Wednesday, February 9, 2011

love diary 2

अध्याय-३
चलिए मैं अपना परिचय दे दूं.
मैं पलक रस्तोगी.....तब मैं पलक शर्मा थी.
कद पांच फीट सात इंच-तब कद पांच फीट तीन इंच था. दूध-सा गौरा रंग,काला घने बाल-वो कहते हैं ये एकदम सिल्की हैं . भूरी ऑंखें, सीप के आकर की, वो कहते है- इनमें  गजब की पागल कर देने वाली कशिश है.मेरा चेहरा एकदम गोल है, वो कहते हैं- पूर्णिमा का चाँद भी मेरे गोल चेहरे की चमक को देखकर शर्मा जाता है और महीने में एक बार निकलता है. जब निकलता है तो मेरा मुखड़ा देखकर शर्म के मारे कम होने लगता है. सुतवां नाक. गुलाबी होंठ, मेरा निचला होंठ ऊपर वाले के मुकाबले में  जरा सा बड़ा है.वो जब प्यार करते हैं तो निचले वाले होठ को ही ज्यादा चूसते हैं.पतली लम्बी गर्दन जिसपर एक तिल है.तब मेरे उभार संतरे के आकार  के थे, शादी के समय एकदम अनछुए, 30B  इंच के थे,अब `उनकी' मेहनत का नतीजा है कि वो 36D के हो गए हैं.समतल पेट, गहरी नाभि- वहां `उनको' अट्रैक्ट करने वाली जो  चीज है- वो नाभि के साथ ही स्थित काला तिल है. पतली कमर चौबीस इंच की, शादी के वक्त भी इतनी ही थी.
मेरे पापा स्वर्गीय श्री मदनलाल शर्मा भारत  के टॉप पब्लिशर थे.राजनीतिक  मंच पर सीधे तो एक्टिवे नहीं थे लेकिन उनकी पूछ काफी थी. पापा का दो छोटे भाई है.श्री सुरेन्द्र शर्मा और लखन शर्मा- संयुक्त प्रोपर्टी और फाइनांस  का बिजनेस है. उनके बारे में ज्यादा डिटेल में जाउंगी तो कथानक कि गति रुकेगी.मेरे बाकी रिश्तेदारों के बारे में आप मौके के हिसाब से आप जन ही लेंगे.अभी तो कहानी कि शुरुआत है. सारे-के-सारे ट्विस्ट तो आने बाकी हैं.
मेरे `वो'..... यानि मुकुल रस्तोगी. 
कद साढे पांच फीट- यानि मुझसे एक इंच कम. इनकी हाईट कि वजह से मैं इनके साथ बाहर  जाते समय हाई हील नहीं पहनती. तब इनका बदन काफी हल्का था.( हे डोंट मिस-अन्डरस्टैंड यार, हल्का बदन कमजोर जरा भी नहीं. बहुत स्ट्रोंग है वो.खैर अब तो वजन भी सैंतालिस किलो से सत्तर किलो हो गया है.) बाल अब  भी पहले कि ही थर अध्घुन्घराले हैं और सिर पर सलामत हैं.मोटी-मोटी भवें. काली पुतलियाँ. चौड़ा माथा. 
वो बहुत कम बोलते हैं. जब देखते है तो ऐसा लगता है मानो नजर से रूह का पोस्टमार्टम कर रहे हों. बहुत कम मुस्कुराते हैं-पर जब मुस्कुराते हैं तो कमाल लगते हैं. और जब मेरे लिए मुस्कुराते हैं तो दिल करता है अपने हुस्न की तमाम तिजोरी उनपर लुटा दूं- सब कुछ तो उनका है ही. 
ok guys lets back to the story
***
उस दिन पापा मुझे ऑफिस से ही ननसाल छोड़ आये. कई दिनों तक मैं ननसाल में अपनी छुट्टी एन्जॉय नहीं कर सकी. मैंने तय कर लिया था कि अगर बाद में वैसा हुआ तो मैं तमाम  डीसेंसी भुलाकर उनकी बेइज्जती की  कोशिश करूंगी. 
किन्तु.........परन्तु...........लेकिन. 
मेरी एक स्टुपिड हरकत की वजह से वो मेरे गले पड़ गये. 
मेरी  स्टुपिड हरकत ?
***
इतनी स्टुपिड भी नहीं थी मेरी वो हरकत.मेरे स्कूल खुल गए थे तब. उस समय बस मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे कि मैंने पापा से कहा-" पा.......i want to joing economics coaching classes."
" why beta?"-पापा ने पूछा. वो मेरे साथ ही ड्राइंग में सोफे पर बैठे थे. 
" पा, आपको पता है ना मेरी इको वीक है."-मैंने मासूमियत भरे लहजे में याद दिलाया-"कोर्स भी बढ़ गया है. टेंथ  में तो ये S.St. में ये हिस्टरी.भूगोल, और सिविक्स के साथ थी. अब अलह सब्जेक्ट बन गया है.
" कोई इंस्टीट्यूशन सोचा है?"- पापा सोफे पर पहलू बदलते हुए कहा.
"नो पा."- मैंने मुंह बनाकर कहा. 
"ओ.के."-पापा ने सोचपूर्ण भाव से कहा. कुछ देर तक सोचते रहे.मैं भी पापा के जवाब का इन्तजार करती रही.
फिर पापा बोले="ठीक है,मैं कल मुकुल से बात करता हूँ वो इस सब्जेक्ट से मास्टर डिग्री किये है. "
'पा...कौन मुकुल?"-मेरा दिल धड़का. 
" अरे तू    मिल चुकी है उससे."- पापा ने याद दिलाया. 
मैं समझ गयी कि मेरा सामना किससे होने वाला था?
***
अगले दिन जब मैं स्कूल से लौटी तो पापा के साथ घर में उन्हें भी बैठा पाया.मुझे पता है, उन्हें देखते ही मेरे दिमाग में तंदूर जल उठे. मेरे दिल में भरे गुस्से के भाव  मेरे चेहरे पर भी छलक पड़े होंगे. मैंने खुद को सुसंयत रखने का भरपूर प्रयत्न किया, और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी, पापा ने मुझे दूर से ही पुकारा-" पलक, इधर आओ स्वीट हर्ट."
क्या करती ?
मुझे वहां जाना ही पड़ा.
मैं उनके पास पहुंची तो पापा ने कहा-" बेटा, ये मुकुल है. अब से ये तुझे इको. पढाया करेगा."
"जी."- मैं  सिर हिलाया मगर मन ही मन कलपी. 
टाइम तय किया गया-शाम पांच बजे का.
***
शाम पांच बजे मैं डांस क्लास से लौटी तो उन्हें घर में बैठेया पाया.
अब चूंकि बला सिर पड़ चुकी थी सो बला को झेलना ही था. मेरा शरीर तब पसीने से तर था. मैंने टी-शर्ट और लोअर पहन रखी थी. मैने नमस्ते  तक नहीं की, और दौड़ती हुई अपने बैडरूम में गयी इकोनोमिक्स की  किताब और कॉपी उठा लायी.
"सिट प्लीज."-उन्होंने गंभीर स्वर में कहा.
मैं उनके लेफ्ट  में बैठ गयी. मैंने किताब खोलने लगी तो वो गला  खंखारकर बोले-" किताब बंद कर दो."
मैंने झटके से उन्हें लुक दी, सवालिया अंदाज में. 
" कॉपी निकाल लीजिये."-वो बोले-" अभी किताब की जरूरत नहीं. मैं जो भी सवाल दूं उनके जवाब लिखकर मुझे दो."
मैं मन-ही-मन कलपी-'वाओ,एक शब्द भी नहीं पढाया और एग्जाम  शुरू.'
पर क्या करती.?
`गुरु जी' का हर हुक्म शिरोधार्य.मैंने कॉपी निकाल ली. उन्होंने मुझे छोटे-छोटे दस  सवाल लिखकर दिए.नौ सवाल इको के बेसिक से जुड़े थे. दसवां सवाल मेरा दिमाग घुमा गया. सवाल था-' सरकार को चाहये कि वो लोगों को सडक बनाने का  काम दे और रात को उन लोगों से सडक उखडवा दे जिनके पास दिन में काम नहीं था.-इस वाक्य कि व्याख्या कीजिये.'
` वाओ क्या इकोनोमिक्स है. अगर कन्स्ट्रकशन बर्बाद करवानी है तो करवाने कि जरूरत ही क्या है?'-मन-ही-मन मैं हंसी.
साथ ही सोचा-` किस स्टुपिड से पाला पड़ा है. जरूर ये चाँद पर इकोनोमिक्स पढकर आया है. अगर मैं फेल  हो गई ना तो पपमसे इसका बैंड बजवा दूँगी.'
मैंने क्विशन पेपर को सोल्व करना शुरू कर दिया उन्होंने मेरी किताब ली और पढनी शुरू कर दी
पुणे छ: तक पापा भी आ गए. तब तक मैंने क्विशन पेपर सोल्व कर लिया था,वो तब मेरे आन्सर्स चैक कर रहे  थे.आते ही पापा ने उसे सवाल  किया -" क्या पढाया जा रहा है, भई????'
" कुछ नहीं, सर."-उन्होंने कहा-"अभी तो ये ही तय करने कि कोशिश कर रहा हूँ कि शुरू कहाँ से किया जाये?
एक छोटा सा टेस्ट लिया है."
" देखें तो जरा."-पापा ने  उनके हाथ से कॉपी ले ली. उसपर नजर डाली. पढकर वो भी चौंके-" यार, ये कैसा सवाल है? जब सडक उखड़वानी  है तो बनवाने की क्या जरूरत है?"
" सर,इसी फंडे ने तीस की मंदी का इलाज किया था."-वो होले से हँसे.
" क्या बात कर रहे हो!!!!"-पापा हैरान.
मैं भी हैरान.
तीसा मंदी के बारे में मैं टैन्थ की हिस्ट्री में पढ़ा था. जब अमेरिका का इतिहास पढाया गया था. तीसा की वैश्विक मंदी वहीँ से शुरू हुई थी. तभी  मेरे दिमाग में घंटी बजी. बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया. -"सर,इसका सम्बन्ध `न्यू डील' से तो नहीं?"  
"हाँ, "- वो मेरी ओर घूमकर मुस्कुराए-" आपने ठीक पहचाना. भले ही देर से पहचाना."
" तब कोई हिंट नहीं मिला था ना."-मैं बेधड़क बोली-"मैं तो अब भी ये नहीं समझी कि ये न्यू डील से कैसे जुड़ा है??????"
"कूल, समझाता हूँ"- उन्होंने व्याख्या देनी शुरू की-ये" बात माननीय जे. एम. कीन्स ने कही थी. उन्ही ने आय, व्यय का सिधांत दिया था. उनका कहना था कि एक आदमी की  आय ही उसका व्यय है, उसका व्यय दूसरे का रोजगार है. यानि किसी भी अर्थव्यवस्था में एक आदमी की कमाई होती  है तो वो उसे अपनी जरूरतों के सामान में खर्च करेगा. जब वो खर्च करेगा तो उसके लिए सामान बनाने के लिए दूसरे को रोजगार मिलेगा. जिसको रोजगार मिलेगा तो उसका भी खर्चा बढेगा.....तो तीसरे को रोजगार मिलेगा. इस तरह चेन में लोगों को रोजगार  मिलेगा. और उस  वक्त अमेरिका कि दिक्कत बेरोजगारी थी. वैसे ये भी सच है कि आय,व्यय,और रोजगार की  चेन के टूटते ही मंदी आ  जाती है."
" हाँ, मेरे याद है टीचर ने हमें यही कुछ बताया था."-मैं एक्साईटेड भाव से कह उठी-" फर्स्ट वर्ल्ड वार में अमेरिका ने भाग नहीं लिया था. वार अमेरिका की धरती  पर नहीं हुआ.पूरे वर्ल्ड कि जरूरतों को अमेरिका पूरी रहा था.वार ख़त्म हुआ और देशों ने उससे माल लेना बंद कर दिया तो जो माल पहले से तैयार था. वो गोदामों में ही रखा रह गया. लोगों को रातों-रात रोजगार से हाथ धोना पड़ा. तब अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डिनालो रूजबेल्ट  ने न्यू डील योजना शुरू कि और उसके तहत बेरोजगार लोगों को रोजगार दिया था. उसी के बाद इकोनोमी रास्ते पर आई थी."
" और वो `न्यू डील' कीन्स के इसी आय,व्यय और रोजगार के सिधांत पर आधारित थी."
मैंने सिर हिलाकर कहा-"समझ गयी."
" तो इसी बात पर पिला चाय."- पापा ने तपाक-से कहा-"चाय तू खुद ही रोज बनाएगी और मुकुल को पिलाया करेगी ट्यूशन के समय."
मैं भन्नाकर रह  गयी.  
अध्याय-4
उस दिन मेरा ट्यूशन शुरू हो गया. 
एकदम बोरिंग क्लासें. 
मुझे ऐसे पढ़ाते  थे जैसे फोर्मैलिटी पूरी कर रहे हों.आते ही लेक्चर देने लगते थे या कॉपी निकलवाकर नोट करवाना शुरू कर देते थे. मेरे सीनियर होने के बावजूद भी वो मुझे `मै'म' कहते थे.एक दूरी बनाकर रखते थे. मैं मन-ही-मन सोचती थी कि अगर मैं पसनद नहीं हूँ तो मुझे ट्यूशन क्यों पढ़ते है????
एक और बात मुझे उनपर गुस्सा दिलाती थी-वो उनका पापा से बहस करना. 
शाम को कई बार वो ट्यूशन के दौरान पापा घर पर आ जाते थे. तब मेरा ट्यूशन ख़त्म होने  पर मैं दोनों को चाय सर्व करती थी. चाय नॉर्मली शबनम आंटी  बनाती थी. अगर वो बिजी होती थीं तो चाय मैं खुद बनाती थी.(वैसे भी पापा चाहते थे शादी से पहले मैं किचन संभालना सीख लूं.)
उस समय पापा और `वो' किसी ना किसी मुद्दे पर डिस्कसन कर रहे होते थे.उस समय ` वो' पापा से खुलकर बहस करते थे. उनके स्वभाव में  नौकर का दब्बूपन जरा भी नहीं होता था. 
आखिर एक नौकर में इतना हौसला कैसे हो सकता था कि वो अपने बॉस से बहस करे और उसे गलत सिद्ध करने कि कोशिश करे.( `वो' पापा को गतल सिद्ध भी कर देते थे.)
***
मेरे दो बेहद खास दोस्त हैं-शशांक और नेहा.उन दोनों  को मैं  सब बताती थी. 
वो बहुत स्मार्ट है. एकदम कम्प्लीट पॅकेज है. फ़ुटबाल प्लयेर था. स्कूल टीम का कैप्टेन था. पढाई में भी शार्प था. स्कूल कि ज्यादातर लडकियां उसपर मरती थी. शायद मैंने उससे दोस्ती भी इसी वजह से कर ली थी. पर हम कभी भी डेट पर नहीं गए.हम जब भी कहीं स्कूल के बाद मिले तब हम तीनों ही मिले यानि मैं, नेहा, और शशांक . वैसे भी मेरे पूरे दिन का शेड्यूल पापा कि नजर में रहता था. टेंथ में मैथ्स ट्यूशन टीचर घर पर ही पढ़ा के जाया करता था. 
शशांक के पापा आई. पी. एस. हैं.
नेहा माथुर के पापा होटल चलाते थे. उनके शादी के दो मंडप थे और मेरिज ब्यूरो चलाते थे. नेहा कि मम्मी भी उसके पापा के साथ कामों में हाथ बंटाती है. एक छोटा भाई भी है उसका. तब वो नाइंथ क्लास में पढता था. मम्मी-पापा चूंकि काम में लगे रहते हैं और थोड़े केयरलैस भी है. इसी वजह से नेहा कुछ आजाद रहती है. उसकी आजादी का नतीजा ये था कि वी इलेवंथ क्लास में ही अपनी `चेरी' गँवा दी थी. वो एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में गयी और वाही पर एक रिश्तेदार के भी रिश्तेदार को अपनी `चेरी' सौंप दी. 
उसने जब उस एक्सपीरियंस के बारे  में मुझे बताया तो मैंने उसे डांटा-"तेरा दिमाग ख़राब हो गया है? अगर `कुछ' हो गया तो??????"
" कुछ नहीं होगा मेरी जान"-उसने फुल मस्ती के मूड में मुझे बाँहों में भरकर बेद बैड पर ढेर होती हुई बोली-"वो पक्का  वाला था. अपने साथ प्रोटेक्शन लिए था. वो खेला खाया था."
उसके बाद उसके वो जब भी मोका मिलता था अपने  बॉयफ्रैंड के साथ मस्ती लेती रहती थी.
खैर,
बात चल रही थी मुकुल की. 
मैंने मुकुल के बारे में बताया तो शशांक ने लापरवाही से कहा-"तू इतनी सी बात से परेशान क्यों है? अपने पापा से कहकर उसे हटवा दे."
मुझे सुझाव ठीक लगा.
***
" क्यों? पढ़ता तो ठीक है."-पापा ने कहा.मेरी बात सुनकर वो एकदम गंभीर हो गये थे.
डिनर के बाद हम ड्राइंगहॉल में टी.वी. देख रहे थे. तब मैंने पापा के सामने अपनी बात रखी.मैं सोफे पर पापा के और पास सरक गयी और लाडली बच्ची की तरह बोली-" पा, वो बात नहीं है."
"तो क्या बात है?"- पापा ने संदिग्ध भाव से मुझे घूरा. 
" पा, वो बहुत रूड हैं."- मैं मिनमिनाई-" जब पढ़ते हैं तो उनके बिहेव  में जरा भी अपनापन फील  नहीं होता.मुझसे ऐसे डिस्टेंस मेनटेन करके रखते हैं जैसे मुझे छूट की  बीमारी हो. मैं उनसे छोटी हूँ और वो मुझे हमेशा मै'म कहकर बात करते  है."
" तो क्या हुआ?"-पापा हंसे-" तू आखिर उसके बॉस की  बेटी है."
" वाट रबिश. i dont like this...........it seems that he didn`t respect me. he just trying maintain distance."
" बेटा, वो जरा-सा रिजर्व है."- पापा ने समझाया -"और अगर वो दूरी बनाकर रखता है तो कोई बात नहीं. वैसे भी में सब तरह के लोगों के साथ निभाना पड़ता है.वो स्मार्ट लड़का है.और एक घंट ही तो तुझे उसके साथ बैठना है. बस तू अपनी पढाई पर ध्यान दे बस."
मैं बस कसमसाकर रह गयी. 
पापा से एक दो बार लाड दिखाते हुए विनती की लेकिन पापा नहीं माने .
मैं पापा से जिद करना चाहती थी लेकिन की नहीं.. कभी की भी नहीं थी.मैंने जब भी जो माँगा पापा ने लाकर दे दिया.अगर वो कोई डिमांड पूरी नहीं भी करते तो उनसे क्या जिद करती?
अध्याय-५
मैंने  और नेहा ने मिलकर उनका नाम `एंग्री यंग मैन' रख दिया.मैंने तसल्ली कर ली कि उस ` एंग्री यंग मैन' को कुछ ही महीने झेलना पड़ेगा. कुछ महीनों में तो मैं इंटर पास कर ही लूंगी, फिर मेरा उनसे पीछा छूट जायेगा.
मैंने इंटर एट्टी परसेंट से पास कर भी ली. मेरे रिजल्ट के आने कि रात मेरे पास कॉल आई.मैं अपने बैडरूम में थी मैंने कॉल रिसीव की.-" हैल्लो"
" कांग्रेट्स"-दूसरी तरफ से मेरे कान में जो आवाज पड़ी उसने बेहद अपनापन था. मैं चौंकी. 
" सॉरी?"- मैं उलझी. 
" i said congraates ma'm"- कहा गया तो मेरा दिल धक्क से रह  गया. सांसें फेंफडों में ही अटक कर रह गयी.  मैं समझ गयी फोन करने वाला कौन था?मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को संभालकर कहा-"थैंक्स."
" क्या परसेंटेज बनी?"- उन्होंने पूछा. 
" एट्टी परसेंट."
" गुड"- वो ज़रा-से बुजुर्गाना भाव से बोले.- आगे क्या इरादा है?"
" i dont know."
" why?"
" बिकॉज, पा  नहीं चाहते कि मैं प्रोफेशनल बनूँ."-मैंने कहा. 
" ओह."- वो बोले. फिर तत्काल व्यस्त भाव से बोले.-" अच्छा ठीक है.  अब रखता हूँ. टेक केयर."
फोन डिस्कनेक्ट कर दिया गया. 
मैं हैरान.
ये क्या था?
वो कोई हकीकत थी या धोखा?
उनकी आवाज में इतना अपनापन कहाँ से आ गया. ज़रा सी भी रुडनेस नहीं थी वहां.नर्म और सुसंयत स्वर.
उस बारे में मुझे सोचने का ज़रा भी मोका नहीं मिला क्योंकि तभी शशांक  का फोन आ गया था.
***
" क्या बात कर रही है!!!!!!!!!!"- नेहा ने सुना तो हैरान रह गयी. ये बात मैंने नेहा को उसके घर  पर ही  उसके बैडरूम में बताई थी. तब वो संदिग्ध भाव से बोली. - " कहीं ये ` एंग्री यंग मैन मरता तो नहीं तुझपर ?"
" वाट रबिश"  मेरे मूंह से फूटा पर मेरा दिल धक्क से रह गया.-" i dont beleave  it."
" क्यों क्या बुराई है तुझमे?"-वो हंसी.-" खासी खूबसूरत तो है तू."
" हमारी एज का डिफ्रेंस तो देख. लगभग दस साल बड़े हैं मुझसे."
" तो क्या हुआ?"-  वो बोली-" वैसे भी तू साधू-सन्यासियों  को भी पागल कर  देने वाली चीज है. वो तो बेचारा तुच्छ सा `एंग्री यंग मैन' है. बेचारे के मन में भी तो अरमान मचलते होंगे."
मैंने उसकी बात को बढाने की कोशिश नहीं की. पर सच ये था कि मेरे मन में खलबली मच गयी थी. 
उसके बाद मैं और नेहा चैट करने लगीं. `उनके'  मन का वो  भेद को  महसूर करके मेरे मन में जो खलबली मची थी उसकी वजह से मेरा मन चैट में  मन नहीं लगा.एग्जाम के बाद छुट्टियों में उसे काफी वक्त मिल गया था  जिसका वो और उसका  बॉयफ्रैंड ने पूरा फायदा उठा रहे थे. वो मुझे हमेशा  ही सबकुछ बताती थी. सब सहेलियां अपने ` बेहद निजी' पलों को अपनी खास सहेलियों से शेयर करती हैं.मैं हमेशा  मजे से सुनती  थी. मुझे पता था कुछ ही सालों में मैं भी अपने स्पाऊज के साथ-( जो कि मैं शशांक को या उसके जैसे को बनाना चाहती थी- क्योंकि अलग कास्ट होने कि वजह शायद पापा ना मानते.)- करने वाली थी. `उस खेल' के दांव- पेचों  के बारे में पता चल जाये तो खेल का मजा जल्दी बढ़ने लगता है. 
तब  नेहा ने कहा-"ऐ, चल तुझे एक चीज दिखाती हूँ.कल ही मेरे बॉयफ्रैंड ने मुझे दी है."
" क्या?"
" बी.एफ."- वो कुटिल और लम्पट भाव से राजदाराना भाव से फुसफुसाई-"मैंने रात ही देख ली थी. सच्ची यार कमाल के शोट्स हैं उसमें."
" तू बहुत बिगड़ गयी है." - मैने उसे घूरा. मन में खलबली और ज्यादा बढ़ गय, पर वो दूसरी तरह की खलबली  थी.चेहरा ह्या से सुर्ख हो गया होगा-" इन गन्दी चीजों में मेरा कोई इंटरेस्ट नहीं."
" पक्की बात ??"-उसकी मुस्कान और ज्यादा कुटिल हो गयी. नजर और पैनी होकर मेरे चेहरे पर जम गयी-"तो फिर तेरे चेहरे का रंग सुख क्यों है?आँखों में नशा-सा क्यों छ गया है?"
अब मैं भन्ना गयी. उसके कंधे पर भन्नाकर चपत लगाते हुए मैं कह उठी-"स्टुपिड,इसे देखकर अंदर जो आग लगेगी उसे बुझाने के लिए तेरे पास तेरा बॉयफ्रैंड तो है. जब मेरे अंदर आग भड़केगी मैं किसकी हेल्प लूंगी?"
" क्यों????? एक हंक है ना."-वो शरारत से बोली.-" शशांक."
मेरा  चेहरा और तप गया. वो बोली-" तू कहे तो मैं तुम्हारी `मुलाकात' का अरेंज्मैंट करूं."
" नहीं."-मैंने  साफ़ इनकार कर दिया.-" अभी कुछ भी नहीं.शादी के बाद मैं `उन्ही' के साथ देखूँगी ताकि दोनों  एक साथ पूरा मजा भी ले सकें."
***
उस रात मैं बिस्तर में पड़ी-पड़ी काफी रात तक यही सोचती रही-कि क्या वो सचमुच मुझपर फ़िदा है????
स्टुपिड, अपनी शक्ल तो देखे . अपने मालिक कि बेटी पर ही नजर रखता है. वैसे भी बोरिंग, रूड और एंग्री यंग मैन को कौन भाव देगी.
अध्याय-६ 
 उस दिन के बाद मैन उनसे कटने लगी.
दिक्कत ये थी  उनका  हमारे घर में आना बंद नहीं हुआ था. मंगलवार को पापा कि छुट्टी होती थी. तब वो आ जाते थे .
मेरे इंटर पास हो जाने के बाद पापा ने मेरी  आगे कि पढाई के बारे में पुछा तो मैंने कह दिया-" ग्रेजुएसन कर लेती हूँ. "
"आप कोई प्रोफेशनल कोर्स क्यों नहीं करतीं?"-` वो' कह उठे. 
" क्या करेगी प्रोफेशनल कोर्स करके?"-पापा ने कहा-"इसे वैसे भी इसकी जल्दी ही शादी करनी है. सोच रहा हूँ इसके लिए कोई लड़का तलाश करना शुरू कर दूं. ढंग का लड़का मिलने में २-३ साल तो लग ही जाते हैं.जब तक ग्रेजुएसन करेगी तब तक  कोई ना कोई लड़का टकरा ही जायेगा. आगे क्या करना है इसके ससुराल वाले जाने."
अपनी शादी की बात सुनकर मेरा दिल धक्क से रह गया. मुझे पक्का यकीन है ह्या के कारण मेरा चेहरा तपकर सुर्ख हो  गया होगा. मैन भी उनके चेहरे पर दिल चटकने की तकलीफ को तलाश कर रहीथी किन्तु मुझे वहां कोई रिएक्सन नजर नहीं आई. 
वो एकदम सामान्य भाव से बोले-" सर, जो लोग प्रोफेशनल होते हैं वो भी तो शादी करते हैं. आप मै`म को कोई प्रोफेशनल कोर्स करवाइए ताकि जरूरत पड़ने पर बिजनेस को संभल सकें. इन्हें एडमिशन दिलवाकर आप चाहें तो इनके लिए लड़का तलाश करना शुरू कर दीजिये. लड़का मिलते ही शादी कर दीजियेगा."
सच में ही मुझे इनके बिहेव नहीं लगा कि वो मुझपर फ़िदा थे. 
***
मेरा एडमिशन ग्रेजुएसन के लिए `मेरठ कालेज'में करवा दिया गया.  नेहा ने भी वही एडमिशन लिया लेकिन साइंस में. शशांक ने N.D.A. की तैय्यारी के लिए इंस्टिट्यूट  ज्वाइन कर लिया. 
पापा चाहते थे कि मैं ग्रेजुएसन में इको. लूं लेकिन मैंने ही जानबूझकर नहीं ली. मैंने नहीं ली. मुझे पता था कि जरूर पापा `उन्ही' को मेरा ट्यूटर को  अपोइन्ट करेंगे.ऐसा नहीं था कि हमारा शशांक से मिलना-जुलना बंद हो गया था. वो P.L. SHARMA Road पर पढता था-जो कि मेरठ कॉलेज के पास ही है.जब भी हमारा मिलने का मूड होता हम पास के किसिस भी रेस्टोरेंट में मिल लेते थे. 
***
" ऐ तेरा `एंग्री यंग मैन' तो बड़ा छुपा रुस्तम निकला."-एक दिन फोन पर नेहा ने मुझे बताया.उस वक्त मैं दोपहर में अपने बेडरूम में थी. टी.वी.देख रही थी. नेहा के फोन आने कि वजह से मैंने टी.वी. का वोल्यूम म्यूट कर दिया.उसने बताया-"उसके साथ एक लडकी है."
"so what?"-मैंने लापरवाह से कहा-"उसकी बहन-वहन होगी."
"wow....कम्पनी बाग़ में!!!!!!!!!!!"-उसने व्यंग्य से कहा-"झड़ी के पीछे.हाथ में हाथ थामे भाई-बहन बैठते है? उनकी बॉडीलैंग्वेज बता रही है कि दोनों के बीच सीन चल रहा है."
मेरा दिल धक्क से रह गया 
"क्या बात कर रही है!!!"-मैं भी  कम हैरान नहीं थी-" i cant beleave it....वैसे वो दिखने में कैसी है??"
"अच्छी है."-उसने बताया-" खूबसूरत है."
" बहुत ज्यादा खूबसूरत है?"- मुझे समझ नहीं आ रहा था  कि मेरा दिल इतना  आंदोलित क्यों था?
" हाँ पर तुझसे कम है. तेरी तरह गोरी चिट्टी नहीं हैं पर रंग फेयर है."
"और?" 
" और क्या ???"-वो झल्लाई -" मैं कोई लेखिका तो हूँ नहीं जो तुझे हैड-टू-टो उसका डिस्क्रिप्शन दूं"-तभी बोली-" ले मैं मोबाइल कैमरे से उसकी पिक्चर ले रही हूँ."
मैं चुप रह गई. तभी मन में आया-` अरे मैं उस लड़की के में इतना इंटरेस्ट क्यों ले रही हूँ?'
क्यों?
शायद मैं उनपर अपना हक समझने लगी थी.मुझे लगता था कि वो मुझपर मरते थे. या शायद उनका- अपने आस-पास मेरे जैसी हसीं लड़की होते हुए- किसी और पर फ़िदा थे, ये मेरे हुस्न कि तोहीन भी तो थी
*** 
अब मैं कोशिश करने लगी थी कि मेरा उनसे सामना ही ना हो. मुझे पता था मंगल के दिन जब भी आते थे शाम को छ: सात बजे आते थे.उस वक्त मैं या तो अपने रूम में पढने बैठ जाती थी या घर में ही नहीं होती थी.पापा को शक ना हो इसी वजह से मैंने अपनी रोज कि पढाई का वाही वक्त तय किया. 
उन लोगों को चाय देने के लिए मुझे खुद ही नहीं कहा जाता था. उलटे मुझे शबनम आंटी मेरे बेडरूम में आकर मुझे -रिफ्रेशमेंट के लिए-चाय दे जाती थी.
 

 love diary  जारी है.......