Thursday, August 23, 2012

new hindi film FANDAA audition in meerut

मुझे अपने पाठकों को जानकारी देते  हुए ख़ुशी हो रही है की हम अपनी film `फंदा` शुरू  करने  जा रहे है. हम पहला audition मेरठ में रख रहे है. film  की कहानी और बाकी लेखन का काम मेरा है। हम  पहला ऑडीशन हम मेरठ में क्र रहे हैं.जो 29 sep. to 5 oct  तक होंगे.ऑडीशन   जगह  वगैरह के बारे में film  के ऑडीशन पोस्टर पर आपको सारी जानकारी प्राप्त हो  जाएगी. वो इसी पोस्ट के साथ मैं आप तक पहुंचा रहा हूँ       आप 08979749700 या 08410364865 पर कॉल करके भी जानकारी ले सकते है.

 मेरी film  का वेब लोंक
http://www.facebook.com/pages/Fandaa/470416342982245
आप लोग चाहें तो वहां से भी जानकारी ले सकते है .
मेरठ ऑडीशन के बाद हम दूसरे  शहरों (देहरादून, चंडीगढ़, नॉएडा)में भी आयेंगे.

Tuesday, July 24, 2012

love diary 11

अध्याय 20
तारीख़ वो भी अगस्त की अंतिम सप्ताह की ही थी जब मेरे पास मेरी एक और सहेली वैभवी का फोन आया. वो मुझसे तीन साल बड़ी है. मेरे पड़ोस मेरहती थी।उसका बस  एक छोटा भाई ही था तो पडोसी होने के नाते वो मेरे करीब आ गयी.वो मेरे रिसेप्शन में भी आई थी.कुछ नोर्नल  बातें हुईं  चूँकि दोनों की मैरिड  थी कुछ  शरारती बातें भी हुई. फिर मैंने पूछा-" तू ये बता मेरठ कब आ रही है?"
" मैं तो जब तू कहे आ  जाउंगी।..?"- वो अधिकारपूर्ण भाव से बोली-" पर फिलहाल तू कल नोएडा आ रही है।"
"क्यों?"
"यार, मेरी मेरिज एनिवर्सरी है"- वो चहकी-"उसी को सेलिब्रेट करने के लिए तुझे बुला रही हूँ। कल शाम तक या शाम से पहले कभी भी अपने मियां को लेकर आ जा।"
"यार ......"
 " ओए ज्यादा टशन मत झाड.."-उसने बात बीच में ही काट दी-"तू  आ रही है तो आ रही है."
" यार, उनसे बात करके बताती हूँ।"
" बात-व़ात  कर  या मत कर ...."-उसने कहा-"अरे यार मेरे में मिलने के लिए एक रात  मियां की बांहों से अलग  नहीं गुजार  सकती? वैसे भी पार्टी आधी रात तक ही चलने वाली है. उसके बाद तू फ्री हो जाएगी. बाकी रात तू अपने मियां जी  की बाँहों में गुजर लेना।"
" ok, I will try..."-मैंने कहा-" उम्मीद हैं वो मान जायेंगे।"
" तू मनाएगी तो मानेंगे क्यों नही भला।."-वो आत्मविश्वास से बोली-" वो क्यब तेरी बात टालेंगे।"
मैं गहरी साँस लेकर रह गयी।
***
' वो' बिना हुज्जत के तुरंत तैयार हो गये।
सो।..
अगले दिन शाम को तकरीबन आठ बजे हम नॉएडा स्थित वैभवी के घर पहुँच गये।वहां  पर मैंने एक बात को खास तौर पर नोटिस किया कि वहां  पर किसी भी कपल के साथ कोई बच्चा नहीं था.
कुल मिलाकर वो एक कपल पार्टी थी.
जब हम वहां पहुंचे तो ज्यादातर मेहमान आ चुके थे. नाश्ते का दौर चल रहा था। वैभवी ने मेरा खुली बांहों से स्वागत किया। उसके मियां भी उसके साथ ही थे। हम दोनों के मियाओं के बीच भी शेक हैण्ड हुए, हेल्लो का आदान प्रदान हुआ।. हम दोनों ने एक दुसरे के मियां का परिचय करवाया. उसके मियां जी मेरे वाले को लेकर मर्दों की टोली की तरफ चले  गये. वैभवी ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे लेडीज ग्रुप की   तरफ बढ़ गयी।
हालाँकि पार्टी लीविंग हॉल में ही चल रही थी। सब आपस की बातों में मशगूल थे नाश्ते के दौरान. मुझे लेडीज की तरफ  ले जाती हुई वैभवी फुसफसाई-" बड़ी कमजोर-सी लग रही है. रात को तेरे मियां जी तेरा ज्यादा `जूस` निकल देते हैं क्या?"
मेरा पूरा शरीर झनझना उठा मनो उसमे बिजली भर गयी हो। मेरा स्वर थरथरा रहा था, जब मैंने उसे दबे स्वर में डांटा -" shut-up"
वो बस  कुटिल भाव से हंसी.
मेरे भीतर `आह` उभरी।
इतने में हम लेडीज के पास  पहुँच गईं. वैभवी ने मेरा परिचय सबसे करवाया और फिर अच्छी मेजबान की तरह बोली-" बता क्या लेगी।....तू यहीं ठहर मैं लेकर आती हूँ"
" कुछ भी लाइट ही लेकर आना यार।.."-मैंने गुजारिश की-" सीधे घर से ही  आ  रहे है।"
" मुझे  पता है घर से ही आ रहे हो...."-वैभवी बोली-"कम-से-कम डोम घंटे का सफ़र है. वैसे क्या गारंटी है कि सीधे यहीं आ  रहे हो ....."-वो कहती- कहती कुटिल भाव से मुस्कुराई-" ये भी तो हो सकता है सुनसान जगह देखकर तेरा मियां जी तुझपर टूट पड़ा हो और ..."
"shut-up."-मैंने उसका कन्धा ठोका-"दिमाग बहुत  ख़राब हो गया है तेरा"
मगर  उसपर कोई  असर नहीं पड़ा. अपितु उसकी मुस्कान हंसी में तब्दील हो गयी, और  औरते भी अपने  लिपस्टिक से पुते होंठों पर मुस्कान सजाए मेरी तरफ देख रही थीं. उनकी नजरे यूँ मेरे बदन का जायजा ले रही  थी मानों हमारे द्वारा रस्ते में की यी शरारतों के सुबूत ढूंढ रही हों। हर नजर मुझे अपने बदन में चुभती सी महसूस हो रही थी।  मैं परे देखने  लगी।
हल्का फुल्का नाश्ता चलता रहा, तभी वैभवी मेरी बांह पकडकर धेरे से अधिकारपूर्ण भाव से बोली-" चल तुझसे बात करनी है।"
मैं उलझी मगर मेरे इंकार की कोई वजह नहीं थी। सो जब वो चल दी तो मैंने उसे फोलो किया।
 ***


Thursday, May 17, 2012

something abt my new book

http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=36&edition=2012-05-17&pageno=24#id=111740631371097072_36_2012-05-17


यह सीधा सादा उपन्यास है। कुछ हद तक इसे एंटरटेनिंग, रोमांटिंक और
पति-पत्‍‌नी के बीच सेक्स को प्रभावी तरीके से रखने का प्रयास है। फिर भी
आप ये नहीं कह सकते कि उपन्यास कोई स्पष्ट मैसेज देता नजर नहीं आता है।
कुछ हद तक इस पुस्तक में परिवार के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए
दांपत्य को बनाये रखना कितना महत्वपूर्ण होता है के ऊपर आधारित है। इस
पुस्तक में पति-पत्‍‌नी के उस नाजुक रिश्ते को टच करने का प्रयास किया
गया है, जिसमें पति अपने स्पाउज को फिजिकली सटिसफाई नहीं कर पाता। इस बात
को लेकर उपन्यास में पति-पत्‍‌नी के बीच एक सार्थक संवाद पैदा करने की
कोशिश की गई है। इस काम में लेखक कितना सफल हुए हैं इसे आप पढ़कर खुद ही
अंदाजा लगा सकते हैं। दोनों के बीच जारी संवाद में ये बात भी उभरकर आता
है कि ये सब बकवास है कि कौन परफेक्ट है और कौन नहीं। सही मायने में तो
कोई भी पति पत्‍‌नी की चाहत हो पूरी तरह से संतुष्ट नहीं कर सकता। दोनों
के बीच मतभेद के कारण भी यही होते हैं। यह दांपत्य जीवन में कभी कभार कटु
अनुभवों के दौर तक पहुंचता है तो कभी शांत भी हो जाता है। यह क्रम चलता
रहता है। समझदारी का अभाव रखने वाले लोग इसी बात को लेकर भ्रम में फंसते
हैं और उसका परिणाम कई बार मौत को अंजाम देने तक पहुंच जाता है। मगर
जैविक आवश्यकताओं की सही समझ रखने वाले व जिंदगी को करीब से जानने वाले
समझदार लोग स्थिति में उसी रूप में स्वीकार करते हैं जिस रूप में उनके
सामने वह आता है। ऐसे दांपत्य संतुष्टि-असंतुष्टि दोनों के बीच लाइफ को
खूबसूरत बनाने में जुटे रहते हैं और वही जिंदगी को सही मायने में जीने
में कामयाब भी होते हैं। -सिटी रिपोर्टर

love diary 10

अध्याय -19
शादी के शुरूआती दिनों में लड़की को अगर सबसे ज्यादा किसी चीज का इन्तजार रहता है तो वो है रात के होने का.
रात को कब उसके मियां का सानिध्य मिलेगा और कब।..........(हिस्श्श्श! समझ गये ना.) 
पर रात   मेरे लिए  बैरन  बनकर आई थी। मेरे मन की ख्वाहिशें भी अब बेकाबू होने लगी थी।
मुझे नहीं लगता कुछ गलत भी था। आखिर उन्ही ख्वाहिशो को पूरा होने का तब से इन्तजार कर रही थी जब से बचपन का साथ छोडकर मैंने टीन  ऐज में कदम रखा  था।
मेरी कामनाओं की तुष्टि के लिए कई तैयार भी थे. शशांक ने कोशिश भी की थी (थैंक गोड़  वो कामयाब नहीं हो सका था ) मगर मैंने खुद को सेफ रखा. ख्वाहिशों के घोड़ों पर विवेक की लगाम कसे राखी ताकि चरित्र पर दाग न लगे।
किन्तु ..........परन्तु ..............लेकिन।
अब चरित्र पर दाग लगने का डर  भी ख़त्म हो गया था। बिस्तर पर हर रात बनने वाली तकियों  की दीवार असहनीय होने लगी थी। बिस्तर मानो  गर्म तवा होता था जो सारी  रात मेरे बदन को  जैसे भून रहा होता था. विवशता का भी ये हाल होता था कि  ज्यादा करवटें बदलते हुए भी डर  लगता था कहीं `वो` परेशान  होकर और दूरी न बना लें.
ओह!
कितना पत्थर दिल था वो आदमी कि बात भी ऐसे करता था  जैसे कोई एग्जिक्युटिव  अपनी फर्म की किसी  यूनिट की प्रोग्रेस रिपोर्ट लेता हो।
नजर तब भी नहीं मिलते थे।
उनका मुझे `आप` कहना ऐसा लगता था जैसे वो मुझे हर बार ये अहसास दिला रहे हों  कि  हम आज  भी पराये है। 
हम उनके और मेरे रिश्तेदारों के घर भी डिनर  के लिए गये. न्यूली वेड कल के परिवार के लोगो से परिचय  के लिए ये  प्रथा -सी है. वो मेरे रिश्तेदारों में दामाद के रूप में पोपुलर होते जा रहे थे. मैं उसके परिवार की बहु तो बन ही चुकी थी। 
कई बार मैंने इन्फीरियर फील  किया-`क्या कमी है मुझमे? और क्या खास है उनकी  प्रेमिका मे- जो वो मुझे नजर तक उठाकर नहीं देखते.`
मजे की बात ये थी कि  मुझे आजमाने के लिए भी तैयार नहीं थे. 
***
तारीख अगस्त के आखिर की थी।शशांक का फोन आया -" i m coming sweetheat."
मैं सन्न रहा गयी . 
यूँ बौखलाई  जैसे अचानक किसी धूमकेतु  की आमद की खबर मिल गयी हो।-"क्या  बात कर  रहे हो?इतनी जल्दी?"
"इतनी जल्दी क्या मतलब?"-वो हंसा-" मैंने बताया तो था न छ: महीने के बाद आने वाला हूँ। छ: महीने पूरे हो तो हए।"-उसकी आवाज में दीवानगी का भाव आ मिला था-" सच पलक, यकीन मानो  इन छ: महीनो में कितना मिस किया है तुम्हे-मैं ही जानताहूँ।तुम्हारे दीदार के लिए यु तडपा हूँ जैसे प्यासा मोर बरसात की एक बंद के लिए......" 
वो जाने क्या-क्या कहता रहा .
मेरे  अंदर तड़प ने ऐसा सर उठाया की कानो ने सुनना की बंद कर  दिया. आँखों में आंसू  इस कदर  भर गये 
की सब धुंधला नजर आने लगा था। मुझे बस  इतना पता था कि  वो कुछ कहता चला जा रहा था मगर क्या -पता नहीं।
इतना अंदाज तो मुझे हो रहा था कि  वो अपनी तड़प को शब्द दे रहा था.
अंत में मैंने भर्राए स्वर में बस इतना ही  कहा-" तुम  आ जाओ ......."
और फोन को डिस्कनेक्ट कर दिया
मेरी ग्रिप से मोबाइल छोटकर बैड  पर गिर पड़ा. 
 मैं बैड पर से उतरकर बाथरूम की तरफ दौड़ पड़ी एक वाही तो जगह थी जहा मैं खुलकर आंसू बहा सकती थी।

***
बाथरूम से निकलकर मैंने सबसे पहले मिसेज यादव को फोन किया और उन्हें शशांक के फोन के बारे में बताया. उन्होए कहा 
उन्होंने सुसंयत स्वर में कहा-"हाँ, मेरी उसे बातब हो चुकी है."
" आंटी, अब क्या होगा?"-मैंने नर्वस स्वर में कहा.
"" तुम चिंता मत करो।"-उन्होंने कहा.
" जी।" - मेरे मुंह से निकला. मैं समझ गयी कि  पहले ही कुछ सोचे बैठी थीं।

Friday, April 27, 2012

love diary 9

अध्याय-१८
अगले दिन सुबह.
बरसात के मौसम में एक बार अगर झड़ लग जाये तो कई दिनोंतक बूंदा-बांदी होना कोई हैरानी वाली बात नहीं होती. सुबह के वक्त तो नहीं हो रही थी, हाँ बूंदा-बांदी जरूर हो रही थी.
नाश्ते के बाद ऑफिस जाने से पहले कमरे में से आवाज दी. मैं किचन से दौड़ती हुई बैडरूम में गयी. वो बैड पर पैर लटकाकर बैठे हुए थे
'कुछ कहना थ?"-मैंने पूछा.
"हाँ, कई दिनों से आपसे बात करना चाहता था."-वो बोले-"एक भी बार आपने फर्म के बारे में नहीं पूछा. हिसाब-किताब की बात नहीं की."
"मैं क्या पूछूं?"-मैं बोली-"मैं तो बिजनेस के बारे में कुछ नहीं जानती."
"पर   आपको जानना चाहिए."उन्हीने बिस्तर से उठते हुए कहा-"आपका बिजनेस है. ये कैसे रन कर  रहा है -इसपर आपको नजर रखनी चाहिए.मुझे लगता है आपको फर्म ज्वाइन कर लेनी चाहिए"
"नहीं ."-मैंने कहा-""मैं इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहती. रही बात फर्म के  हिसाब-किताब की तो  उसे चाचू देख लेंगे."
" ना."-तत्काल ही उनका स्वर सख्त हो गया-"मैं इसके लिए बाध्य नहीं हूँ."
"मतलब?"-सख्त मेरा स्वर भी हो गया.
"विल के हिसाब से मैं बिजनेस का केयर टेकर हूँ."-वो बोले -"साथ ही ये भी ही हिदायत है की इसमें मैं किसी और को इन्वाल्व न करूँ."
"बट, वो मेरे चाचा हैं, कोई गैर  नहीं."
"सॉरी."-वो अपने इरादे पर अडिग थे -"मैं ये नहीं करूंगा.सर ने मेरे हवाले किया है. मैं किसी और को इसमें इन्वोल्व  नहीं करूंगा."
मैं भन्ना गयी.
पर सच ये था की मैं कोई पंगा नहीं करना चाहती थी. न ही मैं कुछ करने में एबल थी, सो मैंने  झर का घूँट सा पीकर कहा-"हम इस बार में शाम को बात करेंगे."
***
मैंने सुरेन्द्र चाचा के पास फोन किया तो उन्होंने असमर्थता शो कर दी.
"बेटे, भाई साहब  ही विल बनाकर गये है."-वो घायल से भाव से  बोले-"इस बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता.अगर उन्हें हमपर यकीन होता  तो वो ऐसा क्यों करते?"
***
मेरी समझ में कुछ नहीं  आया
मैंने छोटे चाचा से बात की. उनका भी व्ही जवाब मिला. उनकी टोन  भी बड़े चाचा जी के जैसी थी. मैंने नाना  जी से बात की नाना जी ने कहा-"तू खुद ही उसका ध्यान  रख ले ना. एक ऑडीटर हायर कर ले. वो सारे अकाउंट ऑडीट कर देगा. ?
"मैं किसी ऑडीटर को नहीं जानती."
"वो मैं देखा लूँगा."-नाना जी ने कहा-"हर तिमाही पर फर्म का अकाउंट ऑडीट करवा लिया करना. उसे पॉवर ऑफ़ अटोर्नी है तो क्या मालकिन तो तू ही है न. अगर कुछ गलत दिखे  तू अपने हक यूज करना."
"ठीक है."
मैं जरा सी रिलैक्स  हो गयी.
बाते करने के बात मैंने मोबाइल को डिस्कनेक्ट करके बिस्तर पर फेंक दिया और रिलेक्स होकर कमरे में टहलने लगी. मैं बालकनी में चली गयी और शबनम आंटी को आवाज  देकर चाय के लिए साथ  बनाने के लिए बोल दिया. सी पल मुझे  स्टोर में रखे गिफ्ट्स का ध्यान आया. मैंने सोचा चलो जब तक चाय बनती है तब तक नेहा का ही गिफ्ट चेक कर  लिया जाये.
मैं स्टोर में  गयी.
स्टोर रूम में जाते ही मेरा ध्यान वहाँ  पर रखे रबड़ के भयानक चेहरे पर गया जो तब भी हँसता हुआ स्प्रिंग के सहारे ठुमक रहा था. उसे देखते ही मेरे होठों पर बरबस ही मुस्कान थिरक उठी.
उसी पल मेरे मन में नयी खुराफात उभरी-" देखूं तो सही ' उनके' दोस्त ने क्या पर्सनल माल गिफ्ट किया है?"
मैंने नेहा  के गिफ्ट को देखने का प्रोग्राम पोस्टपों करके उन दोनों गिफ्ट्स को देखने  का इरादा बना लिया जो तब अधखुले पड़े थे.
मैंने पहले एक गिफ्ट को पूरा खोला. ओसके अंदर झाँका और उसमे एक पैंटी, एक बर्थ- कंट्रोल  को गोलियों का पैकेट रखा हुआ देखा.
दूसरा गिफ्ट खोलकर देखा. उसमे बस K-Y jelly और सिलिकोन लुब्रिकेंट ट्यूब्स रखी हुई थी. वो किस काम की थीं मैं जरा भी नहीं समझी.  ( हालाँकि अब समझती हूँ सिलिकोन लुब्रीकेंट तो हम अब यूज भी  करते हैं.)
उन दोनों ट्यूब्स को मैंने  कई बार  उलट-पुलट कर देखा, और अब कुह समझ में नहीं  आया तो यथा स्थान वापिस रख दिया. रक बात मेरी समझ में नहीं आई-' उन्होंने वो गिफ्ट्स ज्यों-के-त्यों क्यों रख दिए थे इनमे क्या खास बात है?"
खैर!
मैंने  वहां से अपना फोस हत्या और नेहा  के गिफ्ट पैक को उठा लिया और  बडबडाते हुए-"पता नहीं इस स्टुपिड ने  क्या भेजा है.?"-गिफ्ट पैक को को खोलना शुरू कर दिया.
मैंने उसे खोला तो मेरा ध्यान उसमे रखी  हुई नाइटी पर गया. मैंने उसे बहर निकालकर उसे खोलकर हवा में झुलाकर देखा. वो स्किन से मैच करती हुई गुलाबी  एकदम  पारदर्शी नाइटी थी. उसको देखने के बाद मैंने उसे साइड में रख दिया. पैक में रखे दुसरे आइटम को देखा तो उनमे एक डॉटेड  कंडोम का पैकेट था. एक D.V.D. थी उसपर लिखा था.  watch and try it.
मैं जरा-सी उलझ गयी.
मैंने तुरंत स्टोर से  बाहर आकर अपना लैपटॉप उठाकर  ऑन किया और  D.V.D. को उसमे डाला और उसे प्ले कर दिया.
D.V.D. की टाईटलिंग ने ही एरा दिमाग घुमा दिया. मेरा समूचा चेहरा कनपटियों तक ढकते अंगारे की तरह लाल सुर्ख हो गया था. बदन का समूचा लहू खौलता तेजाब  बन गया था  मानो. उस फिल्म की टाईट्लिंग में ही वासनात्मक सीन्स चल रहे थे. लड़के द्वारा ' जुल्म' होने पर किलकारियां मर रही थी.
वो एक पोर्न फिल्म थी.
उसी पल मेरे कानों में किसी की पदचापें  पड़ीं तो मेरा ध्यान उस तरफ गया. दरवाजे पर शबनम   आंटी  खड़ी  थी. लैपटॉप की स्क्रीन को फोल्ड कर दिया और ह्वासों को काबू पाने की कोशिश करती हुई बोली-"यस आंटी, क-क्या काम है?"
"क्या देख रही थी बेबी?"-शबनम आंटी ने मेरा चेहरा गौर से देखते हुए पूछा.
"N-N-nothing..."-मैं कहा-"कुछ काम था?"
"पकोड़ियाँ यहीं लाऊं या बैडरूम  में?" -वो गंभीरता से बोली.
"बैडरूम में ही तो हूँ मैं "-मैं चौंकी. उलझी.  तत्काल मेरे याद   आया-"तोड़ दी अंग्रेजी की टांग."-मैंने तत्काल मुस्कान दबाई.
अगले ही पल गंभीर हो गयी.-"नहीं.'
"नहीं मीन्स......?"
"i dint want anything."-मैं फ्लो में कह गयी-"i am leaving."
"क्या बोला?"-सब उनके सर के ऊपर से निकल गया था.
अगले ही पल  मैं समझ भी गयी उनके चेहरे के रिएक्सन  देखकर. सो बिस्तर से उठकर बोली-"मैं कहीं  जा रही हूँ. चाय नाश्ता तुम सब कर लेना."
"कहाँ जा रही हो?"
"नेहा के घर."-कहकर मैं निकल गयी.
***
" तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया है?"-मैंने घर जाते ही नेहा को आड़े हाथों लिया. उस समय वो अपने बैडरूम में पड़ी सो रही थी जब मैंने जाकर उसे जगाया.
"क्या हो गया यार."-वो बैड पर बैठकर अंगडाई लेते हुए एकदम इनोसेंट भाव से  बोली. --"तू बारिश में क्यों इतने खद्दे खा रही है?"
" तुमे गिफ्ट में क्या भेजा था?" मैंने उसे घूरा.
" यार, मैंने कुछ भेजा ही कहाँ है?"-वो पलकें झपकती हुई सदीद हैरानी  से बोली.
"मैं शादी के गिफ्ट की बात कर रही हूँ."-मैंने खुश्क भाव से कहा. 
" शादी का गिफ्ट......."-वो हैरानी से मेरा मूंह तकती रह गयी." ओह्ह  गोड! तुने वो गिफ्ट आज खोलकर देखा है?"
" नहीं कल खोला था `उन्होंने `"-मैंने बताया-" मैंने  उसे अब देखा."-मेरी टोन  तुरंत क्रोध से भर गयी.-" कितनी गन्दी हो गयी है तू!"
" ओए-होए मेरी जान ."-उसने उठकर मुझे अपनी बांहों में भर किया और बिस्तर पर ढेर होकर बोली-" रात को जब अपने पतिदेव के साथ वो `गन्दा` काम मजे लेकर करती होगी तो मुझे गंदा नहीं लगता होगा. हमने इस काम को  और ज्यादा स्पाईसी बनाने का सामान क्या दे दिया- मैडम को पतंगे लग गये." 
" ईडियट,  हम कुछ नहीं करते."-मेरे मूंह  से बरबस ही निकला. 
उसने मुझे झटके से यूं बंधन मुक्त किया कि जैसे मेरे बदन में कांटे उग आए हों,वो परे छिटक हई-" are you out of mind?"
मैं उठकर बिस्तर पर  बैठ गयी
नेहा भी उठकर मेरे पास बैठ गयी. मेरे पहलू में बैठी वो मुझे यूँ देखती रही मानो मैं कोई एलियन होऊं.
" सब ठीक है ना?"-वो गम्भीर भाव से बोली.
" मतलब?"
"तेरे एंग्री यंगमैन को कोई प्रॉब्लम वगैरा तो नहीं है?"
" न, सब एकदम ठीक है."-मैंने आत्मविश्वास से कहा भरी स्वर में -"वो अपनी गर्लफ्रेंड के साथ सब कर रहे है ना- अगर प्रॉब्लम होती तो क्यों करते.?"
" तुझे  क्या पता की वो करता है?"
"पता है."-मैंने भरी स्वर में बताया-"कल उनकी जेब से कंडोम का पैकेट मिला था. उनमे एक कम था. वो जो एक कम था वो उन्होंने अपनी गर्लफ्रेंड के आलावा किसपर कुर्बान किया होगा?"
नेहा के चेहरे पर गुस्से के भाव आये.
"I can`t beleave this."-गुस्से से वो बोली-" How cheap he is! इतना गिरा हुआ कोई आदमी कैसे हो सकता है! गर में नई-नवेली बीवी के होते हुए भी वो स्तुपिद बहार मुंह मरता फिर रहा है."
"मैं उनकी बीवी नहीं हूँ."-मैंने हताशा से कंधे झटके. परे देखने लगी. मन में डर था  कहीं वो मेरी आँखों में वेदना को नोटिस न कर  ले .
"क्या बात कर रही है!!!!!"-सदीद हैरानी का भाव था उसके स्वर में. उसका हाथ मेरे कंधे पर टिका हुआ था.-"ये कैसे हो सकता है?'
मैं उसके मुखातिब होकर सब बताती चली गयी.
वो हैरानी से मेरा चहरा देखती हुई सब सुनती रही. जब मैंने उसे सब कुछ बता दिया तब भी वो बस मेरा चेहरा  देखती  रही.एकदम चुप. बैडरूम के  तनावपूर्ण माहौल में बाहर की बारिश का शोर गूँज रहा था. 
"अब एक ही बैडरूम में सोते हो?"-उसने मुंह खोला.
"हाँ."
"एक बैड पर?"
"बताया तो है- हाँ."
"कमाल की विल पॉवर है बंदे में."- वो बोल पड़ी.-"तेरे जैसी हसीन लड़की के साथ वो पूरी रात रहता है और कुछ भी नहीं करता-this is amazing yaar."
मैं अंदर से जल गयी- कैसी कमीनी दोस्त है मेरी ये नहीं सोच रही कि मैं  खुद को कैसे  कंट्रोल कर रही थी.
" कुछ भी अमेजिंग कहाँ है, यार?"-मैंने फीकी मुस्कान के साथ कहा-"अगर भूख होगी तो ही मन बेकाबू होगा ना. साड़ी भूख तो गर्लफ्रेंड के सात शांत कर लेते है. फिर क्या रक पड़ता है की मैं रात भर आस-पास होती हूँ या नहीं."
चंद पल ख़ामोशी के बाद वो बोली-" यार तेरे याद है ना- एक बार तुने कहा था की तू तब पोर्न मूवी देखना पसंद करेगी जब तेरा स्पाऊज़ तेरे साथ होगा ताकिउसे देखकर  जो आग तेरे बदन में लगेगी उसे शांत करवा सके. मैंने सोचा अब तो तुझपर प्यार की बरसात करने वाला मिल गया है. तो तुझे भी पोर्न मूवी दिखा दूं. वो नाइटी इस वजह से दी थी ताकि जब तू उसे पहनकर अपने मियां के सामने जायगी तो 'सबकुछ' झलकता देखकर वो दीवाना हो जायेगा.कंडोम का पैकेट ये इशारा किया था कि मजे इ चक्कर में पड़कर अभी से केयरलेस मत बन जाना और अभी से फेमिली शुरू मत कर देना. डॉटेड  कंडोम से औरत को ज्यादा  मजा आता है."
" चल छोड़ ये सब."-मैंने टॉपिक बदलने कि कोशिश की.-"कोई और बात सुना."
सचमुच ही हमने टॉपिक बदल भी लिया.

Tuesday, February 28, 2012

love diary 8

शाम को मैं  किचन में थी.  तब भी बारिश पड़ रही थी.
" बेबी आपका फोन है..."-शबनम आंटी ने मेरा मोबाइल मेरी तरफ बढाते हुए  कहा.
फोन तब भी बज रहा था.
"आंटी, सब्जी का ध्यान रखना ....."-मैंने फोन लेते हुए व्यस्त भाव से कहा-"मैंने हल्दी मिर्च डाल दिए हैं.नमक   आप डाल देना."
मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर निगाह डाली.
वो शशांक का नम्बर था, जो फ्लैश हो रहा था.
उस नम्बर पर नजर पड़ते ही एक टीस-सी मेरे दिल  में उठी.
उस टीस की वजह से मेरा समूचा वुजूद तडपकर रह गया.
मैं फुर्ती से किचन से बाहर निकली, कहीं शबनम आंटी मेरे चेहरे पर तडप नोटिस न कर लें .
***
" हेल्लो."-मैंने माउथपीस में कहा तो मुझे  लगा जैसे मेरी आवाज सागर के तल को छूकर बाहर निकल रही थी.
अपने बैडरूम  में जाते ही मैंने काल रिसीव की थी.
" कहाँ हो तुम????"-उसने दूसरी तरफ से नाराजगी से कहा-"इतने दिनों से चैटरूम में तुम्हे देख रहा हूँ. तुम ऑनलाइन क्यों नहीं होती हो? फोन भी कई बार स्विचऑफ  मिला. कई बार बैल गयी तो तुमने कॉल अटैंड   ही नहीं की."
"म..मैं  बाथरूम में होउंगी. "-मैंने बहाना बनाया-"ध्यान नहीं गया होगा."
"बहाना मत बनाओ."-उसने रोषपूर्ण लहजे में  कहा-"सच बताओ तुम मुझे क्यों नेगेक्ट कर  रही हो??"
"नेग्लेक्ट नहीं कर रही..."-विवशता से मैं मिमियाई-"बस, मैं किसी से  बात नहीं करना चाहती."
"क्यों?"
"मेरा म..मन नहीं करता."
"पलक, अपनों से बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा???"-शशांक ने मुझे समझाने का प्रयत्न किया-"सारे गम अपनों से ही शेयर किये जाते है. मानता हूँ यार  अपने पापा के गुजर जाने के बाद तुम खुश नहीं हो  बट क्या खुद को घर में बंद कर लोगी?"
"न..नहीं वो  बात  नहीं है."
"तो?"
"अभी मैं  नोर्मल नहीं हो  पा रही हूँ."
"क्या इस तरह लोगों से कटकर नार्मल रह पाओगी?"-शशांक ने मुझे समझाने की कोशिश की -"पलक, हम सिर्फ दोस्त ही नहीं है यार , हम लाइफ पार्टनर भी  हैं. तूम अपनी हर तकलीफ मुझे शेयर करो. अगर ऐसी कोई बात है जो मुझसे शेयर नहीं कर सकती तो मम्मी से शेयर कर लो."
" No-No. I m fine ...."- मैं कांपते हुए स्वर में बोली.
उसकी हर बात जैसे मेरे जख्म पर नमक का फाहा रख रही हो.  तडप के कारण मेरा बुरा हाल था.
"Are you sure?"--वो बोला.
"Yaa...absolutely."
"तो तुम मुझे नेगलेक्ट तो नहीं करोगी?
"तुम स अपनी ट्रेनिंग पर  ध....ध्यान दो बस"-मैंने  बात बदली-"यहाँ पर मेरी केयर करने के लिए बहुत लोग हैं."
"इस वक्त कहाँ रहती हो?"
"अपने घर में."-मैंने बताया.
"अकेली?"
"नहीं, शब्बो आंटी भी यहाँ शिफ्ट हो गयी हैं."-मैंने बताया-"और `वो` मेरे साथ हैं ही."
"वो कौन?"
" व्..वो एंग्री यंग मैन.."मैन बालकनी की तरफ बढती हुई बोली.-"वो मेरी पूरी केयर करते है. "
"एंग्री यंगमैन.."शशांक का लहजा खुश्क हो गया था.
"  नहीं-नहीं ..शब्बो आंटी और उनके हसबैंड .."मैं बोली.मैंने संशोधन किया मानो.-"वो मेरी पूरी केयर करते है.?
"तो अब  उसे घर से निकल जो दो..."-शशांक ने कहा-"अब तो तुम्हारे पापा भी नहीं है."
मैं तत्काल सकपकाई.
गडबडा गयी.
अगले ही पल मैं बोली-"शशांक, एक्चुली पा  ने कहा था `उन्हें`  यही रहने दूं...."-विराम लेकर मैं बोली -"वैसे भी हमारा कोई सम्पर्क नहीं होता. बस ब्रेकफास्ट पर मिलते हैं या डिनर पर. बातचीत तक नहीं होती  है उस दौरान ठीक  से."
"ठीक है, तुम अपना ख्याल रखना."
" हाँ,रखूंगी..."-मैं बोली-"तुम मेरी चिंता मत करो. मेरी जरा-सी भी फ़िक्र मत करो. बस अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दो."
" I love you Palak..."-वो गम्भीर स्वर में बोला.
मेरे वुजूद पर मानो तेजाब बरसा था.
मेरे दिल को किसी बेरहम शिकारी ने जैसे मुट्ठी में लेकर कसकर भींच दिया था. तडप के कारण आँखों में आंसू
छलक पड़े. बरसता आसमान भी जैसे शोक गीत गा  रहा था.
"I love you too....."मैं  भर्राए  स्वर में कहती हो घूमी तो मेरा शरीर जम सा गया था जैसे.
मेरे सामने `वो`  खड़े थे . लगातार मुझे देख रहे थे. पता नहीं क्यों , तब मुझे लगा मानो मैं चोरी करती हुई पकड़ी गयी होऊं.मेरी आवाज और ज्यादा भ्रर्रा  गयी. मैं बोली-"I will  call you later."
और शशांक का जवाब सुने बिना ही सम्पर्क काट दिया.
वो तब भी लगातार मुझे घूरे जा रहे थे.
क्यों?
मैं नहीं समझी.शायद समझ भी जाती अगर मैं उनकी आँखों में झांकर देखती.आँखों में तो  तब झांककर देखती जन मैं उनसे नजर मिला पाती. फोन मजबूती से अपने हाथ में थामे आंसुओं से भरी नजर झुकाए  मैं  उनके पास से होती हुई बैडरूम से बाहर  निकल गयी.
किचन में जाते-जाते मैंने रास्ते में  ही आँखें साफ़ कर ली थीं ताकि शबनम आंटी मेरे आंसूं न देख लें.
***
मैं रूटीन के अनुसार डिनर लेकर बैडरूम में ही गयी.
रोज ही हम ख़ामोशी से खाना खाया करते थे मगर उस रात डिनर के वक्त  पर ख़ामोशी  थोड़ी-सी तनावपूर्ण-सी थी. बरसात के गूंजते शोर  में हमारे मुह के चलने की  आवाजें आ रही थीं.
खान निबटा.
मैंने खाने के बाद गंदे बर्तनों को उठाकर ले जाकर किचन के सिंक में डम्प कर दिया ताकि सुबह के समय नौकरानी  साफ़ कर दे.
मैं वापिस बैडरूम में गयी.वो बिस्तर के बजाए स्टडी टेबल पर बैठे किताब के प्रूफ पढ़ रहे थे.
मैं रूम का दरवाजा लाक करके बिस्तर पर चली गयी.
फिर ख़ामोशी.
बारिश का  शोर निर्बाध गूँज रहा था. मेरा मूड था मैं कुछ  टी.वी. पर देखूं, मगर टी.वी. ऑन करती तो कमरे   में शोर होता जिससे  उन्हें काम  करने  में दिक्कत  होती. उस   रात तो  हमने रात  के आठ  बजे ही डिनर कर लिया था.क्योंकि वो  छ: बजे ही  आगये थे.
बोरियत ने  जब तंग कर दिया तो अचानक मेरा ध्यान उन  गिफ्ट्स की तरफ गया जो  मेरे बैडरूम के स्टोर में रखे थे. वो भी तो तब तक खोले नहीं गये थे
सो!
मैं उठी और स्टोर में चली गयी.
स्टोर रूम में गिफ्ट्स पैक्स का ढेर लगा हुआ था. जो पैक्स उनके थे पहचान वालों के थे वो भी, और जो मेरी पहचान वालों की तरफ से आये थे , सब मिक्स थे.
मैं स्टोर रूम के फर्श पर बैठ गयी और एक-एक करके छांटकर अपने रिश्तेदारों के गिफ्ट्स खोलने लगी.
मैं दो ही गिफ्ट खोल  पाई थी कि स्टोर के दरवाजे पर आहट पाकर मैं चौंकी.
उधर लुक दी.
वो थे.
वो सवालिया निगाह से मुझे देख रहे थे. -"what are you doing?"
"बोर हो रही थी. सोचा गिफ्ट ही चैक कर लूं."-मैंने कहा-"खैर, ये तो बहुत ज्यादा है. आप नहीं देखना चाहते?आपके पहचान वालों ने भी तो फिफ्ट दिए है."
"हाँ, दिए है."-वो बोले-" मुझे नहीं  पता कहाँ रखे है."
"सब इन्ही में मिक्स है."
"ओह्ह."-वो जरा हिचकिचाए.
"आप  नहीं देखना चाहते?"
"हाँ.."-वो बोले-"मैं स्क्रिप्ट को बंद करके रख आऊं."
"OK..."मैंने कहा.
चाँद मिनटों में वो  वापिस भी  आ गये.
स्टोर रूम  ज्यादा बड़ा नहीं था.थोडा-सा  सामान  पहले ही रखा था. साथ में फैले पड़े गिफ्ट्स  पैक की वजह से थोडा-सा ही स्पक्रे बचा था. वहां  पहले से ही मैं भी बैठी थी. सो, उन्हें मेरे पास ही बैठना पड़ा.
हम दोनों ने गिफ्ट्स खोलने शुरू किये.
नोर्मल कपल्स वाले गिफ्ट्स.
राधा-किशन, दो बच्चों के कपल वाली , तोता-मैना उत्यादी कपल वाली चीजें हर गिफ्ट  गिफ्ट में थी.एक-दो गिफ्ट्स के बाद हम दोनों के हाथ में जो भी गिफ्ट आता था हम खोलकर देख लेते थे. अगर गिफ्ट पैक पर लिखा नाम हमारे लिए अजनबी होता था तो हम गिफ्ट के पैक पर लिखा नाम पढकर दुसरे को बता देते- वो  दुसरे की  पहचान का निकल  आता था.
"ये निकुम  चावला  कौन   है......?"-गिफ्ट पैक पर लिखे नाम को पढकर मैंने पुछा.
" he is my chieldhood chum........."-वो मुस्कुराये -"खोलकर देखो क्या हैं इसमें?"
वो गिफ्ट काफी बड़ा था.
मैंने गिफ्ट को खोलना शुरू किया तो उन्होंने अपने हाथ में थमे  पैक पर से ध्यान हटाकर मेरी तरफ देखना शुरू क्र दिया. गिफ्ट खुलते ही बरबस मेरे  होठों से चींख निकल गयी.शुक्र था मैं पछाड़ खाकर नहीं गिर पड़ी. मेरा पूरा वुजूद ही कांपकर रह गया था. रूह दहल उठी थी.
गिफ्ट में से एक भयानक सूरत जम्प मारकर बाहर निकली थी.
`वो` भी स्तब्ध.
फिर अगली ही पल हमे आभास हुआ वो रबड़ का था. नकली था.
हम दोनों विश्फारित नेत्रों से उस रबड़ के भयानक चेहरे को देख रहे थे, जो दाँत दिखता हुआ ठुमक रहा था.
स्टोर में पिन साइलेंस का माहौल चाय रहा.  हम लगातार कई पलों तक फ्रीज हालत में.........उस ठुमकते हुए भयानक चेरे को देखते रहे. फिर मैंने `उन्हें` लुक दी.
हमारी नजरे मिलीं तो हमारे होठों पर मुस्कान न्रत्य कर उठी.वो मुस्कान हंसी में तब्दील होती चली गयी.
"are you fine..."-हँसते हुए वो बोले.
"हाँ....'मैंने बताया-"ठीक हूँ  मैं."
मैंने सावधानी  से  गिफ्ट पैक  से उस भयानक चेहरे को बाहर निकला तो स्प्रिंग समेत वो बाहर निकल  आया.मैंने गिफ्ट पैक में झांककर देखा तो उसमे एक ग्रीटिंग  कार्ड रखा मिला. मैंने ग्रीटिंग बाहर निकला.खोलकर उसे  पढ़ा. लिखा था -
साले , कमीने तो इसी गिफ्ट के लायक है.  अबे   शादी में नहीं बुलाया तो कोई बात  नहीं , अब क्या सुहागरात भी अकेला ही मनायेगा क्या????
                                                                                                                   तेरा बाप -
                                                                                                              निकुम  चावला
पढकर मेरा चेहरा सिन्दूरी हो गया.
"क्या लिखा है?"-वो सस्पैंस भरे स्वर में कहा.
मैने कोई जवाब न देकर वो कार्ड उनकी तरफ बढ़ा दिया. उन्होंने कार्ड कोलेकर पढ़ा और मुस्कुरा दिए.
"लगता है  नाराज हैं वो..."-मैं बोली.
"वो गलत नहीं है..."-वो मुस्कुराते हुए तत्काल वो गम्भीर हो गये.-"पर उसे बताता भी तो तभी न जब सचमुच  शादी हो  रही होती."
मैं भी गम्भीर हो गयी किन्तु उन्हें  गिफ्ट पैक खोलने मेंपाकर मई भी  व्यस्त हो गयी.
उसके बाद उनके एक और अत्यंत क्लोज फ्रेंड का मेरे हाथ में आया.  जैसे ही  मैंने नाम बताया तो उन्होंने वो ले  लिया-" क्या पता इसमें क्या छिपा रखा है उसने ."
उन्होंने  उसे खोला मैं इंटरेस्ट लेती हुई उन्ही  की  तरफ देखने लगी.  मैं एक्स्पेक्ट के  रही थी कि उसमे भी  कोई सरप्राइज होगा. हायद था कुछ सरप्राइज  ही. गिफ्ट पैक के डिब्बे में  झांककर उन्होंने देखा. मुकुराए और डिब्बा बंद  करके अपनी  साइड में रख  लिया.  मैंने पूछना चाह-"इसमें क्या है?"-मगर  होंठ खोलकर सख्ती से बंद क्र लिए.
हम दोनों फिर अपने गिफ्ट्स खोलने लगे. नेहा का गिफ्ट उनके हाथ  में   आया नेहा का नाम गीत पर पढकर वो बोले-"ये तो आपकी शेली  है ना, the verry  close one?"
" Na.............the only one  who is close with me ."
"लो तो देखो क्या भेजा है उसने?"-उन्होंने गिफ्ट  पैक  मेरी ओर बढाया मगर मैंने इनकार क्र दिया-"आप ही निकल लो बाहर."
"ओ.के."-उन्होंने लंधे उचके दिए.
गिफ्ट खोला.
झांककर देखा और तुरंत ही गिफ्ट पैक बंद कर दिया और एक तरफ रख दिया.
मैं चौंकी. उलझी-"क्या है इसमें."
"कुछ  काम की ही चीज  है."उन्होंने  कहा-"पर अभी काम नहीं  आने वाली."
"कब आयेगी?"
"शादी के बाद."-वो बोले -" जब आप अपने बॉय फ्रेंड से करोगी."
मेरी समझ में कुछ  नही आया. चाहती थी की देहूं पैक में क्या कैद करके नेहा की बच्ची ने भेजा था मगर नहीं कर सकती थी. ये बात पक्की थी  कुछ  पर्सनल था इसी  वजह से वो सामान  उन्होंने बाहर नहीं निकला.  देट्स मीन -वो चाहते थे मैं उस सामान को पर्सनली देखूं.
सो!
मैंने गिफ्ट को तब नहीं देखा.
***
सारे गिफ्ट्स देखने के बाद हमने उन्हें वहीं छोड़  दिया. दो गिफ्ट्स उन्हों पैक मैं ही रहने दिए.  नेहा का गिफ्ट भी वहीं र छोडकर मैं बेडरूम में आ गयी थी.
तब आधी रात होने को थी.
बिस्तर पर उसी तरह तकियों का बरसात तब भी पड़ रही थी सो मौसम थोडा ठंडा हो गया था. किंग साइज बैड के लिए लिहाफ भी किंग साइज  ही था  मैंने अपने लिए लिहाफ निकाल लिया. था.
"आपको ठण्ड तो नहीं लग रही?"-मैं बोली-" आप भी ओढ़ लो."
"नो थैंक्स."-वो बोले -"इट्स ओ.के."
 मैने लिहाफ ओढ़ लिया.
हम दोनों लेट गये. हमारे चेहरे एक दुसरे के विपरीत थे. मैं सोने की कोशिश करने लगी. कमरे की ख़ामोशी में बरसात के शोर बीच उनका स्वर मेरे कानों में पड़ा-"अज किसका फोन आया था?"
"कब?"
"शाम को."- उनकी आवाज-"जब मैं आया था. ..........आप बालकनी में खड़ी बात कर रही थी."
"तब........."
"हाँ."
"व्-व्-व्-वो  शशांक का फोन  आया था."
"आपका बॉयफ्रेंड."
मुझे अच्छा नहीं लगा.
"ह-हाँ."-मैं बोली.
"क्या सब ठीक है?-उनकी  आवाज.
"हाँ."-मैंने कहा-" कोई प्रोब्लम नहीं है हम दोनों के बीच "
उन्होंने और कुछ  नहीं पूछा.