Saturday, May 30, 2015

love diary 12


 

 



love diary 9

 वो मुझे अपने बैडरूम में लेकर गयी जहां तब कोई नहीं था. उसने बिस्तर की तरफ ले गयी और बिस्तर की तरफ इशारा किया-" बैठ"
वो उस समय एकदम गम्भीर मूड में थी.
 मैं बिस्तर पर पैर लटकाकर बैठ गयी  तो वो  भी  मेरे पहलू में बैठ गयी और मेरे दोनों कन्धों पर मेरी गर्दन के पीछे  को ले  जाकर बांह फैलाकर रखते हुए वो बोली-"और सुना कैसी है तू?"
" अच्छी हूँ...."- मैंने मुस्कुराने की कोशिश की।
" तू खुश है ना???"
" Yaa."
" सचमुच तू खुश है ना?"-उसकी निगाहें मेरे चेहरे पर टिक गयी।
"म....म ....मैं..."-मैं सकपकाई-" हाँ मैं ख..खुश हूँ। स...सचमुच खुश हूँ।"
"लग तो नहीं रही है।"-उसकी नजर और शार्प हो गयी मानो मेरे वजूद का पोस्टमार्टम क्र रही हो।
मैं परे  देखने लगी।
"पलक, तू मेरी दोस्त ही नहीं मेरी छोटी बहन की तरह है....."-गम्भीर स्वर में वो बोली-"मैं चाहती हूँ तू सचमुच खुश रहे। I know...तेरी शादी अलग तरह की परिस्थियों में हुई  थी, बट मुझे लगता है तुझे सब भूल जाना चाहिए और लाइफ को एन्जॉय करना चाहिए।"
" मैं वही कर रही हूँ ...."-मैं बेहद सतर्क भाव से बोली-"क....कोशिश कर रही हूँ।"
" सच बता तेरा मियां पजेसिव है?"
"ना....."मैंने कहा-" जरा -सा भी नहीं मेरे साथ एकदम के साथ नर्मी  के साथ पेश आते है।"
" तो प्रोब्लम क्या है?"
मन-ही-मन आह निकली- यही तो प्रोब्लम है . प्यार  होता तो ही पजेसिव होते ना। ऐसी नर्मी  भी किस काम की कि  हर रात बिस्तर पर तकियों से बर्लिन की दीवार बनती हो .
प्रत्यक्षत : मैंने  कहा-"यकीन कर। कोई प्रोब्लम नहीं है। कुछ दिन पहले वायरल हो गया था। उसी की वजह से बदन कमजोर हो गया है।"
" फिर भी...."-वो मानने के लिए  तैयार नहीं थी-" अगर कोई बात नहीं है तो तेरे चेहरे पर चमक  क्यों नहीं है?"
मैं मुस्कुराई-"यार, कल ही तो दवाई  लेनी बंद की है। धीरे-धीरे रिकवर कर रही हूँ। कुछ दिन बाद देखना सब ठीक नजर आने लगेगा ."
उसने कोई और  सवाल नहीं लिया। हाँ, वो तब भी सेटिस्फाई नजर नहीं आ रही थी। उसके बाद हमने कुछ देर बाते वहीं बैठकर  की, और कमरे से बहार निकल गयी।
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"Ladies and  Gentlemen"- वैभवी के मियां  ने आवाज लगाकर सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।मैं और वैभवी तभी बैडरूम  निकलकर वहां पहुंची थीं-"आज हमारी शादी की पहली सालगिरह है , और शायद आखिरी सालगिरह भी है जब हम दो हैं।  उम्मीद करते है कि अगली सालगिरह पर हम दो से तीन हो जाएं।"-शरारती लहजा -" भाइयों अपनी तरफ से हम पूरी कोशिश कर रहे है बाकी भगवान के ऊपर है।"
सब हँसे।  वैभवी का चेहरा ह्या से लाल हो गया।  चेहरा नीचे करके वो भी दबी मुस्कान मुस्कुराई।  
वैभवी के मियां में कहना जारी रखा-" गाइस,इस साल हम केवल पति-पत्नी हैं सो हमने इस बार पति-पत्नी को ही इन्वाइट किया है।  होप अगली एनीवर्सरी तक आप लोग भी माँ-बाप बन जाओगे।.........मेरी दुआ है ऐसा ही हो।"-( शरारती टोन )-"वैसे गाइस, इस मामले में बस दुआए ही काम नहीं करती , और भी `काफी कुछ ' करना होता है "
उस बार सब  मर्द हँसे और औरतें लजाईं। वैभवी के मियां कहते रहे-" मुझे ये मानने में कोई  संकोच नहीं की जब से वैभवी मेरी लाइफ में आई है तब से मेरी जिंदगी ही बदल गयी।  पहले मैं एक छुट्टा सांड था, इसी ने मुझे इंसान बनाया।  मेरी जिंदगी को संवारा और  व्यवस्थित किया......."- उसके बाद उन्होंने वैभवी की तारीफों के पुल बंधने शुरू कर दिए। हम सब  ख़ामोशी से  बातों  सुनते रहे। अपनी बात पूरी करने के बाद  कहा-" अब आप लोगों की बारी है। आप लोग बताइये आपको अपनी  स्पाउस क्यों पसंद है और  बेस्ट क्यों है ?"
      सब लोगों ने अपने स्पाउस की तारीफें करने लगे। अगर उन बातों को कलमबद्ध करूँ तो कई फर्मे  भर जायेंगे जिनका मेरी कहानी से कोई  मतलब भी नहीं है।  
   सो , 
  मुद्दे  पर आती हूँ। 
  मेरे  पतिदेव का नंबर आया । सबका ध्यान उनकी तरफ आकर्षित हुआ।  मेरे दिल की धड़कने बढ़ गयीं। क्यों बढ़ गयीं? मुझे नहीं पता।  मुझे लगा मानो सब ठहर गया हो।  मानो सारी कायनात का फोकस उन्हीं  इकठ्ठा हो गया था।  वो बोले -"अपनी स्पाऊस की क्या तारीफ करूँ ,यार ? आप सब खुद ही सारी महफ़िल में नजर फिराकर देख लो - सबसे ज्यादा किसी वाली जगमगा रही है।"
    सबकी निगाहें एकसाथ मेरी ओर उठ गयीं। औरतों का  भी फोकस मैं ही थी- ज्यादातर की नजर में जैलसी का भाव था। 
और मैं जैसे ह्या से सिमट गयी।बरबस ही मेरी नजर झुक गयी।  मेरे बदन में मीठी सिरहन दौड़ गयी जब मैंने नीतीश किया की वो भी मेरी ओर ही देख रहे थे।नजर तक उठाकर मैं उनकी नजर का सामना करने की ताब न ला सकी। 
    उनकी आवाज मेरे कानो में पड़ रही थी। -"don`t jealous, yaar.ऊपर वाले की इतनी शानदार नेमत हर किसी को नहीं मिला करती "-जरा से गंभीर -"मैंने कभी भी अपनी स्पाउस को अपनी पत्नी नहीं माना।  न ही चाहता हूँ कि वो मेरी पत्नी बनी रहे।  वो मेरे लिए मेरी एक दोस्त है।  चाहता हूँ बस मेरी दोस्त बनकर रहे।  मैंने कभी भी अपनी स्पाउस की तुलना किसी से नहीं की।  डर लगता है कहीं कोई उससे ज्यादा शानदार  नजर न आ जाये और मेरा मन भटक न जाए.…जबकि मैं उसे खोना नहीं चाहता "
    एक-एक शब्द जैसे मेरे कानों में पिघले शीशे की तरह उतरता चला जा रहा था।  मुझे स्पष्ट अहसास हो रहा था कि वो शब्द झूठे थे और जो सच थे वो मेरे लिए नहीं थे- किसी और के लिए थे। मेरे लिए अगर कोई सन्देश था भी तो वो ये था -`अपनी स्पाउस को मैंने कभी अपनी पत्नी नहीं माना था। न ही चाहता हूँ वो मेरी पत्नी बनकर रहे। वो मेरी दोस्त है।  चाहता हूँ बस मेरी दोस्त ही बनकर रहे।'
 इसका मतलब था कि वो मुझे न तो पत्नी मानते थे , न ही पत्नी बनाना चाहते थे। 
 जमा-। 
 वो अपनी गर्लफ्रेंड को  इतना चाहते थे कि किसी और की तरफ नजर उठाकर  देखना नहीं चाहते थे; क्योंकि वो उसे नहीं खोना चाहते थे।  
आह !!!!!!!!!
ऐसा क्या है उसमे ?
उसके बाद वैभवी के मियां ने औरतों को अपने स्पाउस के बारे कुछ कह्ने के लिए इन्वाइट किया लेकिन टाइम की शॉर्टेज की वजह से पत्नियों को इन्वाइट नहीं किया गया। मुझे राहत मिली क्योंकि मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं था। 
उसके बाद और भी कई खेल खेले जाने थे -
नेक्स्ट गेम -
वो काफी सिंपल-सा गेम था। ये अलग बात थी कि उसमे भागदौड़ भी काफी थी। इंस्ट्रक्टर का काम वैभवी के मिया जी ने किया। तमाम मर्दों को एक तरफ दीवार के पास दीवार की तरफ चेहरा करके खड़ा हो जाने के लिए कहा गया। ठीक विपरीत दिशा वाली दीवार के पास कांच के कटोरे रख दिए गए थे जिनमे ढेर सारे  एल्फ़ाबेट्स डाल दिए गए थे। सारे ऐल्फबेट्स कागज की चिपकने वाली चिटों पर लिखे गए थे।  वैभवी के मियां ज ने कहा -"आज सारी औरतों के प्यार की परीक्षा है। उन कटोरो में से सब एक-एक चुन लें।  मेरे विसिल बजाते ही औरतें कटोरे में से एक-एक चिट निकालकर अपने स्पाउस के पास जाएँगी और चिट अपने पति की पीढ़ पर चिपका देगी।सभी तब तक चिपकती जाएँगी जब तक उनके स्पाउस के कोट पर ` आई लव यू ' न लिखा जाये।  जो सबसे पहले `आई लव यू ' लिख देगी वो कपल राउंड जीत लेगा "
विसिल बजी और खेल शुरू हो गया।  
सारे पति अपनी-अपनी बीवियों को चीख-चीखकर उत्साहित कर रहे थे मगर एक `वो' थे जो सिर्फ एकदम आराम से खड़े थे।  मेरी ओर देखा तक नहीं।  वहां मर्दों की उत्साह करने वाली आवाजों के साथ औरतों के दौड़ने के कारण चूड़ियों और पायलों की झंकार गूँज रही थी।  मुश्किल से मैंने I तलाश किया और भागती हुई उनके पास गयी।  मैं चिट के पीछे का कागज हटाकर चिट को उनकी पीठ पर चिपका रही थी ,तब वो एकदम सुसंयत भाव से बोले -" एकदम रिलेक्स होकर अपना काम करना।  इनकी चीख पुकार नेग्लेक्ट करके बस अपने काम पर फोकस करो। कोई हड़बड़ी शो मत करना।  ये माइंड गेम है। "
मगर-
मेरे पास उनकी बात पर गौर करने का टाइम नहीं था। मैं चिट चिपककर वापिस भागी।  कटोरे के पास गयी और चिट तलाश करने में लग गयी।  हॉल में पायलों और चूड़ियों की झंकार और मर्दों की पुकारों का शोर गूंजता रहा।  
मर्दों के कोट पर वाक्य शेप लेते जा रहा थे। किसका कितना वाक्य पूरा हो गया था -मुझे न होश था , न ही मैं सुध लेना चाहती थी।  मैं बस जल्दी से जल्दी अपना वाक्य पूरा कर लेना चाहती थी।  
मैंने ` I LOVE YO ' लिख लिया था और U तलाश कर रही थी तभी विसिल बजी।  वैभवी के मियां जी ने घोषणा कर दी-" the game is over guys. "
कटोरे में एल्फ़ाबेट्स तलाश करते-करते मेरे हाथ थम गए।  मेरी सांसे फूल रही थीं।  मैंने देखा एक मर्द की पीठ पर `I LUV U ' मानो सबका मुंह चिढ़ा रहा था।  
वो कपल वैभवी का नेबर ही था जो वो राऊण्ड जीता था। सबने ताली भी बजाई उनकी जीत पर।  पर मुझे अच्छा नहीं लगा।  वजह ये थी कि मैंने  
`I LOVE YO ' लिखने में ६ एल्फ़ाबेट्स खर्च कर दिए थे तब भी मेरा वाक्य पूरा नहीं हुआ था जबकि विजेता कपल ने `I LUV U ' लिखकर ५ एल्फ़ाबेट्स में ही पूरा कर दिया था।  अगर मैं अक्ल से काम लेती तो मैं वो राउण्ड जीत चुकी होती।  `वो ' मेरी ओर ऐसे देख रहे थे जैसे नजर-नजर में कह रहे हों -`मैंने कहा था न ये माइंड गेम है। अक्ल से काम लेना।'
मैं  और जल गयी। 
continue.......


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