Monday, June 1, 2015

आनंद कुमार और उनके सुपर ३०

गर्व का विषय  है कि भारत के आनंद कुमार को कनाडा  सरकार ने सम्मानित किया है। कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया की विधायिका ने भारत के प्रतिभावान गरीब विद्यार्थियों को उच्च संस्थानों में प्रवेश के लिए तैयार करने में उनकी अनोखी उपलब्धियों को लेकर उन्हें सम्मानित किया।  
     ब्रिटिश कोलंबिया सरकार ने दुनिया में मशहूर सुपर 30 के जरिए किए गए उनके काम को एक मान्यता प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया था।   सुपर 30 पिछले 14 सालों से समाज के दबे पिछड़े वर्गों के 30 विद्यार्थियों को आईआईटी में प्रवेश के वास्ते प्रवेश परीक्षा के लिए मुफ्त में तैयारी कराता है और वे विद्यार्थी सफल होते हैं। २८ मई ,  गुरुवार को ब्रिटिश कोलंबिया की विधायिका के खचाखच भरे सभागार में मैपल रिज के प्रतिनिधि मिस्टर मार्क डाल्टन ने उनके सम्मान में प्रशस्ति पत्र पढ़ा. उन्होंने कहा-"परेशानियों के बावजूद मिस्टर कुमार ने अपना बड़ा मिशन नहीं छोड़ा और वो अब भी उसे पूरे जज्बे के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. यह वाकई सराहनीय है क्योंकि वह किसी से कोई वित्तीय सहायता लिए बिना खुद ही यह काम करते हैं."
    


 जहां आज ज्ञान बाँटना एक बड़ा व्यापार बन चुका है वहां आनंद कुमार का

होना  ज्ञान  के व्यापारियों के बीच घिरे अभावों से घिरे काबिल छात्रों के 

उम्मीद की किारण का काम करते है। 

   आनंद कुमार जी ने खुद भी अभावों से भारी जिंदगी देखी है।  पैसे के 

अभाव में ही आनंद कुमार जी को अपना वैज्ञानिक और गणितज्ञ बनने 

का सपना छोड़ना पड़ा।  सच लिखूं तो  दुनिया में इंसान को सबसे ज्यादा 

तकलीफ तब होती है जब इंसान अपना सपना सेक्रिफाइज करता है।  वो 

तकलीफ तो उस वक्त और भी ज्यादा असहनीय हो जाती है जब हमारा 

सपना हमारे सामने हमारे ही इंतजार में मंजिल के रूप में खड़ा हो और 

उसे हासिल कर  पाने की काबिलियत होने के बावजूद भी हमे उससे नजर 

चुराकर दूसरा रास्ता पकड़ना होता है।  उस तकलीफ को आनंद कुमार जी   
ने सहा था।  

     
    आनंद कुमार जी के पिता डाक विभाग में चिट्ठियां छांटने वाले क्लर्क 

हुआ करते थे।  उनकी कमाई इतनी ज्यादा नहीं थी कि वो उन्हें किसी 

कान्वेंट स्कूल में पढ़ा सकें , इसीलिए उन्हें हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल 

में ही एडमिट करवाया।ट्यूशन की फीस देने के पैसे नहीं थे सो उन्हें बिना 

ट्यूशन के ही अपनी पढाई करनी पड़ी। मैथ्स में उनका बचपन से इंट्रेस्ट 

था। रामानुजन के शैदाई आनंद कुमार जी जब ग्रेजुएशन में थे 

तब mathematical spectrum और the mathematical gazette में 

number theory  पर उनका लेख भी छपा 

था।  पटना स्थित उनके डिग्री कॉलेज की  लाइब्रेरी में अंतर्राष्ट्रीय 

मैगज़ीन उपलब्ध नहीं होती थी तो वो शनिवार को ६ घंटे का सफर तय 

करके वाराणसी पहुँच जाते जहां उनका छोटा भाई पढ़ी कर रहा था। 

 शनिवार , रविवार के दिन वो BHU की लाइब्रेरी में पढाई करते थे। 

 सोमवार को पटना पहुँच जाया करते थे।  १९९२ ई० में उन्होंने पैसा

कमाने के लिए बच्चो को ट्यूशन पढ़ना शुरू कर दिया। ५०० रूपये में 

अपनी क्लास के लिए कमरा रेंट पर ले लिया। शुरू में उनके पास ३६ 

स्टूडेंट्स थे।  ३ साल में उनकी संख्या ५०० हो गयी।  १९९४-९५ में उनको 

उनकी जिंदगी का गोल्डन चांस मिला -जब उनको प्रख्यात कैम्ब्रिज 

विश्वविद्यालय में पढाई के लिए आमंत्रित किया गया। वो वही 

विश्वविद्यालय है जहां उनके अराध्य श्रीनिवास रामानुजन ने शिक्षा 

हासिल की थी।  

  आह!

  काबिलियत तो थी; लेकिन पैसा नहीं था।  उन्होंने स्पांसर तलाश करने 

चाहे लेकिन उन्हें अपना इरादा छोड़ना पड़ा।  तभी उनके पिता जी का 

हार्ट अटैक के कारन देहांत हो गया,परंतु उन्होंने पिता के निधन के बाद 

अनुकम्पा से मिलने वाली नौकरी करने का फैसला लिया।आर्थिक 

हालात मुश्किल हो गए।  उनका कहना है कि सब कुछ उनकी सोच के 

विपरीत हो रहा था, लेकिन उन्होंने तय किया -"अगर नौकरी कर लूंगा 

तो गणित में प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं मिल पाएगा।"

उनकी माँ ने पापड़ बनाने शुरू कर दिए। आनंद कुमार जी पापड़ 

साइकिल पर ले जाकर बेचते थे। २००० ई० के शुरूआती दौर में एक गरीब 

छात्र उनके पास आया।  उसके  पास ट्यूशन की फीस देने के लिए पैसे 

नहीं थे।  उसे देखकर शायद आनंद कुमार जी को अपने संघर्ष के दिन 

याद गए जब पैसे के अभाव में उनका सपना  टूट गया था। उन्होंने उस 

छात्र को बिना ट्यूशन  पढने का फैसला कर लिया। 
   
  यह बात आनंद के दिल को छू गई और उन्होंने उसे पढ़ाना स्वीकार कर लिया। वह छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में सफल हुआ। आनंद कहते हैं कि यह उनके जीवन का 'टर्निग प्वाइंट' था।   हां , तब ही सुपर-३० की नींव पड़ गयी। इसके बाद वर्ष २००१ ई० में उन्होंने सुपर-३०  की स्थापना की और गरीब बच्चों को आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराने लगे। वह कहते हैं कि अब उनका सपना एक विद्यालय खोलने का है। उनका कहना है कि गरीबी के कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं और आजीविका कमाने में लग जाते हैं।
आनंद की सुपर-३० अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है। वर्तमान में सुपर-३० में अब तक ३३० बच्चों ने दाखिला लिया है, जिसमें से 281 छात्र आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हुए हैं, और शेष अन्य इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंचे हैं। आनंद कुमार जी हर साल गरीब प्रतिभाशाली बच्चो लेते है और उनमे से ३० का चयन करते है जिन्हे वो आईआईटी की तैयारी करवाते है। सुपर-३० में वो उन्ही बच्चों को शामिल करते है जो आर्थिक रूप से कमजोर होते है। यहां दो शिक्षक हैं। इनमें से आनंद कुमार गणित पढ़ाते हैं जबकि इस संस्थान 

से जुड़े आईपीएस अधिकारी अभयानंद भौतिक विज्ञान का अध्यापन 

करते हैं।


छात्रों का चयन उनकी प्रतिभा के आधार पर किया जाता है। लेकिन एक 

महत्त्वपूर्ण कसौटी यह भी है कि छात्र किस तरह की पारिवारिक 

पृष्ठभूमि का है? टेस्ट परीक्षा के बाद इंटरव्यू लिया जाता है। संस्थान का 

प्रबंधन आनंद कुमार के भाई प्रणव करते हैं (वह शास्त्रीय वायलिन वादक 

भी हैं) और बच्चों के बारे में जानकारी लेते हैं। सुपर-३०  का गठन ठेकेदारों 

के बच्चों से हुआ है जो इसके लिए भुगतान करते हैं, लेकिन वहां ऑटो 

ड्राइवर, भूमिहीन श्रमिक, ईंट बनाने वाले मजदूर और डाक विभाग के 

लिपिक के बच्चे भी हैं जो पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकते लिहाजा उनके 

लिए सहायता की व्यवस्था है।

वहां के छात्र आनंद जी  का काफी आदर करते हैं। पांच से सात महीने के 

लिए छात्रों को प्रतिदिन १८ घंटे तक मेहनत करनी होती है और ऐसे 

अध्ययन के दौरान एकमात्र एजेंडा होता है संयुक्त प्रवेश परीक्षा में 

सफलता पाना। वे आनंद कुमार के घर में रहते हैं, उनकी मां द्वारा पकाया 

गया खाना खाते हैं और सिर्फ सिर्फ पढ़ाई करते हैं। उनमें से ज्यादातर 

उत्साही किक्रेट प्रशंसक हैं, लेकिन एग्जाम पास आने पर क्रिकेट भी 

देखना बंद कर देते है। 


पटना की  गरीब और अभावहीन छात्रों को आईआईटी के लिए तैयार करने वाली शिक्षक संस्था, सुपर-३०,  २०१४ ई० में   दुनिया के टॉप शिक्षण संस्थानों में शामिल हो गया है। जापान के एक मीडिया समूह 'आसाही शिनभून' ने सुपर-३०  को शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिष्ठित संस्थानों की टॉप ३  सूची में शामिल किया है।
गणितज्ञ आनंद कुमार के सुपर-30 को शिक्षा के क्षेत्र के तीन प्रतिष्ठित संस्थान में शामिल किया है। इनमें सुपर 30 के अलावा जापान का प्रमुख शिक्षण संस्थान 'जापान एजुकेशनल क्लब' और फ्रांस का एक शिक्षण संस्थान शामिल है।
जापानी मीडिया समूह के मुताबिक, आनंद आर्थिक परेशानियों की वजह से कैंब्रिज विश्वविद्यालय में चयन होने के बावजूद उसमें दाखिला नहीं ले पाए थे। इसी बात ने उन्हें गरीब बच्चों के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया। बाद में उन्होंने समाज के कमजोर तबके के बच्चों के लिए सुपर-30 की स्थापना की।
आनंद ने सुपर-30 की इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि यह 

संस्थान के बच्चों की मेहनत का नतीजा है। मैं तो केवल उनका मार्गदर्शन 

करता हूं।"
       
      उन्होंने इसके लिए जापानी मीडिया संस्थान को धन्यवाद 

दिया। उल्लेखनीय है कि सुपर 30 पर विभिन्न चैनल वृत्तचित्र भी बना 

चुके हैं। वर्ष 2010 में टाइम पत्रिका ने इस संस्थान को 'बेस्ट स्कूल ऑफ 

एशिया' का दर्जा दिया था
उल्लेखनीय है कि डिस्कवरी चैनल ने सुपर-30 पर एक घंटे का वृत्तचित्र बनाया, जबकि 'टाइम्स' पत्रिका ने सुपर-30 को एशिया का सबसे बेहतर स्कूल कहा है। इसके अलावा सुपर-30 पर कई वृत्तचित्र और फिल्में बन चुकी हैं। आनंद को देश और विदेश में कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

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