क्या किसी भी कामयाबी का महत्व ढोल-नगाड़े बजाकर ही जस्टिफाई किया जा सकता है ? अगर शोर मचाकर वैल्यू ज्यादा बनती है तो रात के समय ख़ामोश चाँद की निर्मल चांदनी से ज्यादा वैल्यू भिनभिनाते जुगनू के न के बराबर प्रकाश की होती - जो अपने गिर्द कुछ बालिश्त भर भी प्रकाश नहीं फैला पाता। दीया हमेशा ख़ामोशी से जलता है लेकिन वो घर को रोशन करता है।
हमारे इस खामोश नायक की आवाज में लोगों को कोई करिश्मा नजर नहीं आता ; किन्तु अगर उनके कार्यों पर नजर डाली जाये तो वो देश नहीं दुनिया के राजनेताओ में खड़े नजर आते है। उनके कामों के कारण ही जापान सरकार ने २०१४ ई० में उन्हें-'द ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ पॉआलोनिया फ्लावर्स'( Grand Cordon of the Order of the paulownia flowers)- अवार्ड से नवाजा। ये दुनिया भर में उनके सम्मान का बड़ा सुबूत है। २००५ ई० में दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका TIME ने उन्हें दुनिया के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया। २०१० ई० में अपील ऑफ़ कंसिएन्स फाउंडेशन (Appeal of Conscience Foundation) ने उन्हें वर्ल्ड स्टेटमन अवार्ड ( world stateman award) से
सम्मानित किया। उनके अलावा भी उन्हें लगभग ३० सम्मानो से नवाजा
जा चूका है
दुनिया भर में उस खामोश नायक को यूँ ही सम्मान नहीं मिलता।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उनके अर्थशास्त्रीय ज्ञान के कायल हैं। भारत जब आर्थिक मुश्किल में जूझ रहा था। देश दीवालिया घोषित करने की नौबत आती दिख रही थी। देश निराशा में डूबा हुआ था। तब १९९१ ई० में देश के तात्कालिक प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिम्हा राव उन्हें देश का वित्त मंत्री अपॉइंट किया। उनका मानना था कि देश दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। तब उन्होंने कहा था -" दुनिया में कोई भी उस विचार को नहीं रोक सकता जिसका समय आ गया है।"
अपने उन वाक्यों से उस कमजोर आवाज वाले खामोश से नजर आने वाले नायक ने देश को बता दिया था कि देश का वक्त बदलने का वक्त आ चुका था। और उन्होंने भारत का वक्त बदलकर भी दिखा दिया। उन्होंने न केवल देश की अर्थवयवस्था को पटरी पर लाकर खड़ा किया बल्कि उसे गति भी प्रदान की।
२००४ ई० में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के पद की बागडोर संभाली ; और जब २०१४ ई० में वो सत्ता से हटे तो वो नेहरूजी के बाद लगातार देश के प्रधानमंत्री पद पर सबसे ज्यादा समय तक बने रहने वाले वाले इंसान ( नेता नहीं लिखूंगा ) थे ; साथ ही वो देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना चुके थे।
हाँ.....
इस ख़ामोशी से काम करने वाले नायक - डॉ० मनमोहन सिंह - की यही विडंबना है कि वो ना बगलोल है ना अपने काम का चीख-चीखकर ढिंढोरा पीटते हैं। अगर भारत की अर्थव्यवस्था के जनक के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू को जाना जाता है तो माननीय डॉ० मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधारो के जनक माना जाता है।
स्कूल के प्रधानाचार्य मनमोहन सिंह का नाम टॉपर्स लिस्ट दिखाते हुए
डॉ० मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के लिए जो किया वो तुक्का नहीं कहा जा सकता। उनकी कामयाबी की सबसे बड़ी खासियत ही ये है कि उन्होंने लगातार कामयाबी हासिल की है। वो जमीन से उठकर बुलंदी तक पहुंचे है- मगर ये कभी नहीं प्रचारित करते की उनकी माँ, उनकी पत्नी कितने रूपये की चप्पल पहनती है या पहनती थी। वो कभी इस बात को प्रचारित नहीं करते कि वो खाली हाथ किस तरह-विभाजन के बाद- भारत आये। उन्होंने बंटवारे का दंश बड़े ही साफ़ तरीके से सहा था , जब देश आजाद मनमोहन सिंह जी पंद्रह साल के थे।बंटवारे के बाद वो अपने परिवार के साथ माइग्रेट होकर अमृतसर आ गए। उन हालातो में तो कहा जा सकता है कि उनके पास जमीन तक नहीं थी। एक परिचित ने उन्हें रहने के लिए अपने भैंसों के बाड़े में जगह दी। सब खोकर भी उन्होंने आगे बढ़ने का जज्बा नहीं खोया। हमेशा पढाई में अव्वल रहे। जब चंडीगढ़ में ग्रेजुएशन कर रहे थे तो मिटटी का तेल बचने के लिए लालटेन में न पढ़कर स्ट्रीट लाइट के प्रकाश में पढाई किया करते थे और टॉपर रहे। पढाई के दौरान (जब छात्र का खुद का भविष्य सुरक्षित नहीं होता ) उन्होंने एक लड़की से वादा किया किया कि वो अपनी पढाई पूरी करके उससे शादी करेंगे। उस वादे के साथ उन्होंने अपने साथ एक और जीवन के भविष्य को निर्धारित करने का फैसला किया। और वो वादा निभाया भी आज वही लड़की ( गुरशरण कौर ) उनकी पत्नी और उनकी तीन बेटियों की माँ है।
मनमोहन सिंह की कामयाबी की फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि उसे चंद पन्नो में समेटकर नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्ट्रेट की। जब उन्होंने अध्यापन किया तब छात्रों के फेवरिट प्रोफेसर हुआ करते थे। उस समय प्रसिद्ध पत्रकार उनके स्टूडेंट हुआ करते थे वो बताया करते थे-" वो कॉलेज के स्टूडेंट्स को साइकिल पर लिफ्ट दिया करते थे।"
मनमोहन सिंह अपने परिवार के साथ
देश के आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने हर स्तर पर काम किया। वो मुख्या सलाहकार भी रहे , वित्त सचिव भी रहे , अब तक के चौथे सबसे बेहतर RBI गवर्नर माने जाते है। पांच साल तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। देश के वित्त मंत्री के रूप में वो हर महीने अपने वेतन के रूप में सिर्फ १ रुपया लेते थे ( क्या इसका प्रचार कहीं मिलता है ????)
मनमोहन सिंह जी को उनके पिता बचपन में मोहन करते थे। उनका नाम उनके काम के कारण पूरी तरह सार्थक सिद्ध होता है। मनमोहन सिंह जी को लोगों को अपना शैदाई बनाने के लिए किसी प्रचार की जरूरत नहीं उन्होंने हमेशा काम किया है , ख़ामोशी के साथ काम किया है। अब वो रिटायर हो चुके हैं। मुझे पता है वो हमेशा की तरह खामोश रहेंगे मगर मेरा दवा है जब भविष्य में इतिहास लिखा जायेगा और लोग उनके कामों के बारे में जानेंगे तो देश की हर पीढ़ी उनकी शैदाई बन जाएगी।
हमारे इस खामोश नायक की आवाज में लोगों को कोई करिश्मा नजर नहीं आता ; किन्तु अगर उनके कार्यों पर नजर डाली जाये तो वो देश नहीं दुनिया के राजनेताओ में खड़े नजर आते है। उनके कामों के कारण ही जापान सरकार ने २०१४ ई० में उन्हें-'द ग्रैंड कॉर्डन ऑफ द ऑर्डर ऑफ पॉआलोनिया फ्लावर्स'( Grand Cordon of the Order of the paulownia flowers)- अवार्ड से नवाजा। ये दुनिया भर में उनके सम्मान का बड़ा सुबूत है। २००५ ई० में दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका TIME ने उन्हें दुनिया के १०० सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया। २०१० ई० में अपील ऑफ़ कंसिएन्स फाउंडेशन (Appeal of Conscience Foundation) ने उन्हें वर्ल्ड स्टेटमन अवार्ड ( world stateman award) से
सम्मानित किया। उनके अलावा भी उन्हें लगभग ३० सम्मानो से नवाजा
जा चूका है
दुनिया भर में उस खामोश नायक को यूँ ही सम्मान नहीं मिलता।
अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उनके अर्थशास्त्रीय ज्ञान के कायल हैं। भारत जब आर्थिक मुश्किल में जूझ रहा था। देश दीवालिया घोषित करने की नौबत आती दिख रही थी। देश निराशा में डूबा हुआ था। तब १९९१ ई० में देश के तात्कालिक प्रधानमंत्री पी० वी० नरसिम्हा राव उन्हें देश का वित्त मंत्री अपॉइंट किया। उनका मानना था कि देश दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। तब उन्होंने कहा था -" दुनिया में कोई भी उस विचार को नहीं रोक सकता जिसका समय आ गया है।"
अपने उन वाक्यों से उस कमजोर आवाज वाले खामोश से नजर आने वाले नायक ने देश को बता दिया था कि देश का वक्त बदलने का वक्त आ चुका था। और उन्होंने भारत का वक्त बदलकर भी दिखा दिया। उन्होंने न केवल देश की अर्थवयवस्था को पटरी पर लाकर खड़ा किया बल्कि उसे गति भी प्रदान की।
२००४ ई० में उन्होंने देश के प्रधानमंत्री के पद की बागडोर संभाली ; और जब २०१४ ई० में वो सत्ता से हटे तो वो नेहरूजी के बाद लगातार देश के प्रधानमंत्री पद पर सबसे ज्यादा समय तक बने रहने वाले वाले इंसान ( नेता नहीं लिखूंगा ) थे ; साथ ही वो देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना चुके थे।
हाँ.....
इस ख़ामोशी से काम करने वाले नायक - डॉ० मनमोहन सिंह - की यही विडंबना है कि वो ना बगलोल है ना अपने काम का चीख-चीखकर ढिंढोरा पीटते हैं। अगर भारत की अर्थव्यवस्था के जनक के रूप में पंडित जवाहरलाल नेहरू को जाना जाता है तो माननीय डॉ० मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधारो के जनक माना जाता है।
स्कूल के प्रधानाचार्य मनमोहन सिंह का नाम टॉपर्स लिस्ट दिखाते हुए
डॉ० मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था के लिए जो किया वो तुक्का नहीं कहा जा सकता। उनकी कामयाबी की सबसे बड़ी खासियत ही ये है कि उन्होंने लगातार कामयाबी हासिल की है। वो जमीन से उठकर बुलंदी तक पहुंचे है- मगर ये कभी नहीं प्रचारित करते की उनकी माँ, उनकी पत्नी कितने रूपये की चप्पल पहनती है या पहनती थी। वो कभी इस बात को प्रचारित नहीं करते कि वो खाली हाथ किस तरह-विभाजन के बाद- भारत आये। उन्होंने बंटवारे का दंश बड़े ही साफ़ तरीके से सहा था , जब देश आजाद मनमोहन सिंह जी पंद्रह साल के थे।बंटवारे के बाद वो अपने परिवार के साथ माइग्रेट होकर अमृतसर आ गए। उन हालातो में तो कहा जा सकता है कि उनके पास जमीन तक नहीं थी। एक परिचित ने उन्हें रहने के लिए अपने भैंसों के बाड़े में जगह दी। सब खोकर भी उन्होंने आगे बढ़ने का जज्बा नहीं खोया। हमेशा पढाई में अव्वल रहे। जब चंडीगढ़ में ग्रेजुएशन कर रहे थे तो मिटटी का तेल बचने के लिए लालटेन में न पढ़कर स्ट्रीट लाइट के प्रकाश में पढाई किया करते थे और टॉपर रहे। पढाई के दौरान (जब छात्र का खुद का भविष्य सुरक्षित नहीं होता ) उन्होंने एक लड़की से वादा किया किया कि वो अपनी पढाई पूरी करके उससे शादी करेंगे। उस वादे के साथ उन्होंने अपने साथ एक और जीवन के भविष्य को निर्धारित करने का फैसला किया। और वो वादा निभाया भी आज वही लड़की ( गुरशरण कौर ) उनकी पत्नी और उनकी तीन बेटियों की माँ है।
मनमोहन सिंह की कामयाबी की फेहरिस्त इतनी लम्बी है कि उसे चंद पन्नो में समेटकर नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्ट्रेट की। जब उन्होंने अध्यापन किया तब छात्रों के फेवरिट प्रोफेसर हुआ करते थे। उस समय प्रसिद्ध पत्रकार उनके स्टूडेंट हुआ करते थे वो बताया करते थे-" वो कॉलेज के स्टूडेंट्स को साइकिल पर लिफ्ट दिया करते थे।"
मनमोहन सिंह अपने परिवार के साथ
देश के आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने हर स्तर पर काम किया। वो मुख्या सलाहकार भी रहे , वित्त सचिव भी रहे , अब तक के चौथे सबसे बेहतर RBI गवर्नर माने जाते है। पांच साल तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। देश के वित्त मंत्री के रूप में वो हर महीने अपने वेतन के रूप में सिर्फ १ रुपया लेते थे ( क्या इसका प्रचार कहीं मिलता है ????)
मनमोहन सिंह जी को उनके पिता बचपन में मोहन करते थे। उनका नाम उनके काम के कारण पूरी तरह सार्थक सिद्ध होता है। मनमोहन सिंह जी को लोगों को अपना शैदाई बनाने के लिए किसी प्रचार की जरूरत नहीं उन्होंने हमेशा काम किया है , ख़ामोशी के साथ काम किया है। अब वो रिटायर हो चुके हैं। मुझे पता है वो हमेशा की तरह खामोश रहेंगे मगर मेरा दवा है जब भविष्य में इतिहास लिखा जायेगा और लोग उनके कामों के बारे में जानेंगे तो देश की हर पीढ़ी उनकी शैदाई बन जाएगी।