Tuesday, March 15, 2011

love diary 3

अध्याय-७
मुझे मेरी दुआ रंग लाती नजर आने लगी.
हाँ!
अचानक उनका आना बंद हो गया.
वो दो-तीन हफ्ते में एक बार आते थे. उस बार आठ हफ्ते बीत गये मगर वो नहीं आये. आठवे में मेरा मन बेचैन हो गया.
" तू क्यों परेशान हो रही है?"- नेहा ने  फोन पर कहा.-"नहीं आया तो ना सही."
उस समय डिनर के बाद मैंने नेहा के पास कॉल की तब मैं अपने बैडरूम में थी. पापा अपने कमरे में थे.
"yaar, i not worry about it."-मैं फोन पर बोली, बैड पर पीठ के बल लेटी हुई, ठीक ऊपर छत को ताकते हुए जहां पर धीमी चल रहा था.ए. सी. को चलान बंद कर  दिया था क्योंकि व ओक्टोबर का महीना था.
" so waht it is baby?"- वो हंसी.
" यार, मैं हैरान हूँ."- मैं बोली-" पता नहीं उनके साथ कोई ट्रेजिडी तो नहीं हो गयी?"
" अगर हो भी गयी हो तो तुझपर क्या फर्क पड़ता है?"-वो लापरवाही से बोली-" अब तुझे उस ` एंग्री यंग मैन' को फेस नहीं करना पड़ेगा. ये भी हो सकता है कि तेरे पापा ने उस नौकरी से ही निकाल दिया हो. ऐ लिसन,पर वो तेरे पापा की फर्म में करता क्या है?"
" i dont know."
क्यों नहीं जानती ?-उसने ये नहीं पूछा.
 किन्तु.....
तब मुझे इस सवाल ने उलझा दिया.
***
ये सवाल मैंने पापा से किया.शाम के समय जब मैं और पापा घर  के छोटे से  बगीचे में झूले पर बैठे थे. मैंने लाड से पापा के गले में बांह डाल रखी थी और उनसे एकदम सटकर बैठी हुई थी.
" चीफ  प्रूफ रीडर है."-पापा नए बताया.
" बस."- मैं हैरान- "प्रूफ रीडर!"
" हां पर उसकी नालेज गजब की है.हर सब्जेक्ट पर कमाल की  कमांड है उसे. इंटरनेशनल पोलिटिक्स और इकोनोमिक्स तो उसके टिप्स पर रखी रहती है.?"
"इतनी सी उम्र में !"-मैं हैरान-" अगर इतनी नोलेज है तो आइ. ए. एस.वगैरा फोड़ें.-"मैं जरा-सी हिकारत भरे भाव से बोली-" प्रूफ रीडिंग में क्या कम लेते होंगे? तब वैल्यू भी अलग ही होगी."
"वो जॉब करना ही नहीं चाहता."
" क्या अब जॉब नहीं कर रहे?"- मैं व्यंग्य से कह उठी
" नहीं."- पापा ने बताया -"ट्रेनिंग ले रहा है."
" ट्रेनिंग ले रहे है!"- मैं हैरान.
" हाँ"- पापा ने मेरे साथ झोंटे खाते हुए कहा -" दरअसल वो पब्लिकेशन के धंधे में उतरना चाहता है.मेरेपास काम समझने के लिए आया है.मैं तो चाहता था कि वो मैनेजमेंट पर काम करे या मार्केटिंग संभाले पर उसने प्रोडक्सन  चुना.पहले वो सबसे जूनिअर प्रूफरीडर था. अब मैंने उसे चीफ बना दिया है. काम बड़े ध्यान से करता है "
"तो क्या वो आपकी पहचान का है?"
" सीधी पहचान का तो नहीं है."-पापा ने बताया-" एक दोस्त का भांजा है.उसी ने मुझे उससे मिलवाया था."
"ओह"
मैं उनके बारे में और भी ज्यादा जानना चाहती थी. मैं ये भी जानना चाहती थी कि वो अब घर  क्यों नहीं आ रहे थे-मगर पापा से नहीं पूछा.मन में डर था कही पापा के मन में ये बात ना धंस जाये कि उनकी बेटी उनमे ज्यादा उनमे ज्यादा इंटरेस्ट ले रही है.
किसी जवान लडकी का किसी मर्द में ज्यादा इंटरेस्ट लेने का लोग यही मतलब लगते है कि वो लडकी उसपर फ़िदा है.
मैं नहीं चाहती थीं- पापा मेरे बारे में ऐसा सोचें.
***
पापा की  बातें  सुनकर मुझे लगा कि वो शख्स वास्तव में एक छुपा रुस्तम ही है.तब मेरी समझ में आने लगा कि पापा उन्हें इतना भाव क्यों देते थे?
पापा के लिए वो केवल एम्प्लोई नहीं थे उनके दोस्त के भांजे भी थे. उनकी नॉलेज ने उन्हें और ज्यादा प्रभावित किया था.
उनकी डीसेंट नेचर( तब मेरे हिसाब से बोरिंग) पापा को क्लिक कर गयी थी.
पर..........!
वो घर पर क्यों आ रहे????????????
अध्याय-८ 
वो जनवरी का महीना था.
तारिख भी सम्भवत: १०-११ या १२ होगी.
दिन मंगलवार ही था.
मैं कॉलेज से लौटी. मैंने घर के पोर्च पर एक `छोटा हाथी' खड़ा हुआ देखा.कई लोग बड़े ही व्यस्त भाव से उसमे से सामान उतार-उतारकर अंदर ले जा रहे थे.
मैं जरा उलझी.
अपनी कार को मैंने `छोटा हाथी' के ठीक सामने रोका था.मैं कर से उतरी और अपने घर के अंदर की तरफ बढ़ गयी. मुझे यकीन था कि पापा वही पर मिलेंगे.
पापा मुझे ड्राइंग रूम में नजर नहीं आये.मैंने नोटिस किया कि वो लोग सारा सामान ऊपर की तरफ ले जा रहे थे. उसी समय शबनम आंटी किचन से निकली हमेशा  की  तरह वात्सल्यपूर्ण भाव से बोली-"आ गयी,बेबी? आप फ्रैस हो लो मैं आपके लिए डिनर वगैरा तैयार करती हूँ."
डिनर यानि लंच.
वो दोपहर का वक्त था.( आप शबनम आंटी की इंग्लिश की टांग तोड़ने की  आदत को बूले तो नहीं ना?)
मैं चाहती थी कि आंटी कि गलती को सुधारूं मगर नये मेहमान के बारे में उभरी उत्कंठा ने मुझे वो फालतू काम करने से( भैंस के भैरवी राग सुनाने से) रोक दिया.उत्सुक भाव से मैने पूछा-"शब्बो आंटी.कौन आया है?"
" वाही जनाब हैं जो मंगल को आते हैं."-उन्होंने मुंह बनाकर कहा -"आज यहीं आकर तम्बू गाड लिए."
" मतलब ?"
" अब यहीं रहा करेंगे."
"कौन मुकुल?"
" हाँ."
मै तुरंत भागती हुई तेजी से ऊपर की तरफभागती हुई गयी.तपो फ्लोर पर. वहां पर बस एक कमरा, बरसाती, बाकी  खुली छत थी. कमरे से ही अटैच्ड बात और टायलेट  भी थे.
पापा और मुकुल वहीँ थे सारा सामान बरसाती में ही रखा जा रहा था. सीढ़ियों पर दौड़कर चढने के कारण मेरी साँसे फूल रही थी.किताबें वक्ष में दबा रखी थीं. मैंने पहुँचते ही पापा को नमस्ते की.पापा मेरी तरफ पीठ करके खड़े थे और उनसे बातें कर  रहे थे.मेरी आवाज सुनकर वो मेरी तरफ घूमे. मुझे देखते ही उनकी आँखों में हमेशा  की तरह वात्सल्य उमड़ पडा-" ओह!तू आ गयी पलक बेटा."
"जी, पा..."-मैं उखड़ी साँसों के साथ बोली- " पा, ये सामान किसका है?"
" ये मुकुल का है."- पापा ने गम्भीर भाव से बताया-" ये फिलहाल यहीं रहा करेगा."
" क्यूं?"-मैं कह उठी .
पापा ने जवाब नहीं दिया.बोले-" जा शब्बो से पता कर खाना कितनी देर में तैयार हो रहा है?"
" वो कह रही हैं किमैं फ्रेस  हो लूं."-मैंने शबनम आंटी को टोन की  नकल करते हुए बताया-"वो डिनर तैयार कर रही हैं."
" डिनर?"- `वो' चौंके.
मैं और पापा एक दुसरे की तरफ को लुक  मुस्कुराए. मेरे अधरों पर थिरकती मुस्कान ज्यादा चपल थी.पापा ने उन्हें मुस्कुराते हे बताया-"भई, हमारी शब्बो कुछ ज्यदा ही पढ़ी लिखी है. लंच को डिनर, फ्रेश को फ्रेस .."-पापा बता ही रहे थे कि मैंने पापा की टोन से टोन मिलाई-"एप्पल को एप्पिल.बनाना को तरबूज बोलती है."
" ओह रीअली !!!!!!!"-वो तपाक से सब समझ गये.-"तो फिर उन्हें अब तक पी.एच. डी. की डिग्री मिल जानी चाहिए ."
हम सब हंस पड़े.
***
मैं वहां से अपने बैडरूम में गयी.
किताबों को बिस्तर पर फेंका अपनी चुनरी को गले में से निकालकर फेंका. निढाल-सी बिस्तर पर बैठ गयी.मर मन बुरी तरह से उग्द्वेलित था.
मैं उस शख्स का सामना करने से बचना चाहती थी. हालांकि उनके न आने के कारण मन में सस्पेंस भी था. एक रिलीफ भी मिला था कि जब इतना दिनों से नहीं आये तो अब क्यों आएँगे?
और अब.
अब तो वो घर पर ही आ गये थे सामान समेत.
***
"यार,उसके घर में रहने से तुझे क्या प्रॉब्लम है?"-नेहा ने कहा.मैने उसे रात को बैडरूम से फोनपर `उनकी'  आमद की खबर दी.
"अब यार, रोज उसके साथ दिन मा कई बार सामना हुआ करेगा."-मैने फोन को एक कान से दूसरे कान की तरफ शिफ्ट करते हुए कहा-" u know yaar.मैं उसे फेस पसंद नहीं करती."
"पर, जब वो नहीं आ रहा था-तब तू बड़ी तडप रही थी ये जानने के लिए की वो  क्यों नहीं आ रहा."-उसने मुझे तब भी टीज करने का मौका  नहीं खोया. हालाँकि वो जानती थीकि मेरे मन में उनके लिये कोई फीलिंग नहीं थी.-"अब  तो वो तेरे घर ही आ गया है, अब तुझे उसके मंगलवार के दिन न आने पर तडपना नहीं पड़ेगा."
" ओह शट-अप"- मैं झल्लाई-" तू फालतू बकवास तो कर मत."
" अच्छा!"-वो हंसी-" मैं बकवास कर रही हूँ!now just tell me baby why u hate him.?"
" i dont hate him but i dont like him too."-मैं स्पष्ट शब्दों में कहा-"वो कभी-कभार मुश्किल से मुस्कुराते हैं.हर वक्त उनके चेहरे पर बारह बजे रहते है. जब लुक देते है तो लगता है जैसे एक्स-रे से बदन को को खंगाल रहे हों.मेरे से ऐसे बिहेव करते है जैसे मेरी कोई वेल्यु न हो. तू जानती है ही जब वो मुझे ट्यूशन पढाता  था  तो कभी मुझसे फ्रैंक नहीं होता था. पा से खुलकर बातें करता है पर मुझे ठीक से हाए तक नहीं करता."
***
अगले दिन जब मैं कॉलेज में थी मेरे मोबाइल पर शशांक की कॉल आई. उसकी आवाज से साफ़ पता चल रहा था कि वो ख़ुशी के कारण हवा में उड़ रहा था उसने बताया -" मेरा एन.डी. ए. में सलेक्शन  हो गया है."
"क्या बात कर रहा है!!!!!!"-मैं चहकी-" सच्ची."
"ya"
" तो ट्रीट कब दे रहा है?"
" आ जा और ले ले."
 "कहाँ आऊं?"
" वहीं जहां हम हमेशा मिलते हैं."-उसने बताया-"क्लासखत्म होते ही मुझे मिस कॉल मार देना. मैं इधर से चल दूंगा उधर से तुम लोग भी पहुँच जाना."
" नेहा को बता दिया?"
"नहीं, पहला फोन मैंने तेरे पास ही किया है."-उसने बताया-" मैं उसी को फोन करने वाला हूँ तेरे बाद."
 " ओ. के."-मैंने व्यस्त भाव से कहा-"टीचर क्लास में पहुँच गये होंगे मुझे भी पहुंचना है.कट कर रही हूँ. bye see u latter."
"take care."

***
तब बस हम तीनों ही मिले.
वो बस हमारे ही ग्रुप का सेलिब्रेशन था. बस एक छोटी सी ट्रीट उसने दी थी. 
असली दावत तो वो ट्रेनिंग पर से छुट्टियों में आने पर  देने वाला था. तब तक उसे तनख्वा भी
 मिल जाने वाली थी. अब वो सब दोस्तों को बुलाने वाला था. 
अध्याय-९ 
उस दिन रात को मैं अपनी पढाई का काम निबटाकर बुक्स समेत रही थी कि मेरा फोन बजा.
मैंने किताबें सेफ में रखकर वापिस बैड के पास आकर फोन उठाया मैंने फोन के स्क्रीन पर फ्लैश होता देखा- जो कि शशांक का था. मैंने फोन लिए-लिए बैड पर लेटते  हुए  कल्ला रिसीव की-और तकिया अपनी तरफ खींचकर अपने अंक में दबा लिया-" hi Shashank, how r  u. तो कल जा रहा है."
" yaa."
" साड़ी तैय्यारी कर ली?"- मैं चहकी-" किस टाइम डिस्पैच हो रहा है?"
"रात को १० बजे की ट्रेन है"-उसने बताया-"Palak, i want to meet u."
" why?"
" बस मन कर रहा है."
 मैं कुछ न कह सकी. उसकी आवाज की गम्भीरता उसके किसी निर्णायक सोच तक पहुँच जाने की चुगली कर रही थी.
मेरी ख़ामोशी  के बाद वो फिर बोला-" तुम आ रही हो ना?......नेहा भी आ रही है."
" किस वक्त?"
" तुम दोनों कल कॉलेज नहीं जा रही हो."-उसने अधिकारपूर्ण  भाव से कहा-"मैंने नेहा से बात कर ली है. वो घर से  सीधी मेरे पास ही आ रही है."
" ठीक है."-मेरे होंठ थिरके-" मैं  भी आ जाउंगी."
मैंने ये नहीं पूछा- कहाँ आना  है? 
मुझे पता था कि नेहा को अपने घर का पता बता चूका होगा और उसके जस्ट बाद मैं नेहा से ही बात करने वाली थी.
मैंने वही किया. नेहा ने बताया -" कल उसके घर पर ही चलते है. वहीँ पार्टी करेंगे."
"उसके घर?"
" हाँ, उसके ममा-पापा तो घर पर नहीं रहेंगे."-नेहा ने बताया-" कल दोपहर बाद तक ही लोटेंगे. सो उसने सोचा  कल रेंड़ेवू उसका घर ही बना किया जाये."
मैंने कहा-" ओ.के."
 ***
शशांक का घर-|
वो दो मंजिला मकान था- जो कि एच-ब्लोक शास्त्री नगर में स्थित था. मेरा घर साकेत में है और नेहा का घर थापर नगर में.
मैं और नेहा तेजगढ़ी चौराहे पर मिलीं. वहां वो पहले से ही स्कूटी लिए मेरा इन्तजार कर रही थी. मैने भी अपनी स्कूटी पर थी. हम एक साथ  एच-ब्लोक की तरफ चल दीं-जहां पर शशांक हमारा वेट कर रहा था. 
हमे अपनी स्कूटी अंदर ले ली और गेट की मूसली लगा दी.वो हम दोनों को ऊपर वाले कमरे में में ले गया जो कि उसका बैडरूम था.वहीं उसने लहाने-पीने का इंतजाम किया हुआ था.हमारे वहां पहुंचते ही उसने पिज्जा डिलीवरी वाले को फोन कर दिया. लाइट भी आ रही थी.सो हमने टी.वी. ओं करके म्यूजिक चैनल चला लिया. टी. वी. के आवाज कम ही रखी ताकि बात करना में कोई दिक्कत न हो.
पिज्जा डिलीवरी  आधे घंटे में आ गयी.
हम उसके बाद तकरीबन एक घंटे तक बातें करते रहे. कोक के सिप  लेते समय मैंने नोटिस किया कि नेहा और शशांक कि नजरे मिलीं. गुप्त इशारे हुए.
" oh shit."-नेहा चिहुंकी.
"what happened?"-मैं चौंकी.
" आज ममा मेरी ढंग से पिटाई क्र देने वाली है."नेहा ने कहा.-"i must leave."
"why?"-शशांक ने पूछा.
" यार, ममा ने एक काम बताया  था."-नेहा झटके से उठकर  खड़ी भी हो गयी.-" मैं जा रही हूँ."
मैं चुप रही.
" यार, ये अच्छी बात नहीं है."शशांक ने नाराजगी जाहिर की.-"आज मेरे घर आई है. आज रात को मैं जाने वाला हूँ और तू है कि बिजी बनके दिखा रही है."
" हमेशा के लिए थोड़े ही जारहा है."-नेहा ने अधिकारपूर्ण भाव से कहा.-" तू छ:महीने बाद तो लौटने वाला है."- हंस भी पड़ी-" वैसे बजी डियर, तू फोज की ट्रेनिंग पर जा रहा है न कि बोर्डर पर वार के लिए जा रहा है जो तेरे लौटकर आने की गारंटी न हो."
" चल तुझे बाहर तक छोड़ आऊ." -शशांक ने व्यस्त भाव से कहा.
नेहा ने मुझे लुक दी. -" तू यहीं ठहर. हम बाद में मिलते है."
"ओ.के."- मैंने अपनी बांहों को अपने वक्ष पर समेटकर आपस में बांधकर कहा.
"i will call you in evening."
" o.k."
नेहा कमरे से बहार निकल गयी.शशांक ने मुझे बिलकुल लुक नहीं दी और वो नेहा के  पीछे-पीछे चला गया.   मेरे दिल की धडकने बढ़ गयी थी.
कुछ पलों बाद मेरे कानों में आयरन गेट की मूसली खुलने की आवाज पड़ी.फिर चाँद पलों के बाद नेहा की स्कूटी  के इंजन की घरघराहट मेरे कानों में पड़ी फी मूसली के बंद होने की आवाज.
मैं बिस्तर के पास ज्यों-की-त्यों खड़ी थी. 
वो वापिस आया.
कमरे में पिन-ड्रॉप-साइलेंस का माहौल व्याप्त था.लाईट के जाने के बाद टी.वी. अपने आप ही बंद हो गया था,मुझे खड़ी देखकर उसकी आँखों में एक सवालिया भाव उभरा.
" बोल, क्या कहना चाहता  है??"-मैं  बोली 
"sorry?????"-वो उलझा 
" हाँ इसीलिए तो नेहा को इतनी जल्दी  डिस्पैच कर दिया ?"-मैं पूर्ववत्त उसे देखती रही. 
वो सकपकाया-" प-प-प-पलक, its not like that....."
" what do u think  i m a  fool?-मैं एकदम सपाट भाव में कह उठी-" तुम जब नजरो से आपस में इशारे कर रहे थे तो क्या मुझे कुछ नजर नहीं आया-मैं क्या अंधी हूँ."
" पलक......."
मैंने फिर उकसी बात काट दी-" पता है जब तू कल नाईट में मुझे फोन करके मुझे आज इन्वाईट कर रहा था तो तेरिया आवाज से साफ़ पता चल रहा था कि कुछ भी नोर्मल नही है. फिर जब नेहा ने कहा कि तेरे घर को ही रेंड़ेवू बनाने का प्लान  था तो मेरा शक और मजबूत हो गया .............और अब नेहा का जाना. यु नो-वो अपनी ममी की इतनी ओबिडीएंट बेटी नहीं है कि वो  पार्टी बीच में छोड़ दे  वैसे भी उसके घर में नौकर-चाकर कम नहीं है."
इस बार शशांक बुरी तरह से बौखला गया-" पलक लिसन, जैसा तू समझ रही है वैसी कोई बात नहीं है." 
" अगर ऐसी कोई बात नहीं है तोमर टाइम वेस्टक्यों कर रहा है." -तभी मैंने कोड़े की फटकार से लहजे में कहा.
वो और ज्यादा बौखलाया.
चौंका.
अगले ही पल वो सदीद हिरानी से मेरा चेहरा देखता रह गया था क्योंकि वहां पर मद्धम-सी  मुस्कान भरतनाट्यम कर रही  थी.अगले ही पल वो मुस्कान हंसी में तब्दील होती  चली गयी.शब्द मेरे होंठों र मचले -"स्टुपिड, अगर मैं तेर बात सुनना नहीं चाहती होती तो सबकुछ समझ जाने पर भी रुकी क्यों रहती?"
उसकी हैरानी ख़ुशी में बदल गयी.उसका चेहरा यूं खिल गया जैसे मन की मुराद पूरी हो गयी हो.
उसकी हैरानी का भाव भी हंसी में तब्दील होती चली गयी.
 वो मेरी तरफ बढ़ा.
मेरा दिल धक् से रह गया मेरे होंठ थरथराए किन्तु शब्द अंदर ही रह गये.सांसे अव्यवस्थित हो गयी.दिल चाँद पलों के लिए जैसे धडकना ही भूल गया था. " पलक."- वो पूरी गम्भीरता से बोला-" क्या तू भी.......?" 
" ya ,  i like you too."
" don't you love me?"
" शशांक तुझे पता है न-नेहा बता चुकी ही होगी-मैं पा की बात नहीं टाल सकती." मेरा लहजा ख्वाहिशो से भरा  हुआ था,-"मार बीएस चले तो मैं अपनी जिन्दगी अभ तेरे नाम कर दूं पर पा की मर्जी के बिना कुछ नहीं कर सकती."
" पता है."-वो बोला-"पर तेरे मूंह से  सुनना चाहता था."
पता नहीं क्यों?मैं भावविहल होकर शशांक से लिपट गयी.
मेरा शरीर भी मेरी आवाज की तरह कांप रहा था-"i love you too shashank."
शशांक ने भी मुझे अपनी बांहों में कसकर जकड़ लिया.
उसके होंठों का स्पर्श मेरी कनपटी पर हुआ तो मेरा समूचा शरीर जोर से कांपा. रग-रग में बिजली-सी दौड़ती चली गयी.शरीर में छिपा मेरे अरमानों का ज्वालमुखी खदकने लगा.शशांक मेरे कान में फुसफुसाया-"पलक, मेरा यकीन कर. तेरा हाथ थामकर मैं जिन्दगी भर नहीं छोडूंगा."
" पता है."-मैं अपना चेहरा उसके सीना मा छिपाकर बोली-"मुझे तुझपर यकीन है."
" शादी करेगी मुझसे?"
" हाँ, अगर पा मान गये तो कर लूंगी."
उस्न्स्र मुझे अपना से जरा-सी  अलग किया.मेरे मुखड़े को फिर हथेलियों के बीच लेकर मेरे माथे पर किस किया.
उफ़!
वो कैसा भंवर था जिसमे मैं फंस गयी थी. उस कम्बख्त नर जैसे मेरे अरमानों के ज्वालामुखी में विस्फोट कर डालने का इरादा कर रखा था.मैं उस भंवर से निकलना चाहती थी किन्तु निकल नहीं पा रही थी. मुझे पता था अगर मेरे अरमानों का ज्वालमुखी फूट मेरा समूचा वुजूद ही वासना के लावे में फना हो  जायेगा.
उसने फिर मेरी आंख को किस किया  .
दूसरी आंख पर किस किया और फुसफुसाया-"i wish तुम्हारी जिन्दगी में हमेशा नूर बरसता रहे."
मेरे बदन में  मानो ज्वालमुखी का लावा दौड़ने लगा.एक  बार फिर दिल धडकना भूलने-सा गया था. सांसे अंदर ही जब्त हो जाती थी कभी-कभी.
उसके होंठ मेरे मुखड़े पर अपनी मुहर अंकित करने लगेया थे. 
" श-श-श-शशांक......"-मैं मिनमिनाई.
उसने मुझे अपनी बांहों में फिर भर लिया.उसके होंठ मेरी गर्दन को चूमते चले जा रहे थे. उसके हाथ-जहाँ तक उनकी रीच थी- मेरे बदन को सहला रहे थे.
उफ्फ्फ!!!!
मैं मानो पागल हो गयी थी. 
पूरी तरह बेकाबू.
भंवर में तो पहले से ही फंसी हुई थी, किन्तु अब आंतरिक संघर्ष भी शून्य-ससा हो गया था.उसने फिर मेरा मुखड़ा अपनी हथेलियों में लिया.
" श-श-आंक."-मेरी आत्मा छटपटाई -"for god sake leave me please."
किन्तु.
उसपर मेरी गुजारिश का कोई फर्क नहीं पड़ा. वो मेरे मुखड़े को फिर चूमने लगा.
तभी.
उसके होंठ मेरे होंठों की तरफ बढे.....
घर्रर्र.
डौरबैल की चिंघाड़ के साथ हम दोनों फ्रीज हो गये.
मेरे गिर्द फैला भंवर बिखर गया.मैंने पूरी ताकत से शशांक को अपने से दूर धकेल दिया.वो पीछे को धिकलता हुआ लडखडाया और वहां राखी कुर्सी के साथ उलझा हुआ.उसके गले से चीख निकल गयी.
घर्रर्र.
डौरबैल पुन:चिंघाड़ी.
मेरी सांसे बुरी तरह उखड़ी हुई थी-जिनसे मैं लगातार काबू करने  की कोशिश कर रही थी.शशांक विस्फारित  नेत्रों से कभी मुझे देखता था कभी दरवाजे की तरफ-जिधर से डौरबल की आवाज आ रही थी.
" कौन आ गया अब?"-वो सस्पैंस के कारण हलकान भाव से बुदबुदाया.हालत चोरी करते उस चोर की तरह हो गयी जिसे थानेदार के आने की आहट मिल गयी हो?
मैं अपनी उखड़ी साँसों के बीच बोली-"देख जाके, कौन आया है?"
वो उठकर खड़े हो गया-" मैं देखता हूँ.जो भी होगा उसे दरवाजे से ही बगा दूंगा.तू जरा वेट कर."
वो तुरंत ही रूम से बहार निकल गया.मैं वहीं खड़ी-खड़ी अपने हवासों पर काबू पपने का प्रयास करती रही.मेरे मन में कोई ख़ास उत्कंठा नहीं थी, मैं तो मन-ही-मन  उसके आने पर उसकी शुक्रगुजार हो रही थी-कि वो आया था.उसी पल मेरे याद आया कि शशांक आगंतुक को दरवाजे पर से ही दफा कर देने वाला था.मेरे कानों में गेट की मूसली खुलने की आवाज पड़ी तो मैं समझ गयी कि शशांक गेट  खोल रहा था.
मैंने तत्काल पर्स उठाया. अपनी चुनरी को अपने वक्ष पर ठीक किया और उम से बाहर निकल गयी.
***
मकान की सीढियां मकान की गैलरी में आकर उतरती थी जहां ठीक सामने गेट था.
वहीं गैलरी में मेरी स्कूटी खडी थी.सीढियां उतरते-उतरते जैसे ही मेरी नजर गेट पर पड़ी तो मेरा खून जम-सा  गया था.  वो अप्रत्याशित आगंतुक शशांक की मम्मी थीं-जिन्होंने तब एक थैला थाम रखा था.
शशांक से बात करते-करते उन्होंने गैलरी में कड़ी स्कूटी को लुक दी.फिर उन्होंने अपनी नजर को आस-पास फिराया तो उनकी नजर सीढ़ियों की तरफ उठी और मुझपर आ टिकी.
अंदर-ही-अंदर मैं और भी ज्यादा सहम गयी.
"अरे पलक...."-वो चहकीं-"कैसी है तू?कब आई?"
 मैं खुद संभालकर सीढ़ियों से नीचे उतरी और उनके पास पहुंची झुककर उनके पैर छुए."नमस्ते"-भी की.
आंटी ने मुझे शत-शत आशीर्वाद दिए.
" तुम अकेली हो, बेटा?"-आंटी ने पूछा.
"जी, नेहा भी थी."-मैंने खुद को सुसंयत रखते हुए सर  झुकाकर बताया-"वो अभी-अभी गयी है.मैं भी जा ही रही थी."
" चली जाना, बेटा."- आंटी ने इन्सिस्ट किया.-" अभी-अभी तो मैं आई हूँ."
" बट आंटी, हमें भी यहाँ  काफी वक्त गुजर गया है. घर से फोन भी आ गया है .........आंटी, आपसे फिर कभी मुलाकत्ब करूंगी.now i must go."
आंटी ने मुझे फिर इन्सिस्ट करना चाहा मगर मैं नहीं रुकी.वहां से खिसक ली.
***
मैं जब घर पहुंची तो घर पर कोई नहीं था.माली घर की सफाई करनेवाली नौकरानी  अपन घर जा चुके थे.शबनम आंटी घर के किस कोने में थी-मुझे नहीं पता.
मैं सीधी अपने बैडरूम में पहुंची. बैग को बिस्तर पर फेंका और बिस्तर पर ऑंधी जा पड़ी.तकिया अपने अंक में भींच लिया.मेरे अंदर जैसे तूफ़ान मचा हुआ था.मेरी रगों का लहू जैसे तेजाब बन गया था. शशांक की हरकतों ने जैसे शांत समन्दर में ज्वारभाटा खड़ा कर दिया था.एकांत मिलते ही दिमाग में पन्द्रह मिनट पहली उस घटना के सीन फ्लैश होने लगे थे. वासना का भंवर मेरे वुजूद को फिर से अपने घेर में लेने लगा था.
जब रहा नहीं गया-वो ` तूफ़ान' सहा नहीं गया, तो मैंने एक-एक करके सारे कपड़े उतार दिए और बाथरूम में जाकर टब में पानी भरकर टब में जा लेटी.
मैंने अपन गर्दन का प्रष्ट भाग टब के किनारे पर पर टिका लिया और लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगी.
बाथरूम के एकदम ख़ामोशी भरे वातावरण में बस मेरी लम्बी-लम्बी सांसों का शोर गूँज रहा था.
***
मैंने  कपड़े तो वही पहने जो पहले पहन रखे थे.हाँ, अपने अंडरगारमेंट्स को नहाने के बाद बदल लिया.
क्यों??
लड़कियां तो समझ ही सकती है.( लडकों को वो वजह बतानी जरूरी नहीं समझती. कोई समझ गया हो तो उसे उसकी जानकारी के लिए बधाई)
तत्पश्चात नेहा को कॉल की,पूछा-"कहाँ है?"
" घर पर ही हूँ"-नेहा बोली, उसकी सांसों के लय बिखरी हुई थी.
"I want to meet उ"
."तू कहा है."
"घर पर."
" कब आई?"
" घंटा भर  पहले."
"what?"-वो हैरान-" उसने तुझे इतनी जल्दी छोड़ दिया!कुछ हुआ नहीं क्या?"
" मैं आ रही हूँ."मैंने निर्णयात्मक लहजे में कहा-" तेरे पास जो है, उसे वापिस  भेज दे."
" तू  आजा."
***
" अगर तुझे पता था उसका इरादा क्या है तो मुझे बताया क्यों नहीं?"-जाते ही मैंने उसे आड़े हाथों लिया.
" क्या पता था?"-वो बुरी तरह सकपकाई-" what are you saying."
" ज्यादा इनोसेंट बनकर मत दिखा."-मैंने उसे झाड़ दिया-"i know - ये तुम दोनों  की मिलीभगत थी.मैं तो सोच रही थी कि वो मुझे प्रपोज़ करना चाहता था पर उसका इरादा तो...."
उस समय हम दोनों ही उसके घर में थे. उसका बॉयफ्रेंड मेरे आते ही वहां से चला गया था.
"पलक."-वो बैड पर से उतरकर मेरे पास आई. तब मैं फर्श पर खड़ी थी मेरे करीब आकर मेरी आँखों में झांककर बोली-"क्या तू वो सब नहीं चाहती है? कम-ऑन यार. मुझे पता है तेरे मन में ख्वाहिशें जागती हैं.तू भी चाहती है कि तू भी ये सब करे. शशांक ही तेरा मिस्टर राईट है ना.....यार मैने तो बस तुम दोनों मौका  दिया था."
" नेहा तेरे लिए ये नोर्मल होगा"-मैं भड़की-" मेरे तेरे जैसी नहीं हूँ."
" oh shut-up."-वो भी भड़की-" what do u think i m slut? or nymphomaniac?"
" नहीं मैंने ऐसा तो नहीं कहा."
" तो क्या कहा?"
" मैंने बस इतना कहा कि मैं तेरी तरह इस चीज में कम्फर्टेबल नहीं."-मैंने बड़े ही सधे हुए शब्दों में कहा-"नेहा, तेरे लिए सेक्स एन्जॉय करने का साधन है.मैं उसे अपना बदन सौंपना चाहती हूँ जिससे मैं प्यार करूं.जिससे मेरी शादी हो."
" तो तू उसे प्यार नहीं करती?"-नेहा ने पैनी निगाह से मुझे घूरा.
" तू जानती तो है सबकुछ- हाँ, i love him."
" तू उससे शादी नहीं करना चाहती?"
"you know-हाँ.बट,क्या भरोसा शादी हो या न हो".-मैं कसमसाकर बोली-" तू जानती है पा कंजर्वेटिव टाइप के हैं . क्या पता वो हाँ करें या न करें."
"अगर ना भी कर दें तो क्या फर्क पड़ता है?"-नेहा बोली-"बाबू,ये तो तू भी जानती है कि वो तुझे कितना प्यार करते है?तेरी हरेक इच्छा पूरी करते है.तू जिद करेगी तो वो मान जायेंगे.-खैर ये भी छोड़. अगर तुम दोनों की  शादी नहीं होती तोम्क्य गारंटी है जिससे तू शादी करेगी वो वर्जिन ही होगा.तू क्या सोच रही है वो मौके पर चौका नहीं मार रहा होगा?कौन है जो मौका छोड़ देते है. तू भी अपना मौका कैश कर लेती.-वैसे भी २-४ प्रसेंट ही चांस हैं जो शादी नहीं होगी."
" मैं पा का सिर नहीं झुका सकती."-मैंने द्रढ़ता से कहा.
" यार उन्हें पता ही कब चलेगा ?"
" क्यों पता नहीं चलेगा?"-मैं बोली-"मुझे क्या  पता पा को कैसे पता चलेगा- पर क्या पता,पता चल जाये?और मैं अगर प्रेग्नेंट हो गयी तो?"
" प्रीकोशन......"
"सब फेल हो जाते है."-मैंने उसकी बात काट दी-" वैसे भी हम हर काम में एक्सपर्ट नहीं होते जो प्रीकोशन यूज करने के सही तरीकों में माहिर हों.ना ही हमे ये पता होता है अच्छी क्वालिटी के किस कम्पनी के हैं?- देख मैं  ऐसा काम  नहीं करना चाहती पा का  सिर झुके. कल को पा को अगर ये पता चल गया कि मैं क्या करती हूँ- तो वो मेरी जान नहीं लेंगे. मुझे कैद भी शायद नहीं करेगे. मेरे ऊपर शायद थोड़े बहुत बंधन लगा दें मगर मेरी जरूरतों को पूरा भी करेंगे.इसके बावजूद उनका सामने मेरी  इज्जत तो खत्म हो जाएगी ना. पा बस अपना फर्ज   
पूरा करेंगे-उनका लाड खत्म हो जायेगा.- मई ये कैसे भूल जाऊं कि पा ने दूसरी शादी इस वजह से नहीं ताकि उनका प्यार ना बाँट जाए. मैं छोटी सी थी जब ममा गुजर गयी थी.क्या पा को लाइफ पार्टनर की जरूरत महसूस  नहीं होती होगी?"
मेरी बात समाप्त होने तक कमरे का वातावरण बेहद तनावपूर्ण हो गया था.
नेहा भी एकदम खामोश.
मैं उसके पास से हटी और रूम की खिड़की पर जाकर खड़ी हो गयी. 
" सॉरी, पलक."-वहीं खड़ी-खड़ी नेहा बोली-"यार, मैं बस ये  सोच रही थी थी कि तू करेज नहीं जुटा पा रही थी. मुझे पता था कि तुम दोनों एक-दुसरे पर मरते हो लेकिन कुछ कह नहीं पा रहे."
" it ok"-मैं खिड़की से हटी और वापिस उसके पास गयी-"i know- you are my well wisher. don`t feel regret. यकीन कर मेरे मन में तेरे लिए कोई नफरत नहीं. पर यार कम-से-कम बता तो देती."
" बता देती तो क्या करती?"
" तब हम दोनों मिलकर उसके दिल की बात निकलवाने के का कोई और मौका देखते."-मैं मुस्कुराई-" बस `ऐसा' कुछ होने से बचने की कोशिश करती.सच यार, आज अगर  उसकी ममा ना आती तो वो `कांड' कर ही  देता. मैं भी अपना होश खो चुकी थी."
" क्या हुआ था?"- वो हौले से मुस्कुराई.
" आजा बताती हूँ." कहते हुए मैं बैड की तरफ बढ़ गयी. हमेशा की तरह बैड पर बेतकल्लुफ भाव से जम्प मारकर लेटती हुई बोली.
वो भी मेरी तरफ बढ़  गयी.
love diary  जरी है .........