Tuesday, May 12, 2015

आदिवासी युवक ने `I . I . T .' में सफलता पायी

`I . I . T .' में सफलता हासिल करना हरेक साइंस स्ट्रीम से पढ़ने वाले  छात्र का सपना होता है। उसमे सफलता हासिल करना मात्र  छात्र के सुखद और सिक्योर भविष्य की गारंटी माना जाता है।  साथ ही उसकी प्रतिष्ठा को समाज में चार चाँद लग जाते है।इस सफलता को हासिल करने के लिए छात्र दिन पढाई में दिन-रात एक कर देते हैं , बेहतर इंस्टिट्यूट में कॉचिंग लेते है।परिवार वाले भी `I . I . T .' की तैयारी करने वाले छात्र को  सुविधाये दे दिया हैं ताकि वो सिर्फ पढ़ाई पर फोकस कर सकें और सफलता हासिल कर सकें।  तब भी उसमे कोशिश करने वाले छात्रों में से कुछ ही छात्र सफलता हासिल कर पते हैं। ऐसे में अभावों से भरा जीवन जीने वाले किसी छात्र का `I . I . T .' में सफलता हासिल करना अपने आप में एक अचीवमेंट माना  है। जगदीश सिंह नायक की सफलता उन छात्रों के लिए सबक है जो अभावों रोना रोकर आगे बढ़ने का इरादा त्याग दिया करते  हैं।  

        जगदीश सिंह नायक (भुक्या) के लिए जिंदगी आसान कभी नहीं थी। परिवार आर्थिक अभावों से जूझ रहा था और पिता किसी तरह पालन-पोषण कर रहे थे; लेकिन पढ़ाई में जगदीश की खास दिलचस्पी में यह तथ्य किसी भी तरह रुकावट नहीं डाल पाया। हर दिन स्कूल पहुंचने के लिए वह 40-45 किमी की दूरी बस से तय करता। सुबह तड़के उठकर जगदीश पहली बस पकड़ता और घर लौटने के लिए शाम के पांच बजे तक बस का इंतजार करता। दसवीं की पढ़ाई के दौरान जब कभी स्पेशल क्लास लगती तो यह अवधि और भी लंबी हो जाती। रात को भोजन के रूप में कुछ चावलों के सहारे गुजारा हो पाता था।  
       संघर्ष सिर्फ इतना ही नहीं था। जगदीश की जड़ें आंध्रप्रदेश की लंबाडी (बंजारा) जनजाति से जुड़ी थीं, इसलिए जीवन और भी विषम था। महज 15 साल की उम्र में टीबी की वजह से जगदीश के पिता की मृत्यु हो गई। परिवार का भरण-पोषण अब मुख्य समस्या बन चुका था। एक मामूली रोजगार के जरिए मां ने जगदीश की परवरिश की। पढ़ाई से जगदीश का माेह अबतक नहीं टूटा था। अच्छे अंकों की वजह से बंजारा सेवक समिति ने जगदीश की पढ़ाई में मदद की। वे कहते हैं-"इस दौर में पढ़ाई में मुझे हर हालत में बेहतर प्रदर्शन करना ही था, क्योंकि सिर्फ यही मेहनत मुझे अपने मकसद तक पहुंचा सकती थी।"
अपनी उम्र के बच्चों की तुलना में जगदीश ने इस दौर में बचपन की सभी छोटी-छोटी खुशियों को अनदेखा कर दिया। 12वीं में उसने आईआईटी-जेईई की तैयारी के लिए एक कोर्स में प्रवेश लिया। अब वह सुबह 6 से रात ११  बजे तक पढ़ता था। जगदीश की मेहनत रंग लाई और उन्हें आईआईटी बॉम्बे में दाखिला मिला, जहां वे अब केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं।  


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