Friday, May 15, 2015

कामयाबी की बुलंदी पर किरण मजूमदार-शॉ

भारत की सबसे अमीर महिला किरण मजूमदार-शॉ एक भारतीय महिला व्यवसायी, टेक्नोक्रेट, अन्वेषक और `बायोकॉन लिमिटेड' की संस्थापक हैं; जो भारत के बंगलुरु में एक अग्रणी जैव प्रोद्योगिकी  संस्थान है। वे `बायोकॉन लिमिटेड' की अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक तथा `सिनजीन इंटरनेशनल लिमिटेड' और `क्लिनजीन इंटरनेशनल लिमिटेड'  की अध्यक्षा हैं।
      उन्होंने १९७८ ई० में `बायोकॉन' को बड़े छोटे स्टार पर शुरू कर किया और उत्पादों के अच्छी तरह से संतुलित व्यापार पोर्टफोलियो तथा मधुमेह, कैंसर इत्यादि आत्मघाती बीमारियों पर केंद्रित शोध के साथ इसे एक औद्योगिक एंजाइमों की निर्माण कंपनी से विकासित कर पूरी तरह से एकीकृत जैविक दवा कंपनी बनाया। उन्होंने दो सहायक कंपनियों की भी स्थापना की: रिसर्च के लिए  विकास सहायक सेवाएं प्रदान करने के लिए `सिनजीन'  की स्थापना की  और निदान करने वाली विकास सेवाओं को पूरा करने के लिए `क्लिनिजीन' की स्थापना २००० ई० में की।  




    वे जैव प्रौद्योगिकी को एक क्षेत्र के रूप में बढ़ावा देने में रुचि रखती हैं और कर्नाटक राज्य के `विजन ग्रुप ऑन बायोटेक्नोलॉजी' की अध्यक्षा है। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सलाहकार परिषद की एक सदस्य के रूप में, उन्होंने भारत में जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास के मार्गदर्शन के लिए भारत सरकार, उद्योग और शिक्षा को एक साथ लाने में एक निर्णायक भूमिका निभाई है।
इस क्षेत्र में अपने अग्रणी कार्यों के लिए उन्होंने भारत सरकार से प्रतिष्ठित पद्मश्री (१९८९ ई० में) और पद्म भूषण (२००५ ई० में) समेत कई पुरस्कार अर्जित किए हैं। जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके द्वारा लीक से हट कर किए गए कार्यों को कॉर्पोरेट दुनिया में बहुत ही सम्मान दिया गया है तथा इससे भारतीय उद्योग और बायोकॉन दोनों को विश्व स्तर पर मान्यता मिली है। हाल ही में टाइम पत्रिका के दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में इनका नाम भी शामिल किया गया था। वे दुनिया की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की फोर्ब्स की सूची और फाइनेंशियल टाइम्स के कारोबार में शीर्ष 50 महिलाओं की सूची में भी शामिल हैं।
  किरण मजूमदार-शॉ का जन्म कर्नाटक के बंगलुरु शहरमें हुआ था। उन्होंने शहर के बिशप कॉटन गर्लस हाई स्कूल में (१९६८ ई० ) अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। वे मेडिकल स्कूल में भरती होना चाहती थीं; लेकिन इसके बदले उन्होंने जीव विज्ञान लिया और बीएससी जूलॉजी ऑनर्स लेकर बंगलौर विश्वविद्यालय (१९७३ ई०) से B . Sc .  का पाठ्यक्रम पूरा किया। उसके बाद उन्होंने मॉल्टिंग और ब्रूइंग पर बैलेरैट कॉलेज, मेलबोर्न यूनिवर्सिटी, (१९७५ ई० ) से स्नातक स्तर की पढ़ाई की।
  मेलबोर्न के कार्लटोन और यूनाइटेड ब्रुअरीज में उन्होंने बतौर प्रशिक्षु ब्रुअर के और ऑस्ट्रेलिया के बैरेट ब्रदर्स तथा बर्स्टोन में बतौर प्रशिक्षु माल्स्टर के रूप में काम किया।25 साल की उम्र में मेलबोर्न की बेलार्ड यूनिवर्सिटी से बीएससी(ब्रूइंग बेवरेजेज की रासायनिक प्रक्रिया) की ऑस्ट्रेलियन डिग्री लेकर किरण स्वदेश लौटीं तब वे देश की पहलीब्रूमिस्ट्रे्रसथीं। इस एक्सक्लूसिव एजुकेशन के कारण बेवरेज कंपनियों में उन्हें अच्छी नौकरी मिल सकती थी, पर किरण को तो उनके पिता ने बचपन में सिखाया था कि वैज्ञानिक ज्ञानहार्ड करंसीहै जो सबको नहीं मिलता। पुरुष हो या महिला किसी भी प्रबुद्ध व्यक्ति को अपना सामथ्र्य अकारण बर्बाद करने का हक नहीं है।हालाँकि शुरू में कुछ दिनों तक उन्होंने कुछ समय के लिए कलकत्ता की जूपिटर ब्रुअरीज लिमिटेड में तकनीकी सलाहकार के रूप में बड़ौदा के स्टैंडर्ड मॉल्टिंग कॉरपोरेशन में तकनीकी प्रबंधक के रूप में भी काम किया।
    1978 में, वे आयरलैंड के कॉर्क के बायकॉनकैमिकल्स लिमिटेड से एक प्रशिक्षु प्रबंधक के रूप में जुड़ीं। उसी वर्ष उन्होंने मात्र १०००० रूपये की आरंभिक पूँजी के साथ बंगलुरु के किराये के मकान के गैरेज में `बायोकॉन' को शुरू किया।
   शुरू में उन्हें अपनी कम उम्र, लिंग और बगैर परखे गए व्यापार मॉडल के कारण विश्वसनीयता संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कोई भी बैंक उन्हें लोन नहीं देना चाहता था, इसलिए समस्या केवल धन की ही नहीं थी, बल्कि अपने नए काम पर लोगों को नियुक्त करना भी कठिन था। उन्होंने ढांचागत क्षेत्र में उदासीनता के माहौल वाले देश में एक बायोटेक व्यवसाय को खड़ा करने की कोशिश में एकनिष्ठ दृढ़ संकल्प के साथ प्रौद्योगिकी से जुड़ी चुनौतियों का सामना किया और इनसे बाहर निकलीं। उस समय भारत में निर्बाध विद्युत, बेहतर गुणवत्तावाले पानी, रोगाणुरहित प्रयोगशालाओं, आयातित अनुसंधान उपकरण और उन्नत वैज्ञानिक कौशल आसानी से उपलब्ध नहीं था। वे किसी भी चीज़ को आसानी से जाने देनेवाली नहीं रही हैं, इसीलिए उन्होंने तमाम चुनौतियों का सामना किया और सीमित परिस्थिति में बायोकॉन को नई और प्रगति की ऊंचाइयों पर पहुंचाने का काम किया।
   उनका मानना है-"उद्देश्यपरक और चुनौती झेलने की भावना के साथ सपने का पीछा करना ही सफलता है। सफलता को प्राप्त करने का कोई आसान रास्ता नहीं है और न ही मेहनत का कोई विकल्प है। मेरा यह भी मानना है कि अलग तरीके से काम करना भी सफलता का मंत्र है - मजबूती से खड़े होने के लिए कुछ अलग करने की हिम्मत होनी चाहिए। बायोकॉन के नाम के साथ लिखा होता है 'अंतर हमारे डीएनए (DNA) में रहता है' और हम सब इसमें विश्वास रखते हैं। हम अन्य कंपनियों की नकल नहीं करते, बल्कि हमने अपने व्यापार के भाग्य की रूपरेखा स्वयं तैयार की है।"
   `बायोकॉन' के परिचालन के लिए सालों से विकास के प्रक्षेप पथ और नवाचारों के साथ बायोकॉन के परिचालन का श्रेय उन्हीं को जाता है। अपनी स्थापना के एक वर्ष के भीतर, बायोकॉन एंजाइमों का विनिर्माण करनेवाली और संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोप को उनका निर्यात करनेवाली भारत की पहली कंपनी बन गई। १९८९ ई० में `बायोकॉन' भारत की पहली जैव प्रौद्योगिकी कंपनी बनी, जिसे ट्रेडमार्क युक्त प्रौद्योगिकियों के लिए अमेरिका से धन प्राप्त हुआ। १९९० ई० में, उन्होंने `बायोकॉन' के उन्नत आन्तरिक अनुसंधान कार्यक्रम को ट्रेडमार्क युक्त सान्द्र अधःस्तर खमीरण प्रौद्योगिकी पर आधारित बनाया। इस कार्यक्रम की व्यावसायिक सफलता के कारण १९९६ ई० तक इसका तीन गुना विस्तार हुआ और बायोकॉन ने जैवफार्मास्युटिकल्स और स्टैटिन के क्षेत्र में प्रवेश किया। १९९७ ई० में, समर्पित निर्माण की सुविधा के जरिए उन्होंने मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहल की।१९९८ ई० में, जब यूनीलीवर अपनी हिस्सेदारी `बायोकॉन' में भारतीय प्रमोटरों को बेचने पर सहमत हुआ तब `बायोकॉन' एक स्वतंत्र संस्था बन गई। दो साल बाद, `बायोकॉन' का ट्रेडमार्क युक्त सान्द्र मैट्रिक्स खमीरण पर आधारित बायोरिएक्टर, जिसका नामकरण प्लैफरेक्टरटीएम (Plafractor TM) किया गया था, ने यू.एस. पेटेंट प्राप्त किया और किरण मजूमदार-शॉ ने बायोकॉन को विशेष दवाइयों के उत्पादन के लिए पहला पूरी तरह से स्वचालित जलमग्न खमीरण संयंत्र बनाया। २००३ ई०  तक बायोकॉन पिचिया प्रकटन प्रणाली पर मानव इंसुनिल विकसित करनेवाली दुनिया की पहली कंपनी बन गया।
   इसी साल, उन्होंने `बायोकॉन बायोफ़ार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड' को `क्यूबन सेंटर ऑफ मॉलीक्युलर इम्यूनोलॉजी' के साथ संयुक्त उद्यम में बायोथेप्युटिक के चुनिंदा रेंज के विनिर्माण और विपणन में शामिल किया।
२००४ ई०  में, उन्होंने पूंजी बाजार तक पहुंचने के लिए बायोकॉन के शोध कार्यक्रमों की पाइप लाइन को विकसित करने का फैसला किया। बायोकॉन का आईपीओ ३२ बार ओवरसब्सक्राइब हुआ और पहले दिन 1.11 बिलियन डॉलर के बाजार मूल्य के साथ बंद हुआ, सूचीबद्ध होने के पहले ही दिन बायोकॉन 1 बिलियन डॉलर के निशान को पार करनेवाली भारत की दूसरी कंपनी बन गयी।
उन्होंने २२०० से अधिक उच्च मूल्य अनुसंधान एवं विकास (R&D) लाइसेंस तथा २००५ ई०   और २०१० ई०  के बीच फार्मास्यूटिकल्स और जैव फार्मास्यूटिकल्स के अन्य सौदों में उन्होंने कदम रखा; इससे बायोकॉन को अधिग्रहण, भागीदारी और लाइसेंस के जरिए उभरने और विकसित बाजार में विस्तार कर विश्व में अपने कदमों के निशान छोड़ने में मदद मिली। उनका विश्वास है कि स्वास्थ्य के देखभाल की जरूरत केवल सस्ते आविष्कार के साथ पूरी हो सकती है, यही वह दर्शन है जिसने बायोकॉन को प्रभावी ढंग से विनिर्माण करने और बाजार में अनुकूल लागत के साथ दवाओं के विपणन में मदद की।
वर्ष २००७-०८ ई० में अमेरिका के एक प्रमुख व्यापार प्रकाशन, मेड एड न्यूज ने बायोकॉन को दुनिया भर की जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों में २०वां और दुनिया के सबसे बड़े नियोक्ताओं में ७वां स्थान दिया। बायोकॉन को सर्वश्रेष्ठ सूचीबद्ध कंपनी का २००९ ई० का बायोसिंगापुर एशिया पेसिफिक बायोटेक्नोलॉजी पुरस्कार भी मिला।
उनके नेतृत्व में बायोकॉन ने आज लाभदायक क्षमता और वैश्विक विश्वसनीयता तथा अपने विनिर्माण और विपणन गतिविधियों में विश्व स्तर को प्राप्त किया है। यह एशिया की सबसे बड़ी इंसुलिन और स्टैटिन सुविधाएं हैं तथा इसके पास शरीर के अंगों और उत्तकों में एंटीबॉडी का छिड़काव-आधारित उत्पादन की सुविधाएं भी है।
   समाज की सेवा किरण जी ने सिर्फ दवाइयाँ बनाकर यही की है। २००४ ई० में, उन्होंने समाज के कमजोर वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता और पर्यावरण कार्यक्रम संचालित करने के र्लिए बायोकॉन फाउंडेशन शुरू किया। फाउंडेशन के सूक्ष्म-स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम ने ७०००० ग्रामीण सदस्यों का नामांकन किया गया है।
इसके सात एआरवाई  क्लीनिक ऐसी जगहों पर स्थित हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत खराब हैं तथा जो लोग इन्हें खरीदने में समर्थ नहीं हैं उन्हें चिकित्सीय देखभाल, जेनेरिक दवाएं और बुनियादी परीक्षण प्रदान किया जाता है। प्रत्येक क्लीनिक १० किलोमीटर के भीतर रहनेवाली ५०००० आबादी के लिए कार्य करता हैं। सभी क्लीनिक नियमित रूप से नेटवर्क अस्पतालों से चिकित्सकों और डॉक्टरों को दूरदराज के गांवों में ले जाकर सामान्य स्वास्थ्य की जांच कराते हैं। प्रत्येक वर्ष, स्वास्थ्य के देखभाल के लिए फाउंडेशन अपने समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से तीन लाख  लोगों को सेवा प्रदान करता है।फाउंडेशन चलती-फिरती चिकित्सा सेवाएं भी प्रदान करती  है और रोगनिरोधक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम तथा मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल शिविर का भी आयोजन करती  है।‍
उन्होंने २००७ ई०  में डॉ॰ देवी शेट्टी के नारायण दृदयालय के साथ मिलकर बंगलुरु के बूम्मसंद्रा के नारायण हेल्थ सिटी परिसर में १४०००  शय्यावाले कैंसर देखभाल केंद्र की स्थापना की है। यह मजूमदार-शॉ कैंसर सेंटर (MSCC) कहलाता है, यह अपनी तरह के सबसे बड़े कैंसर अस्पतालों में से एक है, जो कि पांच लाख वर्गफीट से भी अधिक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। यह विशेष रूप से सिर और गर्दन के कैंसर, स्तन कैंसर और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के लिए है।
किरण मजूमदार-शॉ भारत सरकार की एक स्वायत्त निकाय इंडियन फार्माकोपिया कमीशन के प्रबंध निकाय और सामान्य निकाय की सदस्य हैं। वे स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रिजेनरेटिव मेडिसीन के लिए बने संस्थान की सोसाइटी की संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा व्यापार मंडल और विदेश व्यापार महानिदेशालय की सदस्य के रूप में नामित किया गया है।
वे भारत सरकार के नेशनल इनोवेशन काउंसिल की एक सदस्य और बंगलौर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रशासक मंडल की सदस्य हैं। वे विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान परिषद , भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य के लिए बायो वेंचर्स की बोर्ड सदस्य और कर्नाटक में आयरिश दूतावास की मानद वाणिज्य दूत हैं।
उन्होंने भारत के  स्कॉटलैंड निवासी जॉन शॉ से ब्याह रचाया- जो १९९१-१९९८ ई०  तक मदुरा कोट्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक रहे। वर्तमान समय में जॉन शॉ बायोकॉन लिमिटेड के उपाध्यक्ष हैं।
किरण मजूमदार-शॉ को उनकी सामाजिक और मेडिकल सेवाओं के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया।उन्हें  निक्की एशिया पुरस्कार (२००९ ई० ) समेत, क्षेत्रीय विकास के लिए एक्सप्रेस फार्मसूटिकल लीडरशिप समिट अवार्ड (२००९ ई०), सक्रिय उद्यमी के लिए, इकोनॉमिक टाइम्स का ‍'साल की महिला व्यवसायी' (२००४ ई० ) का पुरस्कार, एशिया के आर्थिक विकास के लिए क्लिक्क्वाट वयूवे इनिसिएटिव पुरस्कार, जीव विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल के लिए अर्न्स्ट एंड यंग का साल का उद्यमी (२००२ ई० ) पुरस्कार, व्लर्ड इकोनॉमिक्स फोरम द्वारा 'टेक्नोलॉजी पायोनियर' की मान्यता तथा इंडियन चैंबर्स का जीवन भर की उपलब्धियों का पुरस्कार मिला।उन्होंने कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार (२००२ ई०), भारतीय व्यापार नेतृत्व पुरस्कार समिति द्वारा साल की सवोत्कृष्ट महिला व्यावसायी का पुरस्कार, सीएनबीसी- टीवी 18 (२००६ ई० ), के भारतीय व्यापारी परिसंघ डायमंड जुबली प्रतिभा ट्रस्ट का 'साल की प्रमुख व्यवसायी' (२००६ ई० ) पुरस्कार और अमेरिकन इंडिया फाउंडेशन द्वारा 'कॉर्पोरेट लीडरशिप अवार्ड'(२००५ ई० ) भी प्राप्त किया।२००४ ई० में जैव प्रौद्योगिकी में उनके योगदानों को मान्यता देने के लिए उनके मातृ संस्थान बैलेरैट यूनिवर्सिटी ने उन्हें विज्ञान का मानद डॉक्टरेट प्रदान किया, इसके अलावा यूके के डंडी यूनिवर्सिटी (२००७ ई०), यूके की ग्लासगो युनिवर्सिटी (२००८ ई० ) और यूके के एडिनबर्ग की हेरिएट-वाट यूनिवर्सिटी (२००८ ई० ) ने भी उन्हें मानद डॉक्टरेट से सम्मानित किया।

     नो डाउट  आज वह भारतीय महिलाओं की आइकॉन बन चुकी हैं। किरण जी अपनी सफलता के लिए पांच कारणों को मानती हैं-
1. आत्मविश्वास एवं गंभीरता
सफलता के लिए आत्मविश्वास बहुत जरूरी है। कमजोर मनोबल और खुद में विश्वास का अभाव सफलता की राह में सबसे बड़ी बाधा है। किरण का कहना है, ‘सफल होने के लिए भारतीय महिलाओं को अपने अंदर आत्मविश्वास का भाव विकसित करना होगा। दृढ़ता और कठिन परिश्रम करने की चाहत का होना भी बहुत जरूरी है। कुल मिला कर लगातार परिश्रम और गंभीरता का भाव बहुत आवश्यक है।’
2. असफलता से हताश न हों
असफलताएं मनुष्य की बहुत अच्छी शिक्षक होती हैं। वे हर कदम पर हमारी परीक्षा लेती हैं। जो इससे घबरा गया, वह जीवन में पिछड़ गया। जिसने असफलताओं को सकारात्मक तरीके से लिया, वह कुछ कर गया। जिस तरह नारियल की कठोर ऊपरी सतह को हटाए बगैर मीठी गिरी नहीं मिल सकती, उसी तरह जीवन में भी बिना कठोर परिस्थितियों का सामना किए सफलता नहीं मिलती। किरण का मानना है-"फलताओं से किसी को हताश नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी गलतियों से सीखना चाहिए।"
3. कुछ अलग करने की चाहत
किरण का मानना है कि अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो आपको कुछ अलग करना होगा। बकौल किरण जी के अनुसार-"अपने  क्षेत्र में आगे बढ़ें, फोकस्ड रहें और प्रतिबद्ध बनें। अगर आप प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हैं तो आपको अवश्य कुछ विशेष करना चाहिए। कुछ विशिष्ट करके ही आप फर्क पैदा कर सकते हैं।"
4. दृढ़ निश्चय
किसी भी काम में सफल होने के लिए दृढ़ निश्चय और जबर्दस्त  इच्छाशक्ति की जरूरत होती है। किरण जी ने केवल १०  हजार रुपए की छोटी-सी पूंजी से अपने गैराज में बायोकॉन की नींव डाली थी। उनके सामने उस समय कई चुनौतियां थीं, लेकिन उन्होंने सारी चुनौतियां का सामना किया और आज इस मुकाम पर पहुंचीं। वह कहती हैं-"उस समय मेरी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं थी। मेरी उम्र कम थी, मैं महिला थी और मेरा अनफेमेलियर बिजनेस मॉडल सबसे बड़ी बाधा था। कोई बैंक मुझे कर्ज नहीं देना चाहता था और कोई प्रोफेशनल मेरे लिए काम नहीं करना चाहता था और ये सारी स्थितियां मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती थी।"
5. परिवार का सहयोग
कहा गया है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री होती है। उसी तरह यह कहना भी शायद गलत नहीं होगा कि हर सफल स्त्री के पीछे परिवार का अहम योगदान होता है। किरण का कहना है-"एक  महिला के अपने काम में सफल होने के लिए एक सहयोगी पति और परिवार पहली आवश्यकता है। हालांकि जब मैंने बायोकॉन की नींव डाली थी, तब मैं अविवाहित थी, लेकिन कंपनी की वास्तविक ग्रोथ मेरी शादी के बाद ही हुई।"

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