Thursday, May 14, 2015

आसमान से ऊंची उड़ान वाली कल्पना

दुनिया में सभी लोगों को एक न एक दिन इस खूबसूरत जहां को अलविदा कहना होता है, मगर दुनिया में कुछ लोग सिर्फ जीने के लिए आते हैं, मौत सिर्फ उनके शरीर को खत्म करती है. ऐसे ही जांबाज में से एक भारत की बहादुर बेटी कल्पना चावला थीं. अपने नाम के अनुरूप ही उन्होंने सपने देखें और उन्हें पूरा भी किया.
      भारत की बेटी-कल्पना चावला भारत के हरियाणा के करनाल में पैदा हुई थीं। उनका जन्म १ जुलाई सन् १९६१ ई०  मे एक भारतीय परिवार मे हुआ था। उसके पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला और माता का नाम संजयोती था |




     वह अपने परिवार के चार भाई बहनो में सबसे छोटी थी | घर मे सब उन्हें प्यार से मोंटू कहते थे | कल्पना जी की प्रारंभिक पढाई लिखाई `टैगोर बाल निकेतन' में हुई | कल्पना जी जब आठवीं कक्षा में पहुंचीं तो उन्होंने परिवार  वालों से इंजीनियर बनने की इच्छा प्रकट की | उनकी  माँ ने अपनी बेटी की भावनाओं को समझा और आगे बढने मे मदद की जबकि उनके  पिता उन्हें चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे; किंतु कल्पना जी के मन में कुछ और ही सपना पल रहा था। कल्पना जी  बचपन से ही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। कल्पना जी का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण था - उसकी लगन और जुझार प्रवृति | कलपना जी न तो काम करने मे आलसी थी और न असफलता मे घबराने वाली थी | कल्पना जी के मन में तो जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा खास जगह बना चुके थे। भारत प्रसिद्ध उद्योगपति; जो भारत के पहले पायलट भी थे- जिन्होंने पहली बार भारत में विमान उड़ाया था; और भारत में पहली विमान सेवा की शुरुआत की। जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा की तरह वो भी आसमान में  उड़ान भरना चाहती थी; उनसे भी आगे रास्ता तय करना चाहती थी वो।  
      कल्पना जी चावला ने `टैगोर पब्लिक स्कूल'  से  प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद  आगे की शिक्षा ( वैमानिक अभियांत्रिकी की पढाई) के लिए पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ में एडमिशन ले लिया। वहां से कल्पना जी ने १९८२ ई० में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिर १९८२ ई० में ही वो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए चली गईं।१९८४ ई० में कल्पना जी ने टैक्सास विश्वविद्यालय से वैमानिकी इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री हासिल की।

१९८८ ई०  में कल्पना जी अमेरिका के कोलारोडोविश्वविद्यालय से 

डॉक्टरेट किया।
 कल्पना जी को हवाई जहाज़ों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमान चालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। उन्हें सिंगल व मल्टी इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमान चालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो नासा की एक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थी।
१९८८ ई० के अंत में उन्होंने नासा के एम्स अनुसन्धान केंद्र के लिए ओवेर्सेट मेथड्स इंक के उपाध्यक्ष के रूप में काम करना शुरू किया; उन्होंने वहाँ V / S T O L में C F D पर अनुसंधान किया।
कल्पना जी मार्च १९९५ ई०  में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें १९९८ ई० में अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया था। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन १९ नवम्बर १९९७ ई० को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल `कोलंबिया 'की उड़ान S T S-87 से शुरू हुआ। कल्पना जी अंतरिक्ष में उड़ने वाली प्रथम भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। उनसे पहले श्री राकेश शर्मा जी ने १९८४ ई०  में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना जी अपने पहले मिशन में १.०४ करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की २५२ परिक्रमाएँ कीं और अंतरिक्ष में ३६० से अधिक घंटे बिताए। S T S-87 के दौरान स्पार्टन सॅटॅलाइट को तैनात करने के लिए भी ज़िम्मेदार थीं।  इस खराब हुए सॅटॅलाइट  को पकड़ने के लिए विंस्टन स्कॉट और तकाओं दोई को अंतरिक्ष में चलना पड़ा था। पाँच महीने की तफ़्तीश के बाद नासा ने कल्पना जी को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया, त्रुटियाँ तंत्रांश अंतरापृष्ठों व यान कर्मचारियों तथा ज़मीनी नियंत्रकों के लिए परिभाषित विधियों में मिलीं।
     S T S-87 की उड़ानोपरांत गतिविधियों के पूरा होने पर कल्पना जी ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में, तकनीकी पदों पर काम किया, उनके यहाँ के कार्यकलाप को उनके साथियों ने विशेष पुरस्कार दे के सम्मानित किया।
१९८३ ई ०  में वे एक उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक, जीन पियरे हैरीसन से मिलीं और शादी की और १९९० ई०  में एक देशीयकृत संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिक बनीं। अब उनका घर और कार्यक्षेत्र अमेरिका ही बन गया था तब भी वो भारत को नहीं भूलीं थी। हालाँकि उनके पास भारत आने के लिए समय का काफी अभाव था फिर भी वो भारत आती रहती थी।    
     भारत के लिए कल्पना जी की आखिरी यात्रा १९९१-१९९२  ई०  के नए साल की छुट्टी के दौरान थी जब वो  और उनके पति, परिवार के साथ समय बिताने गए थे। २००० ई०  में उन्हें S T S-107 में अपनी दूसरी उड़ान के कर्मचारी के तौर पर चुना गया। यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा, क्योंकि विभिन्न कार्यों के नियोजित समय में टकराव होता रहा और कुछ तकनीकी समस्याएँ भी आईं, जैसे कि शटल इंजन बहाव अस्तरों में दरारें। १६ जनवरी २००३ ई०  को कल्पना जी ने अंततः ` कोलंबिया '  पर सवार हो कर  विनाशरत S T S-107 मिशन का आरंभ किया। उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल थे स्पेसहैब/बल्ले-बल्ले/फ़्रीस्टार लघुगुरुत्व प्रयोग जिसके लिए कर्मचारी दल ने ८० प्रयोग किए, जिनके जरिए पृथ्वी व अंतरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास व अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य व सुरक्षा का अध्ययन हुआ।` कोलंबिया ' अन्तरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री थे- कमांडर रिक डी . हुसबंद, पायलट विलियम स. मैकूल , कमांडर माइकल प . एंडरसन , इलान रामों , डेविड म . ब्राउन , लौरेल बी . क्लार्क।  

      अंतरिक्ष में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना जी की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार - विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल मे अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई
   जब मिशन पूरा करने के बाद 'कोलंबिया' कामयाबी के आगाज के साथ धरती पर लौट रहा था। सब कुछ ठीक था। भारत और अमेरिका के लोगों के मन में जीत की-सी ख़ुशी छाई हुई थी। तभी अचानक सफलता का यह जश्न पलभर में ही मातम में बदल गया और हर मुस्कुराते चेहरे पर उदासी छा गई। जब `कोलंबिया'  अमेरिका के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र पर उतरने ही वाला था; कि पृथ्वी से 40 मील ऊपर यह अंतरिक्षयान धमाके के साथ धुएँ के गुबार में बदल गया और उसी के साथ कल्पना भी कहीं गुम हो गई।
  वैज्ञानिकों के मुताबिक जैसे ही `कोलंबिया' ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया, वैसे ही उसकी उष्मारोधी टाइलें फट गई और यान का तापमान बढ़ने से यह हादसा हुआ। 
  अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम के निदेशक रॉन डिटमोर के अनुसार - "प्रारंभिक जाँच से पता लगा कि सबसे पहले `कोलंबिया' के बाएँ पंख के हाइड्रोलिक सिस्टम में लगे तापमान बताने वाले उपकरणों ने काम करना बंद कर दिया था। जिससे यह हादसा हुआ।"
  "सपनों को सफलता में बदला जा सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि आपके पास दूरदृष्टि, साहस और लगातार प्रयास करने की लगन हो।"-कल्पना  जी की कही यह बात आज युवाओं में अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा जगा रही है। इस तरह कल्पना जी के यह शब्द सत्य हो गए-"मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगी।"

  कल्पना जी तो चली गई पर छोड़ गई अपनी हजारों कल्पनाएँ, जो आज के युवाओं को कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित कर रही है। भारत की यह बेटी दुनियाभर में अपना नाम कमाकर सदा के लिए अमर हो गई।
नासा तथा विश्व के लिये उस  दर्दनाक घटना में  अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा।



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