Thursday, May 14, 2015

कामयाबी पाने के लिए रिस्क लेना जरूरी है : पातु केसवानी

आगे बढ़ने के लिए कदम का बढ़ाना जरूरी होता है। अगर ठोकर लगने के डर से कदम बढ़ाने के इरादा ही त्याग देंगे; तो जिंदगी भर वहीँ  अटके रहेंगे जहां पहले थे। होटलियर पातु केसवानी इंडिया के 100 पावरफुल लोगों की लिस्ट में शामिल हैं। उन्होंने  देश को देश की चौथी  सबसे बड़ी होटल सीरीज दी है।कहना न होगा- यह सक्सेस उन्होंने बड़ा जोखिम हासिल की है। पातु ने अपने सपने के लिए जॉब छोड़कर जीवनभर की सारी जमा-पूंजी होटल कारोबार में इन्वेस्ट कर दिया था।

    इंजीनियर पिता और चिकित्सक मां के पुत्र हैं पातु केसवानी। उनकी बहनें थिएटर एवं फिल्मों में काम करती हैं। पातु ने भी थिएटर में एक्टिंग की; पर वो अच्छे अभिनेता साबित नहीं हुए। वे पढ़ने में काफी बेहतर थे। उन्होंने आईआईटी दिल्ली से बी.टेक और आईआईएम कोलकाता से एमबीए की डिग्री प्राप्त की और टाटा ग्रुप के `ताज होटल' को ज्वाइन कर लिया। प्रमोशन प्राप्त करते हुए वे ताज होटल के सीओओ बन गए। इस जॉब के दौरान ताज की हर प्रॉपर्टी की परफॉर्मेंस का उन्होंने स्टडी किया और अपने मन-मस्तिष्क में एक सफल होटल का काल्पनिक ढांचा तैयार किया। २००० ई०  में वे इस जॉब से ऊब गए तो उन्होंने एक करोड़ रुपए के पे पैकेज पर एक इंटरनेशनल कंसल्टिंग फर्म को जॉइन कर लिया।
   इस जॉब के दौरान पातु केसवानी ने कई मल्टीनेशनल कंपनीज को इंडियन मार्केट में एंट्री दिलवाई, जिनमें होटल समूह भी थे। पातु केसवानी ने ऐसा करते हुए पाया कि इंडियन होटल इंडस्ट्री का हाल बिल्कुल वैसा ही है, जैसा 25 वर्ष पूर्व इंडियन कार इंडस्ट्री था। आम आदमी के लिए इस मार्केट में तब एंबेसडर फिएट थी, तो रईसों के लिए मसिर्डीज। इन दोनों के बीच की कड़ी मिसिंग थी। मार्केट की इस मिसिंग कड़ी को मारुति ने पूरा किया था जापान की कंपनी सुजुकी के साथ मिलकर पूरा किया और  बाजार में `मारुति ८००' को उतारा। मारुति भारत के मध्य वर्ग के कार खरीदने के सपने को साकार करने का साधन साबित हुआ-जिनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे।  
   पातु केसवानी ने भी मारुति की तरह होटल इंडस्ट्री में क्रांति का सपना देखा; और तय किया कि वे अब जॉब नहीं करेंगे। वे ऐसा होटल बनाएंगे, जिसका किराया स्टार होटल से आधा होगा और ऑपरेटिंग लागत एक तिहाई कम होगी। पातु ने अपनी सारी बचत करीब 1.25 करोड़ निवेश करके गुड़गांव में एक छोटा-सा भूखंड खरीदा था, जहां उन्हें 15 हजार वर्गफीट कंस्ट्रक्शन की अनुमति मिली। उन्होंने अपने होटल का नाम `लेमन ट्री होटल' रखा। उनकी पहली कोशिश से उन्हें पहले ही साल 30 फीसदी रिटर्न मिला; तो गुड़गांव में ही पातु ने 13 करोड़ रुपए लागत के साथ 30 कमरों का होटल बनाया। इसके बाद से `लेमन ट्री होटल' सीरीज फैलती ही गई। 
   पातु को भी  कदम बढ़ाने का फैसला लेते समय आलोचनाओ और परिवार वालों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। पातु बताते है-"लंबे अरसे से अपना कुछ बिजनेस शुरू करने की सोच रहा था, इसलिए मैंने जॉब छोड़कर लेमन ट्री के नाम से अपना होटल शुरू कर दिया। मेरे पिताजी गवर्नमेंट एम्प्लॉयी थे और मां आर्मी में डॉक्टर थीं। वे दोनों मेरे इस फैसले से काफी नाराज हुए। यह नाराजगी नॉर्मली  हर किसी को झेलनी पड़ती है, क्योंकि ज्यादातर पैरेंट्स अपने बच्चे के लिए सिक्योर फ्यूचर चाहते हैं। आम धारणा यही बनी हुई है कि जॉब सबसे सिक्योर करियर है। २००२ ई०  तक अपना एंटरपे्रन्योरशिप शुरू करना सबसे जोखिम का काम लगता था। खासतौर से सर्विस बैकग्राउंड वाली फैमिली इसे जल्दी स्वीकार नहीं कर पाती थी।लोगों का काम है कहना
अगर आप इस बात पर ध्यान देते हैं कि लोग क्या कहेंगे, तब तो आप कभी भी अपना बिजनेस नहीं खड़ा कर पाएंगे। खासतौर पर जब आप बिजनेस शुरू करते हैं, तब आप जितना ज्यादा सोचेंगे आपके डिसीजन मेकिंग पावर पर उतना ही ज्यादा असर पड़ेगा। सौभाग्य से मेरा फंडा बिल्कुल क्लियर था और मैं डिटरमाइंड था कि मुझे लाइफ में क्या करना है। कोई कुछ भी कहता रहे, मुझे कोई फर्क नहीं पडऩे वाला था। मैं पैसे और सक्सेस वगैरह के बारे में बहुत नहीं सोचता था। मैं बस एक अच्छा टाइम चाहता था, जिसमें मैं अपनी मनमर्जी से कुछ कर सकूं और उसे इंज्वॉय कर सकूं।शौक की बड़ी कीमत मैं अपनी कंपनी खोलने के लिए
करोड़ रुपये का इंतजाम कर चुका था। शेष 4 करोड़ रुपये के इंतजाम के 
लिए मैं एक पब्लिक सेक्टर बैंक के पास गया। बैंक मैनेजर 16.5 परसेंट 
के हाई इंट्रेस्ट रेट पर लोन देने को तैयार हुआ। जब मैं वहां से जाने लगा
तो उसने मेरी पोनीटेल देखी और घूरता ही रह गया। मेरा लोन कैंसिल हो 
गया।"
आज देश के 15 शहरों में 2500 से ज्यादा कमरों की 21 होटल प्रॉपर्टीज का वे संचालन कर रहे हैं।
पातु का काम करने का फंडा एकदम क्लियर है। वर्क प्लेस को वो सिर्फ काम  की जगह नहीं मानते। वो चाहते है कि वर्कप्लेस पर लोग एन्जॉय करें या लिखूं काम को एन्जॉय करें।उन्ही के शब्दों में-" १५ साल से ज्यादा एग्जीक्यूटिव के रूप में काम करने के बाद मुझे यह अच्छी तरह क्लियर हो गया कि एम्प्लॉइज अपने वर्कप्लेस पर क्या चाहते हैं और क्या नहीं? हम काम करने के लिए नहीं जीते हैं। यह हमारी लाइफ का एक हिस्सा भर है, फिर भी हम अपनी लाइफ का ज्यादातर वक्त वर्कप्लेस पर ही बिताते हैं। इसलिए मैंने डिसाइड किया कि जो कोई भी मेरे लेमन ट्री ग्रुप को ज्वाइन करे, वह काम को इंज्वॉय करे, काम के दौरान किसी भी तरह का स्ट्रेस हो। मैं फॉर्मल ड्रेस सूट और टाई से बहुत ज्यादा ऊब गया था। इसीलिए मैंने डिसाइड किया था कि अपनी कंपनी खोलूंगा, तो किसी तरह का फॉर्मल ड्रेस नहीं होगा। मैंने अपने एम्प्लॉइज को बोल रखा है कि किसी भी तरह केे फॉर्मल ड्रेस की जरूरत नहीं।
आइडिया का एग्जीक्यूशन जरूरी है।  एंटरपे्रन्योरशिप तीन बातों पर टिका होता है, बिजनेस मॉडल, कैपिटल और टैलेंट। आज हमारे पास ढेर सारे आइडियाज हैं, खासतौर पर आइआइटियन के पास; लेकिन जो बात आपको दूसरों से अलग करती है, वह है एग्जीक्यूशन यानी आप अपने आइडिया को किस तरह अमल में लाते हैं। फेल्योर भी आपके लिए एक स्टेप है, जो आपको एक्सपीरियंस देता है। फेल्योर आपके लिए लर्निंग अपॉच्र्युनिटी है। आपके पास हमेशा प्लान बी होना चाहिए। मतलब अगर आपका प्लान फेल होता है, तो आपके पास प्लान बी रेडी होना चाहिए। प्लान बी भी अगर फेल हो जाए, तो आपके पास प्लान सी तैयार होना चाहिए।"   


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