Tuesday, June 2, 2015

वीरांगना नीरजा भनोट

ये दुनिया अजीब-सी है।  राजनेता पडोसी देश को दुश्मन कह-कहकर,  जातियों का बंटवारा करके , धर्म का बंटवारा करके अपने लिए वोट की फसल बोते है।  कई बार कामयाब भी हो  जाते है। कुछ टाइम के लिए सत्ता में भी आ जाते है।  
    लेकिन…।
     दुनिया में ऐसे लोग  लिए सरहद की कोई वैल्यू नहीं होती , दुनिया का हर नागरिक उनके लिए अपने परिवार  सदस्य होता है।  शायद इसी भावना से वशीभूत होकर भारत की वीरांगना नीरजा भनोट ने हमारे पडोसी देश ( दुश्मन नहीं लिखूंगा ) -पाकिस्तान- के लोगों की रखा के लिए १७ घंटों तक आतंकवादियों से संघर्ष किया ; और अंत में अपनी जान भी गँवा दी थी।  



    घटना १९८६ ई० की है। 

    फ़्रंकफ़र्ट से न्यू यॉर्क  जाने वाला Pam Am Flight 73 विमान कराची, पाकिस्तान के हवाई अड्डे पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने विमान में प्रवेश किया और पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। पाकिस्तान क्या सारे संसार में हड़कम्प मच गया।  उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द से जल्द विमान में पायलट को भेजे; किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने दबाव में आने से इंकार कर दिया। तब आतंकियों ने फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करें ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किए और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। दुबली-पतली नाजुक-सी को अपनी सीमा पता थी।  उसे  पता था कि वो या फ्लाइट में बैठे ३४० यात्री उन हथियाबंद ट्रैंड आतंकवादियों का- जिनके सर पर खूनंस्वार था - सीधा मुकाबला नहीं कर पाएंगे। उनको दिमाग से ही काबू किया जा सकता था।पाकिस्तान सरकार दबाव नहीं आई तो आतंकियों ने एक ब्रिटिश  नागरिक को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तान सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजा तो वह उसको मार देंगे। तब नीरजा ने दिमाग  इस्तेमाल किया। उन वीरांगना ने  उस आतंकी से बात कर उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
  धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गए। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि वायुयान का ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं। उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिए क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करें। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारों ओर अंधेरा छा गया। नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों से नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी; किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे; किन्तु ठीक थे। अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थीकिन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज़ सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी कि अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उसके सामने खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। कहां वो दुर्दांत आतंकवादी और कहाँ वो 23 वर्ष की पतली-दुबली लड़की। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को बचा सके। वो वीरांगना अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी; किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी। उसने सबसे पहले सारा विमान खाली कराया और स्वयं को उन दुर्दांत राक्षसों के हाथों सौंप दिया।
    भारत की इस वीरांगना नीरजा भनोट का जन्म रमा भनोट और हरिश्चंद्र भनोट नामक ब्राह्मण दम्पति के घर चंडीगढ़ हुआ था जो मुंबई में पत्रकार थे। नीरजा ने अपनी शुरूआती पढाई चंडीगढ़ में की, उच्च शिक्षा मुंबई में हासिल की। १९८५ ई० में उसकी शादी हो गयी और वो अपने पति के पास खाड़ी चली गयी। दो महीनो के बाद ही दहेज़ उत्पीड़न बाद के बाद वो भारत में अपने माता-पिता के पास मुंबई लौट आई। उसके उसने Pam Am को फ्लाइट अटैंडेंट के रूप में ज्वाइन किया। चयन के बाद उसे मायामी ( अमेरिकन मियामी नहीं कहते ) ट्रेनिंग के लिए भेज दिया गया। वहां से वो purser (जहाज़ पर का ख़ज़ानची) बनाकर लौटी।  
    नीरजा Pam Am Flight 73 में सीनियर फ्लाइट अटैंडेंट थी जो मुंबई से उड़न भरकर 5 AM पर कराची उतरा था 
   17 घंटे तक चले इस अपहरण की त्रासदी ख़ून ख़राबे के साथ ख़त्म हुई थी जिसमें 20 लोग मारे गए थे। मारे गए लोगों में से 13 भारतीय थे। शेष अमरीका पाकिस्तान और मैक्सिको के नागरिक थे। इस घटनाक्रम में सौ से अधिक भारतीय घायल हुए थे, जिनमें से कई गंभीर रूप से घायल थे। भारतीय पीड़ितों की ओर से 178 लोगों ने ओबामा को लिखे पत्र में लिखा है कि वर्ष 2004 में इस बात का पता चला कि पैन एम 73 के अपहरण के पीछे लीबिया के चरमपंथियों का हाथ है और इसके बाद वर्ष 2006 में उन्होंने मुआवज़े के लिए अमरीकी अदालत में एक मुक़दमा दर्ज किया था। नीरजा के बलिदान ने दुनिया भर में कट्टर दुश्मन कहे जाने वाले दो देशो को एकमत कर दिया। नीरजा के  बलिदान के कारण एक ओर जहां भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान `अशोक चक्र' प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को `तमगा--इन्सानियत' प्रदान किया।

  २००४ ई०में ही भारत सरकार ने इस वीरांगना के नाम का डाक टिकट जारी किया। २००५ ई० में अमेरिका की सरकार ने उसे`Justice for Crimes Award' से सम्मानित किया। मुंबई

महानगरपालिका ने भी मुंबई ईस्ट के घाट कॉपर उपनगर के एक चौक


 का नाम उसके नाम पर भनोट चौक रख दिया है जिसका अनावरण


 महानायक अमिताभ बच्चन द्वारा किया गया। फिलहाल जानकारी


 मिली है कि नीरजा भनोट के जीवन पर एक फिल्म बनाने की तैयारी की


 जा रही है। आशा करता हूँ उस फिल्म को देखकर भारत के लोग उसके


 बारे में  जानेंगे और गर्व करेंगे कि जाति - धर्म , देश की सीमा से ऊपर


 उठकर जान देने वाली वीरांगना भारत की पावन  धरती पर  पैदा हुई।  


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