Monday, August 23, 2010

अशनी बियानी says

अशनी बियानी सुपुत्री किशोर बियानी ने एक bussiness अखबार में दिए साक्षात्कार  में  कहा-" dont forget i am a Marawari.Even now, we use yesterdays left-over  vegetables for tomorows `parathas`. so i watch the cost in whatever i do"
=>क्या बात है!!!!!!!
कोई रात की सब्जी के परांठे खाकर अरबपति बन जाये तो क्या बुरा है यार............सीखो नालायको सीखो.

संसाधन का संरक्षण करना मारवाड़ियों से सीखो

Sunday, August 22, 2010

fact file3

* अमिताभ बच्चन का बायाँ कन्धा झुका होने कि वजह कोई स्टाइल नहीं है....उसकी वजह बाएं कंधे के ट्रेपियम को पकड़कर रखने वाली मांसपेशियां नहीं है.
बच्चन साहब ने अपने गले के ट्यूमर को निकालने के लिए स्टुडेंट लाइफ में एक  २ ऑपरेशन करवाए थे और तीसरा ऑपरेशन अपनी नौकरी के दौरान कोलकाता में करवाया था तब गलती से ऐसी नस कट गयी थी जो कंधे कि मांसपेशी को पकडे रखती है.
* `इन्कलाब' फिल्म में हाथ में बंधा रुमाल कोई स्टाइल नहीं थी बल्कि कुछ दिन पहले बच्चन साहब का ऑपरेशन हुआ था और हाथ पर बंधी पट्टी को छिपाया गया था
` शराबी' फिल्म में पूरी ज्यादातर फिल्म में हाथ जेब में था वो इसी वजह से था.
*१९८३ की विश्व विजेता टीम के manager पी. आर.मानसिंह ने एक पत्रिका को दिए intervew में टीम के लोगों के द्वारा adult फिल्म देखने की बात स्वीकार की है.
घटना इस प्रकार है......"प्रेक्टिस के बाद लड़के बस से होटल जा रहे थे. बस में विडियो पर  adult फिल्म देख रहे थे . अचानक हमे साइरन की आवाज सुनाई देने लगी देखा तो ट्रेफिक पुलिस की कई गाड़ियाँ हमारी बस के आगे पीछे थी. लडके घबरा गये .............झटपट लड़कों ने केसेट, वीडियोबंद करके, छुपाई"

Thursday, August 19, 2010

किसपर यकीन करें?

 आज मैने शहादत हसन मंटो साहब कि एक कहानी पढ़ी नाम था ` खुदा कि कसम` एक बदनाम लेखक के द्वारा लिखी गयी मार्मिक उस कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. गजब की मर्मस्पर्शी कहानी वो भी उस इंसान के द्वारा लिखी गयी जोअपनी गन्दी कहानियों के लिए बदनाम है.................ये अलग बात है उनकी इज्जत काफी है.और उनके काफी प्ले भी खेले जाते है. कहानी इस प्रकार है ......... एक गरीब औरत बंटवारे के बाद अपनी बेटी को तलाश करती फिर रही है . नायक यसे समझाता है की उसे मार दिया गया है(ताकि वो भटकना बंद कर दे)मगर वो नहीं मानती है क्योंकि उसका मन्ना है की उसकी बेटी इतनी ख़ूबसूरत है कि कोई भी उसे मरने के बजाये उसे अपने पास रखना पसंद करेगा. ....................अंत में जब बुढिया की हालत बेहद ख़राब हो जाती है तो एक  बेहद हसीं लड़की एक मर्द के  साथ आती है मर्द उस लड़की को उस बुढिया की ओर इशारा करके बताता है -' तुम्हारी माँ'.  लड़की उसे जबरन वहां से ले जाती है.  अपनी माँ से बात तक नहीं करती. बुढिया लड़की को पहचान लेती है और  उसके बारे में नायक को बताती है. मगर नायक के मन में लड़की के लिए कडवाहट पैदा हो चुकी होती है  और वो बुढिया से कहता है कि  उसकी बेटी सचमुच क़त्ल की जा चुकी है ये बात वो खुदा की कसम खाकर कहता है. वो बुढिया तत्क्षण मर जाती है. वास्तव में बेइंतेहा प्यार करती थी वो माँ अपनी बेटी को........और बेटी इतनी पत्थर दिल निकली कि  उसकी खस्ता हालत देखकर नजर फेरकर निकल गयी.  उसकी माँ की पुकार सुनकर भी नहीं रुकी. वैसे ये नोर्मल है कि माँ बाप बच्चों के लिए बहुत कुछ करते है मगर बच्चे उनके केयर नहीं करते ...........पर इस कहानी को पढ़कर अपने एक दोस्त कि याद आ गयी. उसकी कहानी ज़रा हटकर है. शायद अजीब सी और कडवी भी.
वो अपने परिवार से बेइंतेहा प्यार करता है. बचपन में अपनी माँ कि बड़ी सेवा करता था कोई बहन नहीं थी. कहता था कि माँ को बेटी की कमी महसूस नहीं होने दूंगा. घर के सारे काम करता था लगा रहता था कभी कोई डिमांड नहीं `ऐसे कपडे चाहियें .........ये खाना है` बस दस साल की उम्र में बर्तन साफ़ करता, झाड़ू लगाता,घर में मिटटी लीपता था, पापा के कपडे धुलता था, घर का कूड़ा और गोबर जब सिर पर रखकर घर से निकलता था तो गली की की लडकिय मजाक उड़ाती थी पर उसे कभी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो ये काम अपने परिवार के लिए करता था अपनी माँ की सेवा करता था अपनी माँ के लिए बेटी की कमी को पूरी कर रहा था. दादी पापा खाना कहा लेते थे मगर उसे खाना काम निबटने के बाद ही मिलता था. लाइफ आगे बढ़ी, उसका परिवार बिखरने लगा था. कहते है मेहनती आदमी पर देवता भी मेहरबान होते है उसपर भी सरस्वती मेहरबान थी लोग कहते थे कुछ बन जायेगा. जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी उसे लगा उसके परिवार को उसकी ज्यादा जरूरत है. लोग अपन भविष्य के बारे में सोचते है वो अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचने लगा. हर वक़्त दिमाग में परिवार को एक करने की उलझन रहती थी. इंटर की दोस्त जॉब की तैय्यारियों में लग गए और वो बस ये सोचने में लगा रहता था कि परिवार को एक साथ लेकर कैसे आगे बढूँ. दोस्त कहते कि फॉर्म डाल मगर वो कहता कि graduation के बाद डालूँगा. उसे डर था कहीं परिवार बिखर न जाये. ऐसा नहीं था कि परिवार पर पूरी तरह निर्भर था. थोडा बहुत कमाने भी लगा था. उसी से अपनी पढाई जारी रखे था. फिर लाइफ का सबसे तकलीफ भरा वक़्त आया. उसकी माँ बीमार हुई. हालत लगातार खराब होती जा रही थी माँ की.लग रहा था कि बच नहीं पायेगी. तब माँ से अकेले में बात हुईआज मैने शहादत हसन मंटो साहब कि एक कहानी पढ़ी नाम था ` खुदा कि कसम`
एक बदनाम लेखक के द्वारा लिखी गयी मार्मिक उस कहानी ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. गजब की मर्मस्पर्शी कहानी वो भी उस इंसान के द्वारा लिखी गयी जोअपनी गन्दी कहानियों के लिए बदनाम है.................ये अलग बात है उनकी इज्जत काफी है.और उनके काफी प्ले भी खेले  जाते है.
कहानी इस प्रकार है .........
एक गरीब औरत बंटवारे के बाद अपनी बेटी को तलाश करती फिर रही है . नायक यसे समझाता है की उसे मार दिया गया है(ताकि वो भटकना बंद कर दे)मगर वो नहीं मानती है क्योंकि उसका मन्ना है की उसकी बेटी इतनी ख़ूबसूरत है कि कोई भी उसे मरने के बजाये उसे अपने पास रखना पसंद करेगा. ....................अंत में जब बुढिया की  हालत बेहद ख़राब हो जाती है तो  एस बेहद हसीं लड़की एक मर्द क्वे साथ आती है मर्द उस लड़की को उस बुढिया की ओर इशारा करके बताता है -' तुम्हारी माँ'
लड़की उसे जबरन वहां से ले जाती है अपनी माँ से बात तक नहीं करती. बुढिया लड़की को पहचान लेती है ओर उसके बारे में नायक को बताती है. मगर नायक के मन में लड़की के लिए कडवाहट पैदा हो चुकी होती और वो बुढिया से कहता है की उसकी बेटी सचमुच क़त्ल की जा चुकी है ये बात वो खुदा की कसम खाकर कहता है.
वो बुढिया तत्क्षण मर जाती हैवास्तव में बेइंतेहा  प्यार करती थी वो माँ अपनी बेटी को........और बेटी इतनी पत्थर दिल निकली की उसकी खस्ता हालत देखकर नजर फेरकर निकल गयी उसकी माँ की पुकार सुनकर भी नहीं रुकी वैसे ये नोर्मल है कि माँ बाप बच्चों के लिए बहुत कुछ करते है मगर बच्चे उनके केयर नहीं करते ...........पर इस कहानी को पढ़कर अपने एक दोस्त कि याद आ गयी. उसकी कहानी ज़रा हटकर है. शायद अजीब सी और कडवी भी
वो अपने परिवार से बेइंतेहा प्यार करता है.
बचपन में अपनी माँ कि बड़ी सेवा करता था. कोई बहन नहीं थी. कहता था कि माँ को बेटी की कमी महसूस नहीं होने दूंगा. घर के सारे काम करता था.हर वक़्त  लगा रहता था.  कभी कोई डिमांड नहीं `ऐसे कपडे चाहियें .........ये खाना है`
दस साल की उम्र में बर्तन साफ़ करता, झाड़ू लगाता,घर में मिटटी लीपता था, पापा के कपडे धुलता था, घर का कूड़ा और गोबर जब सिर पर रखकर घर से निकलता था तो गली की की लडकिय मजाक उड़ाती थी पर उसे कभी फर्क नहीं पड़ा क्योंकि वो ये काम अपने परिवार के लिए करता था. अपनी माँ की सेवा करता था. अपनी माँ के लिए बेटी की कमी को पूरी कर रहा था. दादी पापा खाना कहा लेते थे मगर उसे खाना काम निबटने के बाद ही मिलता था.
 लाइफ आगे बढ़ी, उसका परिवार बिखरने लगा था. कहते है मेहनती  आदमी पर देवता भी मेहरबान होते है उसपर भी सरस्वती मेहरबान थी लोग कहते थे कुछ बन जायेगा. जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ी उसे लगा उसके परिवार को उसकी ज्यादा जरूरत है. लोग अपन भविष्य  के बारे में सोचते है वो अपने परिवार के भविष्य के बारे में सोचने लगा. हर वक़्त दिमाग में परिवार को एक करने की उलझन रहती थी. इंटर की दोस्त जॉब की तैय्यारियों में लग गए और वो बस ये सोचने में लगा रहता था कि  परिवार को एक साथ लेकर कैसे आगे बढूँ. दोस्त कहते कि फॉर्म  डाल मगर वो कहता कि graduation  के बाद डालूँगा. उसे डर था कहीं उसके दूर जाने  के बाद परिवार बिखर न जाये.उसकी जॉब लगती तो उसे घर से दूर जाना ही पड़ता. ऐसा नहीं था कि परिवार पर पूरी तरह निर्भर था. थोडा बहुत कमाने भी लगा था. उसी से अपनी पढाई जारी रखे था.
फिर लाइफ का सबसे तकलीफ भरा वक़्त आया. उसकी माँ बीमार हुई. हालत लगातार खराब होती जा रही थी माँ की.लग रहा था कि बच नहीं पायेगी. तब माँ से अकेले में बात हुई. तब माँ ने कहा-"मेरे बाद तेरे भाइयों और पापा का क्या होगा मुझे बस इसी बात कि चिंता है"
तब उसकी समझ में ये नहीं आया कि उसकी माँ के लिए उसकी importance ही नहीं थी या माँ को उसपर ज्यादा यकीन था.
तब उसने अपने बचपन के बारे में सोचना शुरू कर दिया.
पता है बचपन में वो बड़ी शिद्दत से काम करता था तो हमेशा ही ये मानकर चलता था कि उसे कोई मदद नहीं मिलने वाली वो परिवार के लिए जो भी कर ले उसको कोई return मुश्किल ही मिलेगा. पर तब भी यकीन था कि अगर वो टूटकर बिखरने लगा तो कोई कुछ भी करे उसकी माँ जरूर उसे कहेगी-"डर मत, मैं हूँ ना." उसे यकीन था कि भले ही कभी उसने उसकी केयर ने कि हो मगर अगर वो कमजोर पड़ने लगा तो माँ उसका सिर गोद में रखकर जरूर कहेगी-"चल थोडा आराम कर ले"
मगर उसके आखरी टाइम में जब उसने उसके लिखे चिंता जाहिर नहीं कि.............उस हालत में जब वो sattled नहीं था, जॉब नही थी, माँ के गुजर जाने के बाद के बाद घर कि सारी जिम्मेदारी उसी पर आ जानी थी. कोई उसे suport नहीं करता. उसके मोहल्ले वालों  तक  को इस बात का इल्म था मगर माँ को उसकी चिंता नहीं थी. क्यों?कुछ भी हो उसके बाद सच में टूट सा गया.उसे लगने लगा जैसे माँ भी उसे इस्तेमाल कर रही थी. उसने मुझसे पूछा-"यार जिस ओरत के लिए मैं बेटे से  बेटी बन गया......अपना भविष्य तक दांव  पर ही लगा दिया. अपनी लाइफ को मुश्किल बना दिया- उसकी ख़ुशी के लिए ही तो ना. जब उसी ने मेरी केयर नहीं कि तो कौन करेगा?"
सच में मेरी समझ में नहीं आया कि उसे तसल्ली कैसे दूं?
मेरी समझ भी ये नहीं आया कि उसकी ईमानदारी में क्या कमी रह गयी ही कि उसकी केयर नहीं की गयी ?
शायद ये चीज important है ही नहीं कि हम किसी को कितना चाहते है और उसकी कितनी केयर करते है? हर आदमी बस उसी कि केयर करता है जिसे वो चाहता है.हम किसी से कोई भी उम्मीद बस इस वजह से नहीं कर सकते कि हम उसे बेहद चाहते है.