Thursday, April 30, 2015

`भारत रत्न' अब्दुल कलाम

हम भारतीयों के लिए ये गर्व का विषय है कि डॉअबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम जैसी महान विभूति ने हमरे हमारे देश में अवतार लिया। चमत्कारिक प्रतिभा के धनी डॉअबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम भारत के ऐसे पहले वैज्ञानिक हैं, जो देश के राष्ट्रपति (11वें राष्ट्र पति के रूप में) के पद पर भी आसीन हुए। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्र्पति (अन्य दो राष्ट्र पति हैं सर्वपल्लीन राधाकृष्णन और डॉ0 जा़किर हुसैन) भी हैं, जिन्हें राष्ट्रीपति बनने से पूर्व देश के सर्वोच्च सम्मा्नभारत रत्नसे सम्मानित किया गया। इसके साथ ही साथ वे देश के इकलौते राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने आजन्म अविवाहित रहकर देश सेवा का व्रत लिया है। एक मिसाइल मैन के तौर पर वह बेहतर जाने जाते है. ये कलाम साहब ही है जिनके नेत्रत्व में देश को चार मिसाइल मिलीं  विश्व में भारत सामरिक रूप से सुदृढ़ बना. पाठकों को उनके सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध करवाते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ. उनका वैज्ञानिक जीवन ही नहीं उनका छात्र जीवन और व्यक्तिगत जीवन भी  भारतीयों के लिए प्रेरणा देने वाला है.
    

      
      १५ अक्टूबर १९३१ ई०  को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ | इनके पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले थे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम सयुंक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पाँच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे। अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए।
        आगे बढ़ने से पहले मैं कलाम साहब के परिवार के बारे में बताना चाहूंगा। कलाम साहब  परिवार यूँ तो धर्म से मुस्लिम है मगर उनका अपने गांव में उच्च ब्राह्मण के बराबर सम्मान किया जाता है. उनके गांव में हर साल एक त्यौहार मनाया जाता है उनकी पूजा में गांव के सात उच्च ब्राह्मणों को  कराया जाता है  ब्राह्मणों में से एक कलाम साहब  परिवार का सदस्य होता है. हुआ यूँ था-
  एक बार गांव के कुँए में गांव का एक हिन्दू बच्चा गिर गया था तब कलाम साहब साहब के परिवार के  आदमी धर्म की दीवार तोड़कर अपनी जान पर खेलकर उसे बचाया था 
  तभी से कलाम साहब का दर्जा उनके गांव में उच्च हिन्दू परिवार  बराबर माना जाने लगा.
   पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनका दीक्षा-संस्कार हुआ था।उनकी प्रतिभा को देखकर उनके शिक्षक बहुत प्रभावित हुए और उनपर विशेष स्नेह रखने लगे। एक बार बुखार जाने के कारण कलाम स्कूल नहीं जा सके। यह देखकर उनके शिक्षक मुत्थुश जी काफी चिंतित हो गये और वे स्कूल समाप्त होने के बाद उनके घर जा पहुँचे। उन्होंने कलाम के स्कूल जाने का कारण पूछा और कहा-"यदि तुम्हे किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो, तो  नि:संकोच कह सकते हो ।"
    कलाम  साहब का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। वे प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर गणित का ट्यूशन पढ़ने जाया करते थे। वहाँ से 5 बजे लौटने के बाद वे अपने पिता के साथ नमाज पढ़ते, फिर घर से तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाते और पैदल घूम-घूम कर बेचते। 8 बजे तक वे अखबार बेच कर घर लौट आते। उसके बाद तैयार होकर वे स्कूल चले जाते। स्कूल से लौटने के बाद शाम को वे अखबार के पैसों की वसूली के लिए निकल जाते।
  कलाम की लगन और मेहनत के कारण उनकी माँ खाने-पीने के मामले में उनका विशेष ध्यान रखती थीं। दक्षिण में चावल की पैदावार अधिक होने के कारण वहाँ रोटियाँ कम खाई जाती हैं; लेकिन इसके बावजूद कलाम को रोटियों से विशेष लगाव था; इसलिए उनकी माँ उन्हें प्रतिदिन खाने में दो रोटियाँ अवश्य दिया करती थीं। एक बार उनके घर में खाने में गिनी-चुनीं रोटियाँ ही थीं। यह देखकर माँ ने अपने हिस्से की रोटी कलाम को दे दी। उनके भाई ने जब ये बात कलाम कलाम साहब  बताई तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ था भावावेश में वो दौड़कर अपनी माँ अपनी माँ से 

   प्राइमरी स्कूल के बाद कलाम ने श्वार्ट्ज हाईस्कूल, रामनाथपुरम में प्रवेश लिया। वहाँ की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, त्रिची में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एस-सी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीयट्यूट ऑफ टेक्ना्लॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रूख किया। वहाँ पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया।                                         कलाम साहब  की हार्दिक इच्छा थी कि वे वायु सेना में भर्ती हों तथा देश की सेवा करें; किन्तु इस इच्छा के पूरी हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद DTD & P (Air) का चुनाव किया। 
वहाँ पर उन्होंने 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर वहाँ पहले ही साल में एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान की डिजाइन तैयार करके अपने स्वर्णिम सफर की शुरूआत की।
कलाम ने 1958 में मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी  से अंतरिक्ष विज्ञानं में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। स्नातक होने के बाद उन्होंने  हावरक्राफ्ट परियोजना पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संस्थान  में प्रवेश  किया जहां उन्होंने विभिन्न पदों पर काम किया उन्होंने अपने निर्देशन में उन्नत   संयोजित पदार्थों का विकास आरम्भ किया। उन्होंने त्रिवेंद्रम में स्पेस साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी सेंटर (एस.एस.टी.सी.) मेंफाइबर रिइनफोर्स्ड प्लास्टिकडिवीजन (Fibre Reinforced Plastics -FRP) की स्थापना की। इसके साथ ही साथ उन्होंने यहाँ पर आम आदमी से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरूआत की।
 उन्ही दिनों भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन में स्वेदशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम की  शुरुआत हुई।  कलाम साहब की योग्यता को  हुए उन्हें इस प्रोजेक्ट का निदेशक नियुक्त किया गया परियोजना का मकसद उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए भरोसेमंद प्रणाली का विकास और संचालन करना। कलाम साहब ने अपनी अद्भुत प्रतिभा के दम पर योजना को अच्छी तरह से अंजाम तक पहुँचाया।  
 परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान SLV 3  के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिससे जुलाई १९८० ई ०  में रोहिणी उपग्रह  सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया था। इस  प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। जिसमे कलाम साहब की बड़ी ही ख़ास भूमिका रही।    


 कलाम साहब   ने भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश् से रक्षामंत्री के तत्कालीन वैज्ञानिक सलाहकार डॉ0 वी.एस. अरूणाचलम के मार्गदर्शन मेंइंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ (Integrated Guided Missile Development Programme -IGMDP) की शुरूआत की। इस योजना के अंतर्गत ` त्रिशूल '  (नीची उड़ान भरने वाले हेलीकॉप्टर्स  , विमानों तथा विमानभेदी मिसाइलों को निशाना बनाने में सक्षम), ` पृथ्वी '  (जमीन से जमीन पर मार करने वाली, 150 किमी0 तक अचूक निशाना लगाने वाली हल्कीं मिसाइल),' आकाश '  (15 सेकंड में 25 किमी तक जमीन से हवा में मार करने वाली यह सुपरसोनिक मिसाइल एक साथ चार लक्ष्यों पर वार करने में सक्षम),` नाग '  (हवा से जमीन पर अचूक मार करने वाली टैंक भेदी मिसाइल), `अग्नि ' ( उच्च तापमान पर भी  ठंडी  रहने वाली 5000 किमी0 तक मार करने वाली मिसाइल) एवं ` ब्रह्मोस '  (रूस से साथ संयुक्त् रूप से विकसित मिसाइल, ध्व़नि से भी तेज चलने तथा धरती, आसमान और समुद्र में मार करने में सक्षम) मिसाइलें विकसित हुईं।दुनिया में ये अपने आप में इकलौता अपनी तरह का प्रोग्राम था।  पहली बात तो भारत से पहले इस तरह की क्षमता रखने वाले कुल हुई ५ देश थे सबने  मिसाइलों को एक एक करके बनाया था।  भारत ने एक साथ पांच मिसाइलों पर काम शुरू किया था।  सबसे ख़ास बात उनका बजट और देशो के मुकाबले केवल १/५ था।  भारत ने इन ५ मिसाइलों में से ४ को पहले ही प्रयास में सफलता पूर्वक बना लिया था।  ऐसा चमत्कार कलाम साहब की लीडरशिप में की किया जा सकता है।   
इन मिसाइलों के सफल प्रेक्षण ने भारत को उन देशों की कतार में ला खड़ा किया, जो उन्नत प्रौद्योगिकी शस्त्र प्रणाली से सम्पन्न हैं। रक्षा क्षेत्र में विकास की यह गति इसी प्रकार बनी रहे, इसके लिए डॉ0 कलाम ने डिपार्टमेन्ट ऑफ डिफेंस रिसर्च एण्डर डेवलपमेन्टं ऑर्गेनाइजेशन अर्थात डी.आर.डी.. (Defence Research and Development Organisation -DRDO) का विस्तार करते हुए आर.सी.आई. नामक एक उन्नत अनुसंधान केन्द्र की स्थापना भी की। 
डॉ0 कलाम ने जुलाई 1992 से दिसम्बर 1999 तक रखा मंत्री के विज्ञानं सलाहकार  तथा डी.आर.डी.. के सचिव के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने भारत कोसुपर पॉवरबनाने के लिए 11 मई और 13 मई 1998 को सफल परमाणु परीक्षण किया। इस प्रकार भारत ने परमाणु हथियार के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण सफलता अर्जित की। 

डॉ0 कलाम नवम्बर 1999 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे। इस दौरान उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया। उन्होंने भारत के विकास स्तर को विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की तथा अनेक वैज्ञानिक प्रणालियों तथा रणनीतियों को कुशलतापूर्वक सम्पन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नवम्बर 2001 में प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार का पद छोड़ने के बाद उन्होंने अन्ना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। उन्होंने अपनी सोच को अमल में लाने के लिए इस देश के बच्चों और युवाओं को जागरूक करने का बीड़ा लिया। इस हेतु उन्होंने निश्चय किया कि वे एक लाख विद्यार्थियों से मिलेंगे और उन्हें देश सेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य करेंगे ; लेकिन अभी तो भारत सरकार में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण सम्मान बचा था जो उन्हें दिया जाना बाकि था।  तब देश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली NDA सरकार राज कर रही थी।  देश में २००२ ई ० में राष्टपति पद के लिए चुनाव होने थे। NDA सरकार ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया तो विपक्ष ने उनका समर्थन किया। कलाम साहब को निर्विरोध भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया।  कलाम साहब  25 जुलाई 2002 को भारत के ग्यारहवे राष्ट्रपति  के रूप में निर्वाचित हुए। वे 25 जुलाई 2007 तक इस पद पर रहे। वह अपने देश भारत को एक विकसित एवं महाशक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं। उनके पास देश को इस स्थान तक ले जाने के लिए एक स्पष्ट और प्रभावी कार्य योजना है।
कलाम साहब की काबिलियत का ही जलाल है कि लगभग २३ विश्वविद्यालय उन्हें `डॉक्टर ऑफ़ साइंस ' की उपाधि दे चुकी है। उसके अलावा जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय उन्हें डॉक्टर ऑफ़ फिलॉसोफी की मानद  उपाधि दे चुकी है।  विश्वभारती शांति निकेतन और डॉ 0 भीमराव अम्बेडकर विश्व विद्यालय , औरंगाबाद ने उन्हें  डॉक्टर ऑफ़ लिट्रैचर की मानद उपाधि दी है।  
इनके साथ ही साथ वे इण्डियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, इण्डियन एकेडमी ऑफ साइंसेज, बंगलुरू, नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज, नई दिल्ली के सम्मानित सदस्य, एरोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया, इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एण्ड् टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियर्स के मानद सदस्य, इजीनियरिंग स्टॉफ कॉलेज ऑफ इण्डिया के प्रोफेसर तथा ` भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन ' में अध्यापन का काम भी करते है।  ये सब  भारत के छात्रों के तकनीकी विकास और भारत के तकनीकी विकास के लिए कर रहे है।  
 उनके कामों के लिए कई संस्थाए उन्हें विभिन्न सपुरस्कारों से विभूषित कर चुकी है।  भारत  सरकार भी उन्हें `इंदिरा गांधी पुरस्कार ( १९९७ ई ० में ), पद्म भूषण (१९८१ ई० में ), पद्म विभूषण (१९९० ई० में ), और भारत का सबसे बड़ा सम्मान `भारत रत्न ' (१९९७ ई० में ) प्रदान कर चुकी है।  


अब्दुल कलाम एक तपस्वी होने के साथ-साथ एक कर्मयोगी भी हैं। अपनी लगन, कङी मेहनत और कार्यप्रणाली के बल पर असफलताओं को झेलते हुए आगे बढते गये। अपनी उपलब्धियों के दम पर आज उनका स्थान अर्न्तराष्ट्रीय वैज्ञानिकों में से एक है।
 प्रारम्भिक जीवन में अभाव के बावजूद वे किस तरह राष्ट्रपति के पद तक पहुँचे ये बात हम सभी के लिये प्रेरणास्पद है। उनकी शालीनता, सादगी और सौम्यता किसी महापुरुष से कम नही है। उनसे मिलने की इच्छा स्वाभाविक है जो हममें से कई लोगों की होगी।। उनके जीवन से हम बहुत प्रभावित हैं। हम उनको अपना आर्दश मानते हैं।

डॉ. कलाम बच्चों तथा युवाओं में बहुत लोकप्रिय हैं। हम सब आदरवश उन्हे मिसाइल मैन कह कर बुलाते हैं। अपने सहयोगियों के प्रति घनिष्ठता एवं प्रेमभाव के लिये कुछ लोग उन्हेवेल्डर ऑफ पिपुलभी कहते हैं। परिवारजन तथा बचपन के मित्रजनआजादकह कर पुकारते थे।
कोई आज भी साधारण जीवन ही बिताते है। उनका मकसद भारत के विकास में  योगदान देना है। अपने ज्ञान और विचारों और अनुभव को देश के  छात्रों के साथ बाँटने के लिए ही उन्होंने अब तक लगभग ७ किताबें भी लिखी है। देश के प्रति उनका समर्पण इस बात का सुबूत है कि वो विवाह के लिए तक टाइम नहीं निकल सके।  उनका कहना है -" सपने देखना बेहद जरूरी है; लेकिन सपने देखकर ही उन्हें हासिल नहीं किया जा सकता।  सबसे ज्यादा जरूरी है जिंदगी में खुद के लिए लक्ष्य तय करना "
 भारत  धरती को गौरवान्वित करने वाले महापुरुष को शत-शत नमन करते हुए मैं इस अध्याय को बंद करता हूँ और उनके स्वस्थ और लंबे जीवन की कामना करता हूँ।