Tuesday, July 24, 2012

love diary 11

अध्याय 20
तारीख़ वो भी अगस्त की अंतिम सप्ताह की ही थी जब मेरे पास मेरी एक और सहेली वैभवी का फोन आया. वो मुझसे तीन साल बड़ी है. मेरे पड़ोस मेरहती थी।उसका बस  एक छोटा भाई ही था तो पडोसी होने के नाते वो मेरे करीब आ गयी.वो मेरे रिसेप्शन में भी आई थी.कुछ नोर्नल  बातें हुईं  चूँकि दोनों की मैरिड  थी कुछ  शरारती बातें भी हुई. फिर मैंने पूछा-" तू ये बता मेरठ कब आ रही है?"
" मैं तो जब तू कहे आ  जाउंगी।..?"- वो अधिकारपूर्ण भाव से बोली-" पर फिलहाल तू कल नोएडा आ रही है।"
"क्यों?"
"यार, मेरी मेरिज एनिवर्सरी है"- वो चहकी-"उसी को सेलिब्रेट करने के लिए तुझे बुला रही हूँ। कल शाम तक या शाम से पहले कभी भी अपने मियां को लेकर आ जा।"
"यार ......"
 " ओए ज्यादा टशन मत झाड.."-उसने बात बीच में ही काट दी-"तू  आ रही है तो आ रही है."
" यार, उनसे बात करके बताती हूँ।"
" बात-व़ात  कर  या मत कर ...."-उसने कहा-"अरे यार मेरे में मिलने के लिए एक रात  मियां की बांहों से अलग  नहीं गुजार  सकती? वैसे भी पार्टी आधी रात तक ही चलने वाली है. उसके बाद तू फ्री हो जाएगी. बाकी रात तू अपने मियां जी  की बाँहों में गुजर लेना।"
" ok, I will try..."-मैंने कहा-" उम्मीद हैं वो मान जायेंगे।"
" तू मनाएगी तो मानेंगे क्यों नही भला।."-वो आत्मविश्वास से बोली-" वो क्यब तेरी बात टालेंगे।"
मैं गहरी साँस लेकर रह गयी।
***
' वो' बिना हुज्जत के तुरंत तैयार हो गये।
सो।..
अगले दिन शाम को तकरीबन आठ बजे हम नॉएडा स्थित वैभवी के घर पहुँच गये।वहां  पर मैंने एक बात को खास तौर पर नोटिस किया कि वहां  पर किसी भी कपल के साथ कोई बच्चा नहीं था.
कुल मिलाकर वो एक कपल पार्टी थी.
जब हम वहां पहुंचे तो ज्यादातर मेहमान आ चुके थे. नाश्ते का दौर चल रहा था। वैभवी ने मेरा खुली बांहों से स्वागत किया। उसके मियां भी उसके साथ ही थे। हम दोनों के मियाओं के बीच भी शेक हैण्ड हुए, हेल्लो का आदान प्रदान हुआ।. हम दोनों ने एक दुसरे के मियां का परिचय करवाया. उसके मियां जी मेरे वाले को लेकर मर्दों की टोली की तरफ चले  गये. वैभवी ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे लेडीज ग्रुप की   तरफ बढ़ गयी।
हालाँकि पार्टी लीविंग हॉल में ही चल रही थी। सब आपस की बातों में मशगूल थे नाश्ते के दौरान. मुझे लेडीज की तरफ  ले जाती हुई वैभवी फुसफसाई-" बड़ी कमजोर-सी लग रही है. रात को तेरे मियां जी तेरा ज्यादा `जूस` निकल देते हैं क्या?"
मेरा पूरा शरीर झनझना उठा मनो उसमे बिजली भर गयी हो। मेरा स्वर थरथरा रहा था, जब मैंने उसे दबे स्वर में डांटा -" shut-up"
वो बस  कुटिल भाव से हंसी.
मेरे भीतर `आह` उभरी।
इतने में हम लेडीज के पास  पहुँच गईं. वैभवी ने मेरा परिचय सबसे करवाया और फिर अच्छी मेजबान की तरह बोली-" बता क्या लेगी।....तू यहीं ठहर मैं लेकर आती हूँ"
" कुछ भी लाइट ही लेकर आना यार।.."-मैंने गुजारिश की-" सीधे घर से ही  आ  रहे है।"
" मुझे  पता है घर से ही आ रहे हो...."-वैभवी बोली-"कम-से-कम डोम घंटे का सफ़र है. वैसे क्या गारंटी है कि सीधे यहीं आ  रहे हो ....."-वो कहती- कहती कुटिल भाव से मुस्कुराई-" ये भी तो हो सकता है सुनसान जगह देखकर तेरा मियां जी तुझपर टूट पड़ा हो और ..."
"shut-up."-मैंने उसका कन्धा ठोका-"दिमाग बहुत  ख़राब हो गया है तेरा"
मगर  उसपर कोई  असर नहीं पड़ा. अपितु उसकी मुस्कान हंसी में तब्दील हो गयी, और  औरते भी अपने  लिपस्टिक से पुते होंठों पर मुस्कान सजाए मेरी तरफ देख रही थीं. उनकी नजरे यूँ मेरे बदन का जायजा ले रही  थी मानों हमारे द्वारा रस्ते में की यी शरारतों के सुबूत ढूंढ रही हों। हर नजर मुझे अपने बदन में चुभती सी महसूस हो रही थी।  मैं परे देखने  लगी।
हल्का फुल्का नाश्ता चलता रहा, तभी वैभवी मेरी बांह पकडकर धेरे से अधिकारपूर्ण भाव से बोली-" चल तुझसे बात करनी है।"
मैं उलझी मगर मेरे इंकार की कोई वजह नहीं थी। सो जब वो चल दी तो मैंने उसे फोलो किया।
 ***