Wednesday, June 30, 2010

दो मुहें सांप

मैं शक्ल से ही ढक्कन नजर आता हूँ कई बार इसका बड़ा फायदा मिलता है। कम पढता हूँ पर कभी कभार दिमागमें कीड़ा उभर जाता है तो अग्रवाल भाई साहब की दुकान पर जाकर पढने लग जाता हूँ। उस दिन भी मैं एक साइड में बैठा पढ़ रहा था तब एक मुस्लिम अंकल वहां आये और अग्रवाल भाई साहब से बात करने लगे। इस्लाम का मतलब बताने लगे। मुझे बातें ठीक- ठाक लगीं मगर इरादा सही नहीं लगा। मुझे लगा अग्रवाल भाई साहब फंस चुके थे। सो मैं कुर्सी पर से उठकर उनके पास को  खिसक गया। इस्लाम दुनिया का सबसे पुराना धरम है...... इस्लामये कहता है...........इस्लाम वो कहता है..........इस्लाम हिंसा विरोधी है.....इस्लाम कभी किसी को किसी की जमीनपर नमाज तक अदा करने की इजाजत नहीं देता.....।
उस बीच उन साहब ने मुझसे-" क्यों मैं ठीक कह रहा हूँ  न?"- खाकर मेरा समर्थन लेना चाहा।
तब मैंने-" मुझे इतनी अक्ल  होती तो मैं वहीँ कुर्सी पर ही बैठा रहता, आपके पास आपकी बात सुनने के लिए नहीं आता। मैं तो आपसे जानकारी लेने के लिए उठकर यहाँ आया हूँ। "- कह दिया।
उन्होंने बात आगे बढ़ाई  -जरूरी नहीं जो इस्लाम को मानता  हो सच में ही मुसलमान हो..........मुसलमान वो है जिसका ईमान सच्चा हो.......वगैरा-वगैरा।
उस समय मैंने एक सवाल किया - " अंकल एक बात मेरी समझ में नहीं आई। इतिहास गवाह है कि जब मुस्लिम शासक भारत में आये तब उन लोगों ने हिन्दू मंदिर तुड़वाकर मस्जिदे बनवाई। वो जमीन तो हमारी हैं न अब हम अगर वहां दोबारा से मंदिर बनवाये तो गलत क्या है ?"
चचा जरा बोखला गए क्योंकि वो अपने ही जाल में फंस चुके थे। उनके पास कोई जवाब नहीं था। उसके बाद उन अंकल ने आल-बबाल बकना शुरू कर दिया जिसका कोई मतलब नहीं था। हकीकत ये थी कि अग्रवाल भाई साहब वहां अपना धंधा करने बैठे थे उन्हें तो ग्राहक की दस फालतू बातें सुननी पड़ती है- सो वो झेल रहे थे। मुझे लगा अगर उन अंकल की टांग  नहीं खीची गयी तो वो भाई साहब के दिमाग का बैंड बजा देंगे।

खैर, मुझे मंदिर मस्जिद के बनने से कभी कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मेरा मानना है की धर्म मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे,या किसी निश्चित धार्मिक जगह पर नहीं पनपता वो तो आचार-विचारों में पनपता है। मैं शायद उस बन्दे की बातों को ध्यान से भी सुनता और उनकी इज्जत करता अगर वो दूध का धुला होता। मैंने उन अंकल को कभी भी धार्मिक किताब खरीदते हुए या किराये पर ले जाते हुए नहीं  देखा है जबकि मैं वहां कई सालों से बैठ रहा हूँ मैंने उन्हें हमेशा क्राइम मैगज़ीन खरीदते ही देखा है( `मधुर कथाए' के तो वो रसिया है सुना है वो मस्तराम भी काफी पढ़ते थे जब वो उपलब्ध थी)
पता है सही बात सोच लेना बड़ा आसान है। सही बात करना भी आसान ही है मगर एकदम सही बात करना मुश्किल है क्योकि जब आप बात करते है आपके मन की हकीकत झलकती है बस कोई उसे पकड़ने वाला चाहिएऔर सही बात को व्यवहार में ले पाना बेइन्तहा मुश्किल।
बात मात्र एक मुस्लिम धर्म की नहीं है हकीकत तो ये है जो राजनैतिक पार्टी वहां मंदिर बनवाना चाहती है वो भीधर्म के लिए कुर्सी के लिए सब कर रही है। अगर उन नेताओं के इरादे नेक है तो वो अदालत में खड़े होकर सीना तानकर स्वीकार क्यों नही करते की वो कांड उन लोगों ने कराया था। वो क्यों मीडिया के सामने बैठकर मुस्लिम धर्म के उलेमाओं से इस बारे में सीधी बात नहीं कर लेते। अगर उनकी बात में दम है उन्हें सच में इतिहास और धर्म की जानकारी है तो क्यों मुंह छिपा रहे है? हकीकत तो ये है कि उन्होंने भी सही गलत के बारे में सोच ही नहीं- इतिहास, धर्म और देश के बारे में सोच ही नहीं। सोचा है तो बस कुर्सी के बारे में। कुर्सी मिली तो पाकिस्तान का विरोधी स्वर दोस्ताना हो गया। लोह पुरुष पिघल  गये और कंधार विमान काण्ड होते ही ९०० करोड़ रूपये देकरआतंकवादी को आजाद कर दिया। मजे कि बात है कि कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं।
मुद्दा एक ही धर्म का नही हर धर्म का है। यूरोप से जो लोग आए वो मात्र व्यापर के मकसद से नहीं आए उनका मकसद यहाँ अपना धर्म भी फैलाना था जब यहाँ उनका राज कायम हो गया तो लोगों को अपने धर्म में शामिलकरने की कोशिश तेज कर दी गयी वो १८५७ के नागरिक विद्रोह का मुख्य कारण भी बना। हर धर्म के ठेकेदार धर्म की  बात करते है मगर सम्प्रदाय के रास्ते पर चलते है। सब कहते है इश्वर एक है मगर दूसर के इश्वर का विरोध करते है।सबके भीतर गड़बड़िया है मगर वो अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करने के बजाये दूसरों पर कीचड उछालने में लगे रहते है। खुद सन्यासी जो समस्त मानवता कि सेवा का प्रण लेकर मानवीय एकता का प्रचार करने कि बात करते है वो ही कुम्भ के मेले में मार-काट मचाते है।केवल अपनी ताकत का प्रदर्शन करने केलिए। आप सत्संगों में जाओ । धर्म के नाम पर एक नए संप्रदाय की शुरुआत के निशान मिलेंगे।सबका ध्यान इतना समाज सेवा में नहीं जितना अपने ग्रुप को फ़ैलाने में है।
मेरे ख्याल से धर्म उनके ठेकेदारों के लिए एक धंधा होता है कुछ भी हो ज्यादा से ज्यादा प्रचार हों चाहिए भले ही उनमे कितनी भी कमी क्यों न हो। कुछ भी हो किसी भी तरह फोलोवर बढ़ने चाहिए। एक जुबान से एकता की बात करते है दूसरी जुबान से अपने मासूम लोगों के अन्दर सच्ची झूठी बातों में मसाला लगाकर जहर भरते है। जो लोग उन्हें स्मार्ट दीखते है वो उन्हें कभी भी छेड़ते है बस  उन्ही को ये दो मुहें लोग अपना टार्गेट बनाते है जो इन्हें ढक्कन नजर आते है या जो इनकी बात सुनते है। जैसे उन अंकल ने मुझे टार्गेट बनाने की कोशिश्की। ये बात जुदाहै उनका दांव मुझपर नहीं चला वैसे ढक्कन(कैयरलेस) बनकर रहने का भी अपना ही मजा है क्योंकि ऐसे लोगों केसामने लोग अपनी ओकात जल्दी दिखा देते है।

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