Tuesday, May 5, 2015

रिसेप्शनिस्ट से पेप्सी सीईओ : इंदिरा नूयी

इंदिरा नूयी की साल  भर की  तनख्वाह लगभग ५० करोड़ रूपये है।  वो दुनिया की सबसे ताक़तवर हस्तियों में गिनी जाती है।  लेकिन एक ऐसा भी वक़्त  था -जब वो एक मामूली रेसेप्स्निस्ट की जॉब किया करती थी।  अपना ये मुकाम हासिल करने के लिए इंदिरा ने लगातार कठिन परिश्रम किया, और  शीतल पेय कंपनी पेप्सिको की मुखिया इंदिरा नूयी करोबारी दुनिया की दिग्गज महिलाओं में शुमार हैं। भारतीय मूल की नूयी को अमेरिकी बिजनेस पत्रिका फॉर्च्यून ने अपनी महिला सीईओ की लिस्ट में चौथा स्थान दिया है। उनके नेतृत्व वाली पेप्सिको शीर्ष कंपनियों की लिस्ट में 41वें पायदान पर है। इस बार लिस्ट में महिला कारोबारियों की संख्या सबसे ज्यादा है। महिला सीईओ में हैलवट पैकर्ड मैग व्हिटमैन पहले पायदान पर हैं।



     इंदिरा नूयी तमिलनाडु के चेन्नई में १९५५ ई० में पैदा हुई जो तब मद्रास कहलाता था।उनका परिवार एक टिपिकल तमिल ब्राह्मण परिवार था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा होली एन्जिल्स एंग्लो इंडियन हायर सेकेंडरी स्कूल मद्रास में हुई। उस समय टिपिकल तमिल ब्राह्मण परिवार की भांति उनका परिवार भी पढाई पर खासा ध्यान दिया करता था। पूरे परिवार का फोकस बस ग्रेड्स पर होता था।इंदिरा के पिता स्टेट बैंक में काम किया करते थे।    इंदिरा अपने एक इंटरव्यू मेंबताती है -"हमारे  पेरेंट्स जब साथ होते थे तो अपने बच्चो के रिपोर्टकार्डस को कपड़े करते थे। आपस में पूछा करते थे कि आपका बच्चा पढाई कैसी कर रहा है ? "
हालाँकि इंदिरा का रुझान संगीत की तरफ भी था।स्कूलिंग के बाद उन्होने 1974 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट कोलकाता  से 1976 में MBA किया।  मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज की पढाई के दौरान वो एक लड़कियों के म्यूजिक बैंड का हिस्सा भी रही।  उसमे वो गिटार बजाया करती थी।अच्छी बात ये थी कि टिपिकल परिवार होने के बावजूद भी परिवार में लड़कियों के लिए कोई बंधन नहीं था। खुद इंदिरा कहती है -" हमारे पिता और दादा जी कहा करते थे कि उनकी बच्चियां जो चाहे कर सकती थीं। " 
 यही वजह थी कि युवा होने पर उनके परिवार ने उनकी शादी करने की बजाए अपना भविष्य खुद तय करने की छोट दी।  इंदिरा एक मध्यवर्गीय परिवार सम्बन्ध रखती थी सो उनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी। वो अमेरिका से बड़ी प्रभावित थी। वहां पढाई और जॉब करना चाहती थी। इसीलिए उन्होंने वहां अप्लाई किया और येल यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट में उका चयन हो गया जो न्यू हैवन, कनेक्टिकट में है।उन्होंने येल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद बोस्टन कंसल्टेशन फार्म ज्वाइन कर लिया और टेक्सटाइल व कंज्यूमर गुड्स इंडस्ट्री में मुवक्किलों की सेवा करने लगीं।  उनकी आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी यही वजह थी कि पढाई के दौरान उन्होंने एक कंपनी में रेसेप्स्निस्ट के रूप में भी काम करना पड़ा।  उस समय उनके पास नए कपडे खरीदनेके लिए पैसे भी नहीं थे सो वो अपनी नौकरी पर साडी में ही थी।
      वर्ष १९८६-१९९०ई० के बीच उन्होंने `मोटोरोला'  में कॉरपोरेट स्ट्रैटजी के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया और कंपनी के ऑटोमोटिव और इंडस्ट्रियल इलेक्ट्रॉनिक्स के विकास का मार्गदर्शन किया। वो १९९४ ई०  में पेप्सिको  में शामिल हुई।उन्हें पेप्सिको की दीर्धकालिक ग्रोथ स्ट्रैटजी की शिल्पकार मानी जाती हैं। २००१ ई० में अध्यक्ष और चीफ एग्ज़िक्युटिव ऑफिसर बनीं। उन्होने एक दशक से अधिक समय तक कंपनी  की वैश्विक रणनीति का निर्देशन और पेप्सीको के पुनर्गठन का नेतृत्व किया है। और  अब २०० से अधिक देशों में इसके उपभोक्ता हैं। फिलहाल इंदिरा कई बोर्डों की सदस्य भी हैं जिसमें US-CHINA  बिजनेस काउंसिल, US-INDIA  बिजनेस काउंसिल, कंज्यूमर गुड्स फोरम आदि शामिल है।US-INDIA  बिजनेस काउंसिल एक गैर लाभ वकालत व्यापार संगठन, जो भारत में कारोबार करने वाली दुनिया की ३०० से अधिक सबसे बड़ी कंपनियों का प्रतिनिधित्व करती है। इंदिरा USIBC के बोर्ड निदेशकों का नेतृत्व करती है, जो की अमेरिकी उद्योग के प्रतिनिधिक अंश का प्रतिनिधित्व करते ६० से अधिक वरिष्ठ अधिकारियों की एक सभा है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला नेताओं के समूह द्वारा इंदिरा नुई वर्ष २००९ ई० के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का नाम दिया गया है।
वर्ष २०१२ ई० में अमेरिका में मंदी के दौर से निपटने और आर्थिक रणनीति तय करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इंदिरा नूयी सहित भारतीय मूल के दो अन्य लोग को चर्चा के लिए आमंत्रित किया था।
अपने काम के बल पर  इंदिरा ने कई उपाधियाँ हासिल किये है जिनमे भारत सरकार द्वारा प्रदत्त पद्म भूषण एक है जो भारत सरकार ने २००७ ई० में प्रदान किया  था।
      अपनी इस सफलता को  लिए इंदिरा ने यूँ ही हासिल नहीं कर लिया।  बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है -" दोनों  हाथों में   लड्डू नहीं रखे जा सकते।  "
     इंदिरा ने भी जिंदगी में ये बात शिद्दत से फील की है कि कैरियर की चाह में महिलाएं बहुत कुछ खो  करती है अपने अनुभव के बारे में इंदिरा कहती है -" हम इतने बडे कंपनी की सीईओ हैं लेकिन इसके बावजूद हम परिवार बच्चों के साथ समय नहीं दे पाये. और इसका हमें काफी दुःख है।  "
इंदिरा की शादी राज कुमार नूयी से हुई। उनकी दो बेटियाँ है, जो ग्रीनविच कनेक्टिकट में रहती हैं। उनकी बेटियों में से एक वर्तमान में येल में प्रबंधन स्कूल में पढ़ रही हैं।
नूयी ने कहा कि हम ऐसा दिखाते हैं कि हम परिवार बच्चों के साथ हैं, जीवन में हमे सबकुछ मिल रहा है पर यह वास्तविकता नहीं है। नूयी की  शादी हुए 34 वर्ष हो गये।  नूयी ने कहा-" हर दिन हमें यह निर्णय लेना होता है कि हम अच्छी मां है या फिर अच्छी पत्नी? हमलोग यह आशा करते हैं कि हम अच्छे पैरेंट्स बनें पर जब यह बात हम अपनी बेटी से पूछते हैं तो वे कहते हैं कि आप अच्छी मॉम नहीं हैं।  "
 एक घटना का जिक्र करते हुए इंदिरा  कहती है -"मेरी बेटी अमेरिका में कैथोलिक स्कूल में पढ़ती है. वहां हर बुधवार की सुबह बच्चों की मां को क्लास कॉफी के लिए जाना होता है; लेकिन मैं कभी भी उस क्लास कॉफी को अटेंड नहीं कर पाती हूं. कभी-कभी स्कूल की मीटिंग में भी मैं नहीं जा पाती हूं। "
 इंदिरा  कहती है कि जब बच्चे छोटे होते हैं उस वक्त कैरियर बनाने का वक्त होता है।  जब बच्चे टीनेजर होते हैं तो उस वक्त उसे अपने मां की काफी जरुरत होती है।   नूयी मजकिया लिहाज में कहती है कि उस वक्त हसबैंड भी टीनेजर्स होते हैं और उनको भी हमारी काफी जरुरत होती है पर हम उन्हें भी टाइम नहीं दे पाते हैं। जब हम और अधिक उम्र के होते हैं उस वक्त हमारे पैरेंट्स बूढे हो जाते हैं और उनको हमारी जरुरत होती है।इंदिरा कहती है कि एक मां होना फुल टाइम जॉब है पर एक कंपनी का सीईओ होना तीन फुल टाइम जॉब के बराबर है. इस तरह से हर तरफ मैनेज करना काफी मुश्किल काम है। इसमें जो एक सबसे पीडादायक चीज है वह है पति महोदय. हमारे पति हमेशा कहते हैं कि तुम हमेशा पेप्सिको कंपनी, पेप्सिको कंपनी, पेप्सिको कंपनी करती रहती हो. इसके बाद दो बच्चे, फिर तुम्हारी मां और तुम्हारे लिस्ट में हम सबसे नीचे हैं. इसपर मुझे कहना पडता है कि कम से कम आप लिस्ट में तो हैं.
इंदिरा अपनी सफलता के लिए सात कारणों को मानती है या यूं लिखा जाये कि अपने इतने बड़े सफल जीवन जो सीखा है वो निम्न सात सफलता के कारण साबित होते है -

१ . पहली बार जब इंदिरा  ब्रिटेन में इंटरव्यू देने गई तो उन्होंने वेस्टर्न सूट पहना जिसमें उन्हें आरामदायक महसूस नहीं हो रहा था। ऎसे में वह रिजेक्ट कर दी गई। इसके बाद उन्होंने अपने प्रोफेसर की सलाह पर अगले इंटरव्यू में साड़ी पहनी जिसमें वह काफी आरामदायक अनुभव करती थी और सहज ही सलेक्ट कर ली गई।
२ . उनकी मां बचपन में कहा करती थी, "मैं तुम्हारी १८  वर्ष की होने पर शादी कर दूंगी। लेकिन तुम सपने देखना मत छोड़ना। उम्र के किसी भी मोड़ पर सपने पूरे किए जा सकते हैं बशर्ते ईमानदारी और लगन से मेहनत की जाए।" इस बात को इंदिरा ने गांठ बांध लिया और एक मामूली एक्जीक्यूटिव की पोस्ट से वर्तमान में पेप्सी कंपनी की सीईओ बनी।
३ . बचपन में उनकी मां उनसे एक प्रश्न पूछा करती थी, "तुम संसार को बदलने के लिए क्या करोगी?" इंदिरा ने इस प्रश्न का जवाब देने के लिए एक ऎसी कंपनी से जुड़ने की ठानी जो लोगों की भलाई के लिए काम करती हो ताकि अधिक से अधिक लोगों का हित किया जा सके।
४ . इंदिरा का मानना है अच्छे एम्प्लॉई को कंपनी से जोड़ने के लिए कंपनी में अच्छा माहौल होना चाहिए। वहां पर स्टॉफ की तरक्की होनी चाहिए, तभी लोग काम करने के लिए मोटीवेट होते हैं।
५ . हमें कभी भी कठिन यात्रा को नहीं देखना चाहिए बल्कि हमें यात्रा के पूरा होने पर मिलने वाले लक्ष्य और खुशी को देखना चाहिए। इससे कठिनाईयों से पार जाने की ताकत मिलती है।
६ . विदेश में सफलता पाने के लिए सबसे जरूरी है कि खुद को वहां के माहौल में ढाला जाए। आप अंदर से भारतीय बने रहे परन्तु दूसरे देश की जरूरतों को भी समझे। यही बात आपको अपने देश के बाहर सफलता दिलाई।
७ . जीवन में हमेशा सही व्यक्ति के लिए काम करना चाहिए, सही कंपनी के लिए काम करना चाहिए। क्योंकि यही आपकी तरक्की के रास्ते खोलता है और आपको आसमान छूने की ताकत देता है। 
जैसा कि सात कारणों को पढ़ने पर पता चलता है कि उनके जीवन पर उनकी माँ का बड़ा ही  प्रभाव पड़ा था।  एक इंटरव्यू में इंदिरा बताती हैं  -" कंपनी की प्रेसीडेंट बनने के बाद जब मैं घर पहुंची तो मैंने बड़ी खुश होए हुए अपनी माँ को वो खबर सुनाई पर माँ ने मेरी बात नजरअंदाज करते हुए कहा की पहले दूध लेकर आओ।  मुझे बड़ी झल्लाहट हुई मैं दूध लेकर आई दूध मेज पर पटकते हुए मैंने कहा -`घर में राज भी तो था दूध वो भी ल सकता था।'  तब माँ ने कहा -` वो थका हुआ है ' मैंने कहा -` तो दूध मैं ही क्यों लाऊँ?' तब माँ ने जो सीख मुझे दी मैं उसे कभी नहीं भूल सकती।   माँ ने कहा -' देखो, तुम अपना ओहदा गेराज में ही छोड़कर घर में आया करो।  पहले तुम पत्नी और माँ हो उनके बाद तुम्हारी बाकी जिम्मेदारियां हैं। तुम्हे क्या लगता है तुम आज जो कुछ भी बस अपने बल पर हो।  तुम जो भी हो इसलिए हो क्योंकि मैं तुम्हारे लिए ४-५ घंटे प्रार्थना करती हूँ तुम मीटिंग में चेयर पर बैठी रहती हो और मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करती रहती हूँ।"
    हाँ सचमुच इंदिरा अपनी सफलता का सबसे बड़ा कारण अपनी माँ को मानती हैं।  

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