Tuesday, November 23, 2010

कैसी उन्नति ??????????

कुछ दिन पहले मैने पेपर में कुछ लोगों द्वारा आत्महत्या की खबर पढ़ी. ये चीज पढ़कर मन में करूणा पैदा होती है पर मेरे मन में उलझन  पैदा हो गयी क्योंकि उन्होना जिस कर्ज की वजह से आत्महत्या  की थी वो बेहद कम था. वो भी MFI से लिया गया था.
=>बस्काए अलिया पर ४००० रूपये के कर्ज था जो उसने दो MFI कर्ज लिया था
=>अकबर पर मात्र १०००० का कर्ज था
=> के० रमेश पर १०००० का कर्ज था जो उसने भेंस खरीदने के लिए लिया था . उस लेख को पढ़कर  मेरे मन  मैं कई सवाल उठे. उस लेख में MFI`s की बखिया को उधेडा गया था. उनकी कमियों को सामने लाने की कोशिश की गयी थी. मेरे दिमाग में एक काफी बड़ा सवाल ये उठा कि क्या MFI  गलती थी?? उसके सिस्टम मा कोई गड़बड़ थी या उसके सिस्टम को गलत तरीके से चलाया गया था. मरना वालों की  आत्महत्या का कारण था कि वो अपने घर के सामान  की नीलामी नहीं देख सकते थे. मेरा सवाल ये है कि हमारे देश के एकोनोमिस्ट्स कहते फिर रहे है कि हमारे देश कि इकोनोमी दुनिया कि सबसे तेज उभरती हुई इकोनोमी है जो कि अगले कुछ सालों में दुनिया की  सिरमोर इकोनोमी होगी.ये वो ही देश है ना जो ९% व्रद्धी दर का दावा करता है. ये वो ही देश है ना जिसमे कहा जाता है कि दुनिया के सबसे ज्यादा डॉक्टर, इंजिनियर है. इस हाल में क्या  इंडिया दुनिया का सिरमोर बन सकेगा कि लोग  कुछ हजार के लिये आत्महत्या कर लें???????  

Monday, November 8, 2010

स्टुपिड होना भी बुरा नहीं

बड़ी अजीब सी घटना है जब मैंने अपने  चरित्र के खिलाफ काम किया. क्यों किया-अब तक मेरी समझ में नहीं आया. मैं आज तक हैरान हूँ कि मेरे जैसा कमीना बन्दा ऐसा कैसे कर गया?
उसे मैने दोनों बार सड़क पर देखा था. गजब का पीस है बॉस. ज्यादा लम्बी नहीं थी लेकिन गोरी-चिट्टी, स्लिम-ट्रिम, खूबसूरसत मासूम-सा चेहरा, सुतवां नाक, पतले गुलाबी होंठ,लम्बी गर्दन. सच कहूं तो पहली बार उसे मैंने नोटिस ही नहीं किया.
दरअसल मुझे तब टी.पी. नगर के बिजली घर में काम था.  मैं ओटो से  बागपत अड्डे पर उतरा और तो वो वहीँ पर खाड़ी थी मगर तब मैंने उसे ठीक से नोटिस नहीं किया.मैं कुछ देर के लिए पास ही किसी के पास गया और जब लौटा तो उसके पास से गुजरा तो उसे नोटिस किया. कुछ देर मैं क्रोस्सिंग पर रुका वो भी वहीँ खड़ी थी.अब जब मैं वहां खड़ा था तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि मैं उसे ना तकूँ . मैं भी तक रहा था और भी कई तक रहे थे. कुछ देर बाद एक सजीला युवक बाइक पर आया और वो हसीना बाइक पर सवार होकर चली गयी. चली क्या  गयी कईयों पर बिजलिया गिरा गयी उसका पता मुझेया उसके जारे ही चल गया. सबसे पहले रिक्सा वाले ने कमेन्ट पास किया-"देखा ये है आजकल के बालक. घर से पढने के लिए आते है और लाडलियों को घुमाते हैं"
मुझे हंसी आ गयी-"भाई वो वो उसकी कनपटी पर पिस्तोल रखकर तो नहीं ले जा रहा............वो  जा रही है इसीलिए वो ले जा रहा है.अगर हमारी शक्ल ठीक-ठाक होती तो और हमें कोई भाव देगी तो हम क्या मोका छोड़ देंगे"
उसी समय पीछे से तीन-चार बाइकों पर लडके सवार होकर आये. एक लड़का जो पहले से ही वहां पर उसकी ताक में खड़ा था उसने बड़े ही उत्तेजित भाव से बताया कि वो अमुक के साथ अभी-अभी बाइक पर गयी है. वो सब तुरंत  ही उस लड़के को साथ बाइक पर बैठकर  उसके पीछे चले गए.कुछ देर के बाद मैं भी अपना रास्ते हो लिया.मैं मुश्किल  से आधा किलोमीटर ही गया था मैंने उसे फिर देखा. उस बार मैं उस धांसू पीस को कैसे नोट नहीं करता मैना उसे गोली कि तरह पहचाना. वो बाइक के साथ हिप लगाकर खाड़ी थी.  मैं उसके पास से गुजरा और आगे चला गया. आगे जाकर मेर्स दिमाग में अचानक एक बात आई-`बालक पिट-पिटा ना जाएँ'. मैंने  उन्हें वार्न करने का फैसला कर लिया. मैं मुडना के लिया मुड़ा तो मेरे दिल में संका पैदा हुई-` कहीं सवरी बखेड़ा खड़ा ना कर दे'
मैं अपने रास्ते चल दिया. कुछ कदम चलने के बाद मेरे कदम फिर रुक गये. मैने कुछ देर सोचा. और- जो होगा देख जायेगा- वाला  इरादा बनाकर वापिस मुड़ा और वापिस चलकर उसके पास गया. उसके पास  जाकर उससे पुछा-` जो लड़का तुम्हरे साथ था वो कहाँ  है?'
` क्यों'-उसने पुछा.
` कुछ लड़के तुम्हारे पीछे लगे है'- मैंने बताया.
उसने पीछे स्थित ATM कि तरफ इशारा करके कहा-` उसके पीछे  लगे है?'
तब मैंने देखा. वो लड़का ATM के अंदर था . मैना कहा-` मुझ नहीं पता, पर टार्गेट तुम हो.................अगर कोई पंगा हो तो ध्यान रखना'
कहकर मैं रुका भी नहीं अपना रास्ते चल दिया.पीछे मुडकर उसकी रिअक्सन देखनी तक जरूरी नहीं समझी. 

मैं अब सोचता हूँ कि मैंने वो क्यों कर दिया. क्या इस वजह से कि वो बहुत खूबसूरत थी या मुझ कमीने के अंदर पहले वाला स्टुपिड -सा जोगेंद्र सलामत है ??????????? जिसने कभी भी कभी भी सही करने से पहले ये नहीं सोचा कि लोग क्या कहेंगे?
पता है जब कोई आपको ढक्कन कहे तो बुरा लगता है मगर तब कुछ भी सही कर डालने पर कभी भी पछतावा नहीं होता .................वैसे भी इतनी सेक्सी लड़की का भला करने कि कोशिश के बदले मा क्या पता वो इम्प्रेस हो जाये और मुझ जैसे गधे को भी पंजीरी खाने का मोका मिल जाये.........................हिहिहिही




Wednesday, October 13, 2010

कल का खलनायक आज का नायक -चंगेज खान

इतिहास भी कमाल की चीज है. नायक को खलनायक बना देता है और खलनायक को नायक बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ता है .

अगर हम भारतीय पुराणिक साहित्य पर नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि किस तरह चरित्र की इमेज के साथ खिलवाड़ किया गया. या कहें कि चरित्र को ही इस तरह पेश किया गया कि पाठक को चरित्र के रूबरू होते ही उससे नफरत होने लग जाये. उदाहरण के लिए रावण के चरित्र की बात करते है. वाल्मीकि की रामायण में रावण को एक बेहद खूबसूरत इंसान के रूप में चित्रित किया था. मगर तुलसीदास ने बेहद कुरूप चित्रित किया गया था. रावण का असली नाम कुछ और था.....मगर रामायण में में उसे रावण कहा गया. रावण यानी रुलाने वाला.उसके अलावा सूर्पनखा का मतलब है सूप जैसे नाखून है. कुम्भकर्ण का मतलब होता है कुम्भ के जैसे कान वाला.विभीषण यानि विभीषिका लाने वाला.
महाभारत के चरित्रों की बात करें तो सुयोधन का नाम दुर्योधन कर दिया गया. सुशासन को दुशासन कर दिया गया.सुशीला को दुशीला कर दिया गया.
कौन माँ बाप अपने बच्चों के नाम ऐसे रखेंगे जो सुनकर इंसान को नफरत पैदा होने लगती है. ये सब कथा के नायक के चरित्र को उभरने के लिए किया जाता है. साथ ही शुरू से ही ऐसा माहोल  तैयार किया जाता है कि पाठक के मन में शुरू से ही चरित्र के लिए नफरत होने लगे.और नाम से ही चरित्र  कि बुरी इमेज बन जाये.
ये तो हुई पुराण की बात एतिहासिक काव्य कहे जाने वाले काव्य `प्रथ्वीराज रासो' में तो इतिहास को ही बदल देने  की  कोशिश की गयी. इतिहास सम्मत है कि मोहम्मद गोरी कि हत्या पृथ्वीराज ने नहीं की थी. उसके ही सरदारों ने मुल्क लोटते समय रास्ते में कर दी थी.
इसके अलावा एक और महान विजेता है जिसे इतिहास में बदनाम किया गया. वो है चंगेज खान
इतिहास में जिसे सबसे दुर्दांत हत्यारा और बलात्कारी कहा गया.रक्त पिपासु कहा गया. ना केवल उसे बदनाम किया गया उसके महान कामों पर मिटा भी दिया गया, बल्कि उसकी निशानियों तक को मिटा दिया गया. द्यत्व्य है कि मंगोलिया को बसाने वाले की मात्र एक ही मूर्ती पूरे मंगोलिया में में लगी है जो दादन नामक कसमे में है वो भी कुछ ही साल पहले लगाई गई थी. उसे दादन बयोरा नामक एक फ्रेंच ने बनाया था. और मंगोलिया वालों ने उसे मालामाल कर दिया था.
ऐसा नहीं है कि मंगोल्स अपने राष्ट्र  निर्माता की इज्जत नहीं करते. बुर्खान की खल्दून पहाड़ियों पर निकलने झरने का पानी को मंगोल्स बोतलों में भरकर अपने पूजाघरों में रखते है. मान्यता  है कि चंगेज खान के जन्म के तीसरे दिन उसे उसी झरने में नहलाया गया था. उस इलाके में महिलाओं का जाना वर्जित है क्योकि माना जाता है कि एक बार चंगेज खान वहां प्रार्थना करने गया था उस समय उसके साथ कोई महिला नहीं थी.
अब सवाल ये है कि क्या चंगेज खान वास्तव में रक्त पिपासु था? बलात्कारी था??बेरहम हत्यारा था??????
सवाल है कोन  सा शासक रक्त पिपासु नहीं था. किसने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए रक्त नहीं बहाया. हर दौर के राजाओं ने किया.अमेरिका कि सी.आई.ए. के कारनामों से,रूस की खुफिया एजेंसी के चीफ लाव्रेंती बेरिया के दुर्दांत कारनामों को कौन इतिहास का जानकर नहीं जानता. अभी अमेरिका ने हथियारों के नाम पर जो तबाही ईराक में मचाई उससे कौन अंजान है. सब जानते है कि वो उसने तेल के लिए किया है.किसी और तरह तो वो सद्दाम को सत्ता से बाहर तो नहीं कर सकता था. दुनिया में साम्यवाद का ढिंढोरा पीटने वाले रूस ने मंगोलिया में किस तरह तबाही मचाई. उसकी जमीन पर से उसके इतिहास कि निशानियों को मिटाकर हर जगह उसने अपनी छाप छोड़ी.उस चंगेज खान को जैसे मिटाकर रख दिया मंगोलिया से रूस और चीन ने.
चलिए अब बताता हूँ कि चंगेज खान था कौन? वो किस जगह से ऊंचा उठकर शशक बना?
चंगेज खान का असली नाम तेमुंची था. मंगोल के घास के मैंदानों में बर्बर कबीले रहा करते थे. जिनका कोई धर्म नहीं था.  वो शिकार करके और जानवर पालकर जीवन चलाते थे. कोई भी किसी  पत्नी को हासिल करके अपनी पत्नी बना सकता था, मगर उससे पहले उसके पति का कत्ल करना होता था. चंगेज खान के पिता येसुगाई ने भी उसकी माँ ओएलून को उसके पति येकेचिरादु से छीना था जो कि मकीत कबीले का था. वो उसका कत्ल नहीं कर पाया था.तेमुंची के दो भाई -खसर और तेमुगा उर्फ़ ओतचिगीन, एक बहन -तेमुलून थी. नौ साल कि उम्र में तेंमुची कि शादी उन्गीरा कबीले की बोर्ताई के साथ कर दी गयी.ये बात मकीतों को सहन नहीं हुई कि कोई दादा कबीले वाला उनके सगोत्री लड़की से शादी कर ले.
एक दिन जब येसुगाई तेमुंची को उसके ससुर के घर छोडकर वापिस लौट  रहा था तो तातारियो कबीले वालों ने धोखे से उसे जहर देकर मार डाला था. ओएलून ने दूसरी शादी नहीं की और अपने बच्चों को पालने में लग गयी. फिर भी दुश्मनों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. उन लोगों ने उसके तम्बू को जला दिया. उसे भी मारने कि कोशिश की लेकिन वो उनके हाथ नहीं आया. वो पूरे दिन ओनान नदी में नलकी के सहारे साँस लेकर छिपा रहा. उसके बचपन के प्यार और पत्नी को मकीत कबीले के लोग अपने साथ ले गए और मकीत कबीले के सिल्चर से उसके शादी कर दी. तेमुंची बदले की आग और पत्नी के वियोग में में तडपता रहा उसने सेना को संगठित किया और मकीतों आक्रमण किया. उसने भयानक तरीके से मकीतों को कुचल दिया और सिल्चर  को भी ख़त्म कर दिया. मगर उसे ये देखकर घोर निराशा हुई कि तब तक बोर्ताई एक बेटे कि माँ बन चुकी थी. तेमुंची के कबीले  वालों ने उसे उस बच्चे का क़त्ल करने के लिए कहा क्योंकि वो दुश्मन का खून था. मगर उसने सिर्फ इसलिए उसे अपना  लिया कि बोर्ताई उसे बहद प्यार करती थी. उसने उस बच्चे को अपनाया बल्कि बेटे का पूरा हक भी दिया. मन जाता है कि वो सपने बच्चों में सबसे ज्यादा जूजी को ही करता था. ( अगर वो बेरहम था तो उसने अपने दुश्मन के खून को गले  से क्यों लगा लिया?)
उस घटना से बोर्ताई पर बड़ा बुरा असर पड़ा कि वो आत्महत्या करने के लिए चल दी थी तेमुंची उसे वापिस लेने गया तो उसने सवाल किया -` पहले मुझे सिल्चर तुमसे छेन्क्र ले गया और बड़ी ही मुश्किल से मैंने अपने आप को संभाला और अपना पूरा दयां अपनी कोख से पैदा हुए जूजी को पालने में लगाने लगी. अब तुम आये और मुझे सिल्चर से ले आये.......कल को कोई और आएगा और फिर मुझे तुमसे छीनकर ले जायेगा. तब मेरे बच्चों का क्या होगा?'
उस समय तेमुंची ने वादा किया कि वो ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होने देगा. और उसने जो वादा किया ही था उसे निभाया भी. उसने अपने आपको ताकतवर बनाना शुरू कर दिया.उसने एक एक करके तमाम कबीलों को जीतना शुरू केर दिया. १२०१ ई० में  ग्यारह कबीलों का खान चुन लिया गया. १२०६ ई० में बाकी तमाम कबीलों ने भीउसकी अधीनता स्वीकार कर ली और उसे चंगेज खान यानि धरती के खान की उपाधि दे दी.
उसके बाद उसने अपने कदम आगे बढ़ने शुरू किये तो ही तो वो यात्रा उसकी सासों  के साथ ही रुकी. उसने १२२०  ई० में उसने समरकंद को जीता. उसके बाद उसने सब्ज्वार नोशापुर इत्यादि को जीतकर अपने विशाल साम्राज्य का निर्माण किया. मत्र २५ सस्लोंमें उसने उससे भी बड़ा साम्राज्य खड़ा कर लिया जितन बड़ा साम्राज्य बनाने के लिए रोम को ४०० साल लगे थे. उसका साम्राज्य की सीमा कोरिया वियतनाम से लेकर पोलैंड , हंगरी और कैस्पियन सागर से लेकर प्रशांत सागर तक थी.बात केवल साम्राज्य के विस्तार की ना करें बात शासन को चलने की भी बात करें तो अब एतिहासिक तथ्य ये बात सिद्ध कर चुके है कि वो एक बेहतर शासक भी था. कई काम उसने अपने हस्सन काल में किये जो दुनिया में बहुत बाद में शासकों ने किये. चलिए उनकी लिस्ट देता हूँ.
# चंगेज खान ने अपने राज्य में मुक्त व्यापार लागु किया.
# उसने डाक व्यवस्था शुरू की. उसके समय में व्यापारियों के अलावा भी लोग शुल्क देकर अपने सन्देश  भेज सकते थे.
# उसने लिखित कानून बनाया.कानून से बढ़कर कोई नहीं था. खुद राजा को भी कानून से बढ़कर नहीं था.कानूनी फैसलों के दस्तावेजों को वो संग्रहित करवाता था.
# उसने अपने राज्य में स्त्रियों के अपहरण पर पाबन्दी लगाकर स्त्रियों को सामान समान अधिकार दिए.
# राज्य में धर्म प्रचार की छूट थी.
# वो पडोसी राज्यों में दूतों  की नियुक्ति करता था.
# उसने चीन के अलावा हरेक विजित राज्य में शासन सञ्चालन का जिम्मा स्थानीय लोगों को दिया.
ऐसी शासन व्यवस्था को चलाने वाला बन्दा क्या बुरा शासक होगा.कट्टर होगा या जानता का बुरा चाहने वाला होगा?ऐसी शासन व्यवस्था तैयार करने वाला बन्दा क्या कम प्रतिभाशाली होगा.?
हकीकतन वो प्रतिभाशाली था भी मगर बाद में वो चीन का गुलाम हो गया और चीन ने उसके साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया. उसने उस महानायक जिसके सामने उसने घुटने टेक दिए थे. वो चीन के इतिहास का सबसे काला अध्याय था. उसने उस महनायक को बदनाम बदनाम करने के लिए अपने हिसाब से इतिहास लिखा. उस महानायक कि तमाम निशानियों को मिटा दिया. बाद में उसे रूस कि सह्गयता से आजादी भी मिली तो उसने भी वहां अपनी ही छाप छोडनी शुरू की. अब उसे जब मंगोलिया का रुझान चीन कि तरफ जाता नजर आने लगा तो उसने उस देश के महानायक कि सुध लेनी शुरू कर दी. अब उसके इतिहास को दोबारा लिखा जाने लगा है और उसके महान कामों को सामने लाया जा रहा है.

Sunday, September 26, 2010

fact file4

फिल्म ` मुगल- ऐ-आजम'  के सीन को -जिसमे दिलीप कुमार मधुबाला के फेस पर नाजुक पंख फिरता है. उस सीन में दोनों को बेहद रोमांटिक expression निकालने थे के.आसिफ को पता था कि मधुबाला ऐसे सेन करने अपने पापा-अताउल्ला खान- के सामने सामने सहज नहीं हो पातीं थी. इसीलिए के. आसिफ ने एक आदमी को उसके पास भेजा. उसने अताउल्ला खान को दारु और जूए में उलझाए रखा, वो जानबूझकर हारता रहा. उसमे करीब २५ हजार रूपये खर्च हुए.
* एक पत्रिका को दिया साक्षात्कार में हंक रणदीप हुड्डा ने स्वीकार किया है कि वो आस्ट्रेलिया में एक लडकी के प्यार में पड़ा था, और गिगालो तक बनने के लिए तैयार हो गया था. उसका बयान-"आस्ट्रेलिया में ३-४ साल तक नायोबी नाम की लड़की से मेरा रिश्ता रहा ............मैंने तमाम तरह के ओड जोब्स  किये डोर-टू-डोर सेल्स, बार टेंडर, टेक्सी चलाने का काम .......मैंने गिगोलो तक बनने कि कोशिश की जिसके तहत एजेंट ने मुझे एक जोड़े के पास जाने को कहा और मैं तुरंत चिल्ला पडा कि ये क्या बकवास कर रहे हो? फिर मैं उसे थैंक्यू वैरी मच कहकर वहां से चलता बना"
*१८९८ ई० में १२०० रूपये के बदले अंग्रेजों को  सुतुनुती, कलिकता,और गोविंदपुर नामक तीन गांवों की जमींदारी मिल  गई  थी.

Saturday, September 25, 2010

डिग्री जरूरी या ज्ञान

सफलता को हासिल करने के लिए क्या चीज जरूरी है??????????
जब मैं छोटा था तो माँ पापा हमेश पढाई पर जोर  दिया करते थे. कहते थे कुछ बनना है तो खूब पढो. आगे बढ़ना है तो खूब पढो. मैं भी कोशिश करता था. ये  जुदा बात है कि मैंने पढाई में कोई तुर्रा नहीं जड़ा. ले दे कर स्नातकोत्तर भी हो गया. एक बार और कर लूँगा मजे मजे में, मगर  पक्की बात है कि  मेरी रोजी- रोटी में मेरी डिग्री का सहयोग ना के बराबर है. मुझे नहीं लगता कि आगे भी होने  वाला है. यार अगर सफल लोगों की जिन्दगी का पोस्टमार्टम किया जाये तो पता चलेगा कि वो जिस क्षेत्र में कामयाब हुए उसकी डिग्री उनके पास नहीं थी\है. कुछ के पास तो कोई डिग्री ही नहीं है. चलिए जितनो को मैं जानता हूँ उनकी लिस्ट आपके सामने प्रस्तुत कर देता हूँ.
*पहले अमिताभ बच्चन की बात करते है. भारतीय फिल्म उद्योग के इस  मेगा स्टार पास अभिनय कि कोई डिग्री नहीं है वो graduate जरूर है सुना है वो कोलकाता में जॉब करने के साथ स्टेज से जुड़े थे और बहुत बुरे एक्टर मने जाते थे( शायद उनकी तकनीक के हिसाब से )
* बिल गेट्स =>दुनिया का सबसे अमीर आदमी साक्षात्कार में स्वीकार कर चुका है कि उसे कॉलेज जाने का मौका नहीं मिला
* मुकेश अम्बानी => भारत के इस  सबसे अमीर आदमी  के पास bussiness  कि कोई डिग्री नहीं है. उसके पास कैमिकल इंजीनिअर कि डिग्री है. वो mba करने के लिए लन्दन गया जरूर था मगर एक साल बाद ही अपमे पिता कि मदद करने के लिए लौट  आया था.
* अनिल अग्रवाल =>इस भारतीय उद्योगपति के पास सिर्फ दसवी पास का सर्टिफिकेट ही है.
*अजीम प्रेमजी=> भारत के पूर्व सबसे अमीर आदमी के पास भी कोई bussiness की कोई डिग्री  नहीं है. वो bba करने के लिए लन्दन गए जरूर गए थे लेकिन पिता कि मौत कि वजह से बीच में ही लौट आए थे
 * सुरेन्द्र मोहन पाठक =>हिंदी के व्यावसायिक रूप से बेहद सफल लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक  B.Sc. पास है.
* राज कपूर => शो मैन के नाम जाने जाने वाले इस  फिल्म मेकर दसवीं फेल बत्ताए जाते है. उन्होंने फिल्म मेकिंग की पढ़ाई किसी भी संस्थान से नहीं की थी.
*कार्लोस स्लिम=> दूरसंचार किंग के पास गणित की डिग्री बताई जाती है.
* सम्राट अकबर=> इस महान शासक के बारे में सब जानते है कि वो अनपढ़ था.उसका खुफिया तंत्र बहरत के इतिहास में सबसे बेहतर माना गया. उसने कितने मजबूत शासक वंश कि स्थापना कि सब जानते ही है.
और कितने उदाहरण दूं यार मेरे जैसे ठप्प बन्दे को इतना पता है...........तो जब आप किताबें खंगालेंगे तो आपको बहुत सारे उदाहरण मिल जायेंगे.
असली बात ये है हनी कि अगर वो लोग बिना डिग्री के अपने काम में इतने सफल क्यों हुए ?????????????
अगर इस मुद्दे पर लिखा जाये तो पूरा ग्रन्थ लिखा जा सकता है लेकिन मैं ज्यादा स्पेस ना लेकर टू द पॉइंट बात करूंगा.
असल बात ये नहीं है कि जो लोग बिना डिग्री के ही सफल हुए इसका मतलब ये नहीं उन्हें ज्ञान नहीं था. उन्हें अपने कर्मक्षेत्र में गजब  का ज्ञान था.
अकबर भले ही अनपढ़ था मगर वो अपने पढ़े लिखे कारिंदों के ग्रंथो क पढवाकर  सुनता था ज्ञान कि उसमे बहुत बूख थी. कई ग्रन्थ तो उसके जुबानी ही याद थे.
अजीम प्रेमजी भी मार्केट में आई बिसनेस मेनेजमेंट की हर किताबको पढ़ते है.
ज्यादा बाल की खाल ना निकलते हुए मैं बस यही कहूँगा कि सफल होने के लिए उन लोगों ने जी तोड़ मेहनत की. जांमारी वाले कम किये. रिस्क लिए और नया करने कि कोशिश की.पुरानी मान्यताओं को टाक में रखकर नया काम किया. पता है जब हम कोई कोर्स  करते हैं तो हमे एक निश्चित पैटर्न पढ़ाया जाता है.वो पैटर्न भी कई साल पहले तैयार किया गया होता है और उसे बाद मैं कई सालों के बाद अपडेट किया जाता है. तब तक उस सब्जेक्ट मैं बहुत से बदलाव आ चुके होते है. दूसरी बात ये है कि कॉलेज के पढाई और प्रक्टिकल में जमीन आसमान का फर्क होता है. साथ ही संस्थान में पढ़ लेने के  बाद बन्दा अपने आप को पूर्ण समझने लगता है, इसी वजह से वो नयो चीजो को सीखना या तो बंद कर देता है या बहुत कम कर देता है. वो भूल जाता है कि आजकल लाइफ बहुत तेज है हर पल कोई ना कोई नयी खोज होती ही रहती है. बाजार में टिकने के लिए अपडेट करते रहना पड़ता है.........और मार्केट में आगे बढ़ते रहने के लिए खुद कोई ना कोई नया काम करते रहना होता है. कामयाब लोग वो ही करते है.
मेरा मानना है कि कामयाब होने के लिए डिग्री नहीं ज्ञान कि जरूरत होती है. साथ ही काम पर फोकस करना होता है. नया करते रहना होता है .........अगर नाकाम हो जाये तो भी प्रयत्न करते रहना होता है. लगतार मेहनत करते रहना होता है.जिस दिन थके समझ लो अप मार्केट से बाहर हो जाओगे.

Tuesday, September 21, 2010

चीन के फंदे

किसी ने एकदम सही कहा है कि चीन वो  दोगला देश है जो एक ओर दोस्ती कि बात करता है और दूसरी ओर षड़यंत्र रचता है. #१९४९ में चीनी समाजवादी गणतंत्र की स्थापना हुई तब भारत वो पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी. नेहरु जी उनसे सीने पर मोहब्बत की निशानी लाल गुलाब का फूल लगाकर गले मिले और उन्होंने उनकी पीठ में छुरा भोंका.
#२२  मई १९५४ को भारत-चीन के बीच एक अथ वर्षीय व्यापार समझौता  संपन्न हुआ, जिसके अंतर्गत भारत ने तिब्बत से अपने अतिरिक्त देशीय अधिकारों को चीन के हवाले कर दिया. इस प्रकार भारत पर चीन की संप्रभुता स्वीकार कर ली और
तिब्बत के यांतूग व ग्वान्ग्त्सी क्षेत्र से अपनी सेनाए तैनात करने का अधिकार छोड़ दिया तथा सीमा पर व्यापर एवं तीर्थ यात्राओं के विषय में नियम निर्धारित करना स्वीकार कर लिया
जून १९५४  को चीनी प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई भारत आया और पंचशील समझोता सम्पन्न हुआ.
साथ ही जुलाई १९५४ को चीन ने भारत पर आरोप लगाया कि भारतीय सैनिको ने चीन के तथाकथित प्रदेश स्थित बूजे(बाराहुली) पर अवैध कब्ज़ा कर लिया है.
# अप्रैल १९५५ में एशियाई- अफ़्रीकी देशों के बांडुंग सम्मेलन में नेहरु व चाऊ-एन-लाई ने निकटतम सहयोग का प्रदर्शन किया.बाद में फार्मोसा( ताइवान)तथा क्वेंमोए और मासु द्वीपों पर चीन केदावे का भारत ने पूर्ण समर्थन किया बदले में चीन ने गोवा के प्रश्न पर भारत का साथ दिया था.
# १९५६ में तिब्बत के खाया क्षेत्र में चीनी दमन से आक्रोशित होकर विद्रोह फूट पड़ा जो १९५९ तक चलता रहा. इस विद्रोह को दलाई लामा का समर्थन प्राप्त था. चीनी सरकार द्वारा कठोरतापूर्वक विद्रोह के दमन के पश्चात दलाई लामा को भारत में शरण लेनी पड़ी. इस राजनीतिक शरण को चीन ने भारत की ओर से शत्रुतापूर्ण कार्रवाही बताया.
# १९५८ में चीन के एक प्रकाशन चाइना पिक्टोरिअल ने चीन के मानचित्रों में भारत के कुछ प्रदेशों को चीन  भू-भाग के रूप में जाहिर किया था. भारत ने आपत्ति जाहिर की तो चीन की साम्यवादी सरकार ने उन्हें कोमितंग सरकार के पुराने नक़्शे बताकर उनमे सुधार करने का आश्वासन दिया.
#२३ जनवरी १९५९ में चीनी सरकार ने अपने पत्र में भारत को लिखा कि दोनों के बीच कभी भी सीमा का निर्धारण नहीं हुआ है और तथाकथित सीमाएं चीन के खिलाफ किये गए साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है. इस प्रकार चीन ने मैकमोहन रेखा को अवैध बताते हुए इसे तिब्बत क्षेत्र के विरुद्ध आक्रमण कि ब्रिटिश नीति की उपज करार दिया.
    ८ सितम्बर १९५९ को औपचारिक रूप से भारत के लगभग ५०००० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीन के प्रधानमंत्री ने दावा प्रस्तुत किया.
    अक्तूबर १९५९ चीनी सेनाओं ने भारत के नौजवानों की कोंग्ला दर्रे के निकट, सीमा के इस और आकर, हत्या कर दी.
# १९६२ में चीन ने पाकिस्तान के साथ मित्रतापूर्ण समझौता किया और सितम्बर १९६२ में चीन ने भारत पर पूर्ण आक्रमण करने की घोषणा कर दी.
# वर्ष  १९९० में चीन की ओर से यह बात सामने आई कि यदि लद्दाख में चीन के कब्जे वाले भू-भाग पर यदि भारत चीन का अधिकार स्वीकार कर ले चीन पूर्वी क्षेत्र में मैकमोहन रेख को स्वीकार करने को तैयार है. 
# आज भी हिमालयी क्षेत्र में चीनी सेना पीपुल लीब्रेसन आर्मी द्वारा आक्रामक गश्त लगती है.सीमा रेखा का उलंघन किया किया जाता है.चीन अरुणाचल प्रदेश के तवांग को अपना क्षेत्र बताता है.सरकारी मीडिया में अब भी चीन कि ओर से भारत पर हमला जारी रखे है
चलिए आपको चीन के बारे में कुछ यात्थ्यों की जानकारी दे दूं .
चीन दुनिया की सबसे पुरानी चार सभ्यताओं में से एक है.देखा जाये तो इसकी महानता पर शक नहीं किया जा सकता भले ही उसे कभी नशेड़ियों और आलसियों का देश कहा जाता हो( यूरोपिअंस के द्वारा). मगर जानने वाले जानते हैं और मानते भी है चीन की सभ्यता एक महान सभ्यता रही है. दुनिया के चार महान अविष्कार चीन के हिस्से में आते है- कागज,कम्पस, बारूद,और मुद्रण.
माना  जाता है ...........चीन शब्द का सर्व प्रथम उपयोग १५५५ ई० में किया गया ये शब्द चिन से निकला जो मार्को पोलो द्वारा पश्चिम में प्रचारित किया गया. यह शब्द पारसी और संस्कृत के cina (चीन) और अंततः किन साम्राज्य से निकला(७७८ई० पू०-२०७ई०पू०), जो झोऊ वंशावली के समय चीन का सबसे बड़ा साम्राज्य था.
एतिहासिक रूप से चीन को सिना या सिनो सिने, कैथे, या  पश्चिमी देशों द्वारा सेरेन के नाम से जाना जाता है.चीन का अधिकारिक नाम प्रत्येक वंश के साथ बदलता रहा है और सबसे ज्यादा प्रचलित नाम झोंग्गुओं, जिसका अर्थ है-केन्द्रीय राष्ट्र अथवा मध्य राष्ट्र.
अब बात आज की करते हैं, आज..........
चीन का पूरा नाम है-peoples republic of china 
चीन की राजधानी है-बीजिंग
राजकीय भाषा- चीनी
देखा जाये तो भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा चीन ही है. हमने इसे हमेशा अपना भाई समझा मगर इसने हमे अपना कट्टर दुश्मन मन है और समय- समय पर इसका सुबूत भी  दिया है. इसका सबसे बड़ा सुबूत तो ये है कि ये भारत को चारों तरफ से   घेरने में लगा हुआ है. भारत के दुश्मनों से गठबंधन करता जा रहा है या हमारे पड़ोस में उन सरकारों को समर्थन दे रहा है जो भारत विरोधी है ( साथ ही उन्हें भारत विरोधी गतिविधियाँ करने मे मदद कर रहा है)
अगर हम study करें तो हमे हमेशा चीन की हर हरकत में भारत विरोधी atitude ही नजर  आयेगा.ऐसा नहीं है की इसने दोस्ती की बात नहीं  की..............दोस्ती की बात तो की लेकिन उसकी हर बात में एक चल होती है. जब भी इसने कुछ देने की बात की है तो उससे ज्यादा लेने की कोशिश की है.
चलिए अब चीन के उन फंदों पर नजर डाल लेते है जो चीन ने हमारे चारों तरफ लगाये है.
*विकास के नाम तिब्बत में रेलवे लाइन, हवाई अड्डे, हवाई पट्टी और सडकों का जाल फैलाकर वः इस स्थिति  में आ गया है कि चीन भारत पर सम्भाव्य हमला करने के लिए किसी भी समय सेना और रसद के साथ हमारी सीमा के निकट पहुंच सके.
* वो वास्तविक नियंत्रण रेखा और भारतीय सीमा तक चार हाइवे बना चुका है. ये चारों => पूर्वी हाइवे, पश्चिमी हाइवे, केन्द्रीय हाइवे,और यूनान तिब्बत हाइवे के नाम से जाने जाते है.
* भारत नेपाल सीमा में पथ लाहीन से बांग्लादेश सीमा के काकर मिट्ठा  क्षेत्र यक फौर लेन ट्रेफिक पथ का निर्माण चीन द्वारा किया जा चुका है.
*तिब्बत क्षेत्र में अपने हवाई अड्डो एवं हवाई पट्टी के लम्बाई ३००० फीट से बढाकर ९००० फीट कर दी है. सशस्त्र सेनिकों और मिसाइलों कि तैनाती वो पहले ही कर चुका है. १००० किलोमीटर रेंज वाली मिसाइलों से वो भारत के किसी भी शहर को आसानी से निशाना बना सकता है.
* गंगा को छोडकर एशिया की अन्य बड़ी नदियों उदगम तिब्बत में है. खेती और बड़े उद्योगों के लिए चीन और बहरत दोनों को पानी की जरूरत बढती जा रही है. तिब्बत से निकलने वाली अधिकाश नदियों पर चीन बांध बनाने में जुटा है. केवल सिन्धु ( पाकिस्तान से होकर भारत पहुंची है) और सालवीन (म्यांमार और थाईलैंड से होकर गुजरती है) पर उसने कोई योजना शुरू नहीं की है. वो ब्रह्मपुत्र नदी का रुख अपनी ओर मोड़ना चाहता है. तिब्बत में यारलंग तसाग्यो और चीन में येलूजेम्वू के नाम से प्रसिद्ध यह नदी पूर्वोत्तर भारत के राज्यों और बंगलादेश को को जीवन प्रदान करती है. इस परियोंजा के शुरू होते ही पूर्वी राज्यों और बंगलादेश का पर्यावरण संतुलन बिगड़ जायेगा. नदी का रुख मोड़ने के लिए वी परमाणु विस्फोट का भी सहारा लेने के लिए तैयार है.
अब बात करते हैं उन फंदों की जो चीन हमारे पड़ोसियों  के साथ मिलकर हमारे काह्रों तरफ लगा  रहा है .
नेपाल=> नेपाल में माओवादियों की पीठ पर चीन का हाथ है ये बात तो सब जानते है. और सब ये भी जानते है कि वो उन्हें सपोर्ट इसी वजह स है कि माओवादी भारत के खिलाफ है. आर्थिक विकास के नाम चीन नेपाल को माओवादियों का अड्डा बना चुका  है. नेपाली माओवादी भारतीय नक्सलवादियों के साथ मिलकर दक्षिण भारत तक रेड कोरिडोर का निर्माण करना चाहते है. पिछले तीन सालों में २० हजार चीनी नागरिक नेपाल में घुसपैठ कर चुके है और भारतीय सीमा के निकट उनके कई ठिकाने बन चुके है. उन्हें चीनी खुफिया एजेंसी ग्यान्वु ने प्रशिक्षित किया है.
पाकिस्तान =>१९६२ के बाद से  चीन द्वारा भारत को घेरने के लिए बनी नीतियों में  अलग  भूमिका निभाई है. चीन पाकिस्तान की उस हर नीति का समर्थन करने लगा जो कि भारत विरोधी हो या  भारत को क्षति पहुँचाने वाली हो चीन-पाकिस्तान गठबंधन के मुख्य कारण थे------१. भारत कि शक्ति को कम करना. २.विश्व परिद्रश्य में भारत की छवि को धूमिल करना ३. हथियारों के लिए नया बाज़ार हासिल  करना ४.अमरीका के प्रभाव को कम करना
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी चीन के हथियारों पर यकीन करते है.
मुंबई हमले के मुद्दे पर वही संयुक्त राष्ट्र संघ में दो बार अपने वीटो का इस्तेमाल करके भारत के उस प्रस्ताव को रोक चुका है जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के जमात-उल-दावा को आतंकवादी संगठन घोषित करना था.
हिंद महासागर तक पहुँच बनाने के लिए चीन पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को आधुनिक तकनीक द्वारा सी पोर्ट के रूप मे विकसित कर चुक है
बांग्लादेश=>इस देश को भी चीन आर्थिक सहायता देकर अपने नियंत्रण में लेना चाहता है अवैध बांग्लादेशियों का असम में प्रवेश और जेहादी आतंकवाद  जैसे मुद्दों पर भारत एवं बांग्लादेश के बीच के विवाद को चीन ने सामरिक फायदे के लिए भुनाया है बंगलदेश को सबसे ज्यादा हथियार चीन ही देता है. बांग्लादेश का काक्स बाज़ार और चटगाँव को चीन बंदरगाह के रूप में विकसित करने में लगा है. यहाँ से चीन बांग्लादेश के प्राक्रतिक भंडारों पर शिकंजा मजबूत करने के साथ ही हिंद महासागर तक आसानी से आ सकेगा.
श्री लंका > चीन ने श्री लंका के हब्बान टोटो को सी हार्बर के रूप में विकसित करने के लिए २००७ में समझौता किया है .
मालदीव =>मालदीव में पाकिस्तान ने इस्लामिक कार्ड खेलकर मालदीव के मराओ द्वीप पर चीन को सैनिक अड्डा बनाए जाने की वश्यकता  को को पूरा किया.
म्यांमार=>चीन ने कोको द्वीप व अन्य द्वीपों को म्यांमार से पट्टे पर लेकर वहाँ शक्तिशाली संचार और खुफिया तंत्र विकसित कर रखा है. बंगाल की खाड़ी में स्थित यह कोको द्वीप भारत के केंद्र शासित प्रदेश अंडमान निकोबार द्वीप समूहों से मात्र १८ किलोमीटर की दूरी पर है. म्यांमार का पैगोडा पॉइंट चीन का महत्वपूर्ण सप्लाई केंद्र बन चुका है. म्यांमार का ३\४ मिलिट्री हार्डवेयर  चीन से ही प्राप्त  करता है. अपने संबंधों के कारण ही चीन को हिंद म्यांमार के जरिये महासागर तक पहुँचने का मार्ग मिला है. चीन की इस घुसपैठ के कारण बंगाल की खाड़ी में स्थित ५७२ द्वीपों वाले अंडमान निकोबार द्वीप समूह का अस्तित्व खतरे में है.
     आर्थिक क्षेत्र में भी चीन भारत को घेरने में लगा हुआ है. भारतीय उत्पादों के मुकाबले के मुकाबले ७०% तक सस्ते चीनी उत्पादों की भारत में डम्पिंग हो रही है जिससे छोटे एवं माध्यम दर्जे के उत्पादकों को भरी नुक्सान हो रहा है. चीनी खिलौना उद्योग के हमले से भारत के सैंकड़ों खिलौना कम्पनियाँ बंद पड़ी है. भारत में चरम ऊंचाई तक पहुंचे औषधि उद्योग व्यापर को नुक्सान पहुँचने के लिए नकली दवाइया बनाकर और उनपर मेड इन चाइना का लेबल लगाकर उन्हें दुसरे देशों में बेच रहा है.
आज्नकी तारीख में हर भारतीय पाकिस्तान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है मगर हकीकत  ये है की हमारा सबसे बड़ा दुश्मन चीन है. सबसे बड़ा दुश्मन वो होता है जो स्सबसे ज्यादा नुकसान देने वाला होता है. ये सही है कि सीधे तौर पर हमे सबसे ज्यादा नुकसान पाकिस्तान दे रहा है मगर उसे सपोर्ट अमेरिका और चीन कर रहे है. अमेरिका आज कि तारीख में उधर के घी पीकर जिन्दा है....ध्यातव्य है उसपर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का ही है. पाकिस्तान भले ही कुछ भी कर रहा हो मगर वो ख़त्म होने के लगर पर है. वो भले ही कुछ भी कहे मगर उसके  लोकतंत्र का अपहरण किया जा चुका है जो कि अब ख़त्म होने के कगार पर है. अब तक ख़त्म हो भी चुका होता अगर अमेरिका उसे टुकड़े ना डाल रहा होता. पाकिस्तान हमपर एक तरफ से हमला कर रहा है वो भी दूसरों के टुकड़ों पर पलकर. उसकी अपनी ही धरती पर इतने भस्मासुर पल रखे है कि वो ही उसे समाप्त करने पर तुले है. चीन ने हमे चारों तरफ से घेर रखा है अगर वो हमला  करता है तो उसकी में पॉवर और हथियार ही खर्च होंगे मगर इन्फ्रा उस देश का बर्बाद होगा जहा से वो हमला करेगा या भारत का होगा. जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्था कई साल पीछे  चली जाएगी. और चीन यही चाहता है. इसीलिए उसने भारत के चारों और इतने फंदे लगा रखे है.

Monday, August 23, 2010

अशनी बियानी says

अशनी बियानी सुपुत्री किशोर बियानी ने एक bussiness अखबार में दिए साक्षात्कार  में  कहा-" dont forget i am a Marawari.Even now, we use yesterdays left-over  vegetables for tomorows `parathas`. so i watch the cost in whatever i do"
=>क्या बात है!!!!!!!
कोई रात की सब्जी के परांठे खाकर अरबपति बन जाये तो क्या बुरा है यार............सीखो नालायको सीखो.

संसाधन का संरक्षण करना मारवाड़ियों से सीखो

Sunday, August 22, 2010

fact file3

* अमिताभ बच्चन का बायाँ कन्धा झुका होने कि वजह कोई स्टाइल नहीं है....उसकी वजह बाएं कंधे के ट्रेपियम को पकड़कर रखने वाली मांसपेशियां नहीं है.
बच्चन साहब ने अपने गले के ट्यूमर को निकालने के लिए स्टुडेंट लाइफ में एक  २ ऑपरेशन करवाए थे और तीसरा ऑपरेशन अपनी नौकरी के दौरान कोलकाता में करवाया था तब गलती से ऐसी नस कट गयी थी जो कंधे कि मांसपेशी को पकडे रखती है.
* `इन्कलाब' फिल्म में हाथ में बंधा रुमाल कोई स्टाइल नहीं थी बल्कि कुछ दिन पहले बच्चन साहब का ऑपरेशन हुआ था और हाथ पर बंधी पट्टी को छिपाया गया था
` शराबी' फिल्म में पूरी ज्यादातर फिल्म में हाथ जेब में था वो इसी वजह से था.
*१९८३ की विश्व विजेता टीम के manager पी. आर.मानसिंह ने एक पत्रिका को दिए intervew में टीम के लोगों के द्वारा adult फिल्म देखने की बात स्वीकार की है.
घटना इस प्रकार है......"प्रेक्टिस के बाद लड़के बस से होटल जा रहे थे. बस में विडियो पर  adult फिल्म देख रहे थे . अचानक हमे साइरन की आवाज सुनाई देने लगी देखा तो ट्रेफिक पुलिस की कई गाड़ियाँ हमारी बस के आगे पीछे थी. लडके घबरा गये .............झटपट लड़कों ने केसेट, वीडियोबंद करके, छुपाई"

Thursday, August 19, 2010

किसपर यकीन करें?

 आज मैने शहादत हसन मंटो साहब कि एक कहानी पढ़ी नाम था ` खुदा कि कसम` एक बदनाम लेखक के द्वारा लिखी गयी मार्मिक उस कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. गजब की मर्मस्पर्शी कहानी वो भी उस इंसान के द्वारा लिखी गयी जोअपनी गन्दी कहानियों के लिए बदनाम है.................ये अलग बात है उनकी इज्जत काफी है.और उनके काफी प्ले भी खेले जाते है. कहानी इस प्रकार है ......... एक गरीब औरत बंटवारे के बाद अपनी बेटी को तलाश करती फिर रही है . नायक यसे समझाता है की उसे मार दिया गया है(ताकि वो भटकना बंद कर दे)मगर वो नहीं मानती है क्योंकि उसका मन्ना है की उसकी बेटी इतनी ख़ूबसूरत है कि कोई भी उसे मरने के बजाये उसे अपने पास रखना पसंद करेगा. ....................अंत में जब बुढिया की हालत बेहद ख़राब हो जाती है तो एक  बेहद हसीं लड़की एक मर्द के  साथ आती है मर्द उस लड़की को उस बुढिया की ओर इशारा करके बताता है -' तुम्हारी माँ'.  लड़की उसे जबरन वहां से ले जाती है.  अपनी माँ से बात तक नहीं करती. बुढिया लड़की को पहचान लेती है और  उसके बारे में नायक को बताती है. मगर नायक के मन में लड़की के लिए कडवाहट पैदा हो चुकी होती है  और वो बुढिया से कहता है कि  उसकी बेटी सचमुच क़त्ल की जा चुकी है ये बात वो खुदा की कसम खाकर कहता है. वो बुढिया तत्क्षण मर जाती है. वास्तव में बेइंतेहा प्यार करती थी वो माँ अपनी बेटी को........और बेटी इतनी पत्थर दिल निकली कि  उसकी खस्ता हालत देखकर नजर फेरकर निकल गयी.  उसकी माँ की पुकार सुनकर भी नहीं रुकी. वैसे ये नोर्मल है कि माँ बाप बच्चों के लिए बहुत कुछ करते है मगर बच्चे उनके केयर नहीं करते ...........पर इस कहानी को पढ़कर अपने एक दोस्त कि याद आ गयी. उसकी कहानी ज़रा हटकर है. शायद अजीब सी और कडवी भी.
वो अपने परिवार से बेइंतेहा प्यार करता है. बचपन में अपनी माँ कि बड़ी सेवा करता था कोई बहन नहीं थी. कहता था कि माँ को बेटी की कमी महसूस नहीं होने दूंगा. घर के सारे काम करता था लगा रहता था कभी कोई डिमांड नहीं `ऐसे कपडे चाहियें .........ये खाना है` बस दस साल की उम्र में बर्तन साफ़ करता, झाड़ू लगाता,घर में मिटटी लीपता था, पापा के कपडे धुलता था, घर का कूड़ा और गोबर जब सिर पर रखकर घर से निकलता था तो गली की की लडकिय मजाक उड़ाती थी पर उसे कभी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो ये काम अपने परिवार के लिए करता था अपनी माँ की सेवा करता था अपनी माँ के लिए बेटी की कमी को पूरी कर रहा था. दादी पापा खाना कहा लेते थे मगर उसे खाना काम निबटने के बाद ही मिलता था. लाइफ आगे बढ़ी, उसका परिवार बिखरने लगा था. कहते है मेहनती आदमी पर देवता भी मेहरबान होते है उसपर भी सरस्वती मेहरबान थी लोग कहते थे कुछ बन जायेगा. जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी उसे लगा उसके परिवार को उसकी ज्यादा जरूरत है. लोग अपन भविष्य के बारे में सोचते है वो अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचने लगा. हर वक़्त दिमाग में परिवार को एक करने की उलझन रहती थी. इंटर की दोस्त जॉब की तैय्यारियों में लग गए और वो बस ये सोचने में लगा रहता था कि परिवार को एक साथ लेकर कैसे आगे बढूँ. दोस्त कहते कि फॉर्म डाल मगर वो कहता कि graduation के बाद डालूँगा. उसे डर था कहीं परिवार बिखर न जाये. ऐसा नहीं था कि परिवार पर पूरी तरह निर्भर था. थोडा बहुत कमाने भी लगा था. उसी से अपनी पढाई जारी रखे था. फिर लाइफ का सबसे तकलीफ भरा वक़्त आया. उसकी माँ बीमार हुई. हालत लगातार खराब होती जा रही थी माँ की.लग रहा था कि बच नहीं पायेगी. तब माँ से अकेले में बात हुईआज मैने शहादत हसन मंटो साहब कि एक कहानी पढ़ी नाम था ` खुदा कि कसम`
एक बदनाम लेखक के द्वारा लिखी गयी मार्मिक उस कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. गजब की मर्मस्पर्शी कहानी वो भी उस इंसान के द्वारा लिखी गयी जोअपनी गन्दी कहानियों के लिए बदनाम है.................ये अलग बात है उनकी इज्जत काफी है.और उनके काफी प्ले भी खेले  जाते है.
कहानी इस प्रकार है .........
एक गरीब औरत बंटवारे के बाद अपनी बेटी को तलाश करती फिर रही है . नायक यसे समझाता है की उसे मार दिया गया है(ताकि वो भटकना बंद कर दे)मगर वो नहीं मानती है क्योंकि उसका मन्ना है की उसकी बेटी इतनी ख़ूबसूरत है कि कोई भी उसे मरने के बजाये उसे अपने पास रखना पसंद करेगा. ....................अंत में जब बुढिया की  हालत बेहद ख़राब हो जाती है तो  एस बेहद हसीं लड़की एक मर्द क्वे साथ आती है मर्द उस लड़की को उस बुढिया की ओर इशारा करके बताता है -' तुम्हारी माँ'
लड़की उसे जबरन वहां से ले जाती है अपनी माँ से बात तक नहीं करती. बुढिया लड़की को पहचान लेती है ओर उसके बारे में नायक को बताती है. मगर नायक के मन में लड़की के लिए कडवाहट पैदा हो चुकी होती और वो बुढिया से कहता है की उसकी बेटी सचमुच क़त्ल की जा चुकी है ये बात वो खुदा की कसम खाकर कहता है.
वो बुढिया तत्क्षण मर जाती हैवास्तव में बेइंतेहा  प्यार करती थी वो माँ अपनी बेटी को........और बेटी इतनी पत्थर दिल निकली की उसकी खस्ता हालत देखकर नजर फेरकर निकल गयी उसकी माँ की पुकार सुनकर भी नहीं रुकी वैसे ये नोर्मल है कि माँ बाप बच्चों के लिए बहुत कुछ करते है मगर बच्चे उनके केयर नहीं करते ...........पर इस कहानी को पढ़कर अपने एक दोस्त कि याद आ गयी. उसकी कहानी ज़रा हटकर है. शायद अजीब सी और कडवी भी
वो अपने परिवार से बेइंतेहा प्यार करता है.
बचपन में अपनी माँ कि बड़ी सेवा करता था. कोई बहन नहीं थी. कहता था कि माँ को बेटी की कमी महसूस नहीं होने दूंगा. घर के सारे काम करता था.हर वक़्त  लगा रहता था.  कभी कोई डिमांड नहीं `ऐसे कपडे चाहियें .........ये खाना है`
दस साल की उम्र में बर्तन साफ़ करता, झाड़ू लगाता,घर में मिटटी लीपता था, पापा के कपडे धुलता था, घर का कूड़ा और गोबर जब सिर पर रखकर घर से निकलता था तो गली की की लडकिय मजाक उड़ाती थी पर उसे कभी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो ये काम अपने परिवार के लिए करता था. अपनी माँ की सेवा करता था. अपनी माँ के लिए बेटी की कमी को पूरी कर रहा था. दादी पापा खाना कहा लेते थे मगर उसे खाना काम निबटने के बाद ही मिलता था.
 लाइफ आगे बढ़ी, उसका परिवार बिखरने लगा था. कहते है मेहनती  आदमी पर देवता भी मेहरबान होते है उसपर भी सरस्वती मेहरबान थी लोग कहते थे कुछ बन जायेगा. जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी उसे लगा उसके परिवार को उसकी ज्यादा जरूरत है. लोग अपन भविष्य  के बारे में सोचते है वो अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचने लगा. हर वक़्त दिमाग में परिवार को एक करने की उलझन रहती थी. इंटर की दोस्त जॉब की तैय्यारियों में लग गए और वो बस ये सोचने में लगा रहता था कि  परिवार को एक साथ लेकर कैसे आगे बढूँ. दोस्त कहते कि फॉर्म  डाल मगर वो कहता कि graduation  के बाद डालूँगा. उसे डर था कहीं उसके दूर जाने  के बाद परिवार बिखर न जाये.उसकी जॉब लगती तो उसे घर से दूर जाना ही पड़ता. ऐसा नहीं था कि परिवार पर पूरी तरह निर्भर था. थोडा बहुत कमाने भी लगा था. उसी से अपनी पढाई जारी रखे था.
फिर लाइफ का सबसे तकलीफ भरा वक़्त आया. उसकी माँ बीमार हुई. हालत लगातार खराब होती जा रही थी माँ की.लग रहा था कि बच नहीं पायेगी. तब माँ से अकेले में बात हुई. तब माँ ने कहा-"मेरे बाद तेरे भाइयों और पापा का क्या होगा मुझे बस इसी बात कि चिंता है"
तब उसकी समझ में ये नहीं आया कि उसकी माँ के लिए उसकी importance ही नहीं थी या माँ को उसपर ज्यादा यकीन था.
तब उसने अपने बचपन के बारे में सोचना शुरू कर दिया.
पता है बचपन में वो बड़ी शिद्दत से काम करता था तो हमेशा ही ये मानकर चलता था कि उसे कोई मदद नहीं मिलने वाली वो परिवार के लिए जो भी कर ले उसको कोई return मुश्किल ही मिलेगा. पर तब भी यकीन था कि अगर वो टूटकर बिखरने लगा तो कोई कुछ भी करे उसकी माँ जरूर उसे कहेगी-"डर मत, मैं हूँ ना." उसे यकीन था कि भले ही कभी उसने उसकी केयर ने कि हो मगर अगर वो कमजोर पड़ने लगा तो माँ उसका सिर गोद में रखकर जरूर कहेगी-"चल थोडा आराम कर ले"
मगर उसके आखरी टाइम में जब उसने उसके लिखे चिंता जाहिर नहीं कि.............उस हालत में जब वो sattled नहीं था, जॉब नही थी, माँ के गुजर जाने के बाद के बाद घर कि सारी जिम्मेदारी उसी पर आ जानी थी. कोई उसे suport नहीं करता. उसके मोहल्ले वालों  तक  को इस बात का इल्म था मगर माँ को उसकी चिंता नहीं थी. क्यों?कुछ भी हो उसके बाद सच में टूट सा गया.उसे लगने लगा जैसे माँ भी उसे इस्तेमाल कर रही थी. उसने मुझसे पूछा-"यार जिस ओरत के लिए मैं बेटे से  बेटी बन गया......अपना भविष्य तक दांव  पर ही लगा दिया. अपनी लाइफ को मुश्किल बना दिया- उसकी ख़ुशी के लिए ही तो ना. जब उसी ने मेरी केयर नहीं कि तो कौन करेगा?"
सच में मेरी समझ में नहीं आया कि उसे तसल्ली कैसे दूं?
मेरी समझ भी ये नहीं आया कि उसकी ईमानदारी में क्या कमी रह गयी ही कि उसकी केयर नहीं की गयी ?
शायद ये चीज important है ही नहीं कि हम किसी को कितना चाहते है और उसकी कितनी केयर करते है? हर आदमी बस उसी कि केयर करता है जिसे वो चाहता है.हम किसी से कोई भी उम्मीद बस इस वजह से नहीं कर सकते कि हम उसे बेहद चाहते है.

Friday, July 23, 2010

अद्भुत भूटान

अगर किसी देश का शासक कहे-"हमारे लिए जितनी महत्वपूर्ण लोगों की खुशहाली है उतना देश का सकल घरेलू उत्पाद(G.D.P.) नहीं है।"-----तो अजीब सा लगता है।हालाँकि कुछ अर्थशास्त्री भी सकल घरेलू उत्पाद से ज्यादा जनता कि खुशहाली को महत्व देते है. जैसे-हार्वे, लिविन्सतीन, हिंगिस आदि. ध्यान देने वाली बात ये है कि ये बात एक निरंकुश शासक कहता है. 
और ज्यादा अजीब-सा लगता है किसी देश की जनता को ये लगता हो कि लोकतंत्र ली स्थापना से देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है, सत्ता से अछूते लोगो को सत्ता का स्वाद मिल जायेगा और वो सत्ता के लिए लड़ने लगेंगे।
बचपन में जब सुना कि भूटान में कोई सिनेमा नहीं है तो बड़ा अजीब सा लगता था कितना बेकवर्ड देश है। बाद में पता चला कि वहां पर एक सिनेमा बन गया है। २००५ के आस पास पता पता चला कि वहा के राजा ने बड़ी ही बहादुरी से वहा के उग्रवादियों को काबू में किया।
दरअसल  इस देश के  बारे में मुझे बहुत कम जानकारी है.......मुझे ही क्या ज्यादातर लोगों को कम ही जानकारी होगी. उसकी वजह ये है क्योंकि  ये देश खबरों में कम ही रहता है.बेसिक जानकारी
# नाम का अर्थ-संस्कृत में -भू+उत्थान =ऊंची भूमि
                      अन्य मन्यता- भोग+अंत= तिब्बत का अंत
                     *यहाँ के मूल निवासी इसे द्रुक-युल यानी ड्रेगन का देश कहते है.
#मूल निवासी -गांपोक, जिनता सम्बन्ध तिब्बत से है.           
                    उसके बाद नेपाली हिन्दुओं की बहुलता है.           
                    उसके बाद शरपोच और ल्होतशांप आते है             
                   *यहाँ के निवासियों को द्रुपका कहा जाता है
#राजधानी-    थिम्पू




#आधिकारिक धर्म - बौध (महायान शाखा)
                              १७ वी सदी में बौध धर्म को अंगीकार किया.




#आधिकारिक भाषा -जोंगखा ( Dzonkha)
# मुद्रा - डुल्त्र्म
तथ्य
*१८६५ में भूटान और ब्रिटेन के बीच 'सिनचुल संधि' पर हस्ताक्षर किये गये. जिसमे तय किया गया कि भूटान के सीमावर्ती भूभाग के बदले वार्षिक अनुदान का करार किया गया.
*१९०७ में वर्तमान राजशा ही अंग्रेजों कृपा से स्थापित की गयी. १९१० में एक समझौता किया गया जिसके तहत ब्रिटेन भूटान के आन्तरिक मामलो में दखल नहीं देगा परन्तु उसकी विदेश नीति इंग्लेंड द्वारा तय की जाएगी
      १९४७ ई० के बाद ये भूमिका भारत को को मिल गयी. १९४९ में भारत ने - जो इन्गलैंड के अधीन थी-साडी जमीन भूटान को लौटा दी
हिमालय कि गोद में बसे इसदेश को मैं अद्भुत ही कहूँगा. किसी  देश में  बिना संविधान के सफल शासन हो रहा हो( ध्यान  दें वहां बोध मान्यताओ के अनुसार शासन किया जाता था) अब सुना है वहां संविधान तय कर दया गया है. सबसे बड़ी बात है उस देश के नागरिक संतुष्ट थे.
हमारे रिश्ते  
सब जानते  मैं एक कमीना इंसान हूँ हमेशा ही दिमाग से सोचता हूँ. मैं मानता हूँ कि भूटान में लोकतंत्र का आना सैधांतिक रूप से ठीक है मगर सोचने वाली बात ये है कि उसका हमे कितना फायदा होगा?
एक बात तो भूटान के लोगों ने ठीक सोची थी कि लोकतंत्र के आने के बाद वहां पर सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो जायेगा. सत्ता के लिए लोग कुछ भी करने लगेंगे. मुझे  लगता है हमे थोडा सतर्क हो जान चाहिए. पहले सत्ता एक आदमी के पास केन्द्रित थी और वो भारत का समर्थक था- अब वो बिखर चुकी है इसका फायदा चीन जरूर उठाएगा और उन लोगों को सत्ता पर काबिज करने कि कोशिश करेगा जो भारत का विरोध करते है. वो भूटान में राजनैतिक  उथल-पुथल भी मचाने कि कोशिश करेगा.ऐसा नहीं है कि वो भी समस्याओं से अछूता है जातिवाद को लेकर वहां भी दिक्कत है. वहाँ भी कई जातीय निवास करती है वो अपने बन्दे को सत्ता में लाने कि कोशिश जरूर करेगी. चीन उस फूट का फायदा जरूर उठाना चाहेगा.  हो सकता है वो भूटान को भी पाकिस्तान और बांग्लादेश कि तरह इस्तेमाल करे.

Wednesday, June 30, 2010

दो मुहें सांप

मैं शक्ल से ही ढक्कन नजर आता हूँ कई बार इसका बड़ा फायदा मिलता है। कम पढता हूँ पर कभी कभार दिमागमें कीड़ा उभर जाता है तो अग्रवाल भाई साहब की दुकान पर जाकर पढने लग जाता हूँ। उस दिन भी मैं एक साइड में बैठा पढ़ रहा था तब एक मुस्लिम अंकल वहां आये और अग्रवाल भाई साहब से बात करने लगे। इस्लाम का मतलब बताने लगे। मुझे बातें ठीक- ठाक लगीं मगर इरादा सही नहीं लगा। मुझे लगा अग्रवाल भाई साहब फंस चुके थे। सो मैं कुर्सी पर से उठकर उनके पास को  खिसक गया। इस्लाम दुनिया का सबसे पुराना धरम है...... इस्लामये कहता है...........इस्लाम वो कहता है..........इस्लाम हिंसा विरोधी है.....इस्लाम कभी किसी को किसी की जमीनपर नमाज तक अदा करने की इजाजत नहीं देता.....।
उस बीच उन साहब ने मुझसे-" क्यों मैं ठीक कह रहा हूँ  न?"- खाकर मेरा समर्थन लेना चाहा।
तब मैंने-" मुझे इतनी अक्ल  होती तो मैं वहीँ कुर्सी पर ही बैठा रहता, आपके पास आपकी बात सुनने के लिए नहीं आता। मैं तो आपसे जानकारी लेने के लिए उठकर यहाँ आया हूँ। "- कह दिया।
उन्होंने बात आगे बढ़ाई  -जरूरी नहीं जो इस्लाम को मानता  हो सच में ही मुसलमान हो..........मुसलमान वो है जिसका ईमान सच्चा हो.......वगैरा-वगैरा।
उस समय मैंने एक सवाल किया - " अंकल एक बात मेरी समझ में नहीं आई। इतिहास गवाह है कि जब मुस्लिम शासक भारत में आये तब उन लोगों ने हिन्दू मंदिर तुड़वाकर मस्जिदे बनवाई। वो जमीन तो हमारी हैं न अब हम अगर वहां दोबारा से मंदिर बनवाये तो गलत क्या है ?"
चचा जरा बोखला गए क्योंकि वो अपने ही जाल में फंस चुके थे। उनके पास कोई जवाब नहीं था। उसके बाद उन अंकल ने आल-बबाल बकना शुरू कर दिया जिसका कोई मतलब नहीं था। हकीकत ये थी कि अग्रवाल भाई साहब वहां अपना धंधा करने बैठे थे उन्हें तो ग्राहक की दस फालतू बातें सुननी पड़ती है- सो वो झेल रहे थे। मुझे लगा अगर उन अंकल की टांग  नहीं खीची गयी तो वो भाई साहब के दिमाग का बैंड बजा देंगे।

खैर, मुझे मंदिर मस्जिद के बनने से कभी कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मेरा मानना है की धर्म मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे,या किसी निश्चित धार्मिक जगह पर नहीं पनपता वो तो आचार-विचारों में पनपता है। मैं शायद उस बन्दे की बातों को ध्यान से भी सुनता और उनकी इज्जत करता अगर वो दूध का धुला होता। मैंने उन अंकल को कभी भी धार्मिक किताब खरीदते हुए या किराये पर ले जाते हुए नहीं  देखा है जबकि मैं वहां कई सालों से बैठ रहा हूँ मैंने उन्हें हमेशा क्राइम मैगज़ीन खरीदते ही देखा है( `मधुर कथाए' के तो वो रसिया है सुना है वो मस्तराम भी काफी पढ़ते थे जब वो उपलब्ध थी)
पता है सही बात सोच लेना बड़ा आसान है। सही बात करना भी आसान ही है मगर एकदम सही बात करना मुश्किल है क्योकि जब आप बात करते है आपके मन की हकीकत झलकती है बस कोई उसे पकड़ने वाला चाहिएऔर सही बात को व्यवहार में ले पाना बेइन्तहा मुश्किल।
बात मात्र एक मुस्लिम धर्म की नहीं है हकीकत तो ये है जो राजनैतिक पार्टी वहां मंदिर बनवाना चाहती है वो भीधर्म के लिए कुर्सी के लिए सब कर रही है। अगर उन नेताओं के इरादे नेक है तो वो अदालत में खड़े होकर सीना तानकर स्वीकार क्यों नही करते की वो कांड उन लोगों ने कराया था। वो क्यों मीडिया के सामने बैठकर मुस्लिम धर्म के उलेमाओं से इस बारे में सीधी बात नहीं कर लेते। अगर उनकी बात में दम है उन्हें सच में इतिहास और धर्म की जानकारी है तो क्यों मुंह छिपा रहे है? हकीकत तो ये है कि उन्होंने भी सही गलत के बारे में सोच ही नहीं- इतिहास, धर्म और देश के बारे में सोच ही नहीं। सोचा है तो बस कुर्सी के बारे में। कुर्सी मिली तो पाकिस्तान का विरोधी स्वर दोस्ताना हो गया। लोह पुरुष पिघल  गये और कंधार विमान काण्ड होते ही ९०० करोड़ रूपये देकरआतंकवादी को आजाद कर दिया। मजे कि बात है कि कोई भी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं।
मुद्दा एक ही धर्म का नही हर धर्म का है। यूरोप से जो लोग आए वो मात्र व्यापर के मकसद से नहीं आए उनका मकसद यहाँ अपना धर्म भी फैलाना था जब यहाँ उनका राज कायम हो गया तो लोगों को अपने धर्म में शामिलकरने की कोशिश तेज कर दी गयी वो १८५७ के नागरिक विद्रोह का मुख्य कारण भी बना। हर धर्म के ठेकेदार धर्म की  बात करते है मगर सम्प्रदाय के रास्ते पर चलते है। सब कहते है इश्वर एक है मगर दूसर के इश्वर का विरोध करते है।सबके भीतर गड़बड़िया है मगर वो अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करने के बजाये दूसरों पर कीचड उछालने में लगे रहते है। खुद सन्यासी जो समस्त मानवता कि सेवा का प्रण लेकर मानवीय एकता का प्रचार करने कि बात करते है वो ही कुम्भ के मेले में मार-काट मचाते है।केवल अपनी ताकत का प्रदर्शन करने केलिए। आप सत्संगों में जाओ । धर्म के नाम पर एक नए संप्रदाय की शुरुआत के निशान मिलेंगे।सबका ध्यान इतना समाज सेवा में नहीं जितना अपने ग्रुप को फ़ैलाने में है।
मेरे ख्याल से धर्म उनके ठेकेदारों के लिए एक धंधा होता है कुछ भी हो ज्यादा से ज्यादा प्रचार हों चाहिए भले ही उनमे कितनी भी कमी क्यों न हो। कुछ भी हो किसी भी तरह फोलोवर बढ़ने चाहिए। एक जुबान से एकता की बात करते है दूसरी जुबान से अपने मासूम लोगों के अन्दर सच्ची झूठी बातों में मसाला लगाकर जहर भरते है। जो लोग उन्हें स्मार्ट दीखते है वो उन्हें कभी भी छेड़ते है बस  उन्ही को ये दो मुहें लोग अपना टार्गेट बनाते है जो इन्हें ढक्कन नजर आते है या जो इनकी बात सुनते है। जैसे उन अंकल ने मुझे टार्गेट बनाने की कोशिश्की। ये बात जुदाहै उनका दांव मुझपर नहीं चला वैसे ढक्कन(कैयरलेस) बनकर रहने का भी अपना ही मजा है क्योंकि ऐसे लोगों केसामने लोग अपनी ओकात जल्दी दिखा देते है।

Monday, June 14, 2010

राजनीति- खोदा पहाड़ निकला चुहिया का बच्चा

मैने`राजनीति' देखी। सच बड़े ही अरमानों के साथ PVS में फिल्म देखने गया कि शायद कुछ ओरिजनल देखने कोमिल जाये। फिल्म की मार्केटिंग बध्गीय की गयी थी लेकिन जिसका प्रचार किया गया था वो चीज नहीं मिली।प्रचार किया ऐसे गया था कि जैसे पूरी फिल्म ही कटरीना के ऊपर टिकी हो मगर फिल्म देखने पर वो मुझे बस शोपीस से ज्यादा नजर आई। उसे हर जगह इस्तेमाल सा किया जाता रहा- या लिखूं इस्तेमाल ही किया जातारहा।बाप ने अपने व्यापार के लिए इस्तेमाल किया और उसकी शादी अर्जुन रामपाल से कर दी। बाद में रणबीरकपूर ने उसे राजनीति में उतारा ताकि उन्हें मुख्यमंत्री कि कुर्सी मिल सके। अरे यार जब सबकुछ है तो नेतागिरीकरनी जरूरी है क्या???? करनी भी है तो खुद करो ओरो को क्यों इसमें धकेला जाता है। मुख्यमंत्री पद के लियाजब नाना पाटेकर था तो कटरीना क्यों ????
यार मार्केटिंग के लिए बेस तो बना ही था न- वर्ना प्रकाश अंकल क्या कहते कि उन्होंने `गोडफादर' औरमहाभारत' कि कोकटेल हमें परोसी है ??????
मार्केटिंग का ही जलवा है कि प्रकाश अंकल ने केटरीना को फोकस में लेकर फिल्म में हवा बांध दी कि उसका चरित्रसोनिया गंधी से मिलता जुलता है, फिल्म पूरी तरह उसी पर टिकी है.....लोग थियेटर कि और भागने थे ही- भागेभी।असल में फिल्म में मास्टरमाइंड था समर (रणबीर कपूर) । पूरे करते है प्रोमो में केटरीना कॉटन की सदी मेंछाई रही,जबकि केटरीना का वो रूप मात्र कुछ मिनटों का था। १:३८ पर केटरीना का कोत्तों की सदी में पहला सीनआया और २:०७ मिनट पर मैं फिल्म ख़त्म होने के बाद PVS से बाहर उसकी पार्किंग के पास पहुँच चुका था।
` अब बात करते है गोडफादर से समानता की...........
* समर का चरित्र गोडफादर के माइकल कारलिओन से मिलता है।
वो भी माइकल की तरह अपने पारिवारिक काम से दूर रहता है।उसे भी अपने पिता पर हमले की खबर तभीमिलती है जब वो परिवार से दूर हो रहा है। ध्यान दें समर उसी सीन से पहले बताया यह की वो हमेशा के लिएअमेरिका में बसने जा रहा है।
वो भी बाद में बेहद क्रूर हो जाता है।
* प्रथ्वी( अर्जुन रामपाल ) का चरित्र सनी के जैसा है। गुस्से वाला। क्रूर।


कहानी में तो सीन दर सीन गोडफादर से मार रखे है जैसे-
*जिस तरह डोन कारलिओन जैक वाल्ट्ज़ के बेडरूम में रात को उसके सबसे प्यारे घोड़े खार्तूम की गर्दन काटकररखकर जैक वाल्ट्ज को अपनी बात मानने पर मजबूर करता है उसी तरह समरऔर मामा भी विरोधी ग्रुप केआदमी को उसके ` यार' का उसके बेडरूम में क़त्ल करके और उसके `अन्तरंग' पलों की तश्वीरें उसे दिखाकर उसेमजबूर करते है।
* समर के पिता का क़त्ल ठीक उसी तरह किया जाता है जैसे गोडफादर में सनी का किया गया था। जैसे सनी कोसनी को एक जगह पहुँचने के लिए निर्देशित किया गया और रास्ते में उसे रोककर क़त्ल किया गया ठीक उसीतरह समर के पिता का क़त्ल किया गया।
* जिस तरह गोडफादर में कार में ड्राईवर द्वारा बम प्लांट करके माइकल की हत्या की कोशिश में उसकी पहली पत्नीअपोलोनिया मरी जाती है उसी तरह समर की अमेरिकन गर्लफ्रेंड और उसका भाई प्रथ्वी (अर्जुन रामपाल) मारेजाते है।
*समर ठीक उसी तरह से दुश्मन के आदमी से अपने पिता के क़त्ल की साजिशकर्ता का नाम उगाल्वता है जैसेमाइकल ने कार्लो रित्जी से उगलवाया था।
और बाद में कार में प्यार से विदा करके कार में ही क़त्ल करवा दिया .........फर्क बस इतना है की कार्लो रित्जी कोगले में फंदा डालकर गला घोंटकर मारा गया था,` राजनीति' में बम लगाकर बन्दे को मारा गया था।
* समर को जब हॉस्पिटल में S.P. थप्पड़ मारता वो सीन भी गोडफादर से ही कॉपी किया गया है जब माइकल कोकैप्टन मैक क्लान्सकी थप्पड़ मारता है।


कुल मिलकर मुझे राजनीति ने पूरी तरह निराश किया। सोच था कुछ नया शानदार मिलेगा मगर उसे देखकर एकही बात दिमाग में आई कि खोदा पहाड़ निकला चुहिया का बच्चा .........चुहिया भी नहीं निकली यार।

Friday, June 4, 2010

सेक्स समाज और मीडिया

अभी नयी (मई के महीने की)` फेमिना' मैगजीन में तीन swinger couples के साक्षात्कार पढ़े- सच कहूँ तो मुझे कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि मेरी जानकारी में ये तत्थ्य है की ऐसे ऐब अब काफी चल रहे है। हालाँकि महिलाओ की मेग्जींस में सेक्स के टोपिक्स मिलना कोई नई बात नहीं है। हर मैगजीन में ये चल रहा है।
उदाहरण के लिए-
साथी मूड न होने का बहाना करे तो पूरी लाइट्स को बुझा दे व चुपके से न्यूड हो जाएँ या पारदर्शी वस्त्र पहन लें। उसके पास लेटकर ऐसी आवाजें निकालें जैसे आपको कोई प्रॉब्लम हो। साथ ही कोई पोर्न मूवी की सीडी लगा दें। जैसे ही वो लाईट ऑन करें तो वी.सी.डी. ऑन कर दें व उसे निमंत्रण दें.
गृहशोभा, अगस्त(द्वितीय) २००८
चेप्टर -१० लव गेम्स, पेज ३८-३९



ये तो कोई बड़ा उदाहरण नहीं है आप महिलाओं वाली मेग्ज़िन्स पढोआपको हर इशू में सेक्स से जुड़ा कोई न कोई चेप्टर जरूर मिलेगा।
हालांकि पढाई लिखाई के मामले में मेरा हाथ हमेश ही टाईट रहा है मगर थोडा बहुत कभी- कभार पढ़ भी लेता हूँ। चलिए मार्केट सर्वे देता हूँ। अब बात करते है दूसरी मेग्जिंस की- इंडिया टुडे, आउटलुक- साल में एक बार सेक्स सर्वे जरूर देती है। हरेक हेल्थ मेग्जिन में सेक्स के बारे एक चैप्टर जरूर होता है निरोग-धाम, निरोगी दुनिया जैसी मेग्जींस शादी के सीजन के शुरू होते ही एक सेक्स स्पेशल इशू जरूर निकालती है, उसकी कीमत भी ज्यादा रखती है, वो इशू हाथों हाथ बिकता भी है। मुझे अब तक कोई मैगजीन नजर ही नहीं आई जिसने सेक्स को न छुआ हो।हर प्रकाशक सेक्स के ऊपर किताब छापता है। जितना बड़ा प्रकाशक उतनी ही बोल्ड किताब। तकरीबन हर बुक स्टाल वाला सेक्स के ऊपर किताब रखता है। अगर बड़े लेवल का सेलर है तो आराम से `penthouse' ले लो बस आप विश्वास के आदमी होने चाहियों।
`cosmo' को पढो यार आपको कामसूत्र पढने की जरूरत ही नहीं है। उसका ` love nd lust' पढो। पार्टनर को खुश करने के सारे दांव पेंच आप सीख जाओगे। मजे की बात है साहित्यकार अपनी रचना में जनन अंगों का नाम तक लिख दे। तो बवाल मच जाये। समाज के ठेकेदार, महिला संगठन कार्यकर्त्ता आन्दोलन खडा कर दें मगर मुझे अभी तक ` cosmo' के खिलाफ-जिसमे ओरल सेक्स करने तक के तरीके बताये जाते है, किस जगह पर किस तरह किस आसन से सम्बन्ध बनाने चाहिए ,जिसमें लुब्रिकेंट्स को इस्तेमाल करने का तरीका बताया जाता है - आज तक कही आवाज उठी नजर नहीं आई। क्यों?? ये बात मेरी समझ में नहीं आई ।
अब सवाल ये है की वे सही है या गलत????


पता है लाइफ में किसी भी चीज की बुराई करना बड़ा आसान है मगर उस चीज की अच्छाई को समझकर उसका फायदा उठाना हर किसी के वश की बात नहीं है।
बात तब की है जब मैं १२वी क्लास में पढता था। तब मैं दिलजला टाइप का बंदा था। गंभीर रहता था। ये रोग मुझमे बचपन से ही था। अपने आप में मगन रहना। हालांकि अपने घर में और होस्टल रूम में प्रेंक्स किया करता था मगर बाहर चुप रहता था सचमुच मेरी गंभीरता मुझपर हावी सी होने लगी थी। दोस्त थे, मगर हर किसी के साथ मैं खुलकर बात नहीं करता था। तब मेरे एक टीचर ने मुझे मुझे सलाह दी कि मैं दोस्तों के बीच नोनवेज जोक्स शेयर किया करूं। मुझे लगा कि वो शख्स मुझे भटकाना चाहता है। मैने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। हकीकत ये भी है पागल तो था, स्ट्रेट फोरवर्ड भी था मगर वल्गैरिटी मेरी लाइफ में नहीं आई थी।फनी बात ये है जिसपर लाइन मारता था उसका नाम तक नहीं लेता था।
उसके बाद थोडा सा बड़ा हुआ व्यावसायिक राइटर बना तो हर चीज लिखनी पड़ी और मैने लिखी भी। वहां सब मुझसे काफी बड़े थे पब्लिशर के ऑफिस में बैठकर बातें होती थी तब बोल्ड बातें भी होती थीं। फिर अपने ही मूड से एक लव स्टोरी बेस्ड नोवेल लिखा। शादी के बाद के बेडरूम सीन्स में शैतानियों का डिस्क्रिप्शन किया......बिंदास किया और बाद में उसका सर्वे किया। उसका रेस्पोंस मेरे लिए हैरानी भरा था। उसे किसी ने भी गन्दा नहीं कहा। बल्कि मेरे प्रूफरीडर ने उसे घर ले जाकर अपने परिवार और दोस्तों को पढ़ाया। कुछ पत्र मेरे पास आये। मिस पारुल - जो अब शादीशुदा है शायद- उन्होंने मेरे भाव बढाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। तब मैने इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया। नोवेल को दोबारा पढ़ा- तब मैंने समझा _१- मैंने जो लिखा था वो गलत नहीं था(ये मैं पहले ही जानता था) २-हर सीन में लोजिक था। ३- मेरा शब्दचयन सटीक था, मैने लिखा सबकुछ था मगर चीप कुछ भी नहीं था।४- सबसे बड़ी बात थी मेरे नायक ने जो किया शादी के बाद किया, प्यार के चक्कर में पड़कर काम से अपना फोकस नहीं खोया, परिवार के मूल्यों का पालन किया(यही वजह थी की एक त्यागी जी ने उसे प्रेरणादायक नोवेल कहा )।
अगर घ्यान से देखा जाये तो समाज सेक्स को गलत नहीं मानता। उदाहरण के लिए आप शादी की तमाम रस्मो की स्टडी कर लो, सब रस्मो के मतलब समझने पर आपकी समझमे आ जायेगा । शादी के बाद दम्पति को अलग रूम दे दिया जाता है जब जोड़ा उस कमरे में होता है तब घर का कोई भी बंदा उस कमरे में जाने की कोशिश तक नहीं करता अगर जोड़े में से किसी से काम भी होता है तो उसे आवाज देकर बाहर ही बुलाया जाता है या उन्हें अपनी आमद की बाहर से जानकारी देकर ही उनकी इजाजत लेकर रूम में जाया जाता है।

सवाल सेक्स को गलत माना क्यों जाता है ?????????
हमें इससे बचने के लिए क्यों कहा जाता है?????

सच ये है की शारीरिक सुख हासिल करना कोई गलत नहीं मानता मगर कोई भी माँ-बाप ये नहीं चाहते की उनका बच्चा पतन के रास्ते पर चले। हर काम का एक सही वक़्त होता है। ये शारीरिक सुख ही है जो दम्पति को करीब लाता है, उनके रिश्ते का बोंड मजबूत करता है। इसके बिना तो दम्पति केवल एक दूसरे को मजबूरी में झेलते हैं। हर आदमी जानता है कि ये लाइफ की जरूरत है और मानते भी हैं कि ये जिन्दगी के तनावपूर्ण पलों के लिए सबसेशानदार टोनिक है, और हर आदमी इसका इस्तेमाल करता है। लेकिन उन्हें ये भी पता है कि इस राह में कितनीफिसलन है एक बार गिरे कि जल्दी से उठने का मोका नहीं मिलता।
सच लिखूं तो मैं शारीरिक स्वच्छन्दता का समर्थक नहीं मैं नहीं कहता कि हमें भी स्वापिंग जैसे काम करने चाहियेंया शादी से पहले ही ये सुख हासिल करना चाहिए हजारो सालो से हमारे पुरखों ने जो नियम बनाए है उनमे कोई तोबात होगी ही जो वो इतने सालों से समाज में टिके हैं। समाज के नियम बनाने वालो को पता था कि इंसान किजरूरतें क्या है ये हम ही है जो या तो सही जानकारी नहीं रखते और रस्ते से भटक जाते है या जानबूझकर ही उनसही बातो कि गलत व्याख्या देकर उनका इस्तेमाल अपने लिए करते है।

मैंने इस समाज में एक अजीब सा रिवाज देखा है -जो पावरफुल है वो कुछ भी कर सकता है उसके ऐब उसके शोक कहलाते हैं। जो शर्मदार है वो बस सही गलत के बारे में ही सोचता रह जाता है और बेशर्म अपनी तमाम ख्वाहिशें पूरी कर लेते हैं। नियम तो उनके लिए बनते है जो उन्हें फोलो करते है या तोड़ने से डरते है या इस सुकून से जीना चाहते है कि उन्होंने जिन्दगी भर किसी को अपनी तरफ ऊँगली नहीं उठाने नहीं दी।ताक़तवर हमेशा नियम बनाता है या बदलता है।बेशर्म कोई नियम फोलो नहीं करता वो तो बस नियम तोड़ने के तरीकों के बारे में और तोड़ने के बाद बहानो के बारे में सोचते है न कि दुनिया वाले क्या कहेंगे???

पावरफुल के खिलाफ कभी आवाज नहीं निकलती निकलेगी भी कैसे नियम तो उसी ने बनाए होते है या जब भी उसेकुछ अपने खिलाफ नजर आता है तो वो नियम ही बदल देता है या बदलवा देता है।
अंत में बस एक बात लिखूंगा जिन्दगी में आप कुछ भी करो, बस एक बात याद रखना समाज आज आपका है कलआपके बच्चो का होगा आप इसे जैसे बदलोगे वैसा ही आपके बच्चों को मिलेगा। याद रखना बाबू - शेर भी बूढा होता है, आप भी बूढ़े होओगे, हो सकता है ऐब करके पतन से बच जाओ मगर जरूरी नहीं कि आपके बच्चे भी आपजितने ही स्मार्ट हों, जब आपके भी बच्चे पतन के रास्ते पर चलेंगे तो आप उन्हें कैसे रोकोगे????
मीडिया का काम आज कि तारीख में खबरे बेचना हो गया है। सब व्यापार कर रहे है रे मामू तेरे को खुद हीसमझदार बनने को मांगता है समझदार बनजा बच्चा वर्ना अपने बच्चो को कैसे समझदार बनाएगा????
समाज तेरा है सोच ले कल को तेरे बच्चे तेरे से ये न कहे -` डैड तूने अपुन को कैसा समाज दिया है कि मेरे बच्चे ही डवलप नहिऊ हो पा रहे है'

Thursday, May 20, 2010

२६\११ का हीरो

तारीख-२६ नवम्बर २००८।
दस आतंकवादी समुन्द्र समा की चोकसी को भेदकर मुंबई के पार्क कफ परेड के सामने भंडारकर मच्छीमार कालोनी पहुंचे। ११ A.K.-47, 834 A.K.-47 कारतूस ६५ मैगजीन, १० पिस्तोल, २१ मैगजीन, ९५ कारतूस, ९ हथगोले २४ किलो RDX से लैस। एक चुस्त अचूक कुशल और जटिल योद्धिक कार्रवाही के लिए पूरी तरह तैयार।
वहाँ से वो जब अपना ख़ूनी तांडव शुरू करने के लिए निकले तो पूरी मुंबई ही नहीं, पूरा देश क्या पूरी दुनिया हिल गयी। शहर में मझगाँव डाकयार्ड और विले पार्ले इस में धमाका किया गया।इस पूरी कार्रवाही में १७३ लोग मरे जिसमे १०० भारतीय थे बाकि विदेशी थे, तकरीबन ३०८ लोग घायल हो गए। तारीफ़-ऐ-काबिल होसला हमारे जवानों ने भी दिखाया और बड़ी तेजी के साथ उस स्तिथि पर काबू पा लिया।
अगर इस हमले की समीक्षा की जाये तो साफ समझ में आता है कि ये एक फिदाइन हमला था उन दस लोगों का मकसद का इंडिया में आकर तबाही मचाना था तब ताका तबाही मचाते रहना था जब तक वो मर न जाएँ। वेसे इस सच को कसाब भी स्वीकार कर चूका है। ............ उनका मकसद था विदेशों में इंडिया कि छवि को धूमिल करना-ताकि वो इंडिया आने से, यहाँ व्यापार करने से डरें -जिससे इंडिया के पर्यटन और अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचे।इसीलिए उन लोगों ने विदेशियों को चुन-चुनकर मारा, ये कहकर मारा कि इंडिया अब उनके लिए सुरक्चित नहीं है। उनका मकसद सिर्फ तबाही मचाना ही नहीं था बल्कि लम्बे समय तक तबाही मचाना था ताकि वो मीडिया में छाए रहें और लोगों के दिलों में ज्यादा से ज्यादा डर पैदा हो। सच तो ये है कि वो अपने मकसद में काफ्ही हद तक कामयाब भी रहे थे।
सब जानते हैं की उसके बाद इंडिया के पर्यटन को कितना बड़ा धक्का लगा। दूसरे- जिस कदर इंडिया की प्लितिच्स में उथल पुथल मची थी ये सब जानते है। सबसे बड़ी बात ये है कि वो दस के दस हीरो बन चुके है। कैसे?????????
चलिए इस घटना को दूसरे नजरिये से देखते है। ........... दस `जांबाज' फिदाइन इंडिया कि सुरक्षा व्यवस्था को तोड़कर इंडिया की आर्थिक राजधानी में पहुंचे और वहां तबाही मचानी शुरू कर दी।जांबाजों ने ६० घंटों तक शहर की पुलिस और इंडिया की फोज को धता बताई और लगातार क़त्ल-ऐ-आम मचाते रहे। उन जाबांजो को काबू में करने लिए इंडिया की फोज को अपनी सबसे बेहतरीन टुकड़ी को लगाना पडा तब भी वो उन पर ६० घंटे तक भारी पड़े। उन्होंने सारे देश में दहशत की लहार पैदा कर दी। उन सबने अपने इस मिशन के लिए अपनी अपनी जान दे दी बस एक जांबाज जिन्दा बचा- वो जांबाज है आमिर अकमल कसाब। जिसकी सुरक्षा के लिए इंडियन सरकार २०० करोड़ रूपये हर महीने खर्च करती है.............ये सब जानकर कट्टरपंथी समुदाय के लोगों के लिए कसाब का कदकितना ऊंचा हो गया होगा-क्या ये किसी ने सोचा है??????? शायद लोग भूल गए कि ज्यादातर लोग उसकी ओर आकर्षित नहीं होते जो अच्छा काम करता है बल्कि उसकी ओर आकर्षित होते हैं जो बड़ा काम करता है। अपनेलिए नए फिदायीन तईय्यार करने के लिए हमारे दुश्मनों को कितना बड़ा सहारा मिला है शायद ही किसी ने सोचाहो। ये सब जानकार जाने कितने मासूम लड़के कसाब बनना चाहेंगे ताकि उन्हें भी इतिहास में जगह मिले ओरउन्हें जन्नत नसीब हो।
हमारा महान मीडिया भी उनके कारनामे को लगातार दिखता रहा। लोगों के आंसू देखकर पकिस्तान में बैठे उनलोगों कि मुस्कान के बारे में किसी ने नहीं सोचा जो हिन्दुस्तानियों को रोता हुआ देखना चाहते है। मैं तो कहता हूँ येबताना ही नहीं चाहिए था कि वो कोण थे। कुछ पागलों ने मुंबई में कत्लेआम मचाया ओर वो मारे गए या पकडेगए। जो पकड़ा गया उससे सब उगलवाओ और एक्शन लो। ये तो पक्की बात है अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में जाकर कोईफायदा नहीं होने वाला है। कश्मीर मुद्दा लेजाकर इंडिया देख चुका ही है।
अबकी स्थिति देखो सजा को सुनाने से पहले कसाब कितना नोर्मल सब जानते है। वो नोर्मल क्यों था क्योकि उसेपता था कि उसे मौत कि सजा मुश्किल होगी। उसे इतना यकीन क्यों था क्योकि वो जानता था कि इंडिया काक़ानून कितना लचीला है। प्लस उसके सपोर्ट में यहाँ भी लोग मौजूद है।
खैर उसे सजा तो हो गई है पर उसे फंसी पर लटकाया कब जायेगा लटकाया जायेगा भी या उसे भी माफ़ कर दियाजाएगा या उसका भी मामला राष्ट्रपति जी कि अदालत में पेंडिंग पड़ा रहेगा???? वैसे अब पाकिस्तान केस कोअंतर्राष्टीय कोर्ट में ले जा रहा है। वहां की होगा। जब अमेरिका सद्दाम को तय तारीख से पहले फांसी पर लटकासकता है तो हम क्यों कायदों का राग अलाप रहे है। लगाओ उसे फांसी-इन्तजार किस बात का है????? हम यानहीं कर सकते देश तबाह हो जाये हम कायदों से नहीं डिगेंगे। कायदे का इस्तेमाल करके ये शैतान भले ही हीरो बनजाये। भले ही मरने वालों के परिवार के लोग खून के आंसू बहते रहे ........पर कायदों से नहीं डिगेंगे क्यों डिगें भैयाहम तो अहिंसावादी है। एक थप्पड़ खाकर दूसरा गाल आगे करने वाले बापू की औलाद है।
कुछ भी हो कसाब को सजा मिले ( जो अभी अनिश्चित है ) या न मिले - वो जेहाद जैसे पवित्र नाम पर खून बहानेवालो के लिए हीरो बन चुका है। आखिर एक देश को दहला देने वाले लोगों के ग्रुप का इकलोता जिन्दा बंदा है। उसकी सुरक्षा के लिए २०० करोड रूपये महीने खर्च होते है। मीडिया उसे प्रचार दे ही चुका है सरकार सजा देने मेंसक्षम नजर नहीं आ रही।

Sunday, May 9, 2010

संरक्षणवाद की वापसी

कुछ दिन पहले एक न्यूज़ मिली कि अमेरिका और यूरोप में पर्दूषण कर लगाने कि तय्यारी शुरू हो गयी है।अमेरिकी पर्तिनिधि सभा ने ये विधेयक पारित कर दिया है। यूरोप में मामला विचाराधीन है। इस अवधारणा कीशुरुआत फ़्रांस ने की थी। २०१२ से यहाँ आने वाले और यहाँ से उड़ान भरने वाली airlines पर कार्बोन टेक्स लगाकरेगा। फनी है न !!!!
यानी पर्यावरण के नुक्सान कीभरपाई के बिना पर्यावरण की सुरक्षा। वो भी उन देशों के द्वारा जो कार्बोन उत्सर्जन मेंकटोती के लिए तैयार नहीं है असल में ये कोई फनी बात नहीं ये सोची समझी साजिश का एक कदम भर है जिसकीभविष्यवाणी एकोनोमिस्ट्स ने मंदी की शुरुआत में कर दी थी .....जी हाँ ये संरक्षणवाद की और जाता रास्ता हैजिसके बारे में एकोनोमिस्ट्स में बहुत पहले कर दी थी। ये टेक्स उस हर सामान पर लगेगा।
सच कहूं तो मैं भी इसका समर्थन करता हूँ।
अगर इसके इतिहास की बात करें तो इसका प्रतिपादन अमेरिकेन अर्थशास्त्री और राजनेता Alexander hamilton ने किया था १७९१ में।जिसका समर्थन बाद में J.S. Mill, fredrichlist, H.C.Carey इत्यादि economicts ने भीकिया। अगर देखा जाये तो भारतीय महान नेताओ ने तो आजादी की लड़ाई में इसे हथियार बनाकर इस्तेमाल भीकिया। आन्दोलन के दोरान जो विदेशी सामानों का बहीशकर किया गया वो संरक्षणवाद का ही एक रूप था।हकीकत तो ये है कि संरक्षण वाद यदि एक देश के लिए फायदेमंद है तो दुसरे के लिए नुक्सान दायक है
संरक्षणवाद का सिद्धांत -`" Nurse the baby, protect the chield nd free the adult"- पर आधारित है
सच तो ये है कि संरक्षण के बिना विकास शील देशो के उद्योग आगे बढ़ ही नहीं सकते क्योंकि उनमे न तो विकसितदेशो के उद्योगों के बराबर सिद्ध हस्त मजदूर होते हैं न ही उनकी तकनीक इतनी विकसित होती है कि वो कम कोस्टपर बेहतर उत्पादन कर सकें। अपने ही बाजार में टिकने के लिए उन्हें तब तक संरक्षण कि जरूरत होती है तब तकवो बाजार में पैर जमाने के लायक न बन जाये। जब भी देह के बाजार पर विदेशी हावी होते है तभी संरक्षण वाद किजरूरत होती है। मुक्त व्यापार कि बात बस वो देश करते है जिनका निर्यात ज्यादा होता है। अमेरिका का हीउदाहरण देख लो यार B P O SERVICES में विदेशी हावी हुए वहां बेरोजगारी बढ़ी तो उसी देश ने संरक्षण वाद कादामन थम लिया और उन्ही विदेशी compnies मदद बने का वादा किया जो अमेरिकंस को जॉब देंगे उसकापरिणाम ये हुआ कि भारतीय कंपनिया अब अमेरिकंस को ज्यादा नोकरी दे रहे है, इंडिया से बन्दे भेजने कीबजाये।
सच तो ये है कि संरक्षण वाद एक बहुत ही शानदार तरीका है देश के उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बस इसकाइस्तेमाल सही तरीके से होना चाहिए वर्ना यही चीज भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। संरक्षण के कारण ही देश के बड़ेउद्योग देश के छोटे उद्योगों को आगे बढ़ने से रोकने लगते है। इससे देश का ही विकास रुकता है। इसी वजह से कुछलोग संरक्षण वाद का विरोध करते है। `गुरु` फिल्म में गुरुभाई (धीरुभाई) का विरोध लाइसेंस के लिए नहीं थाअसल में उस व्यवस्था के लिए था जिसके कारण छोटे लोगों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए बड़े उद्योगपतिलाइसेंस व्यवस्था का इस्तेमाल कर रहे थे। राजीव जी ने उस हकीकत को समझा और जान गए कि अब लाइसेंसकि हर उद्योग को जरूरत नहीं रह गयी है सो उन्होंने लाइसेंस व्यवस्था के नियम बदल दिए। लेकिन अब भी मेरे देहके उद्योगों को संरक्षण कि जरूरत है क्योकि आज भी हमारा आयत निर्यात सी ज्यादा है और लगातार बढ़ भी रहाहालांकि । कुछ सही तरीके से करना होगा ताकि सभी उद्योगों को आगे बदने का मोका मिल सके।
हमे चीन पर भी कंट्रोल करना होगा ताकि उसका सामान हमारे बाजार पर हावी ना रह सके । हालांकि इंडिया वालेतरह विदेश में compnies take over कर रहे है उससे उम्मीदें पैदा होती है मगर जिस तरह इंडिया कूटनीतिक रूपसे कमजोरी शो करता है ,जिस तरह हर चन्द महीनो के अंतराल के बाद कोई न कोई गद्दार निकल आता है, जिसतरह इंडिया में आतंक वादी बढ़ते नजर आ रहे है- ये सब देखकर दिमाग में शंका पैदा होती है की ये उन्नति कितनेदिन कायम रहेगी???????
खैर जब भी मंदी ने दस्तक दी है यूरोप और अमेरिका ने संरक्षण का सहारा लिया है हमरे साथ दिक्कत ये है कीहमारा ज्यादातर व्यापार वहीं है अब वक्त आ गया है की हमें गंभीरता से विश्व के दुसरे बाज़ारों पर पकड़ बनानीशुरूकर देनी चाहिए जैसे अजीम प्रेमजी ने किया।
ये एक हकीकत है यूरोप और अमेरिका की अर्थव्यवस्था का ग्राफ नीचे की ओर जा रहा है वो संरक्षण का सहारा लेंगेही, बेहतर है हमें तूफ़ान से पहले खुद को संभाल लेना चाहिए- आता है तो हम सेफ होंगे नहीं आता है तो हम सेफ हैही ..................भैया जी प्रिकोसन ही तो इलाज का सबसे बेहतर तरीका माना जाता है ना।

Monday, April 12, 2010

some facts 2

* अगर आप youtube पर लोड की गयी सभी videos को देखनेव लगें तो तमाम videos देखने में आपको तकरीबन ६०० साल लग जायेंगे youtube पर हर मिनट में २० घंटे की videos upload ki जाती है।
*इब्न-बतूता का जन्म २४ फरवरी १३०४ को मेरिडीन राजवंश के दोरान मोरक्को के तंजोर शहर के एक मुस्लिम विधिवेत्ता के घर में हुआ था।
*फिल्म `पिरान्हा-२:दा स्पानिंग`के दोरान director जेम्स केमरून के निर्माता के साथ एडिटिंग को लेकर इतने मतभेद हुए कि उन्हें डरावने सपने आने लगे थे कि भविष्य से मशीन मानव सिर्फ और सिर्फ उन्हें मारने आ गया है .....
यही सपना उनकी हिट फिल्म `the tarminator` की कहानी का बेस बना।
*विश्व के ११० देशों में २.५ करोड़ से भी ज्यादा भारतीय मूल के लोग रहते है। अमेरिका में ३८% डोक्टर, १२५ scientists, 36% nasa workers भारतीय मूल के है। microsoft में 34% I.B.M. में, २८% इंटेल में, १७% कर्मचारी भारतीय मूल के है।
* वर्ष २००९ के best director का oscar award जीतने वाली निर्देशक केथरीन बिगेलो ने अपने पूर्व पति जेम्स केमरून (अवतार के निर्देशक ) को पछाड़कर वो खिताब जीता है।
*महान नाटककार जयशंकर प्रसाद जी ने अपने प्रसिद्द नाटक `चन्द्रगुप्त` की प्रस्तावना में सिद्ध किया है कि`कामसूत्र` के लेखक `वात्स्यायन` और चाणक्य एक ही आदमी थे
चाणक्य द्वरा लिखित ग्रन्थ है - चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र, कामसूत्र, और न्यायभाष्य।

Wednesday, March 31, 2010

some facts 1

*इंडिया १५ अगस्त को आजाद हुआ था लेकिन उसे united national organigation ka member 30-10 1945 को बना लिया गया था
मेरी समझ में नहीं आ रह की अगर ये सच है तो ३०-१०-१९४५ इंडिया को एक आजाद देश का दर्जा मिल गया होगा- तो कांग्रेस देश को आजाद करने का क्रेडिट क्यों लेती है??????
*आधुनिक जासूसी के पितामह wilhelm johann kark eduard stieber जो बिस्मार्क का मुख्य जासूस था जब १८९२ में मरा था तो यूरोप के तमाम सामंत उसकी अंतिम यात्रा में शामिल होने आये थे। इसलिए नहीं की वो उसे बहुत प्यार करते थे बल्कि इसलिए क्योंकि वो खुद देखना चाहए थे की क्या वो सचमुच ही मर गया है या मरने का ड्रामा कर रहा है।
*लेखक गुरुदत्त ने ५५ साल की उम्र में लेखन कार्य शुरू किया था।
*एक magazine ने हाल ही में रिपोर्ट पुब्लिश की है जिसमे बताया गया है की बिहार में कई जगहों पर लड़की वाले दहेज़ से बचने के लिए जबरन लडको का अपहरण करके बन्दूक की नोक पर उनकी शादी अपनी लड़की से करवा रहे है।
*james bond 007 के लेखक Ian Flaming खुद वास्तव में ब्रिटिश नोसेना के ख़ुफ़िया विभाग में जासूस थे। उन्होंने हिटलर के दाहिने हाथ कहे जाने वाले जर्मनी के डेपुटी फ्यूहर को डिफेक्ट करने पर मजबूर कर दिया था।
=>डिफेक्ट का मतलब गद्दारी करके दुश्मन के खेमे में शामिल हो जाना होता है

Saturday, March 27, 2010

सरकार बजट और हम

ये पोस्ट जरा देर से लिख रहा हूँ उसकी कई वजह है। पहली वजह तो यही है की इस मुद्दे पर लिखने के लिए सब कुछ बड़ी ही सावधानी से समझना था मेरे लिए तो बात को समझना ही मुश्किल काम है,बजट जैसी चीज को समझना और भी मुश्किल। ऊपर से मैं कोई नेता भी नहीं जो वोट बैंक के लिए किसी भी मुद्दे को पकड़ कर बयान दे डालूं। ऊपर से नेट पर स्पीड की प्रॉब्लम थी कई बार पोस्ट को टाइप करने का इरादा बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा। एक और वजह मेरी समझ में ये न आना था की किस तरह इस बोरिंग टॉपिक को इंटरेस्टिंग बनाकर लिखा जाये।
हाँ जी तो शुरू करें। सब जानते थे की बजट अच्छा ही होगा आखिरकार कांग्रेस के संकट मोचक श्री श्री श्री प्रणव मुकर्जी साहब ने बनाया है। उनकी स्मार्टनेस पर कोई शक कर सकता है भला भैया अपने कई दशक के राजनीतिक जीवन में चाचा अब जाकर जंगीपुर से लोकसभा चुनाव जीत सके है मगर इंदिरा जी तक उनके हर बार चुनाव हार जाने के बावजूद उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके रक्ति थी मात्र उनकी स्मार्टनेस के के कारण। सोनिया जी ने उन्हें वित्त मंत्रालय गिफ्ट किया है जो की उनकी काम करने के लिए पसंदीदा जगह है। तो भैया बजट तो अच्छा बनना ही था बना भी विरोघियों के अलावा सबने अच्छा बताया भी। वैसे भी कोई खास बड़ी समस्या इस बार थी भी नहीं। न तो चुनाव पास थे जो लोगों को वोट के लिए कोई लोलीपोप देनी होती। मंदी फिलहाल गुजर चुकी है। बस तीन ही problems मुकर्जी चाचा जी के सामने थीं।१ -बजट घाटा कम करना २-देश के विकास को गति देना ३-महंगाई को काबू करना। मुकर्जी चाचा का कहना है की वो घाटा पिछली बार के घाटे ६।९% से कम करके ५.५% पर लेकर आयेगे। ज्यादा दिक्कत वाली बात नहीं थी वजह इस बार की सरकार की अलग से होने वाली बचत और कमाई पर नजर डालने पर अपने आप समझ में आ जाएगी * विनिवेश से कमाई - १५००० करोड़ रूपये *3G की नीलामी से कमाई - ३५००० करोड़ रूपये *ऋण माफ़ी योंजा के खात्मे से हुई बचत - १५००० करोड़ रूपये *पेट्रोल उत्पादों की सब्सिडी जारी न करने से बचत - १०००० करोड़ रूपये *वेतन आयोग का बकाया न चुकाने से बचत - २०००० करोड़ ।रुपये कुल बचत - ९५००० करोड़ रूपये कुल G. D. P. -69.45 लाख करोड़ रूपये यानी बचत =G.D.P. का १.४%। पिछला राजकोषीय घाटा G।D.P. का ६.९%था सो इस बार घाटा रहने की उम्मीद है ६.९%-१.४%=५.५%. भैया जी मुकर्जी चाचा ने ५.५% राजकोषीय घटा रखने का ही वादा तो किया है । मुश्किल ही क्या है ?????? इसके अतिरिक्त कर से होने वाली कमाई अलग है। ये भी जुदा बात है - इस समय कर्ज ३.८१ लाख करोड़ रूपये है जिसका ब्याज ही हर साल ३२७५० करोड़ रूपये जाता है जबकि पिछले तीन सालों में कर की बढ़ोतरी ही कुल २१% रही है कर्ज की बढ़ोतरी रही ५५%. खैर डाटा तो बहुत हैं उनको लिखकर आपको नहीं पकाऊंगा #दूसरा वादा मुकर्जी चाचा ने समग्र विकास का किया है यार विकास तो हो ही रहा है वो होता रहेगा ही सब जानते है उसके लिए सरकार को कोई खास कोशिश करने की जरूरत है ही नहीं सब जानते है नहीं। इस समय देश की सबसे बड़ी दिक्कत है महंगाई। अगर देख जाये महंगाई कोई हर क्षेत्र मैं है भी नहीं। मोबाइल, t.v. की कीमतें पिछले कई सालों से कम हुई है। मकान की जमीन की कीमत बढ़ी है जिसमे भू माफिया का बहुत बड़ा हाथ है। लोगों के पास पैसा भी बढ़ा है पैसे का फ्लो बढ़ने से कीमते भी बढती ही है। सबसे बड़ी दिक्कत है खाद्यान की कीमत का बढ़ना उसमे भी सबसे बड़ी कमी है हमारे बुनियादी ढाचे में। आप खुद ही सोचो कई सको से आलू की बम्पर पैदावार हो रही है उत्तर प्रदेश में किसानो को जमकर नुक्सान हुआ। एक साल अखबार में खबर आई की पटना में सब्जियां लोगों ने खरीदार न मिलने के कारण सडकों पर फेंकी थी। क्या सरे देश में सब्जियों की पैदावार बम्पर हुई थी ? अगर हुई थी तो सब्जियां महँगी क्यों है???? सच तो ये है की देश के पास न तो कोल्ड स्टोर्स हैं न ही प्रचुर मात्र में फ्रीजिंग वेंस हैं ताकिजल्दी खराब हो जाने वाली सब्जियों को दूर की मंडियों में पहुँचाया जा सके देश के टोटल कोल्ड स्टोरों में से ७५%-८०% स्टोरों को सिर्फ आलू के संग्रहण के लिए यूज किया जाता है। यही असली सर दर्द है सरकार के लिए जिससे निजात पाने की कोश्शिश इस बजट में की गयी है। #ने कोल्ड स्टोर,पोल्ट्री,मत्स्य पालन,समुद्री उत्पाद और मांस के कारोबार के विस्तार लिए या नयी इकाई की शुरुआत के लिए छूट के प्रावधान रखे है। #परियोजनाओं को मूल उत्पाद शुल्क के रूप में ५%कर देना होगा साथ ही एडिशनल ड्यूटी ऑफ़ कस्टम और स्पेशल एडिशनल ड्यूटी इ भी छूट के साथ इन परियोजनाओं को सस्ती उधारी की भी सविधा मिलेगी । #ट्रक रेफ्रिजरेशन को सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया गया है #कुछ कृषि उपकरणों का सीमा शुल्क ७.५%से कम करके ५% कर दिया गया है। गौरतलब है कोल्ड स्टोरेज को पिछले बजट में ही बुनियादी ढांचा का दर्जा दिया जा चुका है ताकि उन्हें आय कर में छूट मिल सके इससे अन्य कृषि उत्पादों के लिए स्टोर खोलने को बढ़ावा मिलेगा। सच तो ये है की ये एक दम से फायदा देने वाले कदम नहीं है इनका परिणाम आने में वक़्त लगेगा। हालाँकि देश की जनसँख्या बहुत है उसकी जरूरत पूरी करने के लिए काफी उत्पादन में भी बढ़ोतरी करने के साथ कला बाजारी को भी रोकना क्योंकि जब भी किसी चीज की कमी की खबर बाजार में आती है सेठ उसकी जमाखोरी शुरू कर देते है और कीमते बढ़ जाती है। खैर इस बारे में तो ज्यादतर जगहों पर पढ़ चुके होंगे मेरी तो ये ही समझ में नहीं आता की लोग बजट को इतना महत्त्व क्यों देते है ???? बजट है ही क्या बस साल भर का लेखा जोखा , और कुछ नहीं। हर बजट पर लोग इस बात पर निगाह गडाते है की उन्हें क्या मिला ??? यार कभी किसी ने ये सोचा है की उसने देश को क्या दिया ??? सब जानते है की ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार फैला पड़ा है .........सच तो ये है की अगर सरकार के १००% मदद गरीब को इमानदारी से मिले तो देश आज की तारिख में विकसित देशो की लाइन में खड़ा होता और देश को नयी पंचवर्षीय योजना की जरूरत न होती। देश को घाटे का बजट न बनाना पड़ता न ही देश पर आज ३.८१ लाख करोड़ रूपये कर्ज होता-अगर सब नागरिक इमानदारी से कर देते। आपको क्या लगता है इस मंदी से देश इतनी आसानी कैसे निकल गया ???? सरकार कितनो को मदद दे सकती है दरअसल लोगो के पास पैसा दबा पड़ा होगा तभी तो वो झटका झेल गए। सब जानते है यार सरकार की मशीनरी कितने तेजी से काम करती है। लोगों ने धर्म और समाज के नाम पर संश्थाये खोल रखी है ताकि कर न देना पड़े। भैया अगर कमी हो रही है लोग करोडो रूपये कम रहे है तो उनका उपभोग भी कर रहे है तो कर क्यों नहीं देते????? बजट आते ही पूरा व्यापारी वर्ग ये नजर टिकाकर बैठ जाता है की सरकार ने उन्हें क्या दिया। नेताओ के कहे पर लोग सडको पर उतर आते है की इस चीज में सब्सिडी क्यों नहीं दी उसमे सब्सिडी नहीं दी क्या किसी ने उस समय अपने गिरेबान में झांककर देखा है की वो देश दे लिए कितना इमानदार है ???? सरकार कहाँ से सब्सिडी देती है-जो टैक्स उसे मिलता है उसी से न ????? टैक्स कितने लोग इमानदारी से देते है???? अगर १०० रूपये सरकार किसी परियोजना को देती है तो कितने परियोजनाओ में लगते है सब जानते है।

Wednesday, February 17, 2010

प्यार का funda

सुना है प्यार काफी शानदार `शै` है ।ये हैवान को इन्सान बना देता है । प्यार इंसान को अमर बना देता है। प्यार जेवण को स्वर्ग बना देता है
पर मुझे कभी ऐसा कुछ नजर नहीं आया। वजह शायद ये हो ली मैं आज तक एक भी लड़की नहीं पटा सका। पटाना तो दूर तवज्जो तक हासिल नहीं कर सका । ये अलग बात है की कोशिश बहुत की । बार- बार नाकाम होकर भी आशा जरूर है शायद कभी न कभी चिता पर लेटने से चार पाँच मिनट पहले ही सही मुझ गधे को पंजीरी खाने को मिल ही जाये ।हा-हा-हा-।
चूँकि अपुन ने प्यार का स्वाद चखा नहीं सो अपुन की भेजे में प्यार का फंडा घुसा ही नहीं । इस बारे में अपुन ने सोचा तो प्यार की रूमानियत के पीछे पंगे, बदनामी, तकलीफे, ही नजर आयी या वक्ती झाग या कमीनापन या वो बेवकूफी जिसे दिल की सुनकर कर चुकने के बाद ........रिपीट - कर चुकने के बाद .............दिमाग की अत्कार सुनने को मिलती है। जेहन में बस उबलते पछतावे के लावे में आत्मा को जलना होता है।
* क्या प्यार हैवन को इंसान बना देता है ??????
अगर ऐसा है तो क्यों प्रपोजल स्वीकार न करने पर लड़कियों के चेहरे पर दिलजले तेज़ाब फेंक देते है ????? क्यों लोग प्यार में हत्याए कर देते है??????????????
*क्या प्यार जिन्दगी को जन्नत बना देता है ????
हमारे गाँव में एक लड़का था । घर का लाडला माँ बाप के खिलाफ लव मेरिज की बाध्य दिमागदार मन जाता था। शादी के बाद लाइफ का बैंड तो बजा ही जिन्दगी भर उसकी बीवी लडकियों को यही कहती रही की कोई उसकी तरह न करे।
*क्या प्यार इबादत है?????
शायद हो । सवाल ये है ----लड़के- लडकिय एक दूजे के प्यार को पाने के लिए माँ- बाप का प्यार क्यों भूल जाते है। माँ बाप की सालो की ममता पर उनका `प्यार` क्यों भारी पड़ता है??? क्या ये प्यार माँ-बाप की सालों की तपस्या से बड़ी चीज है???? और अगर है तो क्यों बाद में आशिक पछताते है?? क्यों २६% लव मेरिज करने वालो ने अपने विवाहेत्तर सम्बन्ध की को स्वीकार किया है ।ध्यान दें की बस स्वीकार किया है जिन्होंने नहीं माना वो जरूरी नहीं पाक-साफ़ हों । इसके अलावा एक बात मेरे में पैदा भी होती है । प्रेमियों बुरा मत मानना यारो-अगर कोई अपने पैदा करने वालों के लिए ही संवेदनशील नहीं तो वो अपने spouse के प्रति ईमानदार कैसे हो सकता है ?????? जिसने उन माँ-बाप की भावनाओ की कद्र नहीं की -जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा, पढाया,उसकी केयर की- वो अपने spouse की फीलिंग्स की क्या क़द्र करेगा???? ये सोचकर मेरा दिमाग भन्ना गया । आत्मा ने कहा की प्यार नाम की कोई चीज दुनिया में होती ही नहीं ।
ये तो हुई वो बात जो मैंने देखा और सुना अब अपनी बखिया उधेड़ता हूँ । वैसे तो मैं बड़ा कमीना इंसान हूँ लेकिन हमेशा से कमीना इंसान नहीं था मुझे पहली बार जो लड़की पसंद आई या लिखू में खुद ही जिस लड़की की तरफ खीचा चला गया वो मेरे सामने सातवीं कक्षा में आई तब मैंने सोचा काश ये मेरी बहन होती ये न होती तो इसी के जैसी होती ...........सचमुच बड़ी cute लगती वो मुझे थी (यार अब भी काफी क्यूट है )और में हमेशा एक प्यारी सी बहन की ख्वाहिश करता था। और बाद में ............ । उसी की सहेली पर नजर टिकी और मैं उसपर लाइन मारने लगे ...सोरी `प्यार' करने लगा उसे। क्यों?? क्योंकि तब मैं अपनी लाइफ पार्टनर की कल्पना करने लगा गया था। मामला उसी तक नहीं टिका कईओं पर लाइन मारी। मार रहा हूँ। एक बुक स्टाल पर कभी कभार बैठकर किताबें चाटता हूँ हर सब्जेक्ट पर। वहां मुझसे अच्छे standerd ki बड़ी धांसू-धांसू लडकियां किताब लेने आती हैं। वहां जब किसी सी इंटरेक्ट करने का मोका आता है तो दिल में आवाज उठती है बस भैया ना कह दे। वैसे पता है की कोई भाव नहीं देगी कभी भी भाव नहीं देगी लेकिन `भैया' सुनकर दिलपर आरी सी चल्री है। क्यों .........ये भी कोई पूछने वाली बात है यार?????????
सवाल ये है की मैंने प्यार किसे किया -उसे जिसे अपनी बहन बनाना चाह ( हालांकि उसके लिए शायद मैं अब भी बुरा इसान होऊ ) या उसे जिसपर पहली बार लाइन मारी या उन्हें जिनपर लाइन मार रहा हूँ या उन्हें जिनपर लाइन मारने वाला हूँ क्योंकि तय है की कोई भाव नहीं देने वाली आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा न आखिरकार।
वैसे भाइयों ऐसा नहीं है की प्यार करने वाले नाकाम ही होते है। हमरे एक प्राचार्य जी ने भी सुना है लव मेरिज की थी दोनों कामयाब भी थे और खुश भी थे। celebtities की लव मेरिज की खबर तो सब पढ़ते ही रहते है साथ ही रिश्ता टूटने की भी न्यूज़ आप तक आती रहती ही है काफी जोड़ियाँ कामयाब भी रही है। पर , अब भी मेरा मानना यही है की ये जोडियाँ इसलिए कामयाब नहीं की उन्होंने `प्यार' किया बल्कि इस वजह से कामयाब है की उन्होंने रिश्ते की कीमत को समझा और निभाया। उन्होंने `प्यार' के आसमान में परवाज तो भरी मगर रिश्ते की हकीकत की जमीन पर भी पैर टिकाये रखे।
दोस्तोंअब मैं `प्यार' के अपने funde पर आता हूँ । मैं हमेशा की तरह अब भी ताल ठोककर कहता `प्यार' नाम की कोई चीज इस दुनिया में नहीं होती। होता है या तो रिश्ता या फिर महज आकर्षण। हम अच्छी चीज की तरफ आकर्षित होते है और तब तक उसकी और आकर्षित रहते है जब तक वो अच्छी और आकर्षक बनी रहे । जबकि रिश्ता बस रिश्ता होताहै वो कभी ख़त्म नहीं होता कोई ताकत रिश्ते को मिटा नहीं सकती। अब ये हमारी सोचा है - हम आकर्षण के गुलाम बनते है या साश्वत रिश्ते को जीते है। ख़ुशी क्या है रेगिस्तान में भी लोग आशियाना बनाकर ख़ुशी को अपना गुलाम बना लेते है वहां हरियाली पैदा कर देते है वर्ना कश्मीर जैसी जन्नत को हम ही इंसानों ने आतंक से जहन्नुम बना दिया है वहां की वादिय तो बस खामोश है ।
हो सकता है मेरा funda आप लोगो को पसंद ना आये या हो सकता है की मैं भी किसी खास लड़की को बहुत importance देता होऊ उसी की वजह से और लड़कियों को पास ही न आने देता होऊ ताकि `उसके' लिए जगह खाली बनी रहे (यार इतना झूठ तो चल जाता है हा-हा-हा-हा) किन्तु ये तय है -अगर मजबूरी वश या दुर्घटना वश शादी की तो मेरी बीवी ही सबसे ज्यादा important होगी सबसे सेक्सी होगी नहीं होगी तो मैं बना दूंगा ।
वैसे एक बात पक्की है की जब तक शादी जैसी दुर्घटना मेरी लाइफ में नहीं घटती जब तक किसी हसीना ( हसीं तो पक्की होगी ही) मेरे साथ बंधकर नहीं फूटते तब तक मैं लाइन मरता रहूँगा । दिल लगाकर बिना spaceship के चाँद पर लैंड करने की कोशिश करता रहूँगा आखिरकार इन फालतू कामो का अपना ही मजा है। वैसे भी guys अगर हम लफंगे लड़कियां पर लाइन नहीं मारेंगे तो उन्हें अपने हसीं होने का अहसास कैसे होगा ?????? और क्या पता कोई हसीना बेवकूफ बनकर मुझे धाकड़ बंद मान ले और मेरे भाग्य का पिटारा खुल जाये। वैसे भी किसी को हसीं होने का अहसास कराना भी क्या कम धर्म-कर्म का काम है?????????? सो भाइयो अपुन का इरादा धर्म-कर्म से पीछे हटने का जरा भी नहीं है मैं तो करता रहूँगा आप बोलो आपका क्या इरादा है?????

Monday, February 1, 2010

मेरा टूटता बिखरता देश

मैं कोई देशभक्त बन्दा नहीं हूँ मगर कहते है न की आप माँ को भले ही प्यार न करते हूँ फिर भी अगर माँ पर संकट आता दिखे तो हर बेटा सोचने लगता है मैंने भी सोचा। आज की तारीख में तकरीबन १२ नए राज्यों की मांग जोर पकड़ रही है तेलंगाना का मुद्दा सबसे ज्यादा गरमा रहा है। विदर्भ के लिए भी कम जोर नहीं लग रहा।
नेता लोग कहते है की छोटे राज्यों से विकास होता है। जैसे झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, का हो रहा है। नागालेंड, manipur, tripura, के विकास को कौन नहीं जानता । राजनीती वहां की इतनी स्थिर है कि दो विधायक ही सत्ता बदल डालने कि ताकत रखते है। बहुमत के लिए विधायक चाहिए ही कितने।
अमेरिका का उदाहरण देते है जहा ५० राज्य है पर शायद भूल गए कि उसका आकर भारत से तीन गुना है इस तरह तो वहां ८० राज्य होने चाहिए जबकि वहां इतने ही राज्य अमेरिका के बन्ने के समय थे उतने ही अब है एक भी नया राज्य नहीं बनाया गया ।
मामला दरअसल देश के development का नहीं है अलग राज्य की मांग वो नेता कर रहे जिनका कोई राष्ट्रया आधार नहीं चन्द लोगों को इकठ्ठा करके नया राज्य गठित कराकर वो सत्ता में आना चाहते है और सेंटर में बैठे लोग भी एक मुट्ठी लोगों के समने झुककर अपना वोट बैंक खो देने के डर से उनकी मांग को ममन लेते है
आज दए लोग नया राज्य मांग रहे है कल को दए नया देश मांगने लगेंगे। क्या मुश्किल है यार ?????संयुक्त राष्ट्र में समर्थन ही कितने देशो का चाहिए नया देश बनाने के लिए शायद २४-२५ या इससे कुछ ज्यादा। सब जानते है हमारी intelligence agencies के क्या हल है ??? raw के ज्यादातर अधिकारी अमेरिका परस्त है । लगभग ७५% रिटायर होकर अमेरिका में बसते है। जब अमेरिका और चीन जैसे देश भारत को नुकसान पहूचना चाहते हों तो उनके लिए २४-२५ देशो का समर्थन इकठ्ठा करना कितना मुश्किल है ??????
देश टूटता तो क्या हाल होता है हमसे ज्यादा बेहतर कौन जन सकता है । अपने देश के ह्स्सो में चीन को घुसने से तो हम रोक नहीं पा रहे है पाकिस्तान से कश्मीर तक हासिल नहींकर पा रहे है क्या देश को टूटने से बचा पायेंगे ??????

डर लग रहा है कहीं इन स्वार्थी नेताओं की वजह से मेरी माँ के टुकड़े न हो जाये । जाग जाओ यार कब तक सोते रहोगे ????????????????

Tuesday, January 12, 2010

sex scandle की चांदनी

एक हैं tiger woods. स्टार है। आज कल चर्चा मैं है भाई साहब अपनी कार मे सफ़र कर रहे थे एक पत्रिका में रखी अपनी girlfriends की तस्वीरे देख रहे थे -अन्तरंग टाइम वाली । एक टक्कर हुई और सारी तश्वीरें बिखर गयी और बात मीडिया तक चली और पोल खुल गई। भाई साहब बदनाम तो हुए साथ ही अब बीवी भी साथ छोड़कर जा रही है मामला कोर्ट में जाने वाला है।
खैर
मामला अब ये है इस scandle का फायदा किसे हुआ ???
कहते है जब रात में चांदनी बरसती है तो समझदार लोग उसे जमकर लूटते है और लूटी भी यार जैसे -
१- भाई साहब तब `ग्रेट अ ग्रिप ऑफ़ फिजिक्स - पढ़ रहे थे तब तक वो कुल ही २२६८ बिकी थी अब तक ४००००० के आस पास बिक चुकी है।
२ - जिस कार में बैठे थे उसकी बिक्री का आंकड़ा दोगुना हो चूका है
3- प्रेमिकाओ की sudh ले लेते है
i- जेमी ग्रेब्स एक वेट्रेस थी अब वो १० लाख डॉलर- लेकर playboy के कवर पर आने वाली है ऐसा सुना है
ii- रशल ( एक क्लब के vip सेवाओ की director ) और बैर पूल लांग की मार्केटिंग director कलिका मेकिन अब तक परसिद्ध हो चुकी है।
iv -porn stars holly simpson और joslin james की मार्केट में इजाफा हो ही चूका होगा।
v- मीडिया तो चांदी काट ही रहा है
अब पत्नी की बात करते है । दुनिया की कोई पत्नी नहीं जो अपने पति के एब न जानती हो खासकर तब - जब बन्दे के कई चक्कर चल रहे हों । पत्नी ने तलाक की बात तब क्यों नहीं की ??????
तब उसे शायद पैसा मिलने की गारंटी न हो अब पक्के तोर पर गारंटी ज्यादा है सो तलाक लाइन की बात कर रही है

मेरा इरादा वूड्स भैया को दूध का धुला प्रूव karna नहीं जो गलत है वो गलत है ही
यार मेरी समझ में आज तक ये नहीं आया की लोग कई औरतों के साथ रिश्ता कैसे बना लेते है ????????
एक औरत की शारीरिक जरूरत मर्द से ज्यादा होती है
डाटा उठा लो
एक सर्वे के अनुसार ९०% औरतों ने कहा की वो अपनी sexual life se satisfied हैं उनमे से मात्र २०% ने कहा की ओ पूरी तरह satisfied है। manaa ये भी जाता है की औरत की शारीरिक जरूरत मर्द से आठ गुनी होती है । बहुत औरतों को तो orgasm की जानकारी ही नहीं होती उन्हें orgasm कभी मिला होगा तभी तो उसके बारे में पता होगा ना यार।
तो मेरे भाइयो एक की जरूरत तो पूरी नहीं होती लोग दूसरियों के चक्कर में क्यों आ जाते है ????????