Tuesday, June 9, 2015

खामोश नायक

क्या किसी भी कामयाबी का महत्व ढोल-नगाड़े बजाकर ही जस्टिफाई किया जा सकता है ? अगर शोर मचाकर वैल्यू ज्यादा बनती है तो रात के समय ख़ामोश चाँद की निर्मल चांदनी से ज्यादा वैल्यू भिनभिनाते जुगनू के न के बराबर प्रकाश की होती - जो अपने गिर्द कुछ बालिश्त भर भी प्रकाश नहीं फैला पाता।  दीया हमेशा ख़ामोशी  से जलता है लेकिन वो घर को रोशन करता है।  

      हमारे इस  खामोश नायक की आवाज में लोगों को कोई करिश्मा नजर नहीं आता ; किन्तु अगर उनके कार्यों पर नजर डाली जाये तो वो देश नहीं दुनिया के  राजनेताओ में  खड़े  नजर आते है।  उनके कामों के कारण ही जापान सरकार ने २०१४ ई० में उन्हें-'द ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ पॉआलोनिया फ्लावर्स'Grand Cordon of the Order of the paulownia flowers)- अवार्ड से नवाजा।  ये दुनिया भर में उनके सम्मान का बड़ा सुबूत है।  २००५ ई० में दुनिया की प्रतिष्ठित  पत्रिका TIME ने उन्हें दुनिया के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया।  २०१० ई० में अपील ऑफ़ कंसिएन्स फाउंडेशन (Appeal of Conscience Foundation) ने उन्हें वर्ल्ड स्टेटमन  अवार्ड ( world stateman award) से 

सम्मानित किया। उनके अलावा भी उन्हें लगभग ३० सम्मानो से नवाजा 

जा चूका है 
        
        दुनिया भर में उस खामोश नायक को यूँ ही सम्मान नहीं मिलता।  

अमेरिका  के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उनके अर्थशास्त्रीय  ज्ञान के कायल हैं।  भारत जब आर्थिक मुश्किल में जूझ रहा था।  देश  दीवालिया  घोषित  करने की नौबत आती दिख रही थी।   देश निराशा में डूबा हुआ था।  तब १९९१ ई० में देश के तात्कालिक प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिम्हा राव  उन्हें  देश का वित्त मंत्री अपॉइंट किया। उनका मानना था कि देश दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है।  तब उन्होंने कहा था -" दुनिया में कोई भी उस विचार को नहीं रोक सकता जिसका समय आ गया है।"
      अपने उन वाक्यों से उस कमजोर आवाज वाले  खामोश से नजर आने वाले नायक ने देश को बता दिया था कि देश का वक्त बदलने का वक्त आ चुका था। और उन्होंने भारत का वक्त बदलकर भी दिखा दिया।  उन्होंने न केवल देश की अर्थवयवस्था को पटरी पर लाकर खड़ा किया बल्कि उसे गति भी प्रदान की। 
     २००४ ई० में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के पद की बागडोर संभाली ; और जब २०१४ ई० में वो सत्ता से हटे तो वो नेहरूजी के बाद लगातार देश के प्रधानमंत्री पद पर सबसे ज्यादा समय तक बने रहने वाले वाले इंसान ( नेता नहीं लिखूंगा ) थे ; साथ ही वो देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना चुके थे।  
      हाँ.....
       इस ख़ामोशी से काम करने वाले नायक - डॉ० मनमोहन सिंह - की यही विडंबना  है कि वो ना बगलोल है ना अपने काम का चीख-चीखकर ढिंढोरा पीटते हैं।  अगर भारत की अर्थव्यवस्था के जनक के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू को जाना जाता है तो माननीय डॉ० मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधारो के जनक माना जाता है।  
                                स्कूल के प्रधानाचार्य  मनमोहन सिंह का नाम टॉपर्स लिस्ट  दिखाते हुए
     डॉ० मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के लिए जो किया वो तुक्का नहीं कहा जा सकता।  उनकी कामयाबी की सबसे बड़ी खासियत ही ये है कि उन्होंने लगातार कामयाबी हासिल की है। वो जमीन से उठकर बुलंदी तक पहुंचे है- मगर ये कभी नहीं प्रचारित करते की उनकी माँ, उनकी पत्नी कितने  रूपये की चप्पल पहनती है या पहनती थी।  वो कभी इस बात को  प्रचारित नहीं करते कि वो खाली हाथ किस तरह-विभाजन के बाद- भारत आये। उन्होंने  बंटवारे का दंश बड़े ही साफ़ तरीके से सहा था , जब देश आजाद  मनमोहन सिंह जी पंद्रह साल के थे।बंटवारे के बाद वो अपने परिवार के साथ माइग्रेट होकर अमृतसर आ गए।  उन हालातो में तो कहा  जा सकता है कि उनके पास जमीन तक नहीं थी। एक परिचित ने उन्हें रहने के लिए अपने भैंसों के बाड़े में जगह दी।  सब खोकर भी उन्होंने आगे बढ़ने का जज्बा नहीं खोया। हमेशा पढाई में अव्वल रहे।  जब चंडीगढ़ में ग्रेजुएशन कर रहे थे तो मिटटी का तेल बचने के लिए लालटेन में न पढ़कर स्ट्रीट लाइट के प्रकाश में पढाई किया करते थे और टॉपर रहे। पढाई के दौरान (जब छात्र का खुद का भविष्य सुरक्षित नहीं होता )  उन्होंने एक लड़की से वादा किया किया कि वो अपनी पढाई पूरी करके उससे शादी करेंगे।  उस वादे के साथ उन्होंने अपने साथ एक और जीवन के भविष्य को निर्धारित करने का फैसला किया। और वो वादा निभाया भी आज वही लड़की ( गुरशरण कौर ) उनकी पत्नी और उनकी तीन बेटियों की माँ है।  
       मनमोहन सिंह की कामयाबी की फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि उसे चंद  पन्नो में समेटकर नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्ट्रेट की। जब उन्होंने अध्यापन किया तब छात्रों के फेवरिट प्रोफेसर हुआ करते थे। उस समय प्रसिद्ध पत्रकार उनके स्टूडेंट हुआ करते थे वो बताया करते थे-" वो कॉलेज के स्टूडेंट्स को साइकिल पर लिफ्ट दिया करते थे।" 
                                  मनमोहन सिंह अपने परिवार के साथ 
      देश के आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने हर स्तर पर काम किया।  वो मुख्या सलाहकार भी रहे , वित्त सचिव भी रहे , अब तक के चौथे सबसे बेहतर RBI गवर्नर माने जाते है। पांच साल तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। देश के वित्त मंत्री के रूप में वो हर महीने अपने वेतन के रूप में सिर्फ १ रुपया लेते थे ( क्या इसका प्रचार कहीं मिलता है ????)
      मनमोहन सिंह जी को उनके पिता बचपन में  मोहन  करते थे। उनका नाम उनके काम के  कारण पूरी तरह सार्थक सिद्ध  होता है। मनमोहन सिंह जी को लोगों को अपना शैदाई बनाने के लिए किसी प्रचार की जरूरत नहीं  उन्होंने हमेशा  काम किया है , ख़ामोशी के साथ काम किया है। अब वो रिटायर हो चुके हैं। मुझे पता है वो हमेशा की तरह खामोश रहेंगे मगर मेरा दवा है जब भविष्य में इतिहास लिखा जायेगा और लोग उनके कामों के बारे में जानेंगे तो देश की हर पीढ़ी उनकी शैदाई बन जाएगी।  
     

Wednesday, June 3, 2015

बाल काटने वाला अरबपति

अगर कोई कहे अमुक नाई ( जातिसूचक नहीं कर्म सूचक ) के पास अरबो रूपये की संपत्ति है तो आपको सदीद हैरानी होगी।  भला क्या कोई बाल  काटने वाला इतना पैसा का सकता है !!!!
      लेकिन बंगलुरु के रमेश बाबू अब भी नाई का का काम करते है और अरबों रूपये कजी संपत्ति के मालिक हैं। पाठकों को बता दूँ कि रमेश बाबू ने ये दौलत अपनी हिकमत और मेहनत से कमाई है। इनके पास रोल्स रॉयस, मर्सडीज, बीएमडब्ल्यू और ऑडी जैसी लग्जरी कारों का काफिला है।

ऐसा भी नहीं था की रमेश बाबू मुंह में चंडी की चम्मच लेकर पैदा हुए थे। ४३ वर्षीय बंगलुरु के अनंतपुर के रहने वाले रमेश जब ७ साल के थे तो उनके पिता गुजर गए। पिता बंगलुरु के चेन्नास्वामी स्टेडियम के पास अपनी नाई की दुकान चलाते थे। पिता की मौत के बाद रमेश बाबू की मां ने लोगों के घरों में खाना पकाने का काम किया ताकि बच्चों का पेट भर सकें।दुकान से अतिरिक्त आय हो सके इसीलिए उन्होंने अपने पति की दुकान को महज ५ रुपए महीना पर किराए में दे दिया था।
रमेश बाबू तमाम कठिनाई के बावजूद पढ़ाई करते थे। १२वीं क्लास में फेल होने के बाद उन्होंने इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट से इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा किया। १९८९ ई० में उन्होंने पिता की दुकान वापस लेकर उसे नए सिरे से चलाया। स्कूल के दिनों में ही रमेश बाबू दुकान दोबारा चलने का फैसला कर लिया। उनकी दुकान उसी ईमारत में थी जिसमे उनका स्कूल था। दुकान को मॉडर्न बनाकर उन्होंने उसका नाम INNER SPACE रखा।  दुकान में उन्होंने खूब मेहनत की। दुकान से उन्हें अच्छी आय हुई। अपनी आय बढ़ाने के लिए उन्होंने एक मारुति वैन खरीद ली। चूंकि वह कार खुद नहीं चला पाते थे सो उन्होंने कार को किराए पर देना शुरु कर दिया। २००४ ई० में उन्होंने अपनी कंपनी `रमेश टूर एंड ट्रेवल्स' की शुरुआत की। सैलून के काम के साथ कार के रेंट के काम से उन्हें अतिरिक्त आय होने लगी।  उनकी प्रतिष्ठा और व्यापार तेजी के साथ बढ़ने लगा।   

   १९९० ई० उन्होंने जो व्यापार शुरू किया उसकी तरक्की के परिणामसवरूप  आज रमेश बाबू के पास २५६ कारों का काफिला है। इनमें ९  मर्सडीज, ६  बीएमडब्ल्यू, एक जगुआर और तीन ऑडी कारें है। वह रॉल्स रॉयस जैसी महंगी कारें भी चलाते हैं जिनका एक दिन का किराया 50,000 रुपए तक है। रमेश बाबू के पास ६० से भी ज्यादा ड्राइवर हैं. रमेश के पास सुजुकी इंट्रूडर की हाई एंड बाइक भी हैजिसकी कीमत 16 लाख रुपये है। पूरे बेंगलुरु में रमेश बाबू के अलावा सिर्फ पांच ऐसे    लोग हैंजिनके पास रोल्स रॉयस जैसी कार है।
  आज भी उन्होंने अपना पुश्तैनी काम नहीं छोड़ा, वह आज भी अपने पिता के सैलून इनर स्पेस को चला रहे हैं, जिसमें वो हर दिन २  घंटे ग्राहकों के बाल काटते हैं।
   लग्जरी टैक्सी सर्विस शुरू करने के बाद से रमेश बाबू के क्लाइंट की लिस्ट बढ़ती गई। अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन से लेकर शाहरुख खान जैसी बॉलीवुड सेलेब्रिटी भी उनकी क्लाइंट लिस्ट में शामिल हैं।
   रमेश बाबू रोज सुबह साढ़े ५ बजे अपने गैराज में जाते हैं। वहां गाड़ियों की देखरेख, बुकिंग की जानकारी लेकर साढ़े १० बजे अपने ऑफिस पहुंचते हैं। पूरे दिन क्लाइंट और बिजनेस में बिजी रहने के बाद शाम को ५-६ बजे के बीच वह अपने सैलून जरूर जाते हैं। यहां भी उनके खास क्लाइंटस उनका इंतजार कर रहे होते हैं। रमेश बाबू के मुताबिक, उनके ज्यादातर क्लाइंट्स बाल कटाने कोलकाता और मुंबई से आते हैं।
   रमेश बाबू अपनी दोनों बेटियों और एक बेटे को भी सैलून का काम सीखा रहे हैं। रमेश बाबू का कहना है कि ये एक तरह का जॉब हैं, जिसमें प्रोफेशनल होना जरूरी है। वो उन्हें अपने साथ सैलून भी ले जाते हैं, लेकिन अभी छोटी उम्र होने के कारण उन्हें वहां काम नहीं दिया जाता।
   रमेश बाबू का अगला टारगेट दूसरे शहरों में अपना बिजनेस बढ़ाने की है। वो अपने सैलून और टैक्सी सर्विस को विजयवाड़ा में शुरू करने की प्लानिंग कर रहे हैं। उनका मानना है कि ऐसे शहरों में संभावनाएं हैं। इसलिए फोकस इन्हीं शहरों पर है। हैदराबाद जैसे बड़े शहरों में बिजनेस की सफलता के लिए काफी वक्त लगता है, लेकिन छोटे शहर में आपके पास कई विकल्प होते हैं।

    आज भी एक अमीर आदमी बनने के बावजूद रमेश अपनी जड़ें नहीं भूले हैं। वह अपने सैलून की दरें बढ़ा सकते हैं या फिर सैलून का काम छोड़ सकते हैं। लेकिन वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। रमेश का कहना है कि यह उनका पुश्तैनी काम है। रमेश के पैर जमीन पर किस तरह से टिके हुए हैं, इसका अंदाजा उनकी इसी बात से लग सकता है कि जिस दिन वह बाल नहीं काटेंगे, वह सो नहीं पाएंगे।


Tuesday, June 2, 2015

वीरांगना नीरजा भनोट

ये दुनिया अजीब-सी है।  राजनेता पडोसी देश को दुश्मन कह-कहकर,  जातियों का बंटवारा करके , धर्म का बंटवारा करके अपने लिए वोट की फसल बोते है।  कई बार कामयाब भी हो  जाते है। कुछ टाइम के लिए सत्ता में भी आ जाते है।  
    लेकिन…।
     दुनिया में ऐसे लोग  लिए सरहद की कोई वैल्यू नहीं होती , दुनिया का हर नागरिक उनके लिए अपने परिवार  सदस्य होता है।  शायद इसी भावना से वशीभूत होकर भारत की वीरांगना नीरजा भनोट ने हमारे पडोसी देश ( दुश्मन नहीं लिखूंगा ) -पाकिस्तान- के लोगों की रखा के लिए १७ घंटों तक आतंकवादियों से संघर्ष किया ; और अंत में अपनी जान भी गँवा दी थी।  



    घटना १९८६ ई० की है। 

    फ़्रंकफ़र्ट से न्यू यॉर्क  जाने वाला Pam Am Flight 73 विमान कराची, पाकिस्तान के हवाई अड्डे पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने विमान में प्रवेश किया और पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। पाकिस्तान क्या सारे संसार में हड़कम्प मच गया।  उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द से जल्द विमान में पायलट को भेजे; किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने दबाव में आने से इंकार कर दिया। तब आतंकियों ने फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करें ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किए और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। दुबली-पतली नाजुक-सी को अपनी सीमा पता थी।  उसे  पता था कि वो या फ्लाइट में बैठे ३४० यात्री उन हथियाबंद ट्रैंड आतंकवादियों का- जिनके सर पर खूनंस्वार था - सीधा मुकाबला नहीं कर पाएंगे। उनको दिमाग से ही काबू किया जा सकता था।पाकिस्तान सरकार दबाव नहीं आई तो आतंकियों ने एक ब्रिटिश  नागरिक को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तान सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजा तो वह उसको मार देंगे। तब नीरजा ने दिमाग  इस्तेमाल किया। उन वीरांगना ने  उस आतंकी से बात कर उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
  धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गए। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि वायुयान का ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं। उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिए क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करें। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारों ओर अंधेरा छा गया। नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों से नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी; किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे; किन्तु ठीक थे। अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थीकिन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज़ सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी कि अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उसके सामने खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहां वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को बचा सके। वो वीरांगना अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी; किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी। उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया।
    भारत की इस वीरांगना नीरजा भनोट का जन्म रमा भनोट और हरिश्चंद्र भनोट नामक ब्राह्मण दम्पति के घर चंडीगढ़ हुआ था जो मुंबई में पत्रकार थे। नीरजा ने अपनी शुरूआती पढाई चंडीगढ़ में की, उच्च शिक्षा मुंबई में हासिल की। १९८५ ई० में उसकी शादी हो गयी और वो अपने पति के पास खाड़ी चली गयी। दो महीनो के बाद ही दहेज़ उत्पीड़न बाद के बाद वो भारत में अपने माता-पिता के पास मुंबई लौट आई। उसके उसने Pam Am को फ्लाइट अटैंडेंट के रूप में ज्वाइन किया। चयन के बाद उसे मायामी ( अमेरिकन मियामी नहीं कहते ) ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। वहां से वो purser (जहाज़ पर का ख़ज़ानची) बनाकर लौटी।  
    नीरजा Pam Am Flight 73 में सीनियर फ्लाइट अटैंडेंट थी जो मुंबई से उड़न भरकर 5 AM पर कराची उतरा था 
   17 घंटे तक चले इस अपहरण की त्रासदी ख़ून ख़राबे के साथ ख़त्म हुई थी जिसमें 20 लोग मारे गए थे। मारे गए लोगों में से 13 भारतीय थे। शेष अमरीका पाकिस्तान और मैक्सिको के नागरिक थे। इस घटनाक्रम में सौ से अधिक भारतीय घायल हुए थे, जिनमें से कई गंभीर रूप से घायल थे। भारतीय पीड़ितों की ओर से 178 लोगों ने ओबामा को लिखे पत्र में लिखा है कि वर्ष 2004 में इस बात का पता चला कि पैन एम 73 के अपहरण के पीछे लीबिया के चरमपंथियों का हाथ है और इसके बाद वर्ष 2006 में उन्होंने मुआवज़े के लिए अमरीकी अदालत में एक मुक़दमा दर्ज किया था। नीरजा के बलिदान ने दुनिया भर में कट्टर दुश्मन कहे जाने वाले दो देशो को एकमत कर दिया। नीरजा के  बलिदान के कारण एक ओर जहां भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान `अशोक चक्र' प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को `तमगा--इन्सानियत' प्रदान किया।

  २००४ ई०में ही भारत सरकार ने इस वीरांगना के नाम का डाक टिकट जारी किया। २००५ ई० में अमेरिका की सरकार ने उसे`Justice for Crimes Award' से सम्मानित किया। मुंबई

महानगरपालिका ने भी मुंबई ईस्ट के घाट कॉपर उपनगर के एक चौक


 का नाम उसके नाम पर भनोट चौक रख दिया है जिसका अनावरण


 महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा किया गया। फिलहाल जानकारी


 मिली है कि नीरजा भनोट के जीवन पर एक फिल्म बनाने की तैयारी की


 जा रही है। आशा करता हूँ उस फिल्म को देखकर भारत के लोग उसके


 बारे में  जानेंगे और गर्व करेंगे कि जाति - धर्म , देश की सीमा से ऊपर


 उठकर जान देने वाली वीरांगना भारत की पावन  धरती पर  पैदा हुई।