एक दिन मैं सिटी बस से कहीं जा रहा था. बस में अच्छी खासी भीड़ थी. एक साहब बस में दरवाजे के जस्ट पास वाली सीट पर बैठे थे. अच्छी खासी उम्र के थे. उनकी बेटी जवान न भी हो तो टीन एज की जरूर होगी.पढ़े लिखे भी लग रहे थे.सवाल ये है मैंने उनकी उम्र और बेटी की उम्र का जिक्र क्यों किया?
उसकी हरकत ही ऐसी थी.
उसकी हरकत का जिक्र करने से पहले मैं मेरठ की सिटी बसों के बारे में बता दूं. जवान लड़कियों को मनचलों की छेड़छाड़ से बचाने के जिलाधिकारी महोदय ने सिटी बसों में पार्टीशन करवा दिया था. ड्राईवर वाली सीट की तरफ वाले हिस्से में महिला केबिन बना है-जो कि पुरुष केबिन से एक दरवाजे के द्वारा जुड़ता है.वैसे दोनों केबिन्स में चढ़ने और उतरने के लिए अपने-अपने दरवाजे हैं. दोनों केबिनों को जोड़ने वाला दरवाजा बेसिकली सहचालक की सुविधा के लिए बनाया गया है ताकि वो टिकट काटते समय दोनों तरफ आराम से जा सके. सहचालक की इस सुविधा का पुरुष यात्री भी पूरा फायदा उठाते है.वो महिला केबिन की तरफ से चढ़ते हैं और दोनों केबिनो को जोड़ने वाले दरवाजे से होकर अपने केबिन में पहुँच जाते है. उतरते वक्त जो आदमी महिला केबिन के पास होता है वो भी दोनों को जोड़ने वाले दरवाजे को पर करके महिला केबिन वाले दरवाजे से नीचे उतर जाते है.इससे उन्हें पीछे हटकर पुरुष केबिन वाले दरवाजे के पास जाने की जहमत नहीं उठानी पड़ती.
अब बात करते है उन भाई साहब की.
पता है जब हम ऐसा काम करते है तो भूल जाते है कि हमारी भी बहन बेटियां है.
अब बात करते है उन भाई साहब की.
हाँ वही भाईसाहब जो पुरुष केबिन के एग्जिट दरवाजे के ठीक पास वाली सीट पर आराम से बैठे थे. उनका स्टॉप हापुड़ अड्डे से कुछ पहले आया था.जब वो भाई साहब बस से उतरे तो भाई साहब अपने ठीक पास वाली खिड़की से न उतरकर पूरे पुरुष केबिन की भीड़ को को बहादुरी के साथ चीरकर महिला केबिन में गये, उसके बाद वहां महिलाओं के भीड़ में पिसते हुए महिला केबिन के एग्जिट डोर से नीचे उतरे.
उन्होंने ऐसा क्यों किया????? ये समझना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं.
सच तुच्छ काम करने में उम्र या शिक्षा कि कोई बंदिश नहीं होती.
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