिन्हें कभी संकोच नहीं हुआ होगा वे साधनाजी पति के इस उत्कट प्रेम प्रदर्शन से लजाकर लाल हो गईं। उन क्षणों का साक्षी बनकर न सिर्फ मैं बल्कि मेरा डिब्बा कैमरा भी निहाल हो गया।   
   बाबा आम्टे को उनके सामाजिक कार्यों के लिए केंद्र सरकार ने १९७१ ई० के द्वारा पद्म भूषण और महाराष्ट्र सरकार के सर्वोच्च सम्मान महाराष्ट्र भूषण सहित कई सम्मानों से नवाजा गया था।उन्हें दिए गए कुछ प्रमुख सम्मान और पुरस्कार इस प्रकार हैं।
·         अमेरिका का डेमियन डट्टन पुरस्कार १९८२ ई० में दिया गया। इसे कुष्ठ रोग के क्षेत्र में कार्य के लिए दिया जाने वाल सर्वोच्च सम्मान समझा जाता है।
·         एशिया का नोबल पुरस्कार कहे जाने वाले रेमन मैगसेसे (फिलीपीन) से १९८५ ई० में अलंकृत किया गया।
·         मानवता के लिए किए गए अतुलनीय योगदान के लिए १९८८ ई०  में घनश्यामदास बिड़ला अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिया गया। 
·         मानवाधिकार के क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए १९८८ ई० में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सम्मान दिया गया।
·   १९९० ई०  में ८८४००० अमेरिकी डॉलर का टेम्पलटन पुरस्कार दिया गया। धर्म के क्षेत्र का नोबल पुरस्कार नाम से मशहूर इस पुरस्कार में विश्व में सबसे अधिक धन राशि दी जाती है। 
·         पर्यावरण के लिए किए गए योगदान के लिए १९९१ ई० में ग्लोबल ५०० संयुक्त राष्ट्र सम्मान से नवाजा गया।
·         स्वीडन ने १९९२ ई० में राइट लाइवलीहुड सम्मान दिया।
·       १९८६ ई०  में पद्मभूषण दिया। जिसे ८ जून १९९१ई० में वापस कर दिया।
·         १९८५-८६ ई० में पूना विश्वविद्यालय ने डी-लिट उपाधि दी।
·        १९८० ई० में नागपुर विश्वविद्यालय ने डी-लिट उपाधि दी।
http://www.bbc.co.uk/staticarchive/5ea3e7590d674d9be4582cc6f6c8e86070157686.gif
    वे 94 वर्ष के थे-तब बाबा आम्टे रक्त कैंसर यानी ल्यूकेमिया नाम की खतरनाक बीमारी हो गयी।जीवन घातक उस बीमारी से लड़ते-लड़ते बाबा आम्टे आखिरकार उस जंग को हार गए और 9 फ़रवरी २००८ ई० को बाबा का ९४ साल की आयु में चन्द्रपुर जिले के वड़ोरा स्थित अपने निवास आनंदवन में निधन हो गया।उनके पुत्र प्रकाश आम्टे ने बीबीसी को बताया कि उनका निधन शनिवार तड़के भारतीय समयानुसार 4 बजकर 15 मिनट पर हुआ था। बाबा आम्टे के निधन की खबर से उनके चाहने वालों के में शोक की लहर फ़ैल गयी 
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने बाबा आम्टे के निधन पर शोक व्यक्त किया है.उन्हें एक प्रसिद्ध गांधीवादी बताते हुए मनमोहन सिंह ने कहा - "वे सच्चे गांधीवादी थे. उन्होंने जो काम कुष्ठरोग से पीड़ित लोगों के उद्धार के लिए किया है, उसने उन्हें महान राष्ट्रीय नेताओं की एक अलग ही श्रेणी में पहुँचा दिया."
   प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बयान में कहा, " देश में चारों ओर बसे लोगों को एकजुट करने का बाबा आम्टे का संघर्ष और भेदभाव दूर करने के उनके प्रयासों ने उन्हें हमारे वक्त का संत बना दिया. "
   फ़िल्म अभिनेता नाना पाटेकर ने कहा कि बाबा आम्टे के निधन से वह खुद को अनाथ महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा-"मैने अपने पिता को खो दिया...उन्होंने मुझे जीने का तरीका सिखाया।"
महाराष्ट्र के राज्यपाल एसएम कृष्णा ने बाबा आम्टे को महान समाज सुधारक संत बताया है. उन्होंने कहा कि बाबा ने कुष्ठरोग से प्रभावित लोगों को आत्मसम्मान के साथ जीने की राह दिखाई.
    

No comments:

Post a Comment