Saturday, May 16, 2015

22 साल के युवा युवा प्रोफेसर डा.अवतार तुलसी

पिछला ही चैप्टर मैंने  शुरू किया था कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज 
नहीं होती। एक उदाहरण मैंने उसी चैप्टर में रामानुजन के रूप में  प्रस्तुत किया था।  दूसरा उदाहरण तथागत तुलसी के रूप में हमारे सामने है।  
    प्रतिभाशाली बच्चों के रूप में पहचान बने चुके तथागत अवतार तुलसी अब बड़े हो गए हैं। महज २२ साल की उम्र में ही आईआईटी, मुंबई में उन्हें असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर आसीन हुए। १९ जुलाई २०१३ ई० से डॉ. तथागत अवतार तुलसी इस पद पर योगदान दे रहे है  और इसके साथ वे देश के सबसे कम उम्र में प्रोफेसर बनने का भी गौरव हासिल कर लिया । 

उन्हें कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय और भोपाल के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड रीसर्च (आईआईएसईआर) ने भी नौकरी का ऑफर दिया था; लेकिन तथागत तुलसी ने आईआईटी मुंबई में पढाना पसंद किया।

तुलसी ने पटना से एक प्रमख समाचार पत्र इंडियन एक्सीप्रेस को फोन पर कहा कि वाटरलू उन्हें काफी अच्छां वेतन देने को तैयार था, लेकिन वे अब विदेश नहीं जाना चाहते हैं-मैं भारत में क्वांबटम कंप्यूटेशन को समर्पित एक लैब स्थापित करना चाहता हूं और एक दिन बडे पैमाने पर क्वांटम कंप्यूटेशन पर आधारित सुपर कंप्यूटर बनाना चाहता हूं। आईआईटी, मुंबई में मुझे यह सुविधा मिलेगी।
तथागत तब क्वांटम कम्प्यूटर के क्षेत्र में सुपरफास्ट कम्प्यूटर बनाने के लिए काम कर रहे थे ।
(वो कितने सफल हुए उसकी अपडेट अभी उपलभ्ध नहीं हो सकी है )
मूल रूप से बिहार के रहने वाले तथागत अवतार तुलसी के पिता प्रोफेसर तुलसी नारायण प्रसाद सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं।वे ज्योतिषीय-अनुवांशिकी (एस्ट्रो-जेनेटिक्स) में गहरा यकीन रखते हैं। उनका दावा है कि कुछ दशक पहले जब उन्होंने यह कहा था कि जन्म लेने वाले बच्चे का लिंग निर्धारित किया जा सकता है तब उनका सिद्धांत खारिज कर दिया गया था। लेकिन प्रसाद ने तब अपने सिद्धांत को सही साबित करने की ठान ली थी। इसके बाद प्रसाद एक लड़के के पिता बने और अपने सिद्धांत को सही साबित करने की कोशिश की। लेकिन आलोचकों ने उनकी एक सुनी। आलोचकों ने तब भी उनके सिद्धांत को यह कहकर खारिज कर दिया था कि यह भगवान की देन है। फिर उन्होंने निश्चय किया कि वे एक बार फिर लड़के का पिता बनेंगे। और जब वे दोबारा लड़के के पिता बने तो लोग चुप हो गए।
आज एस्ट्रोजेनेटिक्स को लेकर बहुत प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। आमतौर पर आज अनुवांशिकी और ज्योतिष का कोई सीधा संबंध नहीं माना जाता है। परंतु तुलसी प्रसाद का मानना है कि यह एक विज्ञान है। उन्होंने कहा कि हमारे वैदिक साहित्य में ऐसा जिक्र है। प्रसाद के मुताबिक, अगर हम इस सिद्धांत को सही तरीके से लागू करें तो हमें ऐसे ही नतीजे मिलेंगे। उनका कहना है कि मनुष्य का शरीर एक संपूर्ण संस्थान है। प्रकृति ने हमारे शरीर को अनेक वरदान दे रखे हैं। शरीर में जरूरी रसायनों के उत्पादन के लिए ग्रंथियां हैं, जिन्हें अपनी मर्जी के मुताबिक संचालित किया जा सकता है।
तथागत के पिता तुलसी प्रसाद ने दावा किया था कि तथागत को इतना बुद्धिमान बनाने के लिए उसके पैदा होने से भी पहले की यह उनकी पूर्व तैयारी थी। अपने जीनियस प्रोग्राम के बारे में बात करते हुए वह प्रोग्रामिंग लैंग्वेज से जुड़े तथ्य स्पष्ट नहीं बताते हैं। उनका कहना है कि अगर सरकार उन्हें यह आश्वस्त करे कि वह तुलसी के प्रतिभाशाली होने का पूरा क्रेडिट उन्हें देगी तो वह यह राज खोलने को तैयार हैं कि कैसे बुद्धिमान या प्रतिभाशाली पुरूष या स्त्री बच्चे तैयार किए जा सकते हैं।
प्रोफेसर तुलसी नारायण का मेटाफिजिकल सिद्धांत कहता है कि दो सूक्ष्म सच से पूरी जिंदगी को नियंत्रित किया जा सकता है और यह दोनों चीजें हैं भाव और बुद्धि। उनका फिंगर प्रिंट्स विश्लेषण कहता है कि गर्भ धारण करने के समय माता-पिता का मूड किस तरह का है, यह भी बच्चे की प्रतिभा निर्धारण में सहायक कारक है।तुलसी नारायण के तीन पुत्रों में सबसे छोटे तथागत ही है।  तथागत के सबसे बड़े भाई नार्थ इस्ट में एक सेन्ट्रल स्कूल में सीनियर टीचर है। नंबर दो पटना में रहकर वकालत कर रहे है। अभी शादी किसी की नहीं हुई है, मगर कम उम्र होने के बाद भी ज्यादातर लोग तथागत को अपना दामाद बनाने के लिए आतुर है। इस बारे में मुस्कुराहट के साथ तथागत का कहना है-" मेरे से पहले तो लंबी लाईन है।"
तथागत अवतार तुलसी ने हालंकि मकबूलियत काम  हासिल कर ली थी , मगर वो एक लंबा चौड़ा खूबसूरत नौजवान बन चुका है आईआईटी मुंबई का टी शर्ट पहने तथागत को घर में आते ही सारे लोग खिल उठे। एकदम सहज सामान्य और हमेशा मुस्कुराहट बिखेरने वाले इस युवक को देखकर कोई अंदाज भी नहीं लगा सकता कि एक छात्र सा दिखने वाला यह युवक एक इंटरनेशनल टैंलेट है। अपने हम उम्र लड़को को पढ़ाने वाले तथागत  को आईआईटी में भी ज्यादातर अनजान लोग उसे स्टूडेंट ही समझ बैठते है।
 हरेक अच्छा  मौका  कुछ बंधन भी लेकर आता है।  भगवान ने  अद्भुत काबिलियत दी लेकिन बचपन छीन लिया।  बचपन सामान्य तौर पर बचपन कैसा  होता है इसका अहसास तथागत अवतार तुलसी नहीं कर पाये।  तथागत का कहना है-" बचपन को मैं नहीं जानता और इसका दुख अब होता है। सात साल की उम्र में छठी क्लास का स्टूडेंट रहा था। इसके बाद फिर कभी क्लास रूम में नहीं गया। लिहाजा आईआईटी में तो पहले अपने स्टूडेंट के साथ तालमेल बैठाना पड़ा। क्लासरूम के दांवपेंच को नहीं जानता था,और अभी भी नहीं जानता हूं।"
उनके माता-पिता को उनकी प्रतिभा का आभास तब हुआ जब वो केवल छह साल के थे।
तुलसी बचपन से ही गणित में बहुत तेज़ थे और बाल अवस्था में ही उन्होंने पुरस्कार जीतने शुरु किए।   

बिहार के मुख्यमंत्री ने १९९६ ई० में उन्हें पुरस्कृत किया था।
     
    इन्होंने 9 वर्ष की उम्र में हाईस्कूल पास किया, १० वर्ष की उम्र में बी.एस.सी और १२ वर्ष की उम्र में एम.एस.सी. की परीक्षा पास की। बारह वर्ष की आयु में एमएससी पास करने वाले दुनिया के सबसे कम आयु के व्यक्ति बन गए। अगस्त २००९ ई० में उन्होंने जेनरलाइजेशन ऑफ क्वांटम सर्च अलोगरिद्म विषय पर पीएचडी प्राप्त की। तथागत ने पिछले दिनों इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से पीएचडी कर भारत के सबसे युवा पीएचडी होल्डर और सबसे कम पेज का (मात्र 33 पेज) पीएचडी थेसिस लिखने का रिकार्ड बनाया था।उनके पिता प्रोफेसर तुलसी नारायण का कहना है-" तथागत का तेज दिमाग 'प्रोग्रामिंगÓ की देन है। वह यहां तक कहते हैं कि कोई भी इस तरह की 'प्रोग्रामिंगÓ कर जीनियस दिमाग वाला बच्चा पा सकता है। तथागत अवतार तुलसी के माता-पिता के चेहरे पर तब मुस्कान बिखर गई थी जब उनके बेटे को 2003 में दुनिया का सातवें सबसे प्रतिभाशाली युवाओं में शामिल किया गया था। हालांकि तुलसी के माता-पिता ने उसके जन्म से पहले ही यह तय कर लिया था कि तुलसी जीनियस होगा।"
    तथागत अवतार तुलसी आज एजूकेशन की दुनिया में हीरो बन चुके है; मगर  1995 से लेकर 1998 तक जो संघर्ष अपमान और उपेक्षा का सामना उसे करना पड़ा था वह समय भी तुलसी के बाल मन को काफी आहत किया। इनके पिता तुलसी नारायण के रोजाना के संपर्क में रहने की वजह से अनगढ़ तथागत की हर एक गतिविधि की सूचना रहती थी। दिल्ली में जब कोई भी न्यूजपेपर या न्यूज एजेंसी तथागत के बारे में एक लाईन भी छापने को तैयार नहीं था। उस समय राष्ट्रीय सहारा के संपादक राजीव सक्सेना के भरपूर प्रोत्साहन की वजह से ही यह संभव हो पाया कि दर्जनों छोटी बड़ी खबरों के अलावा तथागत एवं तुलसी नारायण जी का आधे पेज में बड़ा इंटरव्यू राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हुआ। बाद में सबसे कम उम्र में 10 वी पास करने और बाद की सफलता को लेकर तो फिर तथागत मीडिया का चहेता ही बन गया।
अपनी लगन मेहनत और कुछ कर गुजरने की प्रबल महत्वकांक्षा की वजह से ही 23 साल के तथागत ने एक मुकाम हासिल की है।

     हालाँकि उनके आईआईटी कैम्पस  स्थित फ्लैट का हाल एक सामान्य बैचलर जैसा ही है। एक पत्रकार ने उनके फ्लैट का  सजीव चित्रण  लेख में प्रस्तुत किया है- जब हमलोग तथागत के फलैट में गये तो देखा कि एक कमरें में केवल किताबों का जमघट था। कई कार्टून में बेतरतीब किताबें थी। जबकि दूसरे कमरे में भी चारो तरफ बिखरी किताबों पत्रिकाओं और कपड़ो के बीच जमीन पर दो बिस्तर थी। एक बिस्तर पर कपड़े और दो लैपटाप रखे थे। खाना से लेकर चाय तक के लिए भी मेस पर पूरी तरह निर्भर तथागत के पास इतना समय ही नहीं मिल पाता था कि वह बाजार से जाकर सामान्य चीज भी खरीद सके। तथागत की मां इस बार गरमी की छुट्टियों में मुंबई आने वाली है, तब कहीं जाकर तथागत का फ्लैट सामान्य जरूरी चीजों से भर पाएगा ?
      तथागत अवतार तुलसी नाम होने के बावजूद तथागत ने अपने नाम को  अब अवतार तुलसी कर लिया है। इस बारे में तथागत ने बताया कि कई साल के अपने विदेश प्रवास के दौरान आमतौर पर तथागत को टटागत या टथागत या टकाटक आदि के गलत ऊच्चारण से परेशान होकर ही तथागत ने विदेशियों की सुविधा के लिए अपने नाम से तथागत को हटा दिया। पिछले दस साल के दौरान दर्जन भर देशों नें रहने और अलग अलग य़ूनिवर्सिटी में रिसर्चर को पढ़ाने वाले तथागत को अपना भारत  ही सबसे ज्यादा भाया है। हालांकि भविष्य को लेकर वे अभी ज्यादा आश्वस्त तो नहीं हैं, मगर उनका पक्का इरादा अपने देश में ही रहकर काम और देश का नाम रौशन करने का है।
अलबत्ता वह यह जरूर मानते हैं-"भारत में उन तमाम सुविधाओं की हम उम्मीद या यों कहे कि कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हमारा देश गरीब और बहुत मामलों में सुविधाहीन भी है। किसी भी सरकार के लिए यह आसान नहीं है।, मगर हमारी सरकार या निजी संस्थानों द्वारा पूरी तरह सुविधाएं उपलब्ध कराने की कोशिश भी नहीं की जाती है।"
 तथागत का मानना है कि विदेशों में जाकर हमारे देश का जीनियस ब्रेन ड्रेन हो रहा है। इसके बावजूद ग्लोबल फोकस के लिए विदेश में जाकर काम करना या अपने लेबल से संपर्को के दायरे को बढ़ाना और बनाना ही पड़ता है। 

अपने भावी कार्यक्रमों को लेकर तथागत फिलहाल ज्यादा नहीं सोच रहे है। अपने आपको को स्थापित करने और एक लेक्चरर या एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में खुद को साबित करने में पूरी तरह लगे है। हालांकि उनके चेहरे पर यह पीड़ा साफ तौर पर झलकती है कि शायद वे सबसे कम उम्र के नोबल पाने वाले 25 साल की आयु के रिकार्ड को नहीं तोड़ पाएंगे। यह कहते हुए निराशा के भाव के बाद भी खिलखिलाकर हंसने की कोशिश जरूर करते हैं।

तथागत के फीजिक्स में अब तक करीब एक दर्जन लेख विभिन्न जनरल में छप चुके है। एक शोध पर अब तक 31 रिसर्च हो चुके है। तथागत ने कहा कि किसी भी रिसर्च पेपर पर 50 से ज्यादा रिसर्च होने पर उसे लैंडमार्क मान लिया जाता है। क्वाटंम कम्प्यूटर पर किए जा रहे अपने रिसर्च को लेकर तथागत में काफी उमंग है। कई प्रकार के रिसर्च पर तथागत ने अपनी योजनाओं को आने वाले दिनों में साकार होने की संभावना जाहिर की।  
मुबंई से लेकर बंगलौर (बेंगलुरू) हो या न्यूजर्सी या कनाडा हो इस इंटेलीजेंट के लिए संघर्ष का दौर अभी रूका नहीं है। यानी मन में नोबल विजेता होने का तो यकीन है, मगर इसमें कितना समय लगेगा इसको लेकर वह आश्वस्त नहीं है। अब देखना है कि तथागत का यह सपना कब साकार होता है, जिसपर कमसे कम ज्यादातर भारतीयों की नजर लगी है।

No comments:

Post a Comment