शाम को मैं किचन में थी. तब भी बारिश पड़ रही थी.
" बेबी आपका फोन है..."-शबनम आंटी ने मेरा मोबाइल मेरी तरफ बढाते हुए कहा.
फोन तब भी बज रहा था.
"आंटी, सब्जी का ध्यान रखना ....."-मैंने फोन लेते हुए व्यस्त भाव से कहा-"मैंने हल्दी मिर्च डाल दिए हैं.नमक आप डाल देना."
मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर निगाह डाली.
वो शशांक का नम्बर था, जो फ्लैश हो रहा था.
उस नम्बर पर नजर पड़ते ही एक टीस-सी मेरे दिल में उठी.
उस टीस की वजह से मेरा समूचा वुजूद तडपकर रह गया.
मैं फुर्ती से किचन से बाहर निकली, कहीं शबनम आंटी मेरे चेहरे पर तडप नोटिस न कर लें .
***
" हेल्लो."-मैंने माउथपीस में कहा तो मुझे लगा जैसे मेरी आवाज सागर के तल को छूकर बाहर निकल रही थी.
अपने बैडरूम में जाते ही मैंने काल रिसीव की थी.
" कहाँ हो तुम????"-उसने दूसरी तरफ से नाराजगी से कहा-"इतने दिनों से चैटरूम में तुम्हे देख रहा हूँ. तुम ऑनलाइन क्यों नहीं होती हो? फोन भी कई बार स्विचऑफ मिला. कई बार बैल गयी तो तुमने कॉल अटैंड ही नहीं की."
"म..मैं बाथरूम में होउंगी. "-मैंने बहाना बनाया-"ध्यान नहीं गया होगा."
"बहाना मत बनाओ."-उसने रोषपूर्ण लहजे में कहा-"सच बताओ तुम मुझे क्यों नेगेक्ट कर रही हो??"
"नेग्लेक्ट नहीं कर रही..."-विवशता से मैं मिमियाई-"बस, मैं किसी से बात नहीं करना चाहती."
"क्यों?"
"मेरा म..मन नहीं करता."
"पलक, अपनों से बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा???"-शशांक ने मुझे समझाने का प्रयत्न किया-"सारे गम अपनों से ही शेयर किये जाते है. मानता हूँ यार अपने पापा के गुजर जाने के बाद तुम खुश नहीं हो बट क्या खुद को घर में बंद कर लोगी?"
"न..नहीं वो बात नहीं है."
"तो?"
"अभी मैं नोर्मल नहीं हो पा रही हूँ."
"क्या इस तरह लोगों से कटकर नार्मल रह पाओगी?"-शशांक ने मुझे समझाने की कोशिश की -"पलक, हम सिर्फ दोस्त ही नहीं है यार , हम लाइफ पार्टनर भी हैं. तूम अपनी हर तकलीफ मुझे शेयर करो. अगर ऐसी कोई बात है जो मुझसे शेयर नहीं कर सकती तो मम्मी से शेयर कर लो."
" No-No. I m fine ...."- मैं कांपते हुए स्वर में बोली.
उसकी हर बात जैसे मेरे जख्म पर नमक का फाहा रख रही हो. तडप के कारण मेरा बुरा हाल था.
"Are you sure?"--वो बोला.
"Yaa...absolutely."
"तो तुम मुझे नेगलेक्ट तो नहीं करोगी?
"तुम स अपनी ट्रेनिंग पर ध....ध्यान दो बस"-मैंने बात बदली-"यहाँ पर मेरी केयर करने के लिए बहुत लोग हैं."
"इस वक्त कहाँ रहती हो?"
"अपने घर में."-मैंने बताया.
"अकेली?"
"नहीं, शब्बो आंटी भी यहाँ शिफ्ट हो गयी हैं."-मैंने बताया-"और `वो` मेरे साथ हैं ही."
"वो कौन?"
" व्..वो एंग्री यंग मैन.."मैन बालकनी की तरफ बढती हुई बोली.-"वो मेरी पूरी केयर करते है. "
"एंग्री यंगमैन.."शशांक का लहजा खुश्क हो गया था.
" नहीं-नहीं ..शब्बो आंटी और उनके हसबैंड .."मैं बोली.मैंने संशोधन किया मानो.-"वो मेरी पूरी केयर करते है.?
"तो अब उसे घर से निकल जो दो..."-शशांक ने कहा-"अब तो तुम्हारे पापा भी नहीं है."
मैं तत्काल सकपकाई.
गडबडा गयी.
अगले ही पल मैं बोली-"शशांक, एक्चुली पा ने कहा था `उन्हें` यही रहने दूं...."-विराम लेकर मैं बोली -"वैसे भी हमारा कोई सम्पर्क नहीं होता. बस ब्रेकफास्ट पर मिलते हैं या डिनर पर. बातचीत तक नहीं होती है उस दौरान ठीक से."
"ठीक है, तुम अपना ख्याल रखना."
" हाँ,रखूंगी..."-मैं बोली-"तुम मेरी चिंता मत करो. मेरी जरा-सी भी फ़िक्र मत करो. बस अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दो."
" I love you Palak..."-वो गम्भीर स्वर में बोला.
मेरे वुजूद पर मानो तेजाब बरसा था.
मेरे दिल को किसी बेरहम शिकारी ने जैसे मुट्ठी में लेकर कसकर भींच दिया था. तडप के कारण आँखों में आंसू
छलक पड़े. बरसता आसमान भी जैसे शोक गीत गा रहा था.
"I love you too....."मैं भर्राए स्वर में कहती हो घूमी तो मेरा शरीर जम सा गया था जैसे.
मेरे सामने `वो` खड़े थे . लगातार मुझे देख रहे थे. पता नहीं क्यों , तब मुझे लगा मानो मैं चोरी करती हुई पकड़ी गयी होऊं.मेरी आवाज और ज्यादा भ्रर्रा गयी. मैं बोली-"I will call you later."
और शशांक का जवाब सुने बिना ही सम्पर्क काट दिया.
वो तब भी लगातार मुझे घूरे जा रहे थे.
क्यों?
मैं नहीं समझी.शायद समझ भी जाती अगर मैं उनकी आँखों में झांकर देखती.आँखों में तो तब झांककर देखती जन मैं उनसे नजर मिला पाती. फोन मजबूती से अपने हाथ में थामे आंसुओं से भरी नजर झुकाए मैं उनके पास से होती हुई बैडरूम से बाहर निकल गयी.
किचन में जाते-जाते मैंने रास्ते में ही आँखें साफ़ कर ली थीं ताकि शबनम आंटी मेरे आंसूं न देख लें.
***
मैं रूटीन के अनुसार डिनर लेकर बैडरूम में ही गयी.
रोज ही हम ख़ामोशी से खाना खाया करते थे मगर उस रात डिनर के वक्त पर ख़ामोशी थोड़ी-सी तनावपूर्ण-सी थी. बरसात के गूंजते शोर में हमारे मुह के चलने की आवाजें आ रही थीं.
खान निबटा.
मैंने खाने के बाद गंदे बर्तनों को उठाकर ले जाकर किचन के सिंक में डम्प कर दिया ताकि सुबह के समय नौकरानी साफ़ कर दे.
मैं वापिस बैडरूम में गयी.वो बिस्तर के बजाए स्टडी टेबल पर बैठे किताब के प्रूफ पढ़ रहे थे.
मैं रूम का दरवाजा लाक करके बिस्तर पर चली गयी.
फिर ख़ामोशी.
बारिश का शोर निर्बाध गूँज रहा था. मेरा मूड था मैं कुछ टी.वी. पर देखूं, मगर टी.वी. ऑन करती तो कमरे में शोर होता जिससे उन्हें काम करने में दिक्कत होती. उस रात तो हमने रात के आठ बजे ही डिनर कर लिया था.क्योंकि वो छ: बजे ही आगये थे.
बोरियत ने जब तंग कर दिया तो अचानक मेरा ध्यान उन गिफ्ट्स की तरफ गया जो मेरे बैडरूम के स्टोर में रखे थे. वो भी तो तब तक खोले नहीं गये थे
सो!
मैं उठी और स्टोर में चली गयी.
स्टोर रूम में गिफ्ट्स पैक्स का ढेर लगा हुआ था. जो पैक्स उनके थे पहचान वालों के थे वो भी, और जो मेरी पहचान वालों की तरफ से आये थे , सब मिक्स थे.
मैं स्टोर रूम के फर्श पर बैठ गयी और एक-एक करके छांटकर अपने रिश्तेदारों के गिफ्ट्स खोलने लगी.
मैं दो ही गिफ्ट खोल पाई थी कि स्टोर के दरवाजे पर आहट पाकर मैं चौंकी.
उधर लुक दी.
वो थे.
वो सवालिया निगाह से मुझे देख रहे थे. -"what are you doing?"
"बोर हो रही थी. सोचा गिफ्ट ही चैक कर लूं."-मैंने कहा-"खैर, ये तो बहुत ज्यादा है. आप नहीं देखना चाहते?आपके पहचान वालों ने भी तो फिफ्ट दिए है."
"हाँ, दिए है."-वो बोले-" मुझे नहीं पता कहाँ रखे है."
"सब इन्ही में मिक्स है."
"ओह्ह."-वो जरा हिचकिचाए.
"आप नहीं देखना चाहते?"
"हाँ.."-वो बोले-"मैं स्क्रिप्ट को बंद करके रख आऊं."
"OK..."मैंने कहा.
चाँद मिनटों में वो वापिस भी आ गये.
स्टोर रूम ज्यादा बड़ा नहीं था.थोडा-सा सामान पहले ही रखा था. साथ में फैले पड़े गिफ्ट्स पैक की वजह से थोडा-सा ही स्पक्रे बचा था. वहां पहले से ही मैं भी बैठी थी. सो, उन्हें मेरे पास ही बैठना पड़ा.
हम दोनों ने गिफ्ट्स खोलने शुरू किये.
नोर्मल कपल्स वाले गिफ्ट्स.
राधा-किशन, दो बच्चों के कपल वाली , तोता-मैना उत्यादी कपल वाली चीजें हर गिफ्ट गिफ्ट में थी.एक-दो गिफ्ट्स के बाद हम दोनों के हाथ में जो भी गिफ्ट आता था हम खोलकर देख लेते थे. अगर गिफ्ट पैक पर लिखा नाम हमारे लिए अजनबी होता था तो हम गिफ्ट के पैक पर लिखा नाम पढकर दुसरे को बता देते- वो दुसरे की पहचान का निकल आता था.
"ये निकुम चावला कौन है......?"-गिफ्ट पैक पर लिखे नाम को पढकर मैंने पुछा.
" he is my chieldhood chum........."-वो मुस्कुराये -"खोलकर देखो क्या हैं इसमें?"
वो गिफ्ट काफी बड़ा था.
मैंने गिफ्ट को खोलना शुरू किया तो उन्होंने अपने हाथ में थमे पैक पर से ध्यान हटाकर मेरी तरफ देखना शुरू क्र दिया. गिफ्ट खुलते ही बरबस मेरे होठों से चींख निकल गयी.शुक्र था मैं पछाड़ खाकर नहीं गिर पड़ी. मेरा पूरा वुजूद ही कांपकर रह गया था. रूह दहल उठी थी.
गिफ्ट में से एक भयानक सूरत जम्प मारकर बाहर निकली थी.
`वो` भी स्तब्ध.
फिर अगली ही पल हमे आभास हुआ वो रबड़ का था. नकली था.
हम दोनों विश्फारित नेत्रों से उस रबड़ के भयानक चेहरे को देख रहे थे, जो दाँत दिखता हुआ ठुमक रहा था.
स्टोर में पिन साइलेंस का माहौल चाय रहा. हम लगातार कई पलों तक फ्रीज हालत में.........उस ठुमकते हुए भयानक चेरे को देखते रहे. फिर मैंने `उन्हें` लुक दी.
हमारी नजरे मिलीं तो हमारे होठों पर मुस्कान न्रत्य कर उठी.वो मुस्कान हंसी में तब्दील होती चली गयी.
"are you fine..."-हँसते हुए वो बोले.
"हाँ....'मैंने बताया-"ठीक हूँ मैं."
मैंने सावधानी से गिफ्ट पैक से उस भयानक चेहरे को बाहर निकला तो स्प्रिंग समेत वो बाहर निकल आया.मैंने गिफ्ट पैक में झांककर देखा तो उसमे एक ग्रीटिंग कार्ड रखा मिला. मैंने ग्रीटिंग बाहर निकला.खोलकर उसे पढ़ा. लिखा था -
साले , कमीने तो इसी गिफ्ट के लायक है. अबे शादी में नहीं बुलाया तो कोई बात नहीं , अब क्या सुहागरात भी अकेला ही मनायेगा क्या????
तेरा बाप -
निकुम चावला
पढकर मेरा चेहरा सिन्दूरी हो गया.
"क्या लिखा है?"-वो सस्पैंस भरे स्वर में कहा.
मैने कोई जवाब न देकर वो कार्ड उनकी तरफ बढ़ा दिया. उन्होंने कार्ड कोलेकर पढ़ा और मुस्कुरा दिए.
"लगता है नाराज हैं वो..."-मैं बोली.
"वो गलत नहीं है..."-वो मुस्कुराते हुए तत्काल वो गम्भीर हो गये.-"पर उसे बताता भी तो तभी न जब सचमुच शादी हो रही होती."
मैं भी गम्भीर हो गयी किन्तु उन्हें गिफ्ट पैक खोलने मेंपाकर मई भी व्यस्त हो गयी.
उसके बाद उनके एक और अत्यंत क्लोज फ्रेंड का मेरे हाथ में आया. जैसे ही मैंने नाम बताया तो उन्होंने वो ले लिया-" क्या पता इसमें क्या छिपा रखा है उसने ."
उन्होंने उसे खोला मैं इंटरेस्ट लेती हुई उन्ही की तरफ देखने लगी. मैं एक्स्पेक्ट के रही थी कि उसमे भी कोई सरप्राइज होगा. हायद था कुछ सरप्राइज ही. गिफ्ट पैक के डिब्बे में झांककर उन्होंने देखा. मुकुराए और डिब्बा बंद करके अपनी साइड में रख लिया. मैंने पूछना चाह-"इसमें क्या है?"-मगर होंठ खोलकर सख्ती से बंद क्र लिए.
हम दोनों फिर अपने गिफ्ट्स खोलने लगे. नेहा का गिफ्ट उनके हाथ में आया नेहा का नाम गीत पर पढकर वो बोले-"ये तो आपकी शेली है ना, the verry close one?"
" Na.............the only one who is close with me ."
"लो तो देखो क्या भेजा है उसने?"-उन्होंने गिफ्ट पैक मेरी ओर बढाया मगर मैंने इनकार क्र दिया-"आप ही निकल लो बाहर."
"ओ.के."-उन्होंने लंधे उचके दिए.
गिफ्ट खोला.
झांककर देखा और तुरंत ही गिफ्ट पैक बंद कर दिया और एक तरफ रख दिया.
मैं चौंकी. उलझी-"क्या है इसमें."
"कुछ काम की ही चीज है."उन्होंने कहा-"पर अभी काम नहीं आने वाली."
"कब आयेगी?"
"शादी के बाद."-वो बोले -" जब आप अपने बॉय फ्रेंड से करोगी."
मेरी समझ में कुछ नही आया. चाहती थी की देहूं पैक में क्या कैद करके नेहा की बच्ची ने भेजा था मगर नहीं कर सकती थी. ये बात पक्की थी कुछ पर्सनल था इसी वजह से वो सामान उन्होंने बाहर नहीं निकला. देट्स मीन -वो चाहते थे मैं उस सामान को पर्सनली देखूं.
सो!
मैंने गिफ्ट को तब नहीं देखा.
***
सारे गिफ्ट्स देखने के बाद हमने उन्हें वहीं छोड़ दिया. दो गिफ्ट्स उन्हों पैक मैं ही रहने दिए. नेहा का गिफ्ट भी वहीं र छोडकर मैं बेडरूम में आ गयी थी.
तब आधी रात होने को थी.
बिस्तर पर उसी तरह तकियों का बरसात तब भी पड़ रही थी सो मौसम थोडा ठंडा हो गया था. किंग साइज बैड के लिए लिहाफ भी किंग साइज ही था मैंने अपने लिए लिहाफ निकाल लिया. था.
"आपको ठण्ड तो नहीं लग रही?"-मैं बोली-" आप भी ओढ़ लो."
"नो थैंक्स."-वो बोले -"इट्स ओ.के."
मैने लिहाफ ओढ़ लिया.
हम दोनों लेट गये. हमारे चेहरे एक दुसरे के विपरीत थे. मैं सोने की कोशिश करने लगी. कमरे की ख़ामोशी में बरसात के शोर बीच उनका स्वर मेरे कानों में पड़ा-"अज किसका फोन आया था?"
"कब?"
"शाम को."- उनकी आवाज-"जब मैं आया था. ..........आप बालकनी में खड़ी बात कर रही थी."
"तब........."
"हाँ."
"व्-व्-व्-वो शशांक का फोन आया था."
"आपका बॉयफ्रेंड."
मुझे अच्छा नहीं लगा.
"ह-हाँ."-मैं बोली.
"क्या सब ठीक है?-उनकी आवाज.
"हाँ."-मैंने कहा-" कोई प्रोब्लम नहीं है हम दोनों के बीच "
उन्होंने और कुछ नहीं पूछा.
" बेबी आपका फोन है..."-शबनम आंटी ने मेरा मोबाइल मेरी तरफ बढाते हुए कहा.
फोन तब भी बज रहा था.
"आंटी, सब्जी का ध्यान रखना ....."-मैंने फोन लेते हुए व्यस्त भाव से कहा-"मैंने हल्दी मिर्च डाल दिए हैं.नमक आप डाल देना."
मैंने मोबाइल की स्क्रीन पर निगाह डाली.
वो शशांक का नम्बर था, जो फ्लैश हो रहा था.
उस नम्बर पर नजर पड़ते ही एक टीस-सी मेरे दिल में उठी.
उस टीस की वजह से मेरा समूचा वुजूद तडपकर रह गया.
मैं फुर्ती से किचन से बाहर निकली, कहीं शबनम आंटी मेरे चेहरे पर तडप नोटिस न कर लें .
***
" हेल्लो."-मैंने माउथपीस में कहा तो मुझे लगा जैसे मेरी आवाज सागर के तल को छूकर बाहर निकल रही थी.
अपने बैडरूम में जाते ही मैंने काल रिसीव की थी.
" कहाँ हो तुम????"-उसने दूसरी तरफ से नाराजगी से कहा-"इतने दिनों से चैटरूम में तुम्हे देख रहा हूँ. तुम ऑनलाइन क्यों नहीं होती हो? फोन भी कई बार स्विचऑफ मिला. कई बार बैल गयी तो तुमने कॉल अटैंड ही नहीं की."
"म..मैं बाथरूम में होउंगी. "-मैंने बहाना बनाया-"ध्यान नहीं गया होगा."
"बहाना मत बनाओ."-उसने रोषपूर्ण लहजे में कहा-"सच बताओ तुम मुझे क्यों नेगेक्ट कर रही हो??"
"नेग्लेक्ट नहीं कर रही..."-विवशता से मैं मिमियाई-"बस, मैं किसी से बात नहीं करना चाहती."
"क्यों?"
"मेरा म..मन नहीं करता."
"पलक, अपनों से बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा???"-शशांक ने मुझे समझाने का प्रयत्न किया-"सारे गम अपनों से ही शेयर किये जाते है. मानता हूँ यार अपने पापा के गुजर जाने के बाद तुम खुश नहीं हो बट क्या खुद को घर में बंद कर लोगी?"
"न..नहीं वो बात नहीं है."
"तो?"
"अभी मैं नोर्मल नहीं हो पा रही हूँ."
"क्या इस तरह लोगों से कटकर नार्मल रह पाओगी?"-शशांक ने मुझे समझाने की कोशिश की -"पलक, हम सिर्फ दोस्त ही नहीं है यार , हम लाइफ पार्टनर भी हैं. तूम अपनी हर तकलीफ मुझे शेयर करो. अगर ऐसी कोई बात है जो मुझसे शेयर नहीं कर सकती तो मम्मी से शेयर कर लो."
" No-No. I m fine ...."- मैं कांपते हुए स्वर में बोली.
उसकी हर बात जैसे मेरे जख्म पर नमक का फाहा रख रही हो. तडप के कारण मेरा बुरा हाल था.
"Are you sure?"--वो बोला.
"Yaa...absolutely."
"तो तुम मुझे नेगलेक्ट तो नहीं करोगी?
"तुम स अपनी ट्रेनिंग पर ध....ध्यान दो बस"-मैंने बात बदली-"यहाँ पर मेरी केयर करने के लिए बहुत लोग हैं."
"इस वक्त कहाँ रहती हो?"
"अपने घर में."-मैंने बताया.
"अकेली?"
"नहीं, शब्बो आंटी भी यहाँ शिफ्ट हो गयी हैं."-मैंने बताया-"और `वो` मेरे साथ हैं ही."
"वो कौन?"
" व्..वो एंग्री यंग मैन.."मैन बालकनी की तरफ बढती हुई बोली.-"वो मेरी पूरी केयर करते है. "
"एंग्री यंगमैन.."शशांक का लहजा खुश्क हो गया था.
" नहीं-नहीं ..शब्बो आंटी और उनके हसबैंड .."मैं बोली.मैंने संशोधन किया मानो.-"वो मेरी पूरी केयर करते है.?
"तो अब उसे घर से निकल जो दो..."-शशांक ने कहा-"अब तो तुम्हारे पापा भी नहीं है."
मैं तत्काल सकपकाई.
गडबडा गयी.
अगले ही पल मैं बोली-"शशांक, एक्चुली पा ने कहा था `उन्हें` यही रहने दूं...."-विराम लेकर मैं बोली -"वैसे भी हमारा कोई सम्पर्क नहीं होता. बस ब्रेकफास्ट पर मिलते हैं या डिनर पर. बातचीत तक नहीं होती है उस दौरान ठीक से."
"ठीक है, तुम अपना ख्याल रखना."
" हाँ,रखूंगी..."-मैं बोली-"तुम मेरी चिंता मत करो. मेरी जरा-सी भी फ़िक्र मत करो. बस अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान दो."
" I love you Palak..."-वो गम्भीर स्वर में बोला.
मेरे वुजूद पर मानो तेजाब बरसा था.
मेरे दिल को किसी बेरहम शिकारी ने जैसे मुट्ठी में लेकर कसकर भींच दिया था. तडप के कारण आँखों में आंसू
छलक पड़े. बरसता आसमान भी जैसे शोक गीत गा रहा था.
"I love you too....."मैं भर्राए स्वर में कहती हो घूमी तो मेरा शरीर जम सा गया था जैसे.
मेरे सामने `वो` खड़े थे . लगातार मुझे देख रहे थे. पता नहीं क्यों , तब मुझे लगा मानो मैं चोरी करती हुई पकड़ी गयी होऊं.मेरी आवाज और ज्यादा भ्रर्रा गयी. मैं बोली-"I will call you later."
और शशांक का जवाब सुने बिना ही सम्पर्क काट दिया.
वो तब भी लगातार मुझे घूरे जा रहे थे.
क्यों?
मैं नहीं समझी.शायद समझ भी जाती अगर मैं उनकी आँखों में झांकर देखती.आँखों में तो तब झांककर देखती जन मैं उनसे नजर मिला पाती. फोन मजबूती से अपने हाथ में थामे आंसुओं से भरी नजर झुकाए मैं उनके पास से होती हुई बैडरूम से बाहर निकल गयी.
किचन में जाते-जाते मैंने रास्ते में ही आँखें साफ़ कर ली थीं ताकि शबनम आंटी मेरे आंसूं न देख लें.
***
मैं रूटीन के अनुसार डिनर लेकर बैडरूम में ही गयी.
रोज ही हम ख़ामोशी से खाना खाया करते थे मगर उस रात डिनर के वक्त पर ख़ामोशी थोड़ी-सी तनावपूर्ण-सी थी. बरसात के गूंजते शोर में हमारे मुह के चलने की आवाजें आ रही थीं.
खान निबटा.
मैंने खाने के बाद गंदे बर्तनों को उठाकर ले जाकर किचन के सिंक में डम्प कर दिया ताकि सुबह के समय नौकरानी साफ़ कर दे.
मैं वापिस बैडरूम में गयी.वो बिस्तर के बजाए स्टडी टेबल पर बैठे किताब के प्रूफ पढ़ रहे थे.
मैं रूम का दरवाजा लाक करके बिस्तर पर चली गयी.
फिर ख़ामोशी.
बारिश का शोर निर्बाध गूँज रहा था. मेरा मूड था मैं कुछ टी.वी. पर देखूं, मगर टी.वी. ऑन करती तो कमरे में शोर होता जिससे उन्हें काम करने में दिक्कत होती. उस रात तो हमने रात के आठ बजे ही डिनर कर लिया था.क्योंकि वो छ: बजे ही आगये थे.
बोरियत ने जब तंग कर दिया तो अचानक मेरा ध्यान उन गिफ्ट्स की तरफ गया जो मेरे बैडरूम के स्टोर में रखे थे. वो भी तो तब तक खोले नहीं गये थे
सो!
मैं उठी और स्टोर में चली गयी.
स्टोर रूम में गिफ्ट्स पैक्स का ढेर लगा हुआ था. जो पैक्स उनके थे पहचान वालों के थे वो भी, और जो मेरी पहचान वालों की तरफ से आये थे , सब मिक्स थे.
मैं स्टोर रूम के फर्श पर बैठ गयी और एक-एक करके छांटकर अपने रिश्तेदारों के गिफ्ट्स खोलने लगी.
मैं दो ही गिफ्ट खोल पाई थी कि स्टोर के दरवाजे पर आहट पाकर मैं चौंकी.
उधर लुक दी.
वो थे.
वो सवालिया निगाह से मुझे देख रहे थे. -"what are you doing?"
"बोर हो रही थी. सोचा गिफ्ट ही चैक कर लूं."-मैंने कहा-"खैर, ये तो बहुत ज्यादा है. आप नहीं देखना चाहते?आपके पहचान वालों ने भी तो फिफ्ट दिए है."
"हाँ, दिए है."-वो बोले-" मुझे नहीं पता कहाँ रखे है."
"सब इन्ही में मिक्स है."
"ओह्ह."-वो जरा हिचकिचाए.
"आप नहीं देखना चाहते?"
"हाँ.."-वो बोले-"मैं स्क्रिप्ट को बंद करके रख आऊं."
"OK..."मैंने कहा.
चाँद मिनटों में वो वापिस भी आ गये.
स्टोर रूम ज्यादा बड़ा नहीं था.थोडा-सा सामान पहले ही रखा था. साथ में फैले पड़े गिफ्ट्स पैक की वजह से थोडा-सा ही स्पक्रे बचा था. वहां पहले से ही मैं भी बैठी थी. सो, उन्हें मेरे पास ही बैठना पड़ा.
हम दोनों ने गिफ्ट्स खोलने शुरू किये.
नोर्मल कपल्स वाले गिफ्ट्स.
राधा-किशन, दो बच्चों के कपल वाली , तोता-मैना उत्यादी कपल वाली चीजें हर गिफ्ट गिफ्ट में थी.एक-दो गिफ्ट्स के बाद हम दोनों के हाथ में जो भी गिफ्ट आता था हम खोलकर देख लेते थे. अगर गिफ्ट पैक पर लिखा नाम हमारे लिए अजनबी होता था तो हम गिफ्ट के पैक पर लिखा नाम पढकर दुसरे को बता देते- वो दुसरे की पहचान का निकल आता था.
"ये निकुम चावला कौन है......?"-गिफ्ट पैक पर लिखे नाम को पढकर मैंने पुछा.
" he is my chieldhood chum........."-वो मुस्कुराये -"खोलकर देखो क्या हैं इसमें?"
वो गिफ्ट काफी बड़ा था.
मैंने गिफ्ट को खोलना शुरू किया तो उन्होंने अपने हाथ में थमे पैक पर से ध्यान हटाकर मेरी तरफ देखना शुरू क्र दिया. गिफ्ट खुलते ही बरबस मेरे होठों से चींख निकल गयी.शुक्र था मैं पछाड़ खाकर नहीं गिर पड़ी. मेरा पूरा वुजूद ही कांपकर रह गया था. रूह दहल उठी थी.
गिफ्ट में से एक भयानक सूरत जम्प मारकर बाहर निकली थी.
`वो` भी स्तब्ध.
फिर अगली ही पल हमे आभास हुआ वो रबड़ का था. नकली था.
हम दोनों विश्फारित नेत्रों से उस रबड़ के भयानक चेहरे को देख रहे थे, जो दाँत दिखता हुआ ठुमक रहा था.
स्टोर में पिन साइलेंस का माहौल चाय रहा. हम लगातार कई पलों तक फ्रीज हालत में.........उस ठुमकते हुए भयानक चेरे को देखते रहे. फिर मैंने `उन्हें` लुक दी.
हमारी नजरे मिलीं तो हमारे होठों पर मुस्कान न्रत्य कर उठी.वो मुस्कान हंसी में तब्दील होती चली गयी.
"are you fine..."-हँसते हुए वो बोले.
"हाँ....'मैंने बताया-"ठीक हूँ मैं."
मैंने सावधानी से गिफ्ट पैक से उस भयानक चेहरे को बाहर निकला तो स्प्रिंग समेत वो बाहर निकल आया.मैंने गिफ्ट पैक में झांककर देखा तो उसमे एक ग्रीटिंग कार्ड रखा मिला. मैंने ग्रीटिंग बाहर निकला.खोलकर उसे पढ़ा. लिखा था -
साले , कमीने तो इसी गिफ्ट के लायक है. अबे शादी में नहीं बुलाया तो कोई बात नहीं , अब क्या सुहागरात भी अकेला ही मनायेगा क्या????
तेरा बाप -
निकुम चावला
पढकर मेरा चेहरा सिन्दूरी हो गया.
"क्या लिखा है?"-वो सस्पैंस भरे स्वर में कहा.
मैने कोई जवाब न देकर वो कार्ड उनकी तरफ बढ़ा दिया. उन्होंने कार्ड कोलेकर पढ़ा और मुस्कुरा दिए.
"लगता है नाराज हैं वो..."-मैं बोली.
"वो गलत नहीं है..."-वो मुस्कुराते हुए तत्काल वो गम्भीर हो गये.-"पर उसे बताता भी तो तभी न जब सचमुच शादी हो रही होती."
मैं भी गम्भीर हो गयी किन्तु उन्हें गिफ्ट पैक खोलने मेंपाकर मई भी व्यस्त हो गयी.
उसके बाद उनके एक और अत्यंत क्लोज फ्रेंड का मेरे हाथ में आया. जैसे ही मैंने नाम बताया तो उन्होंने वो ले लिया-" क्या पता इसमें क्या छिपा रखा है उसने ."
उन्होंने उसे खोला मैं इंटरेस्ट लेती हुई उन्ही की तरफ देखने लगी. मैं एक्स्पेक्ट के रही थी कि उसमे भी कोई सरप्राइज होगा. हायद था कुछ सरप्राइज ही. गिफ्ट पैक के डिब्बे में झांककर उन्होंने देखा. मुकुराए और डिब्बा बंद करके अपनी साइड में रख लिया. मैंने पूछना चाह-"इसमें क्या है?"-मगर होंठ खोलकर सख्ती से बंद क्र लिए.
हम दोनों फिर अपने गिफ्ट्स खोलने लगे. नेहा का गिफ्ट उनके हाथ में आया नेहा का नाम गीत पर पढकर वो बोले-"ये तो आपकी शेली है ना, the verry close one?"
" Na.............the only one who is close with me ."
"लो तो देखो क्या भेजा है उसने?"-उन्होंने गिफ्ट पैक मेरी ओर बढाया मगर मैंने इनकार क्र दिया-"आप ही निकल लो बाहर."
"ओ.के."-उन्होंने लंधे उचके दिए.
गिफ्ट खोला.
झांककर देखा और तुरंत ही गिफ्ट पैक बंद कर दिया और एक तरफ रख दिया.
मैं चौंकी. उलझी-"क्या है इसमें."
"कुछ काम की ही चीज है."उन्होंने कहा-"पर अभी काम नहीं आने वाली."
"कब आयेगी?"
"शादी के बाद."-वो बोले -" जब आप अपने बॉय फ्रेंड से करोगी."
मेरी समझ में कुछ नही आया. चाहती थी की देहूं पैक में क्या कैद करके नेहा की बच्ची ने भेजा था मगर नहीं कर सकती थी. ये बात पक्की थी कुछ पर्सनल था इसी वजह से वो सामान उन्होंने बाहर नहीं निकला. देट्स मीन -वो चाहते थे मैं उस सामान को पर्सनली देखूं.
सो!
मैंने गिफ्ट को तब नहीं देखा.
***
सारे गिफ्ट्स देखने के बाद हमने उन्हें वहीं छोड़ दिया. दो गिफ्ट्स उन्हों पैक मैं ही रहने दिए. नेहा का गिफ्ट भी वहीं र छोडकर मैं बेडरूम में आ गयी थी.
तब आधी रात होने को थी.
बिस्तर पर उसी तरह तकियों का बरसात तब भी पड़ रही थी सो मौसम थोडा ठंडा हो गया था. किंग साइज बैड के लिए लिहाफ भी किंग साइज ही था मैंने अपने लिए लिहाफ निकाल लिया. था.
"आपको ठण्ड तो नहीं लग रही?"-मैं बोली-" आप भी ओढ़ लो."
"नो थैंक्स."-वो बोले -"इट्स ओ.के."
मैने लिहाफ ओढ़ लिया.
हम दोनों लेट गये. हमारे चेहरे एक दुसरे के विपरीत थे. मैं सोने की कोशिश करने लगी. कमरे की ख़ामोशी में बरसात के शोर बीच उनका स्वर मेरे कानों में पड़ा-"अज किसका फोन आया था?"
"कब?"
"शाम को."- उनकी आवाज-"जब मैं आया था. ..........आप बालकनी में खड़ी बात कर रही थी."
"तब........."
"हाँ."
"व्-व्-व्-वो शशांक का फोन आया था."
"आपका बॉयफ्रेंड."
मुझे अच्छा नहीं लगा.
"ह-हाँ."-मैं बोली.
"क्या सब ठीक है?-उनकी आवाज.
"हाँ."-मैंने कहा-" कोई प्रोब्लम नहीं है हम दोनों के बीच "
उन्होंने और कुछ नहीं पूछा.
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